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Sohra: 08.12.2012
Acharya Mahashraman reached Sohra. Acharya Mahashraman gave message of amity to villagers while making daily Pravachan. He mentioned that in Jain tradition Khamat Khamana is important.
News in Hindi
क्षमा करना चित्त शुद्धि का अनूठा प्रयोग: आचार्य महाश्रमण
आचार्य महाश्रमण की धवल वाहिनी सेना पहुंची सोहड़ा, शनिवार को आचार्य पहुंचेंगे हीरा की ढाणी
सोहड़ा बाड़मेर 08 दिसम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
मैत्री का भाव अगर मानव जीवन में आ जाए तो जीवन में अच्छी संपदा आ जाती है। जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने मैत्री भाव का संदेश देते हुए सोहड़ा स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय में श्रावक-श्राविकाओं को ये उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि मानव जीवन में यूं ही किसी न किसी का मिलना तो होता ही रहता है, परंतु हर व्यक्ति की भावना एक समान नहीं होती। किसी व्यक्ति की साधना विशेष स्तर की होती है तो किसी व्यक्ति में अध्यात्म की भावना बिल्कुल ही नहीं होती। साधु-साधु में भी अंतर होता है, एक साधु जो पूर्णिमा के चांद की भांति पूर्ण विकसित होता है और दूसरा साधु वह जो शुक्ल पक्ष की एकम के चांद के समान अल्प विकसित होता है। अगर हमने किसी को कटु कह भी दिया हो तो सामने वाले की मनोव्यथा को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। जिससे आपका मन भी हल्का हो जाता है और सामने वाले व्यक्ति का मन भी हल्का हो जाता है। आचार्य ने कहा कि जैन धर्म में खमत खामणा का भी विशेष महत्व है। यह एक ऐसा अवसर है जिसमें व्यक्ति द्वारा की गई कटुता को मिटाना के लिए क्षमा याचना की जाती है । साधु-जीवन में पक्खी के दिनों में खमत-खामणा का क्रम चलता है। खमत-खामणा करने से मन में निर्मलता आती है। खमत-खामणा का तात्पर्य है, क्षमा का आदान प्रदान करना। सभी प्राणियों के प्रति मैत्री भाव हो वैर भाव नहीं हो। चित्त शुद्धि का यह अनूठा प्रयोग है। उन्होंने कहा कि अच्छाई का हमेशा ही समर्थन करना चाहिए चाहे वह जैन संप्रदाय में हो या अजैन में। किसी भी परंपरा में अच्छाई का सम्मान करना चाहिए। दूसरों के प्रति हमेशा मैत्री भाव रखने चाहिए। बाप-बेटे, भाई-भाई, सास-बहू, विद्यार्थी-शिक्षक, ग्राहक-व्यापारी, डॉक्टर-रोगी, एक-दूसरे के प्रति मैत्री भाव होने से व्यवहार के धरातल को काफी उच्च स्तर का बनाया जा सकता है। एक-दूसरे के प्रति विनम्रता होनी चाहिए। यदि एक-दूसरे के प्रति आवेश, गुस्सा या कटुता आ जाय तो वहां मैत्री भाव नहीं होता। आचार्य ने एक आचार्य संप्रदाय का उदाहरण देते हुए बताया कि गुरु के प्रति, बड़ों के प्रति हमेशा विनय एवं शालीनता रखनी चाहिए। मैत्री का विकास होने से आत्मा निर्मल होती है। प्रवचन कार्यक्रम पूर्व मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनूं ने कहा कि लक्ष्य को नजदीक करने वाला कोई जीवन है तो वह है मनुष्य जीवन। मनुष्य योनि में आने वाला व्यक्ति अगर परम को प्रकट करता है तो वह स्वयं इंसान से भगवान बन जाता है। मनुष्य जीवन उपलब्धियों का जीवन है जिसे यह समझना चाहिए कि उसे परम तक पहुंचने का अवसर मिला है।
व्यक्ति धर्म के कार्यों को आज के बदले कल पर टाल देता है पर संतो ने कहा कि धर्म को कल पर मत छोड़ो। जिस व्यक्ति को धार्मिक कहलाना अच्छा लगता है, उससे अच्छा है धार्मिक बनो। कहलाना तो केवल छाप है, परन्तु धर्म करना एक कर्म है। कर्म से व्यक्ति का जीवन सुधर जाता है। धर्म के लिए मंगल उद्बोध दे, भलाई करे, दया भाव रखे, धार्मिक कार्य करे एवं सहयोग की भावना रखे। इससे व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है। मंत्री मुनि ने कहा कि जिसका वर्तमान सुधर गया उसका भविष्य में स्वत:: ही सुधार आ जाएगा और वर्तमान में बिगड़ गया तो भविष्य का जीवन भी बिगड़ जाएगा। बुरड़ परिवार की महिलाओं द्वारा 'आंगणिये रै म्हारै आंगणिये, गुरराज पधारया आज' गीतिका संगान से आचार्य प्रवर का अभिनंदन किया गया। पुष्पा देवी ने गीतिका तथा पुष्पादेवी बी. बूरड़ ने स्वागत भाषण के साथ गुरुदेव का स्वागत किया। नेमीचंद बूरड़ ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। दीक्षिता बूरड़ ने तथा दिनेश बूरड़ द्वारा भी प्रस्तुति दी गई। लता एवं पिंकी गणधर चोपड़ा द्वारा ''गुरुवर का आना यहां'' गीत प्रस्तुत किया गया। मुनिश्री जितेन्द्र कुमार समस्त ग्रामवासियों एवं विद्यार्थियों को जीवन में नशा नहीं करने का संकल्प दिया । कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।