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Jasol: 03.08.2012
Acharya Mahashraman said that festival of Raksha Bandhan is symbol of sweet relation between brother and sister. He told that culture is our sister and it duty of all of us to protect culture.
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रिश्तो में मिठास घोलता है रक्षाबंधन पर्व: आचार्य महाश्रमण
रिश्तो में मिठास घोलता है रक्षाबंधन पर्व: आचार्य महाश्रमण
जसोल(बालोतरा) ०२ अगस्त जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने रक्षाबंधन को भाई-बहन का पवित्र संबंध दर्शाने वाला पर्व बताते हुए कहा कि यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करने वाला है। बहन भाई के हाथ पर राखी बांधकर उसे अपनी रक्षा के दायित्व का स्मरण करवाती है। उन्होंने कहा कि संस्कृति बहन है और हम सभी का दायित्व है कि मर्यादित व जागरूक बनकर उसकी सुरक्षा करें। आचार्य महाश्रमण गुरुवार को जसोल में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि भारतीय लौकिक पर्वों में रक्षा संबंधों की स्मृति कराने वाला यह रक्षाबंधन है।
यह अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने का त्योहार है। यह रिश्तों में मिठास व पवित्रता का अहसास कराने वाला पर्व है। उन्होंने कहा कि समाज, परिवार व हर जगह पवित्रता रहे तो विकार खत्म हो सकते हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ में कन्या मंडल की ओर से चौबीसी का संगान किया गया। मुनि विजयकुमार ने 'राखी बांधों रे श्रद्धा री' गीत प्रस्तुत किया। प्रीति लोढ़ा की ओर से पारमार्थिक शिक्षण संस्थान में प्रवेश की अर्ज पर आचार्य ने अनुमति प्रदान की। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।
सैनिकों को संदेश: आचार्य ने देश की सेवा के लिए हर पल तैयार सैनिकों से कहा कि सैनिकों में राष्ट्र रक्षा की प्रबल भावना होनी चाहिए। सैनिक के लिए देश रक्षा में शहीद हो जाना भी गौरव की बात है और विजय-ध्वज फहरा देना भी गौरव की बात। पर अगर वह भगोड़ा बन जाए या देश की रक्षा से पीछे हट जाए तो यह लज्जा की बात है। यह सैनिक के स्वाभिमान के प्रतिकूल है। उन्होंने कहा कि रक्षा के लिए होने वाली हिंसा आवश्यक हिंसा है, यह प्रतिरक्षात्मक हिंसा है। यहां दुश्मन को मारने के उद्देश्य से नहीं, देश की रक्षा के लिए वार किया जाता है। भाई भी अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए बहन के शील, चारित्र व जीवन की रक्षा करें।
भारत की निधि संस्कृत: आचार्य ने संस्कृत दिवस के अवसर पर कहा कि संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति की दृष्टि से महत्वपूर्ण भाषा है। अनेक प्राचीन ग्रंथ, टीकाएं, रचनाएं संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं।
यह भारत की निधि है। आचार्य ने संस्कृत भाषा के उत्थान की प्रेरणा देते हुए कहा कि भारत को समझने के लिए संस्कृत भाषा का अध्ययन सहायक सिद्ध हो सकता है। इस भाषा का जीवित रहना आवश्यक है। इसलिए इसका भी अध्यापन चलता रहे, यह अपेक्षा है।