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श्री कुलभूषण देशभूषण मुनि की निर्वाण भूमि सिद्ध क्षेत्र कुंथलगिरी (जिला- उस्मानाबाद,महाराष्ट्र)
इस पवित्र भूमि से युवा सहोदर राजकुमार कुलभूषण देशभूषण मोक्ष गए थे। जब दोनो मुनि साधना में लीन थे तब इन पर घोर उपसर्ग हुआ जिसे श्री राम व लक्ष्मण ने दूर किया तत्पश्चात् यहाँ से द्वय मुनि मोक्ष गए
जैन ग्रन्थो में इसका प्राचीन नाम वंशस्थल नगर व वंशगिरि पर्वत भी मिलता है।
यहाँ श्रमण परम्परा के महान आचार्य चारित्र चक्रवर्ती शांतिसागर मुनिराज की सल्लेखना भी हुई थी उनके अतिरिक्त पूज्य वीरसागर मुनि,पूज्य माणिकसागर मुनि आदि कई श्रमण/श्रमणियो की सल्लेखना यहाँ सम्पन्न हुई जिनकी निषधिकाएँ अभी बनी है अभी यहाँ गुरुकुल संचालित है जिसमे जैन-अजैन बच्चे अध्ययनरत है आचार्यश्री विद्यासागर जी मुनिराज के आशीर्वाद से यहाँ हथकरघा केन्द्र भी विकसित हुआ है जिसमे जैन अजैन युवा हथकरघा का प्रशिक्षण लेते है
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👖फ़टे हुये जींस पहनना दरिद्रता को आंमत्रण देना है👉🏻#आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज #LatestPic #Pravachan #AcharyaVidyasagar
#डिंडोरी (म.प्र.) आप लोग भिन्न भिन्न प्रकार के हार गले में पहनते हैं और यदि नकली हो तो नहीं पहनेगे।लेकिन आज नकली आभूषण भी पहने जा रहे हैं। नकली आभूषणो,फटे वस्त्रो,का प्रभाव व्यक्ति पर पङता है ज्योतिष शास्त्रों में इसका स्पष्ट उल्लेख है,यहाँ तक की जिन फटे वस्त्रो को भिखारी भी नहीं पहनता उन जींस आदि वस्त्रों को फैशन के नाम पर बच्चे पहन लेते है इसका दुष्प्रभाव देखने में आ रहा है। उक्त आशय के उदगार डिडोरी में धर्म सभा को संबोधित करते हुए संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ने कहे।आचार्य श्री ने कहा कि सोना खाया भी जाता है,पहले रहीस लोग सोना खाते थे।क्या खाना?कैसे खाना? इसका प्रभाव पडता है।
हमारे पास एक विद्यार्थी आया वह फटा हुआ जींस पहने था वह भी एक एक जगह से नहीं कई जगह से फटा था हमने उससे समझाया तो वह मान गया। वस्तुतः शिक्षा के साथ वस्त्र,आभूषण भी हमारे संस्कारों को दिखाते हैं।आप को क्या खाना है?, क्या पहनना हैं? ये आपके संस्कृति और संस्कारों दिखाने वाले हैं इसीलिए माता पिता को इस ओर ध्यान देना चाहिए।आज हथकरघा में शुद्ध वस्त्रो का उत्पादन हो रहा है ये वस्त्र शरीर के गुण धर्म के अनुरूप तो है ही अन्य लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं और इनका उत्पादन पुरी तरह आहिंक रूप से किया जा रहा है। पूज्य आचार्य भगवंत ने हथकरघा के लिए आचार्य श्री ने #श्रमदान का नाम दिया है और इसके माध्यम से सौकङो लोगो को अत्मनिर्भर होने का अवसर मिला रहा है।हम सब शुद्ध बस्त्रों को अपनाते हुए दुसरे लोगों को भी प्रेरित करे।
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चांदनपुर के गाँव में बुलाले वीरा...मैं तो कर्म-कलंक मिटाने आऊंगा [महावीर जी - टीले वाले बाबा]
राजस्थान के करौली जिले में स्थित जैन तीर्थ श्री महावीर जी, जैन धर्म के साथ दूसरे लोगों के बीच भी अपार श्रद्धा का केंद्र है। आमतौर पर हमारे देश में एक शिखर वाले मंदिर बहुतायत में हैं, लेकिन यहां स्थित तीन शिखर वाले मंदिर की बात ही कुछ और है। इस मंदिर में देश-विदेश से जैन धर्मानुयायियों के अलावा पूरे राजस्थान से गुर्जर और मीणा समुदाय के लोग भी आते हैं। यही वजह है कि हर साल महावीर जयंती के मौके पर यहां लगने वाले मेले में जैनियों के अलावा दूसरे संप्रदायों के लोग भी काफी संख्या में आते हैं। इस मेले को राजस्थान टूरिज़म प्रदेश के महत्वपूर्ण आयोजनों में से एक मानता है।
नई दिल्ली स्टेशन से सुबह साढ़े सात बजे स्वर्ण मंदिर मेल से हमारी यात्रा की शुरुआत हुई। श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा, केवलादेव पक्षी विहार के लिए प्रसिद्ध भरतपुर और बयाना जंक्शन पर रुकती हुई ट्रेन 12 बजे श्री महावीर जी स्टेशन पर पहुंच गई। स्टेशन पर उतरते ही वहां भगवान महावीर की प्रतिमा देखकर मन पवित्र हो जाता है। वहां हरेक ट्रेन के वक्त पर यात्रियों को स्टेशन से लेने के लिए मंदिर कमिटी की बस आती है। उसी बस से हम मुख्य मंदिर तक पहुंचे। कमरा आदि बुक कराने के बाद हम तरोताजा होकर अन्नपूर्णा भोजनालय में गए। घर से बाहर इतना शुद्ध और सात्विक भोजन खाकर तबीयत प्रसन्न हो गई। कुछ देर तक कमरे पर विश्राम करने के बाद हम शाम को आरती के लिए मंदिर पहुंचे। आरती के लिए जैन धर्मानुयायियों के अलावा सिर पर पगड़ी बांधे गुर्जर और मीणा समुदाय के लोग भी मौजूद थे। उनके साथ लंबे-लंबे घूंघट निकाले महिलाएं भी पूरे उत्साह से आरती में भाग ले रही थीं। श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए मंदिर के चारों और फेरी (परिक्रमा) लगा रहे थे।
यहां स्थित भगवान महावीर को 'टीले वाले बाबा' के रूप में जाना जाता है। इसके बारे में एक लोक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि आज से करीब 400 साल पहले श्री महावीर जी गांव को चांदनपुर के नाम से जाना जाता था। वहां एक ग्वाला अपने परिवार सहित रहता था। एक दिन जब उसकी गाय जंगल से चरकर लौटी, तो उसने बिल्कुल दूध नहीं दिया। रोज-रोज ऐसा होना गरीब ग्वाले के लिए परेशानी का सबब बन गया। एक दिन परेशान ग्वाला गाय का पीछा करते हुए जंगल में पहुंचा, तो गाय एक टीले के ऊपर खड़ी हो गई और थनों से अपने आप दूध बहने लगा। यह देखकर ग्वाला डर गया और घर भाग आया। घर आकर उसने बताया कि जंगल वाले टीले में कोई देव है, जो हमारी गाय का दूध चुरा लेता है। उसने टीले को खोदकर उसकी सचाई जानने की सोची। पूरे दिन टीले की खुदाई करने के बावजूद उसे कुछ नजर नहीं आया। रात को उसे सपना आया कि कल भी खुदाई जारी रखना।
अगले दिन थोड़ी ही खुदाई करने पर उसे जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की यह मनभावन मूर्ति मिली। ग्वाले ने मूर्ति को वहीं विराजमान कर दिया और खुद भी वहीं रहने लगा। रोज सुबह उठकर मूर्ति को दूध चढ़ाता और शाम को घी के दीपक से आरती करता। धीरे-धीरे आसपास के गांवों के लोग भी वहां आने लगे। श्री महावीर जी में हर साल महावीर जयंती के अवसर पर चैत्र शुक्ल 13 से वैशाख कृष्णा द्वितीया तक पांच दिवसीय मेला लगता है। इस मेले में प्रभु की प्रतिमा को रथ पर बैठा कर गंभीर नदी के तट पर ले जाया जाता है। साथ में उत्साह से भजन गान कर रहे भक्तों की मंडली होती है। नदी तट पर भव्य पंडाल में प्रतिमा का अभिषेक किया जाता है। इस रथ यात्रा का खास आकर्षण मीणा और गुर्जर समुदाय की नृत्य मंडलियां होती हैं।
पंडाल जाते वक्त मीणा और आते वक्त गुर्जर नर्तक अपना कमाल दिखाते हैं। भगवान के रथ का संचालन सरकारी अधिकारी द्वारा किया जाता है। श्री महावीर जी स्टेशन पश्चिमी रेलवे की दिल्ली-मुंबई बड़ी रेल लाइन पर स्थित है। यहां सभी एक्सप्रेस ट्रेन रुकती हैं। इसके अलावा दिल्ली से बस सेवा भी उपलब्ध है। श्री महावीर का निकटतम एयरपोर्ट जयपुर है।
मंदिर कमिटी की धर्मशालाओं में डीलक्स और एसी रूम में रुकने की व्यवस्था है। मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर फाइव स्टार रिजॉर्ट सुविधा भी उपलब्ध है। खाने-पीने के लिए मंदिर कमिटी की अन्नपूर्णा भोजनशाला के अलावा निजी भोजनालय भी हैं।
श्री महावीर जी में मुख्य मंदिर के अलावा तीन और जिन (जैन) मंदिर हैं। इनमें मुख्य मंदिर के पास ही स्थित कांच का मंदिर विशेष तौर पर दर्शनीय है। साथ ही मुख्य मंदिर के नीचे स्थित ध्यान केंद्र में स्थित सैकड़ों रत्न प्रतिमाएं भी दर्शकों के आकर्षण का केंद्र होती हैं। पास ही स्थित म्यूजियम में खुदाई में समय-समय पर मिले अभिलेख आदि संग्रह करके रखे गए हैं। इनसे जैन कला और संस्कृति को करीब से जानने का मौका मिलता है। यहां स्थित पुस्तकालय में जैन संस्कृति से संबंधित प्राचीन ग्रंथ और पांडुलिपियां भी मौजूद हैं। अगर थोड़ा वक्त लेकर जाया जाए, तो श्री महावीर जी से 90 किलोमीटर आगे चमकौर जी जैन मंदिर और रणथंभौर नैशनल पार्क देखे जा सकते हैं। इसी तरह दिल्ली वापस आते वक्त श्री महावीर जी से 84 किलोमीटर पहले भरतपुर पक्षी विहार भी देखा जा सकता है।
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