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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 6 जुलाई 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
News in Hindi
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 23* 📜
*तनसुखदासजी गोलछा*
*गीतिका और कसौटी*
गोलछाजी धर्म शासन की श्रीवृद्धि में सदा प्रयत्नशील रहा करते थे। अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों से वे धर्म चर्चा करते रहते थे। वे न केवल अपनी ओर से बतलया ही करते थे, अपितु अनेक बार दूसरों से प्रश्न भी किया करते, ताकि उस विषय में उनकी विश्लेषण बुद्धि को बल मिले। दूसरों की जिज्ञासा को जागृत और फिर उसे समाहित करने में वे बड़े पटु थे।
एक दिन मंदिर में सामायिक करते समय तनसुखदासजी जयाचार्य द्वारा रचित 'रे कुमत्यां हिंसा धर्म कांईं थापो' यह गीतिका चितार रहे थे। उनके कंठों का माधुर्य तो सदा ही लोगों का ध्यान आकृष्ट किया करता था, परंतु उस दिन उस गीतिका ने विशेष रूप से लोगों का ध्यान अपनी और खींचा। कारण यह था कि उसमें मूर्ति पूजा को आगम विरुद्ध बतलाया गया था। मंदिर में समागत व्यक्तियों के लिए वह ऊहापोह का कारण बन गई। उसी स्थिति में मूर्ति पूजक समाज के एक प्रमुख श्रावक कालूरामजी श्रीमाल ने आगे आकर तनसुखदासजी से कहा— "मंदिर में बैठ कर आप यह सब क्या गा रहे हैं? भ्रांति उत्पन्न करने वाली ऐसी गीतिका का यहां न गाना ही उचित है।"
तनसुखदासजी ने कहा— "संपूर्ण गीतिका में आदम सम्मत विचार गुंफित हैं। आप इसे भ्रांति उत्पन्न करनेवाली कैसे कहते हैं?"
कालूरामजी— "सब व्यर्थ की बातें हैं, आगमों में ऐसा कुछ भी नहीं है।"
तनसुखदासजी— "सेठ साहब! यह गीतिका किसी साधारण व्यक्ति की बनाई हुई नहीं है। इसके निर्माता हैं तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जीतमलजी महाराज। वे महान् आगमज्ञ हैं। उनके द्वारा प्रदत्त प्रमाण के सम्मुख आपका यह मौखिक कथन कोई मूल्य नहीं रखता। सत्यान्वेषण करना हो तो गीतिका में प्रदत्त प्रमाणों को आगमों की कसौटी पर कस कर देखिए।"
गोलछाजी की बात कालूरामजी के मन में बैठ गई। उन्होंने उसी दिन गीतिका की प्रतिलिपि करवाई और स्थानीय यति गोपीचंदजी को आमंत्रित कर कहा— "यतिजी! इस गीतिका में प्रदत्त प्रमाणों की सत्यता का परीक्षण करना है। इसके रचयिता के ज्ञान की बहुत महिमा सुनी है। देखें कितने पानी में हैं?"
यति जी को परीक्षण का कार्य संभला देने के पश्चात् कालूरामजी ने अविलंब अपने एक व्यक्ति को वाराणसी भेजा और वहां से सारे आगम मंगवा लिए। वे चाहते थे कि शीघ्रता से कार्य संपन्न करने में यतिजी को किसी प्रकार की बाधा का सामना ना करना पड़े।
यतिजी ने गीतिका में उल्लिखित प्रमाणों का गहराई से अध्ययन किया तो पाया कि वे सब सही हैं। उन्होंने कालूरामजी को अपना निष्कर्ष बतलाते हुए कहा— "सेठ साहब! हम लोगों की मान्यता कुछ भी हो सकती है, परंतु इस गीतिका में प्रदत्त प्रमाण आगमों की कसौटी पर बिलकुल खरे उतरते हैं।"
यतिजी द्वारा निकाले गए निष्कर्ष को सुनकर कालूरामजी आश्चर्याभिभूत हो गए। उनके मन में एतद् विषयक अनेक नई जिज्ञासाएं अंगड़ाई लेने लगीं। वे तत्काल तनसुखदासजी से मिले। उन्होंने यतिजी के निष्कर्ष से उन्हें अवगत किया। वे भी यतिजी की सत्य निष्ठा से बहुत प्रसन्न हुए।
*कालूरामजी श्रीमाल की जिज्ञासाओं ने आगे क्या मोड़ लिया...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 369* 📝
*जग-वत्सल आचार्य जिनेश्वर*
*आचार्य बुद्धिसागर*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
वेद, उपनिषद् और जैन की मान्यता की अभिव्यक्ति देने वाले प्रस्तुत श्लोक श्रवण से पुरोहित सोमेश्वर नतमस्तक हो गया। उसने पूछा "आप कहां ठहरे हैं?" युगल बंधुओं ने कहा "सुविहितमार्गी मुनियों के लिए यह स्थान सुलभ नहीं है।"
समग्र स्थिति को अच्छी तरह से जानकर सोमेश्वर ने उन दोनों की व्यवस्था अपने मकान में की। पाटण के याज्ञिक स्मार्त और अग्निहोत्री ब्राह्मण भी इन मुनियों की ख्याति सुनकर आए और इनका उपदेश सुनकर संतुष्ट हुए। पाटण नरेश दुर्लभराज भी इन मुनियों के त्याग, तपोबल एवं प्रज्ञाबल से प्रभावित हुआ। चैत्यवासी श्रमणों ने इनका विरोध किया और कहा
*चैत्यगच्छयतिव्रातसम्मतो वसतान्मुनिः।*
*नगरे मुनिभिर्नात्र वस्तव्यं तदसम्मतैः।।76।।*
*राज्ञां व्यवस्था पूर्वेषां पाल्या पाश्चात्यभूमिपैः।*
*यदादिशसि तत्कार्यं राजन्नेवंस्थिते सति।।77।।*
हे राजन्! हमें वनराज चावड़ा के समय से ही यह लिखित आदेश प्राप्त है। यहां चैत्यवासी मुनियों की सहमति के बिना अन्य गच्छ के श्रमण ठहर नहीं सकते। पूर्व राजाओं का आदेश पश्चात्वर्ती राजाओं के लिए पालनीय होता है।
पाटन नरेश बोला "पूर्व राजाओं की आज्ञा हमारे लिए अलंघनीय है, पर पाटण में समागत गुणीजनों का सम्मान करना हमारा कर्त्तव्य है। अतः आप को अपनी सहमति इस कार्य के लिए प्रदान करनी चाहिए।"
इस प्रकार चैत्यवासी श्रमणों को समझाकर और उनसे सहमति प्राप्त कर दुर्लभराज्य में सुविहित मार्गी मुनियों को आवागमन की सुविधा प्रदान की और पुरोहित सोमेश्वर देव तथा शैवाचार्य ज्ञानदेव के सहयोग से उन्हें स्थान प्राप्त हुआ। पट्टावलियों के उल्लेखानुसार चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त करने के कारण जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि को नरेश दुर्लभराज के द्वारा खरतरगच्छ की उपाधि प्राप्त हुई थी। कई पट्टावलीकार इस घटना का समय विक्रम संवत् 1024 और कई पट्टावलीकार विक्रम संवत् 1080 मानते हैं। इतिहासकारों के अभिमत से पाटण में विक्रम संवत् 1078 से 1120 तक नरेश भीम का शासन था, अतः दुर्लभराज के द्वारा पाटण में विक्रम संवत् 1080 में 'खरतरगच्छ' की उपाधि प्रदान करने का समय ठीक प्रतीत नहीं होता।
खरतरगच्छ के संस्थापक जिनेश्वरसूरि हैं या जिनदत्तसूरि इस विषय की समीक्षा 'जैन परंपरा नो इतिहास' पुस्तक पृष्ठ 442 पर है।
*'खरतरगच्छ' के संस्थापक के संबंध में पुस्तक 'जैन परंपरा नो इतिहास' में दी गई समीक्षा का सार-संक्षेप* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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👉 *पूज्यवर ने की दो और मुमुक्षुओं के समणी दीक्षा की घोषणा*
आज प्रात: के मंगल प्रवचन के दौरान परम पावन आचार्यप्रवर ने मुमुक्षु नम्रता (चेन्नई)तथा मुमुक्षु यशा (छापर) को 11 नवम्बर 2018 को चेन्नई में आयोजित दीक्षा समारोह में समणी दीक्षा देने की घोषणा की।
दिनांक - 06-07-2018
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*बाहर उजला भीतर मैला: वीडियो श्रंखला १*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
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