02.04.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 02.04.2018
Updated: 02.04.2018

Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 294* 📝

*अमेय मेधा के धनी आचार्य हरिभद्र*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

हंस और परमहंस के छद्म रूप में बौद्ध विद्यापीठ में प्रमाणशास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने के रहस्य का उद्घाटन देवी शक्ति द्वारा हुआ। बौद्ध अधिष्ठात्री 'तारादेवी' ने वायु वेग से पत्र को उड़ा कर उसे लेखशाला में डाल दिया। पत्र के शीर्ष स्थान पर 'नमो जिनाय' लिखा हुआ था। बौद्ध छात्रों ने उसे देखा और उसे उपाध्याय के पास ले गए। उपाध्याय ने समझ लिया यहां छद्मवेश में अवश्य कोई जैन छात्र पढ़ रहा है। परीक्षा के लिए वाटिका के द्वार पर जिन प्रतिमा की स्थापना कर गुरुजनों ने सबको जिन प्रतिमा पर चरण रखकर आगे बढ़ने का आदेश दिया। बौद्ध जानते थे कोई भी जैन छात्र प्रतिमा पर पैर नहीं रखेगा। आदेश प्राप्त होते ही विद्यार्थी प्रतिमा पर चरण निक्षेप करते हुए चले गए। हंस और परमहंस के सामने धर्म संकट उपस्थित हो गया। उन्होंने समझ लिया कि यह सारा योजनाबद्ध उपक्रम हमारी परीक्षा के लिए ही किया गया है। आचार्य हरिभद्र द्वारा बार-बार निषेध किए जाने पर भी वे आग्रहपूर्वक यहां पढ़ने आए थे। गुरुजनों के आदेश-निर्देश की अवहेलना का परिणाम अहितकर होता है, यह उन्हें सम्यक् प्रकार से अवगत हो गया। दोनों ने एकांत में विचार विमर्श किया। ज्येष्ठ बंधु ने खटिका से प्रतिमा पर ब्रह्मसूत्र की रेखा खींच कर जिन प्रतिमा की प्रतिकृति को पूर्णतः परिवर्तित कर दिया और उस पर चरण रखकर आगे बढ़ा। परमहंस ने हंस का अनुगमन किया। यह काम हंस ने अत्यंत त्वरा और कुशलता से किया। ये युगल बंधु अपने पुस्तक पत्रों को लेकर वहां से पलायन करने में सफल हो गए। संयोग की बात थी कि हंस का मार्ग में प्राणात हो गया। दूसरा हरिभद्र के चरणों में आकर गिरा। पुस्तक पत्र उनके हाथों में सौंप कर उसने अन्तःतोष की अनुभूति की। गहरी थकान के बाद शिष्य का जीवन पूर्ण विश्राम की कामना कर रहा था। आचार्य हरिभद्र के देखते-देखते परमहंस का प्राण दीप बुझ गया।

शिष्य हंस का प्राणान्त मार्ग में हो गया या कर दिया गया यह उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में समान रूप से प्राप्त है। परमहंस की मृत्यु के विषय में भिन्न-भिन्न मत हैं। प्रबंधकोश के अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा चित्रकूट में आकर निंद्राधीन परमहंस का शिरच्छेद कर गया था। प्रातःकाल आचार्य हरिभद्र ने शिष्य कबंध को देखा, वे कोपाविष्ट हो गए।

दोनों प्रिय शिष्यों की मृत्यु ने उनको अप्रत्याशित निर्णय पर पहुंचा दिया। महाराज सूरपाल की अध्यक्षता में उन्होंने बौद्धों के साथ शास्त्रार्थ किया। इस गोष्ठी की भावी परिणति अत्यंत भयावह और हिंसात्मक थी। परास्त दल को तप्त तेल के कुंड में जलने की प्रतिज्ञा के साथ इस शास्त्रार्थ का प्रारंभ हुआ था। हरिभद्र इसमें पूर्ण विजयी हुए। यह विजय हिंसा में परिणित होने जा रही थी। जिनभट्ट सूरि को हिंसा परक घटना की सूचना मिली। उन्होंने कोपाविष्ट आचार्य हरिभद्र को प्रतिबोध देने के लिए दो श्रमणों को तीन श्लोक देकर भेजा था। वे श्लोक इस प्रकार हैं—

*गुणसेण-अग्गिसम्मा सीहाणंदा य तह पिआपुत्ता।*
*सिहि-जालिणि माइ-सुआ*
*धण-धणसिरिमो य पइ-भज्जा।।185।।*
*जय-विजया य सहोअर धरणो लच्छी अ तह पई-भज्जा।*
*सेण-विसेणा पित्तिय-उत्ता जम्मम्मि सत्तमए।।186।।*
*गुणचंद-वाणमंतर समराइच्च-गिरिसेण पाणो अ।*
*एगस्स तओ मोक्खोऽणन्तो अन्नस्स संसारो।।187।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 73)*

इन श्लोकों में गुणसेन अग्निशर्मा के कई भवों की वैराग्यमयी घटना है। वैर का अनुबंध भव-भवांतर तक चलता रहता है। यह तथ्य इस कथा के माध्यम से स्पष्ट उभारा गया। आचार्य जिनभट्ट द्वारा प्रेषित इन श्लोकों को पढ़ते ही हरिभद्र का कोप शांत हो गया।

*प्रबंधकोश में इस घटना का वर्णन किस प्रकार किया गया है...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 118* 📝

*माईदासजी गाधिया*

*घर की ओर*

माईदासजी को घर छोड़े बारह वर्ष व्यतीत हो गए थे। इतने लंबे समय में जहां आर्थिक परिस्थितियां बदल चुकी थीं, वहां मानसिक स्थितियों में भी बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया था। जिस संकल्प से प्रेरित होकर वे इतनी दूर पहुंचे थे, वह पूर्ण हो चुका था। असम्मान तथा दुःख-दुविधाओं की काली रात व्यतीत हो गई। सम्मान तथा सुख-सुविधाओं का स्वर्णिम प्रभात उनके मार्ग पर आलोक बिखेरने को आतुर था। वर्षों से दबी हुई उनकी भावनाओं ने करवट बदली। अंदर से न जाने कौन कचोट-कचोट कर कहने लगा कि अब उन्हें अपने घर चलना चाहिए।

उन्होंने दुकान के कार्य को सुव्यवस्थित किया। आगे के लिए करणीय कार्यों का मुनीम को निर्देश दिया और फिर घर जाने की पूरी तैयारी करके वहां से चल पड़े। घर से आते समय जितनी बड़ी दरिद्रता उनके साथ आई थी, अब वापस जाते समय उतनी ही बड़ी संपन्नता उनकी सहगामिनी थी।

बारह वर्ष के अज्ञातवास के पश्चात् वे अचानक ही अपने गांव में पहुंचे। पहले किसी को उन्होंने सूचना नहीं दी। जाते समय भी नहीं दी थी। तो अब आते समय ही क्यों देते? घर वालों ने जब उन्हें अपने सामने देखा तो सहसा आंखों पर विश्वास नहीं कर पाए। उन लोगों ने तो उनसे फिर मिल पाने की आशा ही छोड़ दी थी। ऐसी स्थिति में उनके आगमन ने सबकी आंखों में विद्युत की सी चमक भर दी। क्षण भर में सारे घर में चहल-पहल मच गई। चारों ओर हर्ष का पारावार हिलोरे मारने लगा।

परिवार वालों से माईदासजी पूरे मिल भी नहीं पाए थे कि सारा गांव ही मिलने के लिए उनके घर आ गया। उन्हें बाहर आना पड़ा। बड़े-बूढ़ों को नमस्कार किया और छोटों को आशीर्वाद दिया। सभी ओर से उन पर प्रश्नों की बौछार होने लगी। यों छुपकर क्यों चले गए? इतने दिन कहां रहे? कैसे रहे? क्या किया? खबर क्यों नहीं भेजी? इस प्रकार के प्रश्नों का कोई पार ही नहीं था। माईदासजी अब किस-किस को उत्तर देते? उत्तर दे पाना कोई सहज भी नहीं था। उन्होंने सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर बना लिया। कुछ भी पूछा जाए, वे पूछने वाले के सामने देखते और मुस्कुरा देते। वस्तुतः वही उन प्रश्नों का सही उत्तर हो सकता था। अन्य कुछ बतला पाना उनके लिए उस समय संभव नहीं था। कई दिनों तक उनके घर पर लोगों का वैसा ही जमघट लगता रहा। प्रश्न पूछे जाते रहे, उत्तर भी दिए जाते रहे। धीरे-धीरे लोगों की जिज्ञासा शांत हुई, तभी जाकर माईदासजी को विश्राम करने का अवसर प्राप्त हुआ।

*प्रभावशाली व्यक्ति*

माईदासजी के कारण उनका परिवार एक दिन में साधारण श्रेणी से उठकर धनिकों की श्रेणी में आ गया। उनका परिश्रम और साहस उस पीढ़ी के युवकों का आदर्श बन गया। आर्थिक समृद्धि के साथ ही उनकी अनुभव समृद्धि ने भी लोगों के मन को प्रभावित किया। धीरे-धीरे लोग उनके अनुभवों का लाभ उठाने लगे। केवल उनके गांव के ही नहीं, आसपास के गांव के लोग भी समय-समय पर अपनी समस्याएं लेकर वहां आते और उनका हल खोजने में उचित सहयोग पाकर लाभान्वित होते। इस प्रकार वे कुछ ही दिनों में गुढ़ा के ही नहीं, उस समग्र चोखले के एक प्रभावशाली व्यक्ति बन गए।

*गुढ़ा में प्रथम तेरापंथी परिवार माईदासजी का ही था। माईदासजी का परिवार किस घटना से प्रभावित होकर तेरापंथी बना...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 जींद - जैन संस्कार विधि से बढ़ते चरण
👉 अहमदाबाद - Confident Public Speaking कार्यक्रम का शुभारंभ
👉 बारडोली - वृद्धाश्रम में सेवा कार्य
👉 गोरेगांव, मुंबई - निर्माण एक नन्हा कदम स्वच्छता की ओर
👉 आसींद - भगवान महावीर जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

*अहिंसा यात्रा का आज दक्षिण में हुआ प्रवेश*

💠 *आचार्य श्री महाश्रमण ने अपनी धवल सेना के साथ आंध्रप्रदेश की सीमा से किया दक्षिण की ओर प्रवेश*

💠 *तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगना व कर्नाटक के सैकड़ो श्रावकों ने किया अपने आराध्य का भावभरा अभिनन्दन*

💠 *आज के प्रवेश की मनमोहक झलकियां*

दिनांक - 02-04-2018

प्रस्तुति -🌻 *संघसंवाद* 🌻

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*रक्तचाप - संतुलन*
(साभार भीतर का रोग: भीतर का इलाज)

*प्रेक्षाध्यान* (अध्यात्म योग का मासिक पत्र)

*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए

🌻 *संघ संवाद* 🌻

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*धन्य हुई आंध्रप्रदेश धरा*
*महाश्रमण तेरे चरण कमल से*

https://goo.gl/maps/a11hzK6kppq
👉 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम

👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "कोमारदा" पधारेंगे

👉 आज का प्रवास - ए.पी.टी.डब्ल्यू.आर. स्कूल,कोमारदा जिला - विजयनगरम (आंध्रप्रदेश)

प्रस्तुति - *संघ संवाद*

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