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👉 अक्षय तृतीया हेतु कल होगा पूज्यवर का भागलपुर में प्रवेश । भावभरा आमन्त्रण
प्रसारक - *तेरापंथ संघ संवाद*
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👉विजयनगर (बंगलोर) - वन नेशन वन मिशन
👉 धुबरी - श्री ओसवाल असम भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष नियुक्त
👉 गुलाबबाग - वर्षीतप अभिनंदन
👉 उदयपुर - आध्यात्मिक मिलन
👉 शाहीबाग, अहमदाबाद - छ: आवश्यक प्रशिक्षण कार्यशाला
👉 बारडोली - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सूरत - टेक्नोलॉजी का ज्ञान, बढ़ाएगा सशक्त पहचान
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*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 64 - *कासीद व्यवस्था*
*संघीय व्यवस्थाएं* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 39📝
*संस्कार-बोध*
*शिष्य-सम्बोध*
*शिष्य के संस्कारों का महत्त्व बतलाते दोहों में प्रयुक्त कुछ उदाहरणों का विस्तृत विवेचन*
*6. आग नहीं सहते कभी*
आत्मिक बल के आधार पर पुरुष के चार प्रकार बताए गए हैं--
मोम के गोले के समान-- *मृदु।*
जतु-- लाख के गोले के समान-- *दृढ़*
दारु-- काष्ठ के गोले के सामान-- *दृढ़तर*
मिट्टी के गोले के समान-- *दृढ़तम*
आचार्य भिक्षु ने एक रोचक उदाहरण के माध्यम से उक्त चार प्रकार के पुरुषों के मनोबल, आत्मबल या संकल्पबल को समझाया है--
चार व्यक्ति साधु के पास गए। साधु ने उपदेश दिया। वे प्रभावित हुए। उनका मन विरक्त हो गया। उन्होंने साधु बनने की इच्छा प्रकट की। साधु ने कहा-- 'पहले अपना परीक्षण करो। स्वयं को तोलो। उसके बाद साधु बनने की बात करना।' वे प्रवचन-स्थल से बाहर आए। वहां लोग खड़े थे। उन्हें देखते ही वे आलोचना के स्वर में बोले-- 'ये साधु बनेंगे! कमाने से जी चुराते हैं। पलायनवादी हैं। क्या खाक साधुपन पालेंगे?' एक व्यक्ति यह सब सुन घबरा गया। उसने साधु बनने का विचार त्याग दिया। वह व्यक्ति मोम के गोले जैसा था। सूर्य का थोड़ा-सा ताप लगा और पिघल गया।
शेष तीन व्यक्ति घर पहुंचे। उन्होंने माता-पिता के सामने साधु बनने की बात कही। माता-पिता उपालंभ की भाषा में बोले-- 'खबरदार! आज के बाद कभी साधुओं के स्थान पर नहीं जाना है। उनका तो काम ही लोगों को बहकाना है। साधु बनना था तो विवाह क्यों किया? अपनी पत्नी को साथ लो और निकल जाओ घर से।' तीन में से एक व्यक्ति घबरा गया। उसने अपना विचार बदल लिया। वह व्यक्ति लाख के गोले जैसा था। सूर्य के ताप से वह नहीं पिघला, पर अग्नि का ताप लगते ही पिघल गया।
दो व्यक्ति माता-पिता को समझाकर अपनी-अपनी पत्नी के पास गए। दोनो पत्नियां धर्मतत्त्व से अनभिज्ञ थीं। पति द्वारा साधु बनने की बात कहते ही उन्होंने कहा-- 'साधु ही बनना था तो हमें क्यों बर्बाद किया? बच्चे पैदा क्यों किए? संभालो अपना घर और बच्चे।' यह बात सुन वे मौन रहे तो उन्होंने आत्महत्या की धमकी दे डाली। एक व्यक्ति ने घुटने टेक दिए। वह काष्ठ के गोले जैसा था। सूर्य और अग्नि के ताप से नहीं पिघला, पर अग्नि में जलकर भस्मीभूत हो गया।
चौथा व्यक्ति न आलोचना से सहमा, न उपालंभ से घबराया और न धमकी के सामने झुका। उसने सबको शांति से समझाया। उनके प्रश्नों के उत्तर दिए। अपने वैराग्य को कसौटी पर कसकर वह साधु बन गया। वह व्यक्ति मिट्टी के गोले जैसा था। सूर्य एवं अग्नि के ताप से नहीं पिघला, अग्नि में डालने पर भी नहीं जला किंतु आग में तपकर और अधिक मजबूत हो गया।
संस्कारहीन साधक बड़ों के अनुशासन को सहन नहीं कर पाते। वे मोम, लाख और काष्ठ के गोलकों की तरह अपनी साधना को ही छोड़ देते हैं। संस्कारी साधक मिट्टी के गोलक की तरह अनुशासन को सहकर और अधिक सुदृढ़ हो जाते हैं।
*विरोधी लोगों की उल्टी-सीधी बातें सुनकर भी आचार्य भिक्षु अशांत नहीं होते थे। ऐसे अनेक प्रसंग उनके जीवन के हैं।* एक प्रसंग हम पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 39* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*श्रुत-शार्दुल आचार्य शय्यंभव*
गतांक से आगे...
शय्यंभव चतुर्दश पूर्वधर आचार्य थे। उन्होंने अल्पायुष्क मुनि मनक के लिए पूर्वों से दशवैकालिक सूत्र का निर्यूहण किया। इस सूत्र के दस अध्ययन हैं। इसमें मुनि-जीवन की आचार-संहिता का निरूपण है। यह सूत्र नवीन साधकों के लिए उपयोगी है।
भद्रबाहु की दशवैकालिक निर्युक्ति के अनुसार इस सूत्र के चतुर्थ अध्ययन का निर्यूहण आत्मप्रवाद पूर्व से, पंचम अध्ययन का निर्यूहण कर्मप्रवाद पूर्व से, सप्तम अध्ययन का निर्यूहण सत्य-प्रवाद पूर्व से अवशिष्ट अध्ययनों का निर्यूहण नवमें प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय वस्तु से हुआ है।
निर्युक्ति की गाथाएं इस प्रकार हैं
*आयप्पवायपुव्वा निज्जूढा होइ धम्मपन्नत्ती।*
*कम्मप्पवायपुव्वा पिंडस्स एषणा तिविहा।।*
*सच्चप्पवायपुव्वा निज्जूढा होई वक्कसुद्धीउ।*
*अवसेसा निज्जूढा नवमस्स उ तइयवत्थूओ।।*
*(दशवैकालिकनिर्युक्ति, गाथा 16, 17)*
दशवैकालिक आगम से संयुक्त रईवक्का और विवित्तचर्या नामक दो चूलिकाएं हैं। संयम में अस्थिर मुनि को स्थिर करने के लिए इन चूलिकाओं का स्वाध्याय सुदृढ़ आलंबन भूत बनता है।
ये दोनों चूलिकाएं इस आगम के साथ बाद में संबद्ध की गईं। आचार्य शय्यंभव ने दशवैकालिक के दस अध्ययनों का ही निर्यूहण किया था।
परिशिष्ट पर्व आदि ग्रंथों में दीक्षा ग्रहण के समय मनक की आयु आठ वर्ष की मानी गई है, अतः मनक की दीक्षा एवं दशवैकालिक सूत्र रचना का समय वी. नि. 72 (वि. पू. 398) संभव है। आचार्य प्रभव का स्वर्गवास वी. नि. 75 (वि. पू. 395) में हुआ था। इस आधार पर मनक की दीक्षा एवं दशवैकालिक आगमरचना के समय आचार्य प्रभव की विद्यमानता सिद्ध होती है।
प्रस्तुत संदर्भ में एक बिंदु विशेष चर्चनीय बन जाता है। वह यह है मुनि मनक की दीक्षा ग्रहण के समय एवं दशवैकालिक रचना के समय प्रभव के विद्यमान होने पर भी आचार्य प्रभव और मनक से संबंधित किसी प्रकार का प्रसंग परिशिष्ट पर्व आदि ग्रंथों में नहीं है।
मुनि मनक को श्रुतधर शय्यंभव के सानिध्य का लाभ दीर्घ समय तक प्राप्त न हो सका। संयम पर्याय के छह महीने ही बीते थे, मुनि मनक का स्वर्गवास हो गया।
शय्यंभव श्रुतधर थे, पर वीतराग नहीं थे। पुत्र-स्नेह उभर आया। उनकी आंखें मनक के मोह में गीली हो गईं। यशोभद्र आदि मुनियों ने उनसे खिन्नता का कारण पूछा। श्रुतधर शय्यंभव ने बताया "यह मेरा संसारपक्षीय पुत्र था। पुत्र-मोह ने मुझे विह्वल कर दिया है। यह बात पहले श्रमणों के द्वारा जानने पर श्रुतधर पुत्र समझ कर कोई इससे परिचर्या नहीं करवाता और यह सेवा धर्म के लाभ से वंचित रह जाता, अतः इस भेद को आज तक मैंने श्रमणों के सामने उद्धाटित नहीं किया।" श्रुतधर शय्यंभव की गंभीरता पर श्रमण आश्चर्यचकित रह गए।
आचार्य प्रभव के स्वर्गवास के बाद श्रुतधर शय्यंभव ने धर्मसंघ का दायित्व संभाला। वीतराग-शासन की उन्होंने व्यापक प्रभावना की। स्वयं से अधिक परिचित यज्ञनिष्ठ ब्राह्मणों को यज्ञ का अध्यात्म रूप समझाकर उनको जैनधर्म के अनुकूल बनाया तथा नाना प्रकार से जैन शासन की श्रीवृद्धि की।
*समकालीन राजवंश, अध्यात्म का ऊर्ध्वारोहण, समय संकेत, आचार्य काल आदि...* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*
अनुक्रम - *भीतर की ओर*
*सौरमंडल और ग्रन्थितन्त्र*
ग्रहों का प्रभाव भौतिक जगत के पदार्थ अणुओं पर भी पडता है और चेतन जीवाणुओं पर भी । इसी प्रकार हमारे शरीर के क्रिया - क्लाप पर ही नहीं, भाव संस्थान पर भी ये ग्रन्थियां प्रभाव डालती है ।
ग्रह --- ग्रन्थि (Gland)
सुर्य ---- पाइनियल
चन्द्र ---- पिट्युइटरी
बहस्पति--- एड्रिनल
बुध----- थाइराइड
शुक्र ----- थायमस
मंगल----- पेराथाइराइड
सौरमंडल के ग्रहों और शरीरगत हार्मोंस की प्रकृति की तुलना करते हुए यह संगीत बिठाई गई है ।
26 अप्रैल 2000
प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*
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