04.08.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 06.08.2018
Updated: 08.08.2018

News in Hindi

👉 चैन्नई - *भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री शाहनवाज हुसैन आचार्य श्री* के मंगल सन्निधि में पंहुचे.....

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 4 अगस्त 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 भांयदर (मुम्बई) - जैन विद्या सप्ताह का आयोजन
👉 मदुरै - जैन विद्या सप्ताह का आयोजन
👉 सिलीगुड़ी - अणुव्रत समिति की आम सभा व नये अध्यक्ष का चयन
👉 बेहाला - सामूहिक चातुर्मासिक पक्खी प्रतिक्रमण
👉 बेहाला - मंत्र दीक्षा का कार्यक्रम
👉 साउथ कोलकाता - Elevate Yourself कार्यशाला का आयोजन
👉 साउथ कोलकाता - ते. म.म. द्वारा दो दिवसीय सावन मेले का आयोजन
👉 अहमदाबाद - जैन विद्या कार्यशाला 2018 का आगाज

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 393* 📝

*हृदयहारी आचार्य मलधारी हेमचन्द्र*

*साहित्य*

गतांक से आगे...

*3. अनुयोगद्वार वृत्ति* इस वृत्ति में अनुयोगद्वार के सूत्रों की विस्तृत और सरल व्याख्या है। वृत्ति का ग्रंथमान 5900 पद्य परिमाण है। टीका में अनेक उदाहरण हैं। यह कृति ग्रन्थकार की प्रौढ़ रचना है। कृति के अध्ययन से ग्रंथकार की गहन अध्ययनशीलता का अनुभव होता है। आगम के मर्मस्पर्शी विवेचन से स्पष्ट होता है आचार्य मलधारी हेमचंद्र आगमों के मर्मज्ञ थे। उनकी यह वृत्ति अनुयोगद्वार की गहनता को समझाने के लिए उपयोगी है। आचार्य हरिभद्र ने भी इस ग्रंथ पर टीका की रचना की, वह अत्यंत संक्षिप्त थी तथा अधिकांशतया प्राकृत चूर्णि का अनुवाद मात्र थी। आचार्य मालधारी ने इस टीका की विस्तृत रचनाकर पाठकों के लिए अनुयोगद्वार के प्रतिपाद्य को सुग्राह्य बना दिया। वर्तमान में यह टीका आधुनिक संपादन के साथ प्रकाशित हो गई है।

*4. उपदेशमाला सूत्र* यह आचार शास्त्र का विवेचक ग्रंथ है। इसमें दान, शील, तप, भावना इन चार विषयों का विस्तार से विवेचन है। इस ग्रंथ की मूल 505 गाथाएं हैं। प्राकृत भाषा में इसकी रचना हुई है। धार्मिक एवं लौकिक कथाओं का इस ग्रंथ में उपयोग किया गया है। कई कथानक सिद्धर्षि की उपमितिभवप्रपञ्च कथा से लिए गए हैं। सर्वसाधारण के लिए यह ग्रंथ विशेष उपयोगी है।

*5. उपदेशमाला वृत्ति* यह संस्कृत टीका है। इसमें प्राकृत गद्य-पद्य कथाओं का उपयोग हुआ है। यह वृहद् जैन कथाकोष है। इसमें कई कथाएं उद्धृत हैं। कई कथाओं की रचना कथाकार की मौलिक है। मूल ग्रंथ में दृष्टांतों एवं कथाओं के संकेत हैं। टीका में कथाओं का विस्तार से वर्णन है। यह ग्रंथ 13868 पद्य परिमाण है एवं कथा साहित्य की अमूल्य निधि है। आधुनिक संपादन के साथ यह ग्रंथ प्रकाशित है।

*6. जीवसमास विवरण* जीवसमास किसी अन्य आचार्य का महत्वपूर्ण ग्रंथ था। इस पर आचार्य मलधारी ने टीका रचना की है। इस टीका में चतुर्दश गुणस्थानों का समग्रता के साथ विवेचन हुआ है। अजीव तत्त्व का इसमें संक्षिप्त प्रतिपादन है। मूलतः गुणस्थानों के साथ तत्त्व की सर्वग्राही चर्चा होने के कारण इस कृति का नाम जीवसमास है। कृति की रचना वीर निर्वाण 1634 (विक्रम संवत् 1164) की है। मलधारी हेमचंद्र से पूर्व इस ग्रंथ पर टीकाएं विद्यमान थीं पर हेमचंद्राचार्य ने इस टीका की रचना कर सैद्धांतिक विषय में प्रवेश पाने के लिए तथा जीव तत्त्व को समझने की दृष्टि से पाठकों का मार्ग अधिक सुगम किया है।

*हृदयहारी आचार्य मलधारी हेमचन्द्र द्वारा रचित अन्य और भी रचनाओं* के बारे में आगे और जानेंगे व प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 47* 📜

*लिछमणदासजी भंडारी*

*'एक व्यंग, अनेक रंग'*

संवत् 1959 में डालगणी ने अपना चातुर्मास जोधपुर में किया। वहां समय-समय पर इतर संप्रदायों के व्यक्ति भी धर्म-चर्चा आदि के निमित्त संपर्क में आते रहे थे। एक बार कुछ भाई वहां आए और धर्म-चर्चा करने लगे। शंका-समाधान आदि के पश्चात् साधारण बातचीत के सिलसिले में तेरापंथ का उपहास करते हुए उनमें से एक भाई दुलराजजी ने डालगणी से कहा— "धर्म को समझकर कोई शायद ही तेरापंथी बनता हो।"

डालगणी— "प्रतिवर्ष सैकड़ों व्यक्ति तेरापंथी बनते हैं। तुम्हारे कथानुसार तो वे यों ही किसी बहकावे में आकर बन जाते होंगे।"

दुलराजजी— "बहकावे में आकर तो बनते ही हैं, परंतु लोभ के वशीभूत होकर तेरापंथी बनने वालों की भी कमी नहीं है। कई व्यक्ति तेरापंथी बनने के पश्चात् धनी बन गए, अतः दूसरों के मन में भी यही बात उठती है कि हम भी तेरापंथी बन जाएं तो धनवान् बन जाएंगे। तेरापंथी बनने वालों में अधिक संख्या उन लोभी व्यक्तियों की होती है। आजकल तो लोग धर्म से भी धन को अधिक महत्त्व देने लगे हैं। ऐसे लोग तेरापंथी ही क्यों कुछ भी बन सकते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो अपने प्राचीन धर्म को छोड़कर कल के प्रारंभ हुए नवीन धर्म में जाने को एक भी व्यक्ति तैयार नहीं होता।"

लिछमणदासजी उक्त अवसर पर वहीं बैठे थे। दुलराजजी के वे मामा थे। भांजे की व्यंग भरी बातें सुनकर उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने डालगणी से प्रार्थना करते हुए कहा— "आज्ञा हो तो कुछ मैं भी कह देना चाहता हूं। शास्त्रीय चर्चा तो मुझे कुछ आती नहीं, अतः इतनी देर चुपचाप सुन रहा था। अब जबकि अन्य बातें चल पड़ी हैं और उसमें मेरा भांजा ही बोल रहा है, तब सोचता हूं कि दो बातें मैं भी कह दूं।"

डालगणी को उनके बोलने में कोई आपत्ति नहीं थी, अतः उन्होंने आज्ञा दे दी।

लिछमणदासजी ने तब कहा— "दुलराज! धर्म का मुख्य लाभ तो आत्म शुद्धि ही होता है, पर गौण रूप से बाह्य लाभ भी उससे मिल जाता है, तो उसमें आश्चर्य क्या है? खेती करने वाले को गेहूं के साथ-साथ भूसे का लाभ भी मिलता ही आया है। मेरे दृष्टिकोण से तेरे कथन का यह अंश तो सत्य नहीं है कि लोग धनी बनने के लिए तेरापंथी बनते हैं, किंतु यह अंश सत्य हो सकता है कि तेरापंथी बनने के पश्चात् लोग धनी बन जाते हैं। तेरे इस कथन का निष्कर्ष मेरे ध्यान में तो यही आया कि तेरापंथ अपने विचार और आचार पक्ष में पूर्णतया सत्य है, अतः उसकी पद्धति से की गई धार्मिक क्रिया से निर्जरात्मक रूप में जहां आत्म शुद्धि होती है वहां पुण्य बंध भी होता है, जो कि विविध भौतिक अनुकूलताओं का कारण बनता है। यही कारण है कि भूख और दरिद्रता कभी हमारी ओर देख भी नहीं पाती। यह तो अधर्मियों के ही पल्ले में पड़ती हैं।"

*लिछमणदासजी के कथन का दुलराजजी तथा उनके साथ आए हुए अन्य व्यक्तियों पर क्या प्रभाव पड़ा...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

*तन मन और आत्मा: वीडियो श्रंखला ४*

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*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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