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Utarni: 06.12.2012
Acharya Mahashraman reached Utrani from Santara. He told people during Pravachan that Valstya is important for development. Vatslya is love mother gives to her child. It is near to compassion. It is also helpful in encouragement. Mahila Mandal proposed to open chitt samadhi kendra and that to give vatslya to old age people.
News in Hindi
विकास के लिए वात्सल्य का बड़ा महत्व'
उतरणी पहुंचने पर आचार्य का हुआ भव्य स्वागत, धर्मसभा में उमड़े ग्रामीणजन।
बालोतरा. सणतरा से अलसवेरे विहार करते आचार्य महाश्रमण व उतरणी गांव पहुंचने पर ढोल-थाली के साथ आचार्य का स्वागत करते ग्रामीण।
उतरणी (बाड़मेर) 06 दिसम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
वत्सल बड़ा अर्थपूर्ण शब्द है, जिसका संस्कृत अथवा हिन्दीकरण है वात्सल्य। माता-पिता का वात्सल्य जब संतान को मिलता है वह उसके लिए पौषक तत्व होता है। छोटे का भी बड़ों के प्रति जो सम्मान होता है वह भी वात्सल्य है। ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने बुधवार को उतरणी में श्रावक सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि स्नेह भाव वैर का विरोधी शब्द है तथा लुक्षता का विरोधी शब्द स्नेह है। जो व्यक्ति दु:खी है, कठिनाई में है, उसके प्रति जब वात्सल्यता प्रकट की जाती है तो कठिनाई से त्रस्त व्यक्ति को कुछ राहत मिलती है। वात्सल्यता से रोगी की सेवा करने से रोगी को कुछ राहत महसूस होती है। रोगी, विकलांग आदि व्यक्तियों के प्रति वात्सल्य का सम्यक् प्रयोग किया जाना चाहिए। जहां वात्सल्य सेवा का अभाव है, वहां समाज रूग्ण बन जाता है। वात्सल्य एक ऐसा तत्व है, जो वैर विरोध को मिटाकर प्रेमभाव पैदा करता है। आचार्य ने कहा कि आचार्य तुलसी में कितना वात्सल्य था। वे सैकड़ो साधु-साध्वियों को संतुष्ट व एक ही नेतृत्व में रखते थे। वे वात्सल्यपूर्ण एवं करुणामयी व्यक्तित्व के धनी थे। विकास के लिए वात्सल्य का बड़ा महत्व है। आचार्य महाप्रज्ञ भी वात्सल्यपूर्ण साधु थे। उनकी आंखों से स्नेह व वाणी से मधुरता हमेशा ही टपकती रहती थी। वे समस्याग्रस्त व्यक्ति की समस्या का समाधान कर उसे सुलझाने का प्रयास करते थे। वात्सल्यता देने से त्रस्त व्यक्ति को तृप्ति होती हंै। उन्होंने कहा कि इंसान में पवित्र वात्सल्यता का भाव होना चाहिए। सेवा भावना भी वात्सल्यता कहलाती है। सामाजिक संदर्भों में बुजुर्गों की सेवा की जानी चाहिए। आचार्य ने बताया कि महिला मंडल की ओर से आयोजित कल्याण परिषद की संगोष्ठी में यह प्रस्ताव
रखा गया कि उनके द्वारा चित समाधी केंद्र खोला जाए, जिससे नि:सन्तान अथवा जिनकी संतान अगले भव जा चुकी हो, उन्हें शारीरिक सेवा तथा चित में शांति मिल सके। चित समाधी केन्द्र के द्वारा ऐसा प्रयास किया जाए कि वृद्धों एवं रूग्णों को चित समाधी मिल सके। यह संगठन एक उजला पक्ष बन सकता है। अगर वात्सल्यता का अभाव हो तो सेवा ठीक से नहीं हो पाती। परिवार में वैमनस्य, बुजुर्गों का तिरस्कार हो, वहां वात्सल्य व प्रेम का माहौल पैदा करे, जिससे कि वैर भाव को मिटाकर शांति का माहौल बनाया जा सके। कत्र्तव्य परायण व्यक्ति का सदगुण होता है। परिवार में दुर्भावना या वैमनस्य नहीं होना चाहिए। पारिवारिक दृष्टि से अलग व्यवसाय करना, अलग रहना आदि बुरी बात नहीं है परन्तु अलग रहकर द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए अपितु दूर रहकर भी हृदय में समीपता रखनी चाहिए। आचार्य के प्रवचन पूर्व मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनूं ने भी नशामुक्त जीवन जीने का संदेश देते हुए कहा कि जिस परिवार में नशा या विग्रह नहीं है उस परिवार में दिव्य दृष्टि हमेशा ही रहती है। देवता वहीं निवास करते हैं जहां धर्म का वातावरण हो। उन्होंने बताया कि जीवन में हमेशा तनाव मुक्त रहना चाहिए। इससे वह स्वयं भी सुखी होता है और दूसरों को भी सुखी करता है। मंत्री मुनि के मंगल उद्बोधन के बाद चंदा चौपड़ा द्वारा स्वागत भाषण प्रस्तुत किया या तथा महिलाओं की ओर 'स्वागत री शुभ घडिय़ा आई, पुलकित उतरणी वासी, कद गुरुवर घर आसी?' व ''आज रंग बरस्यो रै, गुरुवर पधारिया कण-कण हरस्यो रै, आज रंग बरस्यो से' गीतिका का समूह गान किया। शोभा गोलेच्छा ने 'ओ गुरुवर आप पधारिया धोरा धरती में' गीत प्रस्तुत किया। कविता तलेसरा ने एक रूपम के माध्यम से अपनी प्रस्तुति दी तथा तलेसरा परिवार की महिलाओं ने 'आए है आज उतरणी, भाग जो दर्शन पाएं' स्वागत गीत गाकर अभिनन्दन किया। मनाली ने आचार्य के प्रति अपने भावों को प्रकट किया। लीलाबाई सालेचा ने अपनी भावनाएं व्यक्त की। उतरणी को लघु जसोल बताते हुए मनोज तलेसरा ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। डॉ. केवलचन्द सालेचा व सुरेन्द्र सालेचा ने भी अपनी भावनाएं आचार्य समक्ष रखी। आदित्य सालेचा ने लोगस्स पाठ का उच्चारण किया। मुनि विश्रुत कुमार ने आचार्य का अभिनन्दन करते हुए निवेदन किया कि हे आचार्य! आप हमे उस राह पर ले चलें जहां से कभी वापस नहीं आते अर्थात् भावार्थ बताते हुए मुनि ने कहा कि वे उन्हें मोक्ष मार्ग की तरफ ले चले। भावनाएं व्यक्त करते हुए मुनि ने कहा कि श्रावकों की पुण्य भूमि, सालेचा, चौपड़ा, भंसाली, मोडोतर व तलेसरा तथा संसार पक्षीय परिवारजनों भूमि पर अपने चरण कमल रख कर आपने इस उतरणी की जमीं को पावन कर दिया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार ने किया।