29.01.2013 ►Asadha ►Panth of Veetaragta is Panth of Mine◄ Acharya Mahashraman

Published: 30.01.2013
Updated: 08.09.2015

ShortNews in English

Asadha: 29.01.2013

 Acharya Mahashraman said morality, honesty; Sadhana and Veetaragta are my panth. Sect is just an arrangement. Moksha can be attained by crushing kashaya.

News in Hindi

वीतरागता का पथ मेरा पंथ: आचार्य

'तेरापंथ मेरा पंथ' विषय पर दिया उद्बोधन


असाड़ा (बालोतरा) 29 Jan 2013 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्वावधान में तेयुप असाड़ा की ओर से आयोजित बाड़मेर जिला स्तरीय संघीय कार्यशाला में तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने 'तेरापंथ मेरा पंथ' विषय पर उद्बोधन दिया।

आचार्य ने कहा कि प्रभु का पंथ वीतरागता का पंथ है। निमौहता का पंथ प्रभु का पंथ है। उन्होंने कहा कि एक मोह का मार्ग है और एक मोक्ष का मार्ग है। मोह के मार्ग पर आगे बढऩे से वह मोक्ष से दूर हो जाता है और मोक्ष की ओर बढऩे से मोह पतला हो जाता है। आचार्य ने कहा कि परमार्थ की भाषा में ना कुछ तेरा है ना कुछ मेरा। प्रभु का जो वीतरागता का पंथ है वह मेरा पंथ बन जाए। व्यक्ति उस पर आगे बढऩे का प्रयास करें। तेरापंथ आचार्य भिक्षु से संबद्ध पंथ है। यह हमारा पंथ है। तेरापंथ के नामकरण का घटनाक्रम बताते हुए आचार्य ने कहा कि उत्तम लोग विघ्न बाधाओं में थपेड़ों को सहन करते हुए भी कार्य को नहीं छोड़ते हैं। आचार्य ने कहा कि प्रभु ने जो पथ स्वीकार किया। वहीं हमारा मेरा पथ है। वीतरागता के द्वारा ही मुक्ति मिलती है। राग द्वेष मुक्ति की साधना परम साधना है। मुक्ति के लिए वीतरागता जरुरी है। नमस्कार महामंत्र जैन शासन का परम मंत्र है। इसमें किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है। यह गुणात्मक मंत्र है। इसमें अर्हतों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों व लोक के सभी शुद्ध साधुओं को नमस्कार किया गया है। नमस्कार महामंत्र की आत्मा, प्राणतत्व वीतरागता है। वीतरागता के बिना नमस्कार महामंत्र जड़वत हो जाएगा। आचार्य ने कहा कि केवल दिगंबर बन जाते से केवल श्वेतांबर बन जाने से तत्व वाद को जानने से मुक्ति नहीं मिलती। कषायों से मुक्ति होने पर ही मुक्ति मिल सकती है। संप्रदाय की दृष्टि से हम कह सकते हैं कि मेरा पंथ तेरापंथ है। उन्होंने कहा कि आदमी पूरा वीतरागी न बन पाए पर कम से कम मानव तो बने। अणुव्रत की आचार-संहिता को जीवन में अपनाए। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि नैतिकता, साधना, वीतरागता, सच्चाई का पथ मेरा पथ है। संप्रदाय तो एक व्यवस्था है। हम अपने संप्रदाय में रहते हुए संप्रदाय की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए वीतरागता का ध्यान करें। कार्यक्रम के प्रारंभ में मूर्ति पूजक उपाध्याय दिव्वचंद्र विनय ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के द्वारा जैन फिलोसॉफी, तेरापंथ, अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान के कार्यों के संयोजक निर्मल संचेती ने इनकी जानकारी दी। संचालन तेयुप मंत्री जितेंद्र छाजेड़ ने किया।

Sources

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Sushil Bafana

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