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झारखण्ड के मुख्यमंत्री ने "पारसनाथ" (श्री सम्मेद शिखर जी) और कौलेश्वरी ("जैन कोल्हुआ पहाड़") को स्वदेश दर्शन स्कीम के अंतर्गत "आध्यात्मिक सर्किट" के रूप में विकसित करने हेतु प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा है!:) #Parasnath #ShikharJi #SammedShikhar
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आगे आगे अपनी अर्थी के मैं गाता चलूँ,
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है,
पीछे पीछे दूर तक दिख रही जो भीड़ है,
पंछी शाख से उड़ा, खाली पड़ा नीर है,
शक्ति सारी देख ले, पर्याय ही अनित्य है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है।२।
जिनको मेरे सुख दुखों से कुछ नहीं था वास्ता ।
उनके ही कांधों में मेरा कट रहा है रास्ता,
आँख जब मुंदी तो कोई शत्रु है न मित्र है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है।२।
डोरियों से में बंधा नहीं यह मेरा संस्कार था ।
एक कफ़न पर मेरा रह गया अधिकार था,
तुम उसे उतार ने जा रहे यह सत्य है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है।२।
आपके अनुराग को आज यह क्या हो गया,
मैं चिता पर चढ़ा महान कैसे हो गया,
सत्य देख हँस रहा की जल रहा असत्य है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है।२।
आपके ही वंश से भटका हुआ हूँ देवता,
आत्म तत्त्व छोड़ कर में जगत को देखता,
यह अनादि काल की भूल का ही करत्य है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है
आगे आगे अपनी अर्थी के में गाता चलूँ
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।
~समाधिस्थ मुनि श्री क्षमासागर जी की सबसे प्रिय पंक्तिया जिन्हें वे हमेश गुनगुनाया करते थे:)
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आज आचार्य श्री विद्यासागर जी का उपवास हैं.. must read:)
ये पेज 50,000 Likes cross कर रहा हैं.. जैन धर्मं का 'अनेकान्तवाद' नाम से एक सिद्धांत हैं जिससे समस्यायों का Solution होता हैं इसी Solution को आचार्य विद्यासागर जी ने मूक-माटी महाकाव्य में Explain किया हैं आओ समझे.. और अपनी LIFE को Ideal अवस्था में ले जाने का प्रयास करले:) आचार्य श्री समझाने का प्रयास करते हैं की जो व्यक्ति सिर्फ अपने को 'ही' सब कुछ समझता हैं, दुसरे को तुच्छ समझता हैं निचा समझता हैं, और सोचता हैं जो मैं करता/सोचता हूँ वह 'ही' सत्य हैं दुसरे जो सोचते/करते हैं वो गलत हैं उस व्यक्ति की समझ अभी सही नहीं हैं! *दूसरी और एक व्यक्ति जो कहता हैं हम 'भी' सही सोचते हैं तथा दूसरा व्यक्ति 'भी' [ उसका नजरिया ] सही हो सकता हैं वो व्यक्ति हमेशा शांत तथा सुलझा हुआ रहता हैं और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ जाता हैं:)
भेट हो 'भी' से.... न की 'ही' से... [ मूक-माटी महाकाव्य से ली गयी पंक्तिया ]
'ही' एकान्त्वाद का समर्थक है
'भी' अनेकांत, स्यादवाद का प्रतिक है ।
हम 'ही' सब कुछ है
यु कहता है 'ही' सदा,
तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो!
और,
'भी' का कहना है की
हम 'भी' हैं
तुम 'भी' हो
सब कुछ!
#vidyasagar #Mookmati