News in Hindi
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर अतिशय क्षेत्र, तिजारा में श्रद्धालुओं ने की महापूजा
दिनांक 16 जुलाई की प्रातः काल गुरु पूर्णिमा की पावन बेला पर अनेक स्थानों के श्रद्धालुओं ने गुरुचरणों का स्पर्श कर अपने मन में एक संकल्प लिया। | जिंदगी की नई शुरूआत करने के लिए गुरु प्रकाश का कार्य किया करते हैं। प्रतिवर्ष कुछ ऐसे श्रद्धालु अवश्य ही गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु चरणों में आकर श्रद्धासुमन समर्पित करते हैं।
श्रद्धालुओं ने सप्त ऋषियों के श्री चरणों में अर्घ समर्पित किया। तदनंतर आचार्य श्री शांतिसागर जी ‘छाणी महाराज के समस्त पट्टाचार्यों को अर्घ्य समर्पित कर अष्टद्रव्य से भक्ति-भाव के साथ महाअर्चना की।
प. पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज ने सभी श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन को नया रूप देने के लिए, अज्ञान अंधकार को दूर करने के लिए गुरु का बहुत महत्व है।
‘गरु की महिमा वरणी न जाय’ आप ये पंक्तियाँ पूजन के मध्य पढ़ते हैं। सद्गुरुओं की महिमा को शब्दों में नहीं कहा जा सकता है। गुरु हमारी जीवन रूपी बगिया को सिंचित कर पुष्पित-पल्लवित करते हैं। सदगुरु एक अनगढ़ पत्थर को भगवान का रूप देने वाले शिल्पी हैं। भूले-भटकों को सही राह दिखाने के लिए मील के पत्थर को सदृश लक्ष्य तक पहुँचाते हैं। गुरु ही अंगुली पकड़कर हमें चलाते हैं। प्रथम वह गुरु है। जो जन्मदाता हैं, जो मात्र जन्म नहीं देते, संस्कारों का शंखनाद कर अपनी संतान को ऊँचाईयों तक ले जाते हैं। द्वितीय गरु के रू में वह शिक्षक होते हैं, जो अनेक विद्याओं 6 ज्ञान कराते हैं। मोक्षमार्ग की ओर ले जाने में सद्गुरुओं का बहुत महत्व है।
गुरु पूर्णिमा के दिन आप सभी कुछ न कुछ अच्छा संकल्प लेकर जाए ताकि आप सभी का यहाँ आना सफल हो जाएगा। इस दिन गौतम ब्राह्मण को महावीर प्रभु जैसे गुरु प्राप्त हुए थे। तभी से यह दिन गुरु पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान महावीर स्वामी को केवल ज्ञान हो गया था, किंतु उनकी दिव्य देशना 66 दिन तक नहीं हुई। चूँकि ऐसा योग्य व्यक्ति उनके समवशरण में नहीं पहुँचा था, जो उनकी वाणी को सुनने की पात्रता रखता हो गौतम ब्रामण जैसे ही समवशरण में पहुँचे, मानस्तंभ को देखते ही उनका मान चूर-चूर हो गया और उनके पहुचते ही प्रभु की वाणी खिर गई। गुरुभक्ति के माध्यम से वयक्ति संसार समुद्र से पार हो सकता है मेने तो जो कुछ भी पाया है गुरुभक्ति के बल पर पाया है।