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पूज्य_गुरुवर_सुधासागर_महाराजजी_महान_क्यों
#एक_चर्चा
आज कुछ लोगो बीच बैठा था तो चर्चा चल निकली आचार्य भगवन विद्यासागर जी महायतिराज के संघ में सबसे अधिक प्रभावना करने वाले संत में प्रमुखता से जगत पूज्य मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाऋषिराज का नाम आता है और इस प्रकार बढ़ती हुई चर्चा में सभी लोग बताने लगे कि सुधासागर महाराज जी ही महान क्यों है प्रभावनावान क्यों है...?
सबसे पहिले एक व्यक्ति ने बड़े ही श्रद्धा भाव से उनके नाम का स्मरण करते हुए परोक्ष रूप से उनके चरणों मे वन्दन किया और बोले जगत पूज्य गुरूजी के हमारे नगर में आगमन के पूर्व हमारी समाज मे कई भाग थे लोग एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा रखते थे और मौका ही ढूढ़ते रहते थे किसी तरह नीचा दिखाने की लेकिन जैसे ही जगतपूज्य गुरूजी का मंगल प्रवेश हुआ सारी समाज एकता के सूत्र में बंधी हुई है आज मिशाल दी जाती है हमारे समाज की इसलिये में कहता हूं जगत पूज्य से महान संत कोई नही है ।
तभी दूसरे महानुभाव बोले हमारे यहां मन्दिर निर्माण में बहुत बाधाएं आ रही थी मन्दिर के ठीक सामने जो प्लाट था समाज उसे लेने पर जोर दे रही थी किन्तु वह देने को तैयार नही था तभी जगतपूज्य के आगमन की खबर आई और जैसे ही उनका प्रवेश मन्दिर जी में हुआ प्रवेश करते ही जैसे आस्चर्य वह व्यक्ति आकर अपना प्लाट दान में देकर चला गया और अब मन्दिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से प्रारम्भ है शीघ्रता ही पूर्ण हो जाएगा और पंचकल्याणक भी जल्दी ही हो जाएंगे तो हुए ना सुधासागर जी महान क्योंकि विरोधी भी बगैर कुछ कहे उनके चरणों मे समर्पित हो जाते है ।
तीसरे कोटा के महानुभाव ने बड़े ही प्रसन्नता से कहा कि जगत पूज्य गुरुजु के चातुर्मास में हमारे यहां भव्य मंदिर का निर्माण हो गया पंचकल्याणक भी हो गए और तो और ऐतिहासिक छत्र की स्थापना भी हुई जिसे वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया एक अस्पताल जो कैंसर के रोगियों की चिकित्सा हेतु था उसे पुनर्जन्म देकर जीवंत किया और भी बहुत सारे ऐसे कामो को किया जिनसे लोग उन्हें महान संतो में प्रथम स्थान देते है ।
किसी ने तीर्थो के जीर्णोद्धार की बाते बताई चांदखेड़ी,सांगानेर, बजरंगगढ़, देवगढ़, रणथंभौर,और भी ना जाने 250 क्षेत्रों का नव निर्माण और जीर्णोद्वार कराया इसलिये जगत पूज्य सुधासागर जी महान है ।
सभी की बातो को पहिले तो में सुनता रहा फिर मेने कहा कि आप लोग शायद गलत सोच रहे है कि जगतपूज्य इसलिये महान नहीं है कि उन्होंने नव निर्माण कराया,जीर्णोद्धार कराया, समाजो में एकता करायी, रोगियों के निदान के लिये अस्पताल खुलवाए,रिकार्ड बनाने वाले ऐतिहासिक छत्र की स्थापना करवाई बल्कि मेरा ऐसा मानना है सुधासागर जी इसलिये महान है कि इतना सब कुछ करवाने के बाद भी वह अपनी चर्या में किसी भी तरह से समझौता नही करते मुनि धर्म के पूरे 28 मूलगुणों का निर्दोष पालन करते है आचार्य भगवंत की आज्ञानुसार प्रत्येक कार्य को करते है और किसी भी कार्य में निजी स्वार्थ नहीं रखते इसलिये महान है यानी कार्यो के करने से नही अपितु अपनी साधना के कारण महान है!
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जब जब हम दुनियाँ का आनंद As a observer -समीक्षक बनकर लेते है तब तब हम परेशानियों में नही रहते है!! लेकिन जब हम उनमें As a involve (हस्तक्षेप) होते है तब वे परेशानी भी हमारी निजी बन जाती है!!
जैसे किसी नाले को आप दूर से देख रहे है as a sight of view (विहंगम दृश्य) तब आपको बड़ा आनंद आएगा दूर से पानी को बहते हुए!!लेकिन जब आप उसके निकट जायेगे और उसकी दुर्गंध लेगे तब आपको वही नाला पीड़ा देने लग जायेगा!! इसलिए as a observer बने,as a involver नही!!
मुनि श्री सौम्यसागर जी -संघस्थ आ.श्री विद्यासागर जी
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आज पपौरा जी मे बहुत सारे अजैन लोगो ने आचार्य श्री से मांस मदिरा का त्याग किया.. exclusive photographs..
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@ Jain Centre of Southern #California -
बुएन पार्क,कैलिफ़ोर्निया #अमेरिका में लकड़ी से बना जैन मंदिर जिसकी सुंदरता और भव्यता और कलात्मकता देखकर आपकी आखें चौंधिया जाएंगी। प्रस्तुति व संकलन: सुभाषचंद्र बजाज।
#jainism #anciantreligion #jaininUSA
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समय-समय पर दान करना सीखें श्रावक- #आचार्य_विद्यासागर जी (सागर से ढाई हजार लोगों ने श्रीफल भेंट कर चातुर्मास का किया निवेदन)
प्रसिद्ध जैन तीर्थक्षेत्र पपौराजी में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को सागर से ढाई हजार श्रावको ने सामूहिक रुप से आचार्यश्री से सागर में चातुर्मास हेतु निवेदन करते हुए श्रीफल समर्पित किया, सागर समाज की तरफ से मुकेश जैन ढाना ने कहा कि 1998 के बाद से सागर में आचार्य संघ का वर्षा कालीन चातुर्मास नहीं हुआ है।
आचार्य श्री जी ने इस अवसर पर अपने मंगल प्रवचन में कहा प्रत्येक श्रावक का कर्तव्य है की वह बांटना सीखे समय-समय पर वितरण (दान) करते रहना चाहिए । क्योंकि दान बहुत महत्वपूर्ण है जैसे किसान फसल काटने के बाद वितरण करता है उसी प्रकार श्रावक को दान करना चाहिए आप लोगों के द्वारा चातुर्मास की मांग की गई है देखते हैं क्या होता है बुंदेलखंड में नौतपा की एक अलग परंपरा है 9 दिन के तपा यहां पर तपते हैं और जो नीचे तप् जाता है वह ऊपर चला जाता है सागर का जल तप गया और बादल बनकर ऊपर चला गया। और उसके बाद फिर झमाझम बरसता है आचार्य श्री जी ने कहा मानसून आकर भी भटक जाता है जो अनुमान का विश्वास करते हैं वह उनकी ओर नहीं आता है उसे ही भटकना कहते हैं।
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