17.07.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 19.07.2019
Updated: 19.07.2019

News in Hindi

👉 मोमासर - 260 वाँ तेरापंथ स्थापना दिवस का आयोजन
👉 कांकरिया मणिनगर - 260 वाँ तेरापंथ स्थापना दिवस का आयोजन
👉 सुजानगढ़ - 260वें तेरापंथ स्थापना दिवस का आयोजन
👉 सी स्कीम, जयपुर - शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन
👉 ‌चिकमंगलूर - आचार्य श्री भिक्षु जन्मोत्सव एवं बोधि दिवस का कार्यक्रम
👉 शाहीबाग अहमदाबाद - 260 वां तेरापंथ स्थापना दिवस
👉 साउथ कोलकात्ता - "सुखी परिवार, समृद्ध राष्ट्र" कार्यशाला का आयोजन

प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 79* 📖

*पवित्र आभामंडल*

गतांक से आगे...

प्रस्तुत काव्य में विविधाश्रय के स्थान पर विबुधाश्रय— यह वैकल्पिक पाठ भी प्रचलित है। इसका तात्पर्य है— बड़े-बड़े आचार्यों ने, विद्वानों ने दोषों को स्थान दे दिया। जो प्रवर्तक कहलाते हैं, वे भी दोषों को आश्रय देने वाले हैं। यह विबुधाश्रय उनके गर्व का कारण बन गया। उन्होंने सोचा— इतने बड़े-बड़े लोग हमें स्थान दे रहे हैं, हमारा स्वागत कर रहे हैं, हम आदिनाथ के पास क्यों जाएं? इस गर्व के कारण वे आपके पास आना नहीं चाहते, इसलिए केवल गुण ही आपके पास रह गए।

इस स्तुति में एक वक्रोक्ति है अथवा व्यंजना है, किंतु इसके द्वारा स्तुतिकार ने एक पथ-दर्शन दिया है— जो व्यक्ति स्वच्छता का वरण करते हैं, उनके पास दोष नहीं जाते। दोषों को आश्रय वहीं मिलता है, जहां स्वच्छता और निर्मलता नहीं है।

एक व्यापारी ने अनुभवी विद्वान् के समक्ष अपनी समस्या प्रस्तुत करते हुए कहा— मेरे पास सब प्रकार के ग्राहक आते हैं। अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग आते हैं। सही-गलत सब प्रकार की बातें सुननी होती हैं। अनेक बातों को मैं सहन नहीं कर पाता। अनेक बार मेरा मन बुरी बातों की ओर आकृष्ट हो जाता है। मैं बुराई से कैसे बचूं? आप कोई उपाय बताइए। अनुभवी विद्वान् ने पास में रखे कांच के गिलास को उठाया। उसमें कुछ मिट्टी डाली। वह गिलास व्यापारी को देते हुए अनुभवी व्यक्ति ने कहा— इस गिलास को ले जाओ, उस नल की टोंटी के नीचे रख दो।

व्यापारी ने पूछा— वहां कब तक रखना है?

अनुभवी व्यक्ति ने कहा— जब तक पानी में बहकर यह सारी मिट्टी निकल ना जाए, केवल स्वच्छ पानी न रह जाए।

व्यापारी गिलास लेकर चला गया। उसने गिलास को नल की टोंटी के नीचे रख दिया। ऊपर से पानी गिर रहा था। जैसे-जैसे गिलास भरा नीचे जमी हुई कुछ मिट्टी ऊपर आती और पानी के साथ बह जाती। अर्ध घटिका तक यह क्रम चलता रहा। गिलास में भरी मिट्टी साफ हो गई। केवल स्वच्छ पानी शेष रह गया। व्यापारी ने स्वच्छ जल से भरा गिलास लेकर अनुभवी व्यक्ति के हाथ में थमाते हुए कहा— मान्यवर! आप अब समझाएं कि मुझे क्या करना है? मेरे प्रश्न का उत्तर क्या है?

अनुभवी व्यक्ति ने कहा— मैंने उत्तर दे दिया है।

महाशय! क्या उत्तर दिया?

उत्तर यही है तुम इतनी स्वच्छता का वरण करो कि तुम्हारे भीतर जमा हुआ सारा कचरा बाहर निकल जाए। उसके पश्चात् तुम्हारे मन पर गलत बातों का कोई प्रभाव नहीं होगा। तुम्हारी गुण-ग्रहण की शक्ति इतनी बढ़ जाएगी कि दोष तुम्हें कभी आक्रांत नहीं कर पाएंगे।

आदिनाथ ने अपनी वीतरागता के द्वारा, आत्म-निर्मलता के द्वारा गिलास को इतना स्वच्छ पानी से भर दिया कि सारा मैल समाप्त हो गया। निर्मलता का एक ही सूत्र है और वह है वीतरागता। जितनी जितनी वीतरागता उतनी उतनी निर्मलता और स्वच्छता। जैसे-जैसे वीतरागता बढ़ती है, वैसे-वैसे हमारे सारे दोष समाप्त होते चले जाते हैं। जहां केवल स्वच्छ पानी है, वहां मलिनता के लिए अवकाश नहीं रहता। केवल स्वच्छता ही स्वच्छता शेष रहती है। यह जो कचरे को निकालने की क्षमता है, पानी को स्वच्छ करने की क्षमता है, वह वीतरागता से आती है, समता से आती है। वीतरागता कहें या समता एक ही बात है। मानतुंग ने कहा— प्रभो! आपने समता और वीतरागता का आश्रय लिया, निर्मलता का आश्रय लिया, सारे दोष निकल गए, स्वच्छता शेष रह गई। मलिनता के लिए कहीं कोई अवकाश नहीं रहा।

*अपनी उपरोक्त भावना और कल्पना को स्तुतिकार आचार्य मानतुंग ने किस प्रकार एक श्लोक में समाहित कर दिया..?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 91* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*संघर्षों के निकष पर*

*बाह्य संघर्ष*

*साला हो सकता हूं*

गतांक से आगे...

कालांतर में स्वामीजी मारवाड़ में पधार गए। क्रमशः विहार करते हुए वे पाली भी पधारे। वहां स्थानकवासियों के अनेक श्रावक मिलकर स्वामीजी के पास आए। उन्होंने कहा— 'पूज्यजी चाहते हैं कि खंतिविजयजी से शास्त्रार्थ करें। वे बहुत कटुभाषी एवं बड़बोले हैं। आप ही ऐसे व्यक्ति को वश में कर सकते हैं।'

स्वामीजी ने कहा— 'ठीक है, जैसा अवसर होगा, देखा जाएगा।'

कुछ दिनों बाद स्वामीजी काफरला पधारे। मुनि खंतिविजयजी भी वहीं आए हुए थे। उन्होंने शास्त्रार्थ के लिए आह्वान किया, तो स्वामीजी ने उसे स्वीकार कर लिया। बाजार में जन-सभा के बीच शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। हिंसा-अहिंसा की चर्चा में स्वामीजी ने कहा— 'धर्म के निमित्त की गई हिंसा में दोष नहीं है— यह अनार्य वचन है, ऐसा भगवान महावीर ने कहा है।'

मुनिजी बोले— 'ऐसा कथन कहीं नहीं है।'

स्वामीजी ने आचाराग की प्रति निकालकर कर जब उक्त विषय का पाठ पढ़कर सुनाया तो मुनिजी ने कहा— 'तुम्हारी प्रति का विश्वास नहीं किया जा सकता। मैं अपनी प्रति देखूंगा।'

उन्होंने अपनी प्रति मंगवाई और देखा, तो वहां भी वही पाठ मिला। बात हाथ से निकलती देखकर उनके हाथ कांपने लगे।

स्वामीजी ने कहा— 'जनता आगम-पाठ सुनने को उत्सुक है, अतः जो भी लिखा हो पढ़कर सुना दीजिए।'

मुनिजी फिर भी चुप रहे, तब स्वामीजी बोले— 'आप कांप क्यों रहे हैं? कंपन के चार कारण होते हैं— वायु प्रकोप, क्रोध, पराजय आदि का भय और कामोत्तेजना। आप इनमे से कौन से कारण से कांप रहे हैं?'

मुनिजी का क्रोध एकदम भड़क उठा। बोले— 'साले का सिर तोड़ दूंगा।'

स्वामीजी ने गंभीर होते हुए कहा— 'मैं मुनि हूं। संसार की सभी स्त्रियां मेरी बहनें हैं। यदि आपके कोई पत्नी है तो वह मेरी बहन है। उसी आधार पर आपने मुझे साला कहा है, तब तो कोई बात नहीं, किंतु पत्नी के अभाव में यदि ऐसा कहा है, तो मुनि होकर मिथ्याभाषी बने हैं। दूसरी बात यह है कि मुझे साधु तो चाहे मानें या न मानें, किंतु पंचेेंद्रीय प्राणी तो मानेंगे ही। मेरा सिर तोड़ देने की बात कहते हैं, तो क्या साधुता स्वीकार करते समय आपने मुझे मारने की कोई छूट रखी थी?'

स्वामीजी के उक्त प्रश्नों से जनता खिलखिला उठी, तो मुनिजी क्रोधावेश में और भी अधिक खौल उठे। मोतीरामजी चौधरी आदि उनके प्रमुख श्रावकों ने उनका हाथ पकड़कर चर्चा-स्थल से उठाते हुए कहा— 'यहां से अब चलो, अक-बक बोलकर आप ने भरी सभा में हमको लज्जित कर दिया।'

उस जन-सभा में स्वामीजी ने शास्त्रार्थ में जो विजय प्राप्त की, उससे भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण उन्हें एक दूसरी विजय प्राप्त हुई, जो कि वहां के जनमानस पर थी। विपक्ष की कटुतम बातों को भी उन्होंने जिस अनुत्तेजित प्रकार से सह लिया और अपने व्यंग-मिश्रित विनोद द्वारा उन्हें निष्प्राण बना दिया, उससे वहां की जनता सहज ही उनकी भक्त बन गई।

*स्वामी भीखणजी के विरोध में किये गये विरोधियों कुछ प्रयासों की एक झलक...* पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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कुम्बलगुड़ु,बेंगलुरू

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*पूज्यप्रवर के आज प्रातः*
*भ्रमण के अनुपम दृश्य*



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दिनांक:
17 जुलाई 2019

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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

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