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Gida: 07.12.2012
Acharya Mahashraman said that purpose of Sadhana is victory over soul. Victory over soul is super victory. Devote you mind in Swadhayay and Upasana.
News in Hindi
आत्मा को जीतना ही परम विजय है: आचार्य महाश्रमण
गिड़ा-बाड़मेर 07 दिसम्बर 2012 जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो
राष्ट्रभक्ति की भावना के साथ उत्साह से लडऩा वीरता है। युद्ध की दो मुख्य बाते हैं जब योद्धा निर्भीकता से लड़ते-लड़ते शहीद हो जाए तथा लडऩे के बाद उसकी सेना विजयी हो जाए तो वह वीरता है और जब योद्धा युद्ध के दौरान युद्ध क्षेत्र को छोड़ कर भाग जाए तो वह भगोड़ा अथवा कायर कहलाता है। यह उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने गिड़ा ग्राम पंचायत में श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
आचार्य ने कहा देह तो क्षणभंगुर होती है। श्रीमद् भगवत गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, 'हे अर्जुन! अगर तुम युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग में जाओगे और यदि जीत गए तो सत्ता मिल जाएगी। अत: तुम उठो और युद्ध करो। अपनी जीत के उद्देश्यों से कई सैनिकों की हिंसा की जाती है और विजय प्राप्त करता है। परन्तु जो व्यक्ति अपनी आत्मा को जीत लेता है वह परम विजेता होता है। अध्यात्म की साधना स्वयं को जीतने की साधना होती है। आदमी अगर मन को अपना गुलाम बना ले तो आत्मा पर विजय प्राप्त कर सकता है। 'मन लोभी, मन लालची, मन चंचल, मन चोर- मन के मते न चालिए पलक-पलक मन ओर' पंक्ति का सार बताते हुए आचार्य ने कहा कि जब मन नियंत्रित होता है तो केवल अच्छे विचार आते हैं। अच्छे विचार मन का उजला पक्ष होता है। जैन आगम में बताया गया है कि जो अपने मन को जीत लेता है वह स्वयं को जीत लेता है और जो स्वयं को जीत लेता है वह परम विजेता बन जाता है। हमारा मन कितना चंचल है, माला फेरते वक्त, निद्रा की स्थिति में, खाने या निवृत्ति के दौरान न जाने किस-किस तरह के कुविचार आते हैं। तन की गति अत्यधिक तीव्र होती है। मन क्षण भर में कहां से कहां पहुंच जाता हैं। मन में कुविचार के बजाय सुविचार लाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
यदि मन में कुविचार आए तो उसे देखकर हमेशा यह बोले की यह विचार मेरे नहीं, कहते हुए नकार देना चाहिए। कुविचार का समर्थन नहीं करना चाहिए अथवा हमें सदैव निर्विचार रहने का प्रयत्न करना चाहिए। अपने खाली समय में स्वाध्याय करना चाहिए, जिससे मन में कुविचार प्रकट नहीं हो। साधु के लिए कहा गया है कि उपयुक्त होकर इन्द्रियों को नियंत्रित करना साधना है, मन को सु मन बनाने का प्रयास करें। मन को उपासना एवं स्वाध्याय में लगाए रखें। आचार्य तुलसी ने गुरु के प्रति ''प्रभु म्हारे मन मन्दिर में पधारो'' भावपूर्ण गीत की रचना की थी। आचार्य ने आगे कहा कि हमारा मन मंदिर तब बनेगा जब मन पवित्र होगा। यदि मन में राग-द्वेष, क्रोध, वाचना, अहंकार रहते हैं तो मन पवित्र नहीं बन पाता। इन सबसे निवृत होने पर ही मन को मंदिर बनाया जा सकता है। आदमी का मनोबल होने पर वह कठिन से कठिन कार्य को शीघ्रता से कर लेता है, अन्यथा वह थोड़े मुश्किल काम को करने में भी असमर्थ रहता है। क्योंकि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत अर्थात् मानसिक बल न होने पर कार्य के प्रति कायर बन जाता है और मनोबल वाला व्यक्ति अपने सभी कार्यों में निपुण होता है। राग-द्वेष, क्रोध, वाचना, अहंकार से जल रूपी तरंगी होता है वह मन कभी सफल नहीं होता आत्मा इन सब से मुक्त होने पर ही महात्मा-परमात्मा तक पहुंचा सकती है। यदि महात्मा या परमात्मा न बन सकें तो सदात्मा बनने का प्रयास करना चाहिए। सदात्मा बनने के लिए गुस्सा, चोरी, इन्द्रिय अति असंयम नहीं रखने चाहिए। कम से कम दुरात्मा नहीं बनना चाहिए।
आचार्य के प्रवचन पूर्व नवकार मंत्र के साथ कार्यक्रम की शुरूआत की गई। तेरापंथ युवक रिषद के मंत्री जितेन्द्र सालेचा ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। गिड़ा के पूर्व सरपंच हनीफ खां, समाज सेवी प्रेमसिंह, थानाप्रभारी धनाराम विश्नोई तथा स्थानीय शिव मन्दिर के पुजारी कालू भारती ने आचार्य के समक्ष अपने विचार व्यक्त किए। प्रियंका सालेचा ने पूर्वजों की जन्म भूमि पर आए आचार्य के अभिनंदन के लिए स्वागत भाषण दिया। जयश्री सालेचा ने 'स्वागत की बेला में-गुरु की छांव में' गीत की प्रस्तुति दी। सालेचा परिवार की बहनों ने 'गुरु पधारिया रै'' सामूहिक गीतिका का संगान किया। सालेचा कुल के हार्दिक ने भावनाएं प्रकट की। जिला परिषद सदस्य पूनमाराम चौधरी ने विचार व्यक्त किए। मुनि जितेन्द्र कुमार ने ग्रामीणों को नशामुक्ति का संदेश देते हुए नशा नहीं करने का संकल्प दिलाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।
बालोतरा. गिड़ा गांव में प्रवेश करते आचार्य महाश्रमण व धर्मसभा में उपस्थित ग्रामीण (इनसेट) संबोधित करते आचार्य महाश्रमण।