10.11.2011 ►Kelwa ►Apply Sanyam in Life► Acharya Mahashraman

Published: 10.11.2011
Updated: 21.07.2015

Short News in English

Location: Kelwa
Headline: Apply Sanyam in Life► Acharya Mahashraman
News: Acharya Mahashraman addressed to devotees, teachers and asked them to apply Sanyam in life.

News in Hindi

सयंम से जीवन अलौकिकञ्ज -श्रावक समाज और अणुव्रत शिक्षकों से महाश्रमण ने कहा

सयंम से जीवन अलौकिकञ्ज

बुधवार को दैनिक प्रवचन में श्रावक समाज और अणुव्रत शिक्षकों से महाश्रमण ने कहा

केलवा १० नवबर २०११ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो

आचार्य महाश्रमण ने कहा कि नशामुक्ति अभियान से जहां लोगों के जीवन में नई ज्योति का उजियारा होगा, वहीं संयम से हमारा जीवन अलौकिक हो सकेगा। व्यक्ति को अपना जीवन सदैव संयम के प्रति सजग रखने की आवश्यकता है। इससे स्वयं और समाज का विकास होगा और देश प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा। आचार्य ने यह विचार यहां तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान बुधवार को उपस्थित श्रावक समाज और अणुव्रत शिक्षक संसद से जुड़े शिक्षकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति के जीवन में धर्म का थोड़ा सा अंश आता है तब उसका उद्धार हो जाता है। जब व्यक्ति अणुव्रत के सिद्धांतों को स्वीकार कर लेता है तो वह जीवन में संयम को स्वीकार कर लेता है। आचार्य तुलसी की ओर से प्रदत्त अणुव्रत को स्वीकार करने से व्यक्ति अपने जीवन में अच्छा परिवर्तन महसूस करता है। यह हमें जिंदगी का निर्वाह किस तरह से किया जाए, सिखाता है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में संयम का भाव जाग जाए तो शांति की बात सार्थक हो सकती है। सभी देशों में परस्पर वैमनस्य न हो, इसके प्रति जागरूकता रहनी चाहिए। उन्होंने व्यक्ति में नैतिकता की आवश्यकता प्रतिपादित करते हुए कहा कि उसे अपने जीवन में वीतरागता का विकास करना चाहिए। जो व्यक्ति स्थिर चित्त वाला होता है वह भावना का विकास करता है। चित्त मजबूती का परिचायक हैं। जो व्यक्ति इसे धारण करता है वह आत्मा का दिग्दर्शन करता है। जिस मनुष्य में राग और द्वेष की भावना नहीं है उसे स्थिर चित्त की प्राप्ति होती है और जो राग-द्वेष से परिपूर्ण होता है उसे स्थिर चित्त का आभास नहीं होता।

भक्ति साधना का प्रयोग करने की जरूरत: आचार्य ने कहा कि व्यक्ति को अपने जीवन में भक्ति साधना का प्रयोग करने की आवश्यकता है। यह भक्ति भगवान और अपने आराध्य के प्रति हो सकती है। जो व्यक्ति अपने स्वरूप का अनुसंधान करता है उसे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। भक्ति मन में व्याप्त अनेक प्रकार के विकारों को दूर करने का सशक्त माध्यम है।

जीवन का मूल अर्थ साधना:

आचार्य ने कहा कि जीवन का मूल अर्थ साधना है। हमारा जीवन संयमित है तो हम आत्मा की अनुभूति को प्राप्त कर सकते हैं। व्यक्ति के जीवन में संयम, क्रोध पर नियंत्रण और अहंकार की भावना नहीं है तो हम अनेक समस्याओं का बखूबी सामना कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि नशामुक्ति अभियान से कितने के जीवन में सुधार होगा। इसका अंदाजा स्वत: ही लगाया जा सकता है। शिक्षकों से आह्वान किया कि वे तुलसी जन्म शताब्दी को आगे फैलाने की योजनाएं बनाएं और संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम करने का प्रयास करें। अणुव्रत द्वारा स्वरोजगार की दृष्टि से प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि कोई भूखा नहीं रहे। शिक्षकों द्वारा अहिंसा प्रशिक्षण का कार्य किया जा रहा है। यह अच्छे पुरुषार्थ का फल है।


Sources

Jain Terapnth News

News in English: Sushil Bafana

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