ShortNews in English
Jasol: 26.11.2012
Acharya Mahashraman said that Dhrama is invaluable and nobody can buy it from money. Dhrama can be performed if we stay away from raga and dvesha.
News in Hindi
जहां राग व द्वेष है वहां धर्म नहीं होता- आचार्य श्री महाश्रमण
जसोल(बालोतरा) 26 नवम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
धर्म को एक शब्द में बताना हो या धर्म का सार बताना हो तो उसे समता शब्द के माध्यम से बताया जा सकता हैं। जहां राग व द्वेष है वहां धर्म नहीं होता। यह उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने रविवार को तेरापंथ भवन स्थित वीतराग समवसरण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि धर्म तो अमूल्य द्योतक है। धर्म को खरीदना संभव नहीं है। कोई कह दे कि मैं करोड़पति हूं और धर्म को खरीद लूंगा तो वह संभव नहीं लगता। धर्म अपने आप में एक अमूल्य निधि है। फिर भी व्यवहारिक रूप में हम देखें कि धर्म का क्या लाभ हो सकता है। मूल्य का मतलब कुछ यूं समझें कि धर्म का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ये आपकी चेतना को निर्मल बनाता है। हमारी चेतना अनंत काल से मलीन है, उस चेतना को पवित्र करने का एक मात्र उपाय है धर्म की साधना। निर्झरा की साधना और धर्म की साधना से चेतना निर्मल बनती है। जब चेतना निर्मल बनती है तो व्यक्ति के दु:ख दूर होते हैं। दु:ख का कारण है चेतना की मलीनता और उसके विपरीत सुख का कारण है चेतना की निर्मलता।
उन्होंने कहा कि धर्म का अगर सबसे बड़ा लाभ है वो निर्मलता की प्राप्ति। इसी से चेतना निर्मल हो जाती है। वह दु:खों से संपूर्णतया मुक्त होकर मोक्ष में विराजमान हो जाती है। धर्म एक साधन है और इसका अंतिम साध्य है मोक्ष। धर्म का सार या धर्म को प्रतिबिम्बित करने वाला शब्द है समता। अगर समता जीवन में है तो समझो धर्म जीवन में है। समता का पालन नहीं करने से व्यक्ति का मान-सम्मान कम होगा। पक्ष-पात न हो। आप निष्पक्ष चिंतन करें। निष्पक्ष फैसला दें। निष्पक्ष भावना से किसी बात का सही या गलत होने का निर्णय करे। आचार्य ने कहा कि जो न्यायाधीश होता है, उसका धर्म है कि वो समता भाव से फैसला दे। न्यायाधीश अगर विषमता कर दे तो वह न्यायाधीश के धर्म से विमुख होता है। न्याय के सिंहासन पर बैठने वाला व्यक्ति समता के साथ निर्णय दे, जो सही फैसला हो, यही उसका धर्म है। समता धर्म है और धर्म का यह पारिवारिक मूल्य है कि परिवार में शांति रहना, परिवार में अनुशासन रहना। यह तभी संभव है जब परिवार में समता का भाव रहे तथा परिवार में अगर समता धर्म है तो साज में अहिंसा की भावना का विकास होगा। कार्यक्रम से पूर्व मुनि दिनेश कुमार ने आगमवाणी प्रस्तुत की। धर्म सभा में जोधपुर के भंडारी परिवार मोहनलाल भंडारी की स्मृति सभा भी रखी गई। स्व. मोहनलाल भंडारी जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति थे। उनका परिवार आचार्य के दर्शन के लिए जसोल पहुंचा। कार्यक्रम में मंत्री मुनि सुमेरमल लाडनूं ने विचार व्यक्त करते हुए उन्हें समर्पित, ईमानदार कार्यकर्ता एवं धर्मप्रेमी बताया।