18.12.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 18.12.2017
Updated: 20.12.2017

Update

*देवलोक गमन सूचना*

श्रीडूंगरगढ़ सेवा केंद्र में प्रवासित *साध्वी श्री जय माला जी* का आज लगभग सांय 8.45 बजे देवलोक गमन हो गया है।

दिनांक - 18-12-2017

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

👉 गंगाशहर: *'शासन श्री' साध्वी श्री प्रकाशवती द्वारा "तिविहार संथारे" का प्रत्याख्यान*
✨ साध्वी श्री जी का *संक्षिप्त "जीवन परिचय"..*

दि. 18/12/2017

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

Source: © Facebook

★ पूज्य गुरुदेव की अनुमति से गंगाशहर सेवा केंद्र में प्रवासित *साध्वी श्री प्रकाशवती जी (सिसाय)* ने अभी सांय 05:09 पर *"तिविहार संथारा"* स्वीकार किया है। निम्न लिखित चारित्रात्माओं की साक्षी रही ~
शासनश्री मुनिश्री मुनिव्रतजी
मुनिश्री शांतिकुमार जी
मुनिश्री विमल बिहारी जी
मुनिश्री विनीत कुमार जी
शासनश्री साध्वी गुणमाला जी
शासन श्री साध्वी कमल प्रभा जी
दि: 18.12.2017
प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

Update

👉 गंगाशहर: *'शासन श्री' साध्वी श्री प्रकाशवती द्वारा "तिविहार संथारे" का प्रत्याख्यान*
✨ साध्वी श्री जी का *संक्षिप्त "जीवन परिचय"..*

दि. 18/12/2017

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

Source: © Facebook

★ पूज्य गुरुदेव की अनुमति से गंगाशहर सेवा केंद्र में प्रवासित *साध्वी श्री प्रकाशवती जी (सिसाय)* ने अभी सांय 05:09 पर *"तिविहार संथारा"* स्वीकार किया है। निम्न लिखित चारित्रात्माओं की साक्षी रही ~
शासनश्री मुनिश्री मुनिव्रतजी
मुनिश्री शांतिकुमार जी
मुनिश्री विमल बिहारी जी
मुनिश्री विनीत कुमार जी
शासनश्री साध्वी गुणमाला जी
शासन श्री साध्वी कमल प्रभा जी
दि: 18.12.2017
प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

Update

🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺

त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 46* 📝

*जयचन्दजी पोरवाल*

*परिक्षोत्तीर्ण श्रावक*

जयचंदजी पोरवाल उदयपुर निवासी श्रावक थे। स्वामीजी के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा थी। साधु-साध्वियों की सेवा करने का अवसर आता तब वे अपना अधिकांश समय उसी में लगा दिया करते थे। उनकी धर्म परायणता दूसरों के लिए अनुकरणीय मानी जाती थी। उस समय तक उदयपुर में तेरापंथी श्रावक अंगुलियों पर गिने जाने योग्य ही थे। जितने थे उनमें भी अनेक लोग सामाजिक बहिष्कार के भय से गुप्त रहने में ही लाभ देखते थे। फिर भी उनमें कुछ ऐसे साहसी व्यक्ति भी थे जो स्वयं को खुले रूप में तेरापंथी घोषित करते थे और आने वाली हर विपत्ति से संघर्ष करने का जोश रखते थे। उन दिनों तेरापंथी बनने वाले प्रायः प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक संघर्षों में से गुजरना पड़ता था। स्वर्ण को निकष, छेद और ताप परीक्षा का जैसे कोई भय नहीं होता वैसे ही उस समय के तेरापंथी को भी किसी प्रकार की परीक्षा में से गुजरने में कोई भय नहीं था। जयचंदजी उन सभी प्रकार की परीक्षाओं में से उत्तीर्ण श्रावक थे। परिवार संपन्न था। दुकान में अच्छी आय थी। समाज में सम्मानित व्यक्ति थे। साधार्मिकों के प्रति उनके विचार बड़े उदार और सहयोगकारी थे। वे सदैव उन्हें आगे बढ़ाने में तत्पर रहते थे।

साध्वियों का निष्कासन संवत 1876 में साध्वी हस्तूजी का चातुर्मास उदयपुर में था। जयचंदजी और दुलीचंदजी आदि पोरवाल भाइयों ने बड़ी लगन के साथ उस चातुर्मास को सफल बनाने में योगदान किया। बहनों के लिए वह चातुर्मास अत्यंत लाभदायक रहा। व्याख्यान श्रवण, तत्त्व जिज्ञासा तथा निरीक्षणार्थ बहुत सी बहनों का वहां आगमन होने लगा। वह सारी स्थिति उन व्यक्तियों के लिए एक नई शिरोर्ति बन गई जो तेरापंथ से विद्वेष रखते तथा उसकी प्रगति का मार्ग अवरुद्ध कर देना चाहते थे।

उन लोगों ने साध्वी वर्ग को वहां से निकलवा देने का प्रयास प्रारंभ किया। लगभग दो दशक पूर्व उस प्रकृति के लोगों ने स्वामी भीखणजी के लिए भी महाराणा से उदयपुर त्याग का आदेश निकलवाया था, परंतु वे उसे कार्य रूप में परिणत नहीं करवा पाए। महाराणा ने वस्तुस्थिति से अवगत होते ही तत्काल अपने उस आदेश को वापस ले लिया था। इस बार उन लोगों ने बड़ी गूढ़ता और सावधानी से कार्य करना प्रारंभ किया। उन्होंने विभिन्न उपायों द्वारा महाराणा के कुछ निकटस्थ व्यक्तियों को अपने वश में किया और विरोधी व्यक्तियों में भी अनेक ऐसे थे जिनकी पहुंच महाराणा तक थी। वे सब समय समय पर महाराणा को साध्वियों के विरुद्ध भ्रांत करते रहे और उन्हें उदयपुर से निकाल देने के लिए दबाव डालते रहे।

*क्या इस बार विरोधी व्यक्तियों के प्रयास सफल हुए...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿🌺

🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 222* 📝

*सरस्वती-कंठाभरण आचार्य सिद्धसेन*

*साहित्य*

*कल्याण मंदिर स्तोत्र* इस स्तोत्र की रचना शिवालय में हुई। यह स्तोत्र वसंततिलका छंद में संस्कृत भाषा में रचा गया है। इस स्तोत्र की भाषा सुललित और प्रवाहमयी है। इस स्तोत्र में पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है। इस स्तोत्र के 44 पद्य हैं। उज्जयिनी के महाकाल मंदिर में रुद्रलिङ्ग का स्फोटन कर पार्श्वनाथ के बिंब प्रकटन की घटना इस स्तोत्र के प्रभाव से घटित हुई थी। आचार्य सिद्धसेन कवि थे। सिद्धहेमशब्दानुशासन में हेमचंद्र ने उत्कृष्टेऽनूपेन (2|2|39) सूत्र की व्याख्या में 'अनुसिद्धसेन कवयः' कहकर अन्य कवियों को सिद्धसेन का अनुगामी सिद्ध किया है।

आदिपुराण के कर्त्ता दिगंबर आचार्य जिनसेन उनकी कवित्व शक्ति से अति प्रभावित हुए और उन्होंने कहा

*कवयः सिद्धसेनाद्या वयं तु कवयो मताः।*
*मणयः पद्मारागाद्या ननु काचेऽपि मेचकः।।39।।*
*(आदि पुराण, भाग-1)*

हम तो गणना मात्र कवि हैं। यथार्थ में कवि आचार्य सिद्धसेन थे।

आचार्य अभयनंदी ने जैनेंद्र व्याकरण के 'उपेन' सूत्र (1|4|16) की व्याख्या में 'अनुसिद्धसेनं वैयाकरणं' कहकर प्रवर वैयाकरणों में सिद्धसेन को सर्वोत्कृष्ट स्थान दिया है।

पूज्यपाद (देवनंदी) के व्याकरण के अंतर्गत 'वेत्तेः सिद्धसेनस्य' (5|1|7) सूत्र की व्याख्या में सिद्धसेन के मत को उदाहरण रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस सूत्र के नियमानुसार अनुपसर्ग सकर्मक धातु के रेफ का आगम होता है। सिद्धसेन की नवमी द्वीत्रिंशिका के 22वें पद्य में 'विदृते' इस प्रकार की धातु का प्रयोग है। इस प्रकार के धातु प्रयोग की विलक्षणता आचार्य सिद्धसेन की बहुश्रुतता को प्रकट करती है। सिद्धसेन स्वतंत्रचेता व्यक्ति थे। उन्हें युक्ति के आधार पर जिस सत्य की अनुभूति हुई उसे निस्संकोच एवं निर्भय होकर जनता के सामने प्रस्तुत किया था। उनका चिंतन प्राचीनता अथवा नवीनता के साथ बंधा हुआ नहीं था। पूर्वाग्रह का भाव उनमें कभी नहीं था। द्वात्रिंशिका के कुछ श्लोकों में उनके स्वतंत्र और मौलिक चिंतन के दर्शन होते हैं।

*आचार्य सिद्धसेन द्वारा रचित द्वात्रिंशिका के श्लोकों* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆⚜🔆

News in Hindi

https://goo.gl/maps/Dcj16fJLrim

👉 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम

👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "जुगसलाई (टाटानगर)" पधारेंगे

👉 आज का प्रवास - श्री राजस्थान शिव मन्दिर, जुगसलाई (टाटानगर), जिला - पूर्वी सिंहभूम (झारखण्ड)

दिनांक: 18/12/2017

प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*

Source: © Facebook

Source: © Facebook

Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. आचार्य
  2. जिनसेन
  3. दर्शन
  4. भाव
  5. राजस्थान
Page statistics
This page has been viewed 489 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: