Short News in English
Location: | Kelwa |
Headline: | Acharya Mahashraman Replied Question Students Of Alok School |
News: | Acharya Mahashraman told that mental development is good in present education system but for emotional development we need to apply Jeevan Vigyan. He advised studetns to follow way of honesty and morality. He told students to stay addict free in life. |
News in Hindi
भ्रष्टाचार उन्मूलन में क्या अन्ना का तरीका सही है?
Friday, August 19, 2011 Jain Terapnth News
आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में पहुंची आलोक स्कूल
सीधे संवाद में बच्चों ने की प्रश्नों की बोछार
आलोक स्कूल के बालक बालिका आज अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में पहुंचे। आचार्य महाश्रमण से बच्चों ने सीधा संवाद करते हुए प्रश्नों की बोछार कर दी। किसी ने भ्रष्टाचार उन्मूलन में अन्ना के तरीके सही है या नहीं तो किसी ने कहा भ्रष्टाचार अमीरों की वजह से है? किसी ने स्वयं की पहचान के सन्दर्भ में प्रश्न पूछे तो किसी ने भगवान के अस्तित्व पर प्रश्न किये। बच्चों, प्रश्नों का सहज रूप से जवाब देते हुए अणुव्रत अनुशास्ता ने कहा कि अगर किसी के द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाई जाति है तो वो सही है। यह आवाज उठनी चाहिए। भ्रष्टाचार का विरोध होना चाहिए। इस विरोध का तरीका अपना अपना होता है। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा, पर मैं भ्रष्टाचार के विरूद्ध में उचित तरीके से उठने वाली आवाज को सही मानता हूं। अन्नाजी आन्दोलन कर रहे है, ऐसे आन्दोलनों से भ्रष्टाचार के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ सकती है और भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है।
शांतिदूत आचार्य महाश्रमण ने बाल मन में भ्रष्टाचार के प्रति उठ रहे उग्र भावों को समझते हुए कहा कि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए जरूरी है व्यक्ति व्यक्ति जागे। व्यक्ति ईमानदारी के प्रति निष्टावान बने। अणुव्रत के छोटे छोटे नियमों को जागरूकता के साथ अपनाया जाएगा तो इस समस्या से निजात मिल सकती है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार केवल अमीरों की वजह से हो ऐसा नहीं है। जिसको जितना अवसर मिलता है वह उतना ही इसमें लिप्त हो जाता है। हो सकता हो अमीरों को ऐसे अवसर ज्यादा मिलते हो। आचार्यप्रवर ने स्वयं को भ्रष्टाचार से कैसे दूर रखें? प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि हमारे भीतर निष्टा प्रगाढ़ हो, संकल्प सुदृढ़ हो तो, जब प्रलोबभन मिलने का अवसर आता है तो हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे। इसीलिए प्रामाणिकता के प्रति निष्ठा का जागरण करना चाहिए
हर आत्मा में है परमात्मा बनने की शक्ति
आचार्य महाश्रमण ने भगवान को पाने के सन्दर्भ में की गई जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा कि हर आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है। जब हम राग द्वेष रूपी विकारों को खत्म कर देते है, उनको जीत लेते है तो स्वयं भगवान बन जाते है। राग द्वेष को जीतने के लिए साधना जरूरी है।
वर्तमान समय में इतनी सघन साधना नहीं है। परन्तु साधना करते करते हम मोक्ष के नजदीक पहुंच सकते है, जल्दी ही, बहुत कम जन्मों में ही परमात्मा बनने की अर्हता प्राप्त कर सकते है। स्वयं की पहचान के सन्दर्भ में पुछे गये प्रश्न पर आचार्यप्रवर ने कहा कि मनुष्य अनेक योनियों में भ्रमण करता है। जब वह सम्यक् श्रद्धा, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र को अपनाता है तब भव भ्रमण को कम करता है और सघन साधना कर जब मोक्ष प्राप्त कर लेता है तो स्वयं की पहचान अपने आप हो जाती है। उन्होंने भगवान द्वारा प्रार्थना न सुने जाने के सन्दर्भ में की गई जिज्ञासा पर कहा कि सुख दुःख के सन्दर्भ में ऐसा कोई भगवान नहीं है जो हस्तक्षेप करता हो। हमारी मान्यता के अनुसार भगवान किसी के साथ बूरा नहीं करते। अपनी आत्मा ही सुख दुःख की कर्ता होती है। वही भोक्ता होती है। व्यक्ति खुद को ही पुरूषार्थ करना होता है। वह पुरूषार्थ से दुःख को कम कर सकता है।
जीवन को स्वर्ग बनाने के गुर
शांतिदूत ने जीवन को स्वर्ग बनाने के गुर के सन्दर्भ में कहा कि नशामुक्ति, ईमानदारी सौहार्द का वातावरण एवं गरीबी न रहे तो जीवन स्वर्ग तूल्य हो सकता है। नशा वातावरण को नरक समान बना देता है। सौहार्द को खत्म कर देता है। आचार्य श्री महाश्रमण ने चिंता मुक्ति एवं क्रोध को कम करने के उपायों पर कहा कि चिंता नहीं चिंतन करना चाहिए। चिंता से क्या मिलेगा? मन को समझाना चाहिए। शांति से समाधान खोजना चाहिए। क्रोध से छुटकारा पाने के लिए सोते समय संकल्प करें गुस्सा नहीं करूंगा। फिर उठते ही संकल्प को दोहराएं और लम्बे श्वास का अभ्यास करें। ऐसा करने से क्रोध पर काबू पाया जा सकता है, चिड़चिड़ेपन को दूर किया जा सकता है।
चरित्रवान बनने के मानक तŸवों की चर्चा
आचार्य महाश्रमण ने आलोक स्कूल के विद्यार्थियों को संबोध देते हुए कहा कि बौद्धिक विकास हो रहा है। यह अच्छा है। परन्तु इसके साथ भावात्मक विकास भी होना चाहिए। इस विश्वास के लिए जीवन विज्ञान का प्रकल्प प्रस्तुत किया गया। यह शिक्षा विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करती है। इसके साथ विद्यार्थी को नैतिकता, ईमानदारी, चरित्र के प्रति निष्ठा जागनी चाहिए। चरित्रवान बनने के लिए जरूरी है विद्यार्थी अनैतिक तरीकों से परीक्षाओं में पास होने का मानस नहीं रखना चाहिए। श्रमशीलता होनी चाहिए और नशामुक्ति होनी चाहिए। आचार्य श्री ने इस मौके पर सभी विद्यार्थियों को नशामुक्ति का संकल्प दिया।
प्रथम लक्ष्य हो अच्छा इंसान बनना
अणुव्रत अनुशास्ता ने कहा कि विद्यार्थी जीवन में लक्ष्य निर्धारित करता। कोई डॉक्टर बनना चाहिता है तो कोई वकील, कोई इंजीनीयर तो कोई राजनेता। यह सब लक्ष्य अच्छे है पर सबसे पहला लक्ष्य अच्छा इंसान बनने का होना चाहिए। अणुव्रत मानव को मानव बनाने का, अच्छा इंसान बनाने का आंदोलन है। इसके छोटे छोटे नियम जीवन में स्वीकार कर जीवन का निर्माण कर सकते है। चरित्रवान बन सकते है। अणुव्रत के नियमों में भारतीय संस्कृति को, चरित्र की संस्कृति को जीवत रखने की अद्भुत क्षमता है।