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👉 *आचार्य प्रवर के प्रवास का तृतीय दिवस*
👉 *आचार्य प्रवर के आज के मुख्य प्रवचन के मुख्य दृश्य ऐ स राजा ग्राउंड, ऍम वि पी कॉलोनी, विशाखापट्नम् से*
👉 *अक्षय तृतीया कार्यक्रम की मुख्य झलकियां*
👉 *आचार्य प्रवर के सान्निध्य में 93 लोगों ने वर्षीतप का पारणा किया*
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 130* 📝
*जेठमलजी गधैया*
*सरदारशहर में*
उन्हीं दिनों बीकानेर नरेश रतनसिंह ने अपने पुत्र सरदारसिंहजी के नाम पर सरदारशहर बसाना प्रारंभ किया। दूर-दूर तक फैले रेतीले जंगल की दुर्गमता को सुगमता में बदलने के लिए नरेश की यह एक योजना थी। इसी के अंतर्गत कुछ वर्ष पूर्व रतनगढ़ बसाया गया था और उसके बाद संवत् 1814 में सरदारशहर की नींव रखी गई। उसका भार उन्होंने नोहर निवासी मदनचंदजी छाजेड़ को सौंपा। वे नरेश के अत्यंत विश्वसनीय और मान्य व्यक्ति थे। सर्वप्रथम वे स्वयं वहां आकर बसे और फिर अन्य महाजनों को वहां बसने के लिए प्रेरित किया। इसी सिलसिले में उन्होनें गधैया परिवार को भी वहां बसने के लिए निमंत्रित किया।
जेठमलजी की दादी छाजेड़ परिवार की पुत्री थी। गधैया परिवार में उस समय उन्हीं का आदेश चलता था। पति और पुत्र की मृत्यु के पश्चात् वह सवाई में बस गई थीं परंतु वहां परिवार की कोई आर्थिक प्रगति नहीं हो पाई। फलतः वह कहीं अन्यत्र बसने की बात सोचने लगीं। उसी समय उनके सगे भाई मदनचंदजी छाजेड़ की ओर से उन्हें सरदारशहर में बस जाने की प्रेरणा मिली। संवत् 1896 में तब वह परिवार सरदारशहर में आकर बस गया। वहां सम्वत् 1905 में जेठमलजी का विवाह 'तोगास' (सरदारशहर तारानगर के मार्ग में) के हिम्मतरामजी नखत की पुत्री सरूपां के साथ संपन्न हुआ।
अर्थार्जन के लिए गधैया परिवार में उस समय दो ही पुरुष थे। एक जेठमल जी और दूसरे उनके चाचा मानमलजी। मानमलजी ने वहां खेती का कार्य प्रारंभ किया। उसके अतिरिक्त बाजार में धान तोलने का कार्य भी वे किया करते थे। इन कार्यों से सामान्य व्यय योग्य अर्थ उन्हें अवश्य मिल जाया करता था, परंतु उसमें आर्थिक प्रगति के लिए कोई विशेष अवकाश नहीं था।
जेठमल जी उस सामान्य आय की परिधि को लांघकर शीघ्र प्रगति करना चाहते थे। उन्होंने बंगाल आदि किसी दूर प्रदेश में जा कर व्यापार करने का निर्णय किया। पहले पहल संवत् 1907 में वे कूचबिहार (बंगाल) गए। वहां हिराचंदजी सेठिया (मानमलजी गधैया के साले) के साझे में खांडसारी की दुकान की। प्रत्येक छह महीने के पश्चात् वे घर को एक पत्र लिखते रहे तथा व्यय के लिए पचास रुपए भेजते रहे। घर का कार्य उन रुपयों के बिना भी मजे से चल जाया करता था। थली में उस समय प्रायः प्रत्येक परिवार खेती और गौ पालन किया करता था। बाजरी, मूंग, मोठ आदि वहां के प्रमुख खाद्यान्न थे। वे सब अपने ही खेतों में उत्पन्न कर लिए जाते थे, अतः पारिवारिक जनों के लिए न खाद्यान्नों की कमी थी और ना दूध दही आदि की ही। सभी का सात्त्विक खान-पान तथा सादा परिधान था। अन्य किसी प्रकार का विशेष व्यय था नहीं। अतः प्रतिवर्ष उनके परिवार की संपत्ति में कुछ न कुछ वृद्धि होती रहती। अपनी प्रथम व्यापार यात्रा में जेठमलजी ने लगातार साढ़े सात वर्ष वहां बिताए। उसके पश्चात् अपनी कमाई के लगभग तीन हजार रुपये साथ लेकर उन्होंने थली की ओर प्रस्थान किया।
*श्रावक जेठमलजी गधैया ने अपनी दूसरी यात्रा कहां के लिए की...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 306* 📝
*वरिष्ठ विद्वान् आचार्य बप्पभट्टि*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
बप्पभट्टि ने कान्यकुब्ज (कन्नौज) के गौड़ देश (मध्य बंगाल) की ओर प्रस्थान किया था। कई दिन यात्रा के बाद वे गौड़ देश की राजधानी लक्षणावती में पहुंचे। लक्षणावती में बप्पभट्टिसूरि का परिचय विद्वान् वाक्पतिराज से हुआ। वाक्पतिराज धर्मराज की सभा के पंडित थे एवं परमार वंशीय क्षत्रिय थे। वाक्पतिराज ने बप्पभट्टिसूरि के आगमन की सूचना धर्मराज को दी। धर्मराज बप्पभट्टिसूरि के नाम से परिचित थे। उनके मन में बप्पभट्टिसूरि से मिलने की कई दिनों से भावना थी। धर्मराज के प्रतिद्वंद्वी 'आम' के साथ मित्रता होने के कारण बप्पभट्टि के प्रति धर्मराज का दृष्टिकोण संदेहास्पद था। उन्होंने वाक्पतिराज से कहा "बप्पभट्टि को अपनी सभा में आमंत्रित करते हैं पर 'आम' का निमंत्रण आने पर वे यहां से चले जाएं इससे मैं अपना अपमान समझता हूं। अतः आम राजा स्वयं मेरी सभा में उपस्थित होकर अपने नगर में पदार्पण की प्रार्थना बप्पभट्टि से करें तभी उनका यहां से विहार हो सकेगा अन्यथा नहीं। यह शर्त बप्पभट्टि द्वारा स्वीकार किए जाने पर ही उनके लिए यहां रहने की व्यवस्था हो सकती है।"
बप्पभट्टिसूरि ने राजा की शर्त स्वीकार कर ली। वे धर्मराज के राज्य में सानंद रहने लगे।
उधर कुछ दिनों के बाद आम राजा को धर्मराज के राज्य में बप्पभट्टि के पहुंचने की जानकारी मिली। उन्होंने राजपुरुषों को उन्हें बुलाने के लिए भेजा। राजपुरुषों ने लौटकर बताया "राजन! आप वहां जाकर स्वयं प्रार्थना करें, तभी बप्पभट्टिसूरि का यहां आना संभव है।" सारी स्थिति की जानकारी लेकर आम स्वयं वेश बदलकर अपने प्रतिद्वंद्वी धर्मराज की सभा में पहुंचे। वहां कई प्रकार की ज्ञान गोष्ठियां हुई बप्पभट्टिसूरि ने श्लेषोक्ति में धर्मराज से कहा "भूनाथ! यह तुम्हारा प्रतिद्वंद्वी नरेश है।" पर सरल स्वभावी धर्मराज श्लेषोक्ति को सूक्ष्मता से समझ न सके।
बप्पभट्टिसूरि को अपने राज्य में पदार्पण की प्रार्थना कर नरेश आम वहां से चले गए। यह कार्य इतना गुप्त रूप से हुआ कि बप्पभट्टि के अतिरिक्त इस रहस्य को कोई नहीं जान सका। दूसरे दिन बप्पभट्टिसूरि ने सभा के बीच नरेश आम के आगमन की बात धर्मराज को सप्रमाण बताकर वहां से प्रस्थान किया। मार्गांतर की दूरी को पार कर सांकेतिक स्थान पर वे आम राजा से मिले। वहां से सभी ऊंट की सवारी से कान्यकुब्ज सकुशल पहुंच गए।
आचार्य सिद्धसेन इस समय वृद्ध हो गए थे। शिष्य बप्पभट्टि को कन्नौज से अपने पास बुलाकर गण का सारा दायित्व सौंपा। वे अनशनपूर्वक स्वर्गवासी हुए।
बप्पभट्टिसूरि कुछ दिन वहां रहे। उन्होंने गण की सार संभाल की। उसके बाद ज्येष्ठ गुरुबंधु गोविंदसूरि और नन्नसूरि को गच्छ संभलाकर उन्होंने कन्नौज की तरफ पुनः विहार किया। नरेश आम को बप्पभट्टिसूरि के आगमन से अत्यधिक प्रसन्नता हुई।
*आचार्य बप्पभट्टि के ब्रम्हचर्य व्रत की परीक्षा के लिए 'आम' राजा ने क्या युक्ति अपनाई...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*विशाखापट्नम से*
👉 पूज्यप्रवर का प्रेरणा पाथेय अक्षय तृतिया शुभ अवसर पर
🌻प्रस्तुति - संघ संवाद🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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