Short News in English
Location: | Kelwa |
Headline: | Religion Is Like Soul And Sect Is Like Body ► Acharya Mahashraman |
News: | Sri Arjun Meghwal, M.P. from Bikaner told that Anuvrata is ideal code of conduct. Communal amity day is very important in present atmosphere. Acharya Mahashraman told that religion is like soul and sect is like body. He mentioned that in year 2002 Acharya Mahaprajna tried to meet all sects and convinced them to respect festival off all sects. Rath Yatra was celebrated peacefully due to his attempt. Acharya Mahaprajna wrote one book BHED ME CHHIPA ABHED and he tried to search similar points of different sect. Recent book of Acharya Mahashraman SUKHI BANO is also try to highlight good point of GITA and UTTRADHAYAYAN. |
News in Hindi
संप्रदाय शरीर, धर्म आत्मा -महाश्रमण ने तेरापंथ समवसरण में ‘सांप्रदायिक सौहार्द शिविर’ में कहा
संप्रदाय शरीर, धर्म आत्मा
आचार्य महाश्रमण ने तेरापंथ समवसरण में ‘सांप्रदायिक सौहार्द शिविर’ में कहा
Friday, 30 September
जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो केलवा
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि आज के परिवेश में परस्पर सौहार्द बनाए रखना आवश्यक है। संप्रदाय जहां एक लिफाफा है तो धर्म उसका मूल पत्र है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि संप्रदाय एक शरीर है तो धर्म उसकी आत्मा है। प्राय: यह दृष्टिगोचर होता है कि अनेक संप्रदायों के बीच डर व्याप्त होता हैं। इसलिए अभय की साधना करने की आवश्यकता है। यह हमें अहिंसक और निडर बनाती है।
आचार्य ने उक्त विचार तेरापंथ समवसरण में चल रहे चातुर्मास के दौरान अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत गुरुवार को आयोजित ‘सांप्रदायिक सौहार्द शिविर’ में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अनेक संप्रदायों में गुरु परंपरा चलती है। यह अच्छी बात है। अनेक मर्तबा इसकी अच्छाइयां भी सामने आती हैं। वर्ष 2002 में गुजरात राज्य के गोधरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान आचार्य महाप्रज्ञ का चातुर्मास संयोग से प्रमुख शहर अहमदाबाद में होना निर्धारित था। अनेक लोगों ने उस समय चातुर्मास नहीं करने का अनुरोध किया, लेकिन आचार्य श्री ने न केवल वहां चातुर्मास किया, बल्कि सभी संप्रदायों के प्रमुख प्रतिनिधियों को बुलाकर परस्पर बातचीत की और आपसी सौहार्द बरकरार रखने का प्रयास किया। इसी का परिणाम रहा कि जगन्नाथ रथयात्रा बिना किसी विघ्न के संपन्न हुई। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री की यह प्रेरणा हमें यह शिक्षा देती है कि किसी भी संप्रदाय के त्योहार अथवा पर्व के दौरान हम उसका सहयोग करें। यह संभव नहीं है, तो उसमें विघ्न डालने का प्रयास तो कतई न करें। आचार्य श्री ने कहा कि आज अनेक संप्रदाय हैं। उनके विचार अलग हैं, लेकिन शरीर के भीतर विद्यमान रक्त तो सबका लाल ही है। सभी संप्रदायों में अहिंसा को स्वीकार किया गया है।
नवनीत निकालने का प्रयास करें
जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो केलवा
कुछ सालों पहले गुरुदेव आचार्य तुलसी की एक पुस्तक आई थी। इसका नाम था ‘भेद में छिपा अभेद’। इसमें उल्लेख किया गया था कि हमें कभी वैमनस्यता का कारण नहीं वरन नवनीत निकालने का प्रयास करना चाहिए।
हम तटस्थ दृष्टि से मंथन करना चाहें तो इसके अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। अभी हाल ही में मेरी स्वयं की पुस्तक ‘सुखी बनो’ का अंक आया। इसमें उल्लेखित प्रसंगों में भी जैन आगमों और गीता के अध्यायों के बीच काफी समानता मिलती है। इसमें भेदात्मक दृष्टिकोण ही नहीं, अभेद की दिशा में भी काफी ध्यान दिया गया है।
साधना के साथ समन्वय का प्रयास हो:
मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि अणुव्रत सदैव इस बात पर जोर देता आया है कि किसी भी संप्रदाय अथवा धर्म का व्यक्ति अपनी मान्यता और परंपरा के अनुसार धर्म की उपासना और ध्यान में तल्लीन रहे। मन में हीनता और अवहेलना के भाव का जन्म होगा तो अपने आदर्श से नीचे गिरने की संभावना बन जाएगी।
अणुव्रत जीने की आदर्श आचार संहिता:
इस अवसर पर बीकानेर संसदीय क्षेत्र के सांसद अर्जुनराम मेघवाल ने सांप्रदायिक सौहार्द दिवस को आज के परिवेश में महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि जिस तरह से चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू होती है उसी तरह अणुव्रत भी जीवन जीने की आदर्श आचार संहिता है। अखिल भारतीय ब्रह्माकुमारी के सह संयोजक राजेंद्र व्यास ने काव्यात्मक शैली में अपनी बात कही।
आगंतुक अतिथियों का स्वागत व्यवस्था समिति के अध्यक्ष महेंद्र कोठारी, भोजनशाला संयोजक राजकुमार कोठारी ने किया। संयुक्त महामंत्री मूलचंद मेहता ने स्वागत भाषण दिया। कन्या मंडल और युवती मंडल ने मंगलगान प्रस्तुत किया। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।