25.06.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 25.06.2018
Updated: 26.06.2018

Update

Source: © Facebook

👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 25 जून 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 14* 📜

*बहादुरमलजी भण्डारी*

*एक राजाज्ञा; एक पारितोषिक*

भंडारीजी ने समय-समय पर धर्म संघ की सेवाओं में अपना बहुत ही मौलिक योगदान दिया। सेवा की अनेक घटनाओं में से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना अग्रोक्त है।

संवत् 1920 में जयाचार्य ने मुनिपतिजी को चुरू में दीक्षा प्रदान की। मुनिपतिजी के पिता जयपुर निवासी थानजी चोपड़ा के यहां गोद आए थे, परंतु परस्पर अनबन हो जाने के कारण उनसे पृथक् हो गए। भावी वशात् पृथक् होने के पश्चात् शीघ्र ही उनका देहांत हो गया। ऐसी विपन्न अवस्था में भी थानजी ने लगभग 12 वर्षों तक अपनी पुत्रवधू तथा पोते की कोई सार संभाल नहीं की। इसी अवधि में माता तथा पुत्र को विराग हो गया। जयाचार्य ने पहले मुनिपतिजी को उनकी माता की आज्ञा लेकर दीक्षित किया तथा लगभग छह महीने पश्चात् उनकी माता को भी दीक्षा प्रदान की।

इस दीक्षा के थोड़े दिन पश्चात् जब जयाचार्य लाडनूं विराजमान थे तब थानजी ने जोधपुर नरेश तख्तसिंहजी के सम्मुख इस आशय का एक आवेदन प्रस्तुत किया कि आचार्य जीतमलजी ने मेरे पोते को बहकाकर मूंड लिया है, अतः उन्हें गिरफ्तार किया जाए और मुझे मेरा पोता दिलाया जाए। वे इस समय लाडनूं में हैं। नरेश ने सत्यासत्य की खोज किए बिना ही उस बात पर विश्वास कर लिया और आदेश दे दिया कि दस घुड़सवार भेजकर गुरु और शिष्य को पकड़ लिया जाए तथा शीघ्र ही उन्हें मेरे सम्मुख उपस्थित किया जाए। इस आदेश के अनुसार तत्काल वहां से दस घुड़सवार रवाना कर दिए गए। जोधपुर से लाडनूं लगभग दो सौ किलोमीटर दूर है।

थानजी की पहुंच इतनी नहीं थी, किंतु इस सारी घटना के पीछे फलौदी के ढड्ढा परिवार का हाथ था। उन्होंने ही थानजी को उकसाया कि तुम पुकार लेकर जाओ हम पूर्ण रूप से तुम्हारी सहायता करेंगे। थानजी स्वयं तेरापंथ के विरोधी थे, परंतु ढड्ढा परिवार तो और भी अधिक उग्रता से विरोध रखता था। वह परिवार धनाढ्य होने के साथ-साथ राज्य में पहुंच वाला भी था। उन लोगों को तेरापंथ से इतना द्वेष इसलिए था कि उनके परिवार की एक वधू सरदार सती ने दीक्षा लेनी चाही थी। वह बाल विधवा थी। वर्षों तक अनुनय-विनय करने पर जब उन्हें आज्ञा नहीं दी गई तब उन्होंने आजीवन सागारिक अनशन कर दिया। इस पर उन्हें बाध्य होकर आज्ञा देनी पड़ी। वे नहीं चाहते थे कि उनके घर की कोई वधू भिक्षुणी बन कर भीख मांगती फिरे, किंतु फिर भी वैसा हुआ। सरदार सती ने जयाचार्य के पास दीक्षा ग्रहण की थी। वे लोग उस समय तो कुछ नहीं कर सके पर यह एक अच्छा अवसर समझकर उन्होंने थानजी को आगे कर दिया और उनकी ओट में स्वयं कार्य में लग गए।

*बहादुरमलजी भंडारी को जब इस षड्यंत्र का पता लगा तो उन्होंने क्या किया...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 360* 📝

*शिवालय आचार्य शान्ति*

*ग्रंथ-रचना*

साहित्य के क्षेत्र में शान्त्याचार्य की प्रसिद्धि टीका ग्रंथकार के में है। उन्होंने 'पाइयटीका' की रचना की। यह उच्चकोटि का टीका ग्रंथ है। इस टीका से शान्त्याचार्य के बहुमुखी ज्ञान की सूचना मिलती है। पाइयटीका का परिचय इस प्रकार है—

*पाइयटीका (शिष्यहिताटीका)* इसका नाम शिष्यहिता टीका है। यह टीका साहित्य में अत्यधिक प्रसिद्ध एवं मौलिकता से परिपूर्ण है। प्राकृत कथानकों की बहुलता के आधार से इसे पाइय टीका भी कहते हैं। इसमें पाठान्तरों और अर्थान्तरों की प्रचुरता है। कथानक संक्षिप्त शैली में है। मूलपाठ और निर्युक्ति दोनों की व्याख्या करती हुई यह टीका 18000 (अठारह हजार) श्लोक परिमाण है। इसमें 557 गाथाएं निर्युक्ति की हैं। स्थान-स्थान पर विशेषावश्यक भाष्य की गाथाओं तथा दशवैकालिक सूत्र की गाथाओं का प्रयोग भी हुआ है। कहीं-कहीं भर्तृहरि के श्लोक भी हैं। भाषा और शैली की दृष्टि से भी यह अत्युत्तम टीका है। उत्तराध्ययन सूत्र पर अब तक जितनी टिकाओं के नाम उपलब्ध हैं उनमें यह टीका शीर्षस्थानीय है। इसे वादी रूपी नागेंद्रों के लिए नागदमनी के समान माना है।

*समय-संकेत*

शान्त्याचार्य का पदार्पण अंतिम समय में उपासक यश के पुत्र 'सोढ़' के साथ गिरनार पर हुआ। वहीं पच्चीस दिवसीय अनशन के साथ वीर निर्वाण 1566 (विक्रम संवत् 1096, ईस्वी सन् 1039) ज्येष्ठ शुक्ला नवमी मंगलवार को उनका स्वर्गवास हो गया।

*प्रभापुञ्ज आचार्य प्रभाचन्द्र के प्रभावक चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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❄ *अणुव्रत* ❄

🔮 संपादक 🔮
*श्री अशोक संचेती*

💠 *जून अंक* 💠

🗯 पढिये 🗯

*सुप्रभात*
स्तम्भ के अंतर्गत
तीन
*विचारोत्तेजक प्रसंग*
🌼
शब्द की पकड़
🌼
*विश्वास ही जीवन है*
🌼
सत्य असत्य का विवेक

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➿ प्रेषक ➿
*अणुव्रत सोशल मीडिया*

➿ संप्रसारक ➿
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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