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ऋषभदेव पुरम मांगीतुंगी मैं गणिनी ज्ञानमती माता जी के पावन सानिध्य में पुलिस चौकी का शुभारंभ करने आए पुलिस अधीक्षक संजय जी दराडे उनका स्वागत करते हुए संजय पापड़ीवाल विजय कुमार जैन जीवन प्रकाश जैन छोटीशा टिकैतनगर
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अतिशय क्षेत्र बंधा जी मे गुरूवर आचार्य भक्ति करते हुये.. #AcharyaVidyasagar
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मध्य प्रदेश में जबलपुर के त्रिपुर सुंदरी मंदिर के नजदीक हनुमान टेकरी में खुदाई के दौरान जैन धर्म के पहले तीर्थकर आदिनाथ की मूर्ति निकली। मूर्ति की अदभुत कारीगरी अैर नक्कासी देख लोग दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हैं। अति प्राचीन मूर्ति में ऐसी कई अद्भुत खूबियां हैं, जिन्हें देख लोग हैरान और गदगद हैं। भारतीय पुरातत्व एवं सव्रेक्षण विभाग के अनुसार प्राप्त मूर्ति 10वीं सदी के लगभग की है और फिलहाल मूर्ति को अपने पास सुरक्षित कर लिया है। बेशकीमती मूर्ति की अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका मूल्य लगभग 10 अरब से भी ज्यादा है।
सबसे अद्भुत और चमत्कारिक बात यह है कि यह मूर्ति जमीन से खुद-ब-खुद ऊपर आयी। पुरातत्व विभाग के अनुसार मंदिर के चारों तरफ 300 मीटर क्षेत्र पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है और यहां पत्थरों सहित अन्य धातुओं के जेवर मिलते रहते हैं। इन्हें आम बोलचाल में गुड़ियां कहा जाता हहै। ऐसे ही गुड़िया बीनने निकले कुछ युवकों को यह दुर्लभ मूर्ति जमीन से अपने आप निकलती हुई दिखाई दी। उन्होंने इसकी जानकारी त्रिपुर सुंदरी मंदिर समिति को दे दी। मंदिर समिति के लोगों के पहुंचने पर उन्हें किसी बड़ी प्रतिमा का छत्र जमीन से निकलते हुए दिखाई दिया। समिति ने इसकी सूचना भारतीय पुरातत्व विभाग को दी। इसके बाद खुदाई में यह मूर्ति निकली।
मूर्ति लगभग साढ़े चार फुट ऊंची और साढ़े तीन फुट चौड़ी है। इस मूर्ति को 64 योगिती मंदिर, भेड़ाघाट में सुरक्षित रखा गया है। पुरातत्व विभाग के लोगों का मानना है कि मूर्ति 10वी शताब्दी में निर्मित हुई अति प्राचीन मूर्ति है। मूर्ति में जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर आदिनाथ सिंह पाद पीठ पर योगासन मुद्रा में विराजित हैं। श्री पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर लार्डगंज के अध्यक्ष प्रदीप जैन ने बताया कि उक्त मूर्ति, कुंडलपुर के बड़े बाबा भगवान आदिनाथ की तरह है। जैन समाज ने प्रशासन से मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने की अनुमति मांगी है। इतिहासकार राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि तेवर पुराने समय में समृद्ध नगर था। और यहां त्रिपुरासुर का शासन था। यह पूरा क्षेत्र आध्यात्म और अनूठे शिल्प के लिए जाना जाता था। माना जाता है कि हजारों की संख्याओं में मूर्तियां भूगर्भ में दफन हैं
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🙂🙂
It's Official, Canada Is Making Cosmetic Testing On Animals Illegal
The senate has just passed Bill S-214!
मंगल विहार अपडेट @ आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज ससंघ
पूज्य आचार्यश्री ससंघ का,*
*जतारा से हुआ मंगल विहार।*
*रात्रि विश्राम होगा "सिमरा" में,*
*कल पलेरा में होंगे आहार।।*
*छतरपुर अब कर रहा प्रतीक्षा,*
*सब दर्शन कर हर्शायेंगे ।*
*खजुराहो की डगर पास है,*
*गुरुवर अब कदम बढ़ाएंगे।।*
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#शुभोपयोग_पूर्वक_ही_शुद्धोपयोग
क्या वीतराग प्रभु की आकांक्षा रहित पूजन मात्र बंध कराती है या संवर का भी कारण है आचार्यश्री विद्यासागर जी मुनि महाराज समझा रहे है।
आचार्य श्री जी से किसी व्यक्ति ने शंका व्यक्त करते हुए कहा कि- स्वाध्याय प्रेमियों से सुनने को मिलता है कि- अभिषेक, पूजन, दान आदि से पुण्य कर्म का बंध होता है, इसलिए इन्हे हेय बुद्धि से करना चाहिए। तो हे गुरुवर! आप यह बताने की कृपा करें कि पूजन कौन-सा तत्त्व है? क्या पूजन करने से मात्र बंध ही होता है? तब आचार्य श्री जी ने कहा कि- *पूजन संवर तत्त्व का कारण है, शुभ कर्म का बंध भी होता है लेकिन जो पूजन को हेय (त्याज्य) मानता है, वह आस्रव का समर्थन करने वाला तथा मिथ्यात्व का पोषण करने वाला है।* एक जगह आचार्य समंतभद्र स्वामी जी कहते है कि- हे भगवन्! मुझे गुप्ति नहीं समिति चाहिए, मैं आपकी भक्ति, पूजन के माध्यम से पार हो जाऊँगा। पूजा को केवल बंध का कारण कहना यह कौन से शास्त्र में और कहाँ लिखा है? बताओ। साक्षात् मुक्ति के लिए तो आत्मध्यान करना है लेकिन उसके पहले भक्ति-पूजन कही गयी है। आत्मध्यान तक पहुँचने के लिए तो भगवान् की भक्ति आदि संवर–निर्जरा का कारण रूप है उसे अपनाना होगा। आगम में लिखा है कि - *" एकस्याकारणे अनेक कार्या भवति–'वन्हिवत्' ।”* अर्थात् पूजा आदि के द्वारा प्रशस्त प्रकृतियों का अनुभाग बंध अधिक होता है, तथा अप्रशस्त प्रकृति का अनुभाग बंध मंद होता है। शुद्धोपयोग प्राप्त करने का एक मात्र उपाय है तो वह है शुभोपयोग।
✍ *मुनि श्री कुन्थु सागर जी महामुनिराज
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News in Hindi
खजुराहो में पूर्वी मंदिर समूह में प्रमुख है जैन मंदिर। इस परिसर में कुल 15 जैन मंदिर हैं। इसमें पार्श्वनाथ और आदिनाथ मंदिर ही मूल स्वरूप में हैं। इसके साथ ही परिसर में एक जैन संग्रहालय भी है। यहां पुस्तक बिक्रय केंद्र है जहां से आप जैन साहित्य खरीद सकते हैं। खजुराहो में पश्चिमी मंदिर समूह के बाद यह दूसरी जगह है जहां पर आसपास में छोटा सा बाजार है। यहां कई दुकाने हैं। यहां पर आप कुछ खरीददारी भी कर सकते हैं। जैन अतिथि गृह में भोजनालय भी है। हालांकि हमारी यात्रा के समय वह बंद था।
यहां बना पार्श्वनाथ मंदिर खजुराहो के सुंदरतम मंदिरों में से एक है। यहग 68 फीट लंबा 65 फीट चौड़ा है। यह मंदिर एक विशाल जगती पर निर्मित किया गया है। मूलतः इस मंदिर में आदिनाथ की प्रतिमा थी। वर्तमान में यहां पार्श्वनाथ की प्रतिमा है जो उन्नीसवीं शताब्दी की है। इस प्रकार यह मंदिर आदिनाथ को समर्पित था। इस मंदिर का निर्माण 950 ई. से 970 ई के बीच यशोवर्मन के पुत्र धंगदेव के शासनकाल में हुआ। एक अभिलेख के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण जैन श्रेष्ठि पहिल द्वारा करवाया गया। जैन श्रेष्ठि पहिल द्वारा मंदिर को खजुराहों में सात वाटिकाएं बनवाकर दान में दी गई थीं। इनमें से एक पहिल वाटिका को आज भी एयरपोर्ट रोड पर देखा जा सकता है। खजुराहो प्रशासन द्वारा इस वाटिका का बेहतर रखरखाव किया गया है।
मंदिर के प्रमुख भागों में मंडप, महामंडप,अंतराल और गर्भगृह है। मंदिर के चारों तरफ परिक्रमा पथ का भी निर्माण किया गया है। मंदिर के मंडप की तोरण सज्जा के अलंकरण काफी सुंदर हैं। इसमें काफी मूर्तियां भी बनी हैं। यहां शाल भंजिकाएं, अप्सराएं और पार्श्वदेवी की मूर्तियां देखी जा सकती हैं। मंदिर में विभिन्न मुद्राओं में गंधर्व और यक्ष मिथुन ढ़ोल, तुरही,मंजिरा, शंख, मृदंग तथा ततुंवाद्य बजाते हुए सरित देवियों के ऊपर तोरण तक अंकित किए गए देखे जा सकते हैं। मंदिर के गर्भगृह में दिगंबर जैन साधु तथा साध्वी वस्त्र विहीन अवस्था में दिखाए गए हैं। मंदिर में राम-सीता और हनुमान की मूर्तियां भी देखी जा सकती हैं। अप्सराओं को की प्रतिमाएं तो अलग अलग कई भाव भंगिमाओं देखी जा सकती हैं।
जैन मंदिर परिसर में एक विशाल कुआं स्थित है। इसके चारों तरफ श्रद्धालु बैठकर ध्यान लगाते हुए दिखाई देते हैं।
खजुराहो के जैन मंदिर समूह में आदिनाथ का मंदिर प्रमुख है। यह जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
खजुराहो में केवल पार्श्वनाथ मंदिर में ही कृष्ण लीला से संबंधित दृश्य भी उत्कीर्ण किए गए है। खजुराहो के जैन मंदिरों पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर रहे मारूति नंदन तिवारी ने गहन शोध किया है। उन्होंने खजुराहो के जैन मंदिरों पर एक पुस्तक भी लिखी है।
खजुराहो के जैन मंदिर के पास ही साहू शांति प्रसाद जैन कला संग्रहालय स्थित है। इस गोल इमारत में कई मूर्तियां देखी जा सकती है। संग्रहालय का प्रवेश टिकट 10 रुपये का है।
शांति प्रसाद जैन यहां 1977 और उससे पहले 1970 में पधारे थे, तब लोगों ने उनके संग्रहालय बनवाने का आग्रह किया था। खजुराहो के जैन मंदिरों को देखकर लगता है कि चंदेल राज्य में जैन अल्पसंख्यक होते भी आर्थिक रूप से समृद्ध और मजबूत स्थित में थे। खजुराहो में कई जैन श्रेष्ठि परिवार थे। कनिंघम लिखते हैं कि 1852 में जब वे खजुराहो आए तो पूर्वी मंदिर समूह का जैन मंदिर परित्यक्त अवस्था में था। पर बाद में जैन समाज ने इसका जीर्णोद्धार कराया। चंदेल राजा विजयपाल के पुत्र कीर्तिवर्मन के काल में खजुराहो में जैनमंदिरों का प्रयाप्त निर्माण हुआ।
ठहरने के लिए अतिथिशाला - जैन मंदिर के परिसर में श्रद्धालुओं के लिए अतिथिशाला भी बनी है। यहां पर रियायती दरों पर ठहर सकते हैं। यहां श्रद्धालों के लिए वातानुकूलित कमरे भी उपलब्ध हैं। (फोन - 7686274148, 7686272252
- [email protected]
(KHAJURAHO, JAIN TEMPLE, GUEST HOUSE, ADINATH, PARSWANATH TEMPLE)
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अपने महान पूर्वाचार्यो के संस्कारों को गौरवान्वित करने वाले वर्तमान के नायाब सन्त सभी प्रकार आडम्बरो से दूर रहकर निस्पृहता व वीतरागता को धारण करने वाले परमपूज्य संयम भूषण तपस्वी सम्राट के नन्दन चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरुराज गुजरात की पावन सिद्ध धरा तारंगा जी की प्रातः वन्दना के उपरांत सिद्धशिला पर ही स्वयं केशलोंच करते हुए।
बहुत बड़े सन्त अत्यधिक प्रभावशाली वाणी किन्तु अत्यंत सादगी पूर्वक बिना मंच पांडाल के केशलोंच चर्या.. आचार्य श्री का आत्मकल्याण के साथ एक लक्ष्य समाज को आडम्बर व प्रदर्शनों से मुक्त करना,समाज को अनावश्यक व्ययो व निर्माणों से बचाना व समाज को सँगठित रखना
आचार्य श्री ने उदयपुर की धर्म सभा मे कहा था कि स्वयं के हस्तो से केशलोंच करना सबसे श्रेष्ठ होता है।
केशलोचन आत्मा और शरीर के भेदविज्ञान को जानकर मनोबल को मजबूत करने का श्रेष्ठतम ज्ञान विज्ञान है कोई भी दिगम्बर मुनि केशलोचन के दिन सम्पूर्ण आहार जल का त्याग करते हुए उपवास रखते है।दिगम्बर जैन मुनि के कठोर तप में से एक है
लेखक-शाह मधोक जैन चितरी
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#केशलोंच_एक_अलौकिक_परीक्षा आचार्यश्री विद्यासागरजी मुनिराज -वितरागी के उपासक. वैरागी की ललक #ज़रूर_पढ़े
13 फरवरी 2015 नेमावर,(देवास,मध्यप्रदेश) शुक्रवार का दिन था। आचार्य श्री जी जंगल (शौच क्रिया) से लौट रहे थे।लौटते समय उन्होंने सीढ़ी पर चढ़ने के लिए सीमेंट के बने चबूतरे पर ज्यों ही पैर रखा कि वह टूट गया और आचार्य श्री जी गिर गए। दाएं हाथ में कमंडलु था,वह जमीन पर टिक गया।बायाँ हाथ जमीन पर तेजी से रगड़ खा गया, जिससे हथेली में गहरा घाव हो गया एवं कोहनी में भी चोट आ गई। हाथ का घांव इतना गहरा था कि-वह 15-17 दिन में मुश्किल से भर पाया था।ऐसी स्थिति में गुरुवर ने अगले ही दिन 14 फरवरी को केशलोंच कर लिए।एक हाथ से कैसे संभव हुआ होंगा?कदाचित् चोट खाए बाएं हाथ का उपयोग किया होगा,तो पीड़ा की सीमा क्या रही होगी?
केशलोंच के बाद संघस्थ मुनि श्री सम्भवसागर जी ने आचार्य श्री जी से कहा- "आपको हथेली में इतनी तकलीफ है,फिर भी आपने समय से 3 दिन पूर्व भी केशलोंच कर लिए।"आचार्य जी बोले- "हमें परीक्षा में शत-प्रतिशत अंक लाने हैं,कम क्यों लाएं?(हंसते हुए)देखो!परीक्षक को पूरे अंक देने होंगे।"
धन्यवाद है आचार्य श्री विद्यासागर जी जैसे अलौकिक परीक्षार्थी को, जो परीक्षा देने में प्रति समय तत्पर रहते हैं। निर्जरा का एक भी अवसर जाने नहीं देते। स्वयं ही परीक्षक बन खुद को परखते रहते हैं कि मैं निर्जरा करने में शत- प्रतिशत सफल हो पा रहा हूं कि नहीं।।
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