09.08.2020 ►Acharya Mahashraman ►News

Published: 09.08.2020

Posted on 09.08.2020 18:14

🌸 *ज्ञान दर्शन चारित्र की आराधना करें : आचार्य महाश्रमण* 🌸

🌸 *पूज्य प्रवर ने ज्ञानार्थियो को दी ज्ञान व संस्कारों के विकास की प्रेरणा* 🌸

*9 अगस्त 2020, रविवार, महाश्रमण वाटिका, हैदराबाद*

परम पूज्य परम वंदनीय राष्ट्रसंत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने ठाणं व्याख्यान माला में आज भरत क्षेत्र के बारे में बताते हुए फरमाया कि ठाणं में कहा गया है आकाश अनंत है, आकाश के दो विभाग – एक लोकाकाश दूसरा अलोका-काश है | अनंत आकाश में लोकाकाश एक छोटा सा क्षेत्र है | परिवर्तन लोक ही में होता है अलोक में नहीं | लोक में एक है – भरत क्षेत्र व भरत क्षैत्र में अढाई द्वीप जिसके मध्य भाग में स्थित है जम्बू द्वीप जिसमें हम लोग रह रहे है | मनुष्य सिर्फ यहाँ ही पैदा होते है और कहीं नहीं होते लेकिन यहाँ अभी कोई तीर्थंकर नहीं है | महाविदेह क्षेत्र में तीर्थकर सदा विधमान रहते हैं | इसमें सात पर्वत व सात नदियाँ भी हैं जो पूर्वाभिमुख होकर लवण समुद्र में समाहित हो जाती है, यह जैन भूगोल के हिसाब से वर्णन है | इसके आगे लवण-समुद्र है | अढाई-द्वीप में दूसरा द्वीप है – धातकी-खंड जिसके सात पर्वत व सात नदियाँ पश्चिमाभिमुख होकर कालोध समुद्र में समाहित हो जाती है | आधा द्वीप है – पुष्कर द्वीप जिसके सातों पर्वत व नदियाँ पुष्कर समुद्र में समाहित हो जाती है | हमारा क्षैत्र ही धर्म क्षैत्र है जिसमें साधु-साध्वियां भी होती है व तीर्थंकर भी | इसमें रहकर हम धर्म साधना करते रहें | परिस्थितियाँ कैसी भी हो हम पर हावी न होने पाए | हम इनका लाभ उठाकर ज्ञान, दर्शन व चारित्र की आराधना करते रहें व विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लें |

आचार्य प्रवर ने ज्ञानशाला दिवस पर ज्ञानशाला के ज्ञानर्थियो को प्रेरणा देते हुए फरमाया की आदमी का परिपूर्ण आयुष्य लगभग 100 वर्ष का होता है। संस्कृत में श्लोक आता है कि सौ बरसों तक जिये, सौ बरसों तक देखे और सौ बरसों तक अच्छे रहें। इस जीवन की तीन अवस्थाएं है ,बालावस्था , जवानी की अवस्था व वृद्ध अवस्था। इनमें से आदमी को बालावस्था तो मिलती ही है ,भले युवावस्था या वृद्धावस्था प्राप्त न हो। हमारे साधु संस्था में 16 वर्ष तक की अवस्था एक तरह से बाल अवस्था है, यह एक हमारा नियम है। बालक और पालक दोनों का संबंध है, पालक का कर्तव्य है कि बालक ज्ञान और संस्कारों का अच्छा विकास करे । हमारे धर्म संघ में गुरुदेव तुलसी व आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी बाल अवस्था में ही दीक्षित हो गए।बालावस्था में साधु बन जाना यानी एक महान पथ का यात्री बन जाना एक दृष्टि से बहुत ही अच्छी बात है। बच्चों में अच्छे संस्कार आयें, उनका सम्यक सिंचन हो, यह काम्य है।जिससे आगे जाकर वे अच्छा कार्य कर सके फलवान बन सके।हमारे साधुओं में भी जो बाल मुनि है उनमें भी ज्ञान बढ़े, अच्छे संस्कार आए और विकास होता रहे।बच्चे तेरापंथ समाज, जैन समाज या जैनेतर समाज किसी भी समाज के हो, बच्चे तो बच्चे है, वे बाल है।हर बालक का ज्ञान और संस्कार इन दो दिशाओं में अच्छा विकास हो।हमारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ समाज में ज्ञानशाला चलती हैं यह ज्ञानशाला ज्ञान विकास का और संस्कार विकास का एक अच्छा माध्यम है। समाज में जगह जगह ज्ञानशालायें चलती है व उसमें बहुत सारे बच्चे ज्ञानार्जन करते है।समाज के कार्यकर्ताआे को ज्ञानार्थियों की संख्या को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए व जिन क्षेत्रों में ज्ञानशालायें नहीं चल रही है वहां ज्ञानशालायें शुरु करनी चाहिए।
ज्ञानशाला तेरापंथी महासभा का उपक्रम है, इससे पूरे देश की सभाएं व अन्य संस्थाएं जुड़ी हुई है ।आज ज्ञानशाला दिवस है।ज्ञानशाला ज्ञान का एक धार्मिक उपक्रम है। स्कूली शिक्षा लौकिक शिक्षा है और ज्ञानशाला की शिक्षा लोकोत्तर शिक्षा है।शिक्षा का बहुत महत्व है। ज्ञानशाला में प्रशिक्षिकाए अपना बहुत योगदान देती है व तेरापंथ महासभा व सभाएं, अभातेयुप, तेरापंथ महिला मंडल आदि का भी पूरा योगदान इसमें रहता हैं।
ज्ञानशाला तेरापंथ समाज का एक महत्वपूर्ण उपक्रम है और मैने बहुत बार देखा है बच्चों के ज्ञानार्जन पर बहुत ध्यान दिया जाता हैं। बाल पीढ़ी में ज्ञान और संस्कार पुष्ट हो व बालक प्रसन्न रहे तो उनमें विकास अच्छा हो सकता है।

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