08.04.2012 ►Kishanganj ►Mahavir Jayanti Celebrated in Kishanganj

Published: 09.04.2012
Updated: 21.07.2015

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Kishanganj: 08.04.2012

Mahavir Jayanti Celebrated in Kishanganj.

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2638वीं महावीर जयंती पर भव्य जुलूस
Updated on: Wed, 04 Apr 2012 Jain Terapnth News

2638वीं महावीर जयंती पर भव्य जुलूस

किशनगंज, एक संवाददाता: धर्मशाला रोड और महावीर मार्ग के बीच स्थित जैन मंदिर से बुधवार को सुबह के आठ बजे महावीर जयंती के अवसर पर एक भव्य जुलूस निकाला गया है। तेरापंथ मंडल के युवक बैनर में लिखे श्लोगन के माध्यम से लोगों को अहिंसा के पथ पर चलने की प्रेरणा देते हुए आगे बढ़ रहे थे। यह जुलूस दिगम्बर जैन मंदिर से निकलकर महावीर मार्ग, गांधी चौक, नेमचंद रोड, धर्मशाला रोड, कैल्टैक्स चौक, पूरबपाली होते हुए तेरापंथ व जैन भवन में पहुंचकर समाप्त हुआ। भव्य जुलूस में मुख्य रूप से त्रिलोक चंद जैन, भाग चंद जैन, अनिल सरावगी, राज कुमार छागरा, महावीर प्रसाद ठोलिया, पवन कुमार छागरा, दिलीप कुमार जैन, कंवरी लाल जैन, मुकेश जैन के अलावा जैन तेरापंथ युवा मंडल के सदस्यगण सहित सैकड़ों की संख्या में महिलाएं और पुरुष शामिल थे। इस मौके पर एक सवाल पर नप उपाध्यक्ष त्रिलोक चन्द्र जैन ने कहा कि भगवान महावीर अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्माचार्य के पालन पर विशेष बल दिया है। उनके संदेश में है केवल वही व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त कर सकता है जो इन तीनों व्रतों का पालन भली-भांति करता है ।

जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर महावीर स्वामी

जैन धर्म का जन्म वैदिक काल में ही हो चुका था, लेकिन इस धर्म को एक जन आंदोलन का रूप देने का श्रेय महावीर स्वामी को प्राप्त है। जैन परंपरा के अनुसार महावीर इस धर्म के 23 गुरुओं में गुरु तीर्थंकर कहलाए। जैन धर्म का प्रचार और प्रसार करने वाले महावीर जैन धर्म के 24 वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिला स्थित वैशाली के समीप कुंडग्राम में 600 ईसा पूर्व हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला देवी थी।

महावीर कब बने संन्यासी

30 वर्ष की आयु में महावीर गृह त्याग कर संन्यासी बन गए। वे वन में रहकर 12 वर्षो तक कठिन तपस्या करते रहे। इस कठोर तपस्या के बल पर ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई ।

कब-कब महावीर क्या कहलाए

जब महावीर सांसारिक बंधनों को तोड़कर माया मोह से छुटकारा पाए। तब वे नि‌र्ग्रन्थ कहलाए। जब वे अपने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त किए। तब वे जितेन्द्रीय कहलाए। बारह वर्ष की तपस्या के पश्चात जुम्मिक ग्राम के बाहर ऋषुपालिका नदी के तट पर जब उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई । उस समय वे अहत कहलाए। अंत में अपने जीवन की सभी कठिन समस्याओं का सामना करते हुए भी धर्म प्रचार में लगे रहे। तब वे महावीर कहलाए।

कहां-कहां हुआ धर्म प्रचार

ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर लगभग तीस वर्षो तक घूम घूम कर धर्म प्रचार करते रहे। मगध, कौशल, मिथिला, काशी जैसे अनेकों जगहों पर धर्म प्रचार के लिए पहुंचे ।

क्या हें जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत

सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्माचार्य। ये पांचों सिद्धांत पंचमय कहलाते हैं। लेकिन भगवान महावीर अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्माचार्य के पालन पा विशेष बल देते थे। केवल वही व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त कर सकता है जो इन तीनों व्रतों का पालन भली-भांति करें ।

Sources

ShortNews in English:
Sushil Bafana

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