Posted on 07.08.2020 20:12
🌸 *संगान भय-मुक्त व मधुर हो : आचार्य महाश्रमण* 🌸🌸 *पूज्य प्रवर ने की स्वरों के गुण एवं दोषों की व्याख्या* 🌸
*7 अगस्त 2020, शुक्रवार, महाश्रमण वाटिका, हैदराबाद*
अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य महाश्रमण जी जैन आगम ठाणं प्रवचन माला के अन्तर्गत नित नवीन ज्ञान प्रदान कर सभी को प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं इसी कड़ी में सात स्वरों की व्याख्या करते हुए कहा कि शास्त्र में प्रश्न किये गये है कि सात स्वर किनसे उत्पन्न होते है, गीत की जाति क्या है,गीत का उच्छवास काल कितना होता है, गीत के आकर कितने होते है ? ठाणं में सातों स्वरों का उत्पति स्थान - नाभि, गीत की जाति - रुदन, गीत का काल -उच्छवास व गीत का आकर मृदु, तीव्र व मंद बताया है | गीत के ६ दोष ध्यान देने योग्य है – १. भीत - भयभीत होकर गाना,जिसे स्टेज फिअर कह सकते हैं २. द्रुत - शीघ्रता से गाना ३. हर्श्व - शब्दों को लघु बनाकर गाना या मात्रा के अनुसार न गाना ४. उत्ताल यानि ताल के अनुसार न गाना ५. काक स्वर यानि कर्कश व कौवे की तरह गाना,कर्ण कटु गाना ६. नाक से गाना, यदि ऐसी आदत हो गई हो तो उस पर ध्यान देना | उसी के विपरीत गीत के आठ गुण भी उल्लेखित है १. पूर्ण अर्थात आरोह-अवरोह आदि परीपूर्ण होना २. रत – अच्छी लय,राग व गायन में तन्मयता ३. अलंकृत – विभिन्न स्वरों से सुशोभित होना ४. व्यक्त – शब्द व भाषा स्पष्ट हो ५. नियमित स्वर युक्त गाना ६. मधुर स्वर से गाना ७. वाध्य व गायन सामग्री का अनुगमन करना ८. कोमल लय से गाना।
आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि इसके अतिरिक्त आठ गुण ओर भी है – १. पूर्ण विशुद्ध २. कंठ फटे नहीं ३. शिरो विशुद्ध, सिर से उत्पन्न होकर भी नाक से न गाया जाय ४. मृदु, कोमल ५. रिधित ६. परबद्ध ७. समताल, पाद नर्तक ८. सातों स्वर सम हो | गीतकार की रचनाओं के लिए भी कुछ और निर्देश है – १. निर्दोष २. अर्थ युक्त, सार युक्त ३. हेतु युक्त ४. अलंकृत ५. उपनीत ६. सोपचार ७. परिमित ८. प्रिय, मधुर | छंद के तीन प्रकार है १. लघु गुरु समान हो २. अर्ध सम ३. सर्व विषम | भाषा का जो उल्लेख शास्त्रों में है वह है संस्कृत और प्राकृत, क्योंकि यह आगम व प्राचीन ऋषियों की वाणी है |कुल मिलाकर यह सात स्वरों का स्वर मंडल है। आज हिंदी, राजस्थानी, गुजराती व अन्य प्रांतीय भाषाओँ में भी गीत लिखे जाते है पर गुणवत्ता सबके लिए जरूरी है और गीत भगवान की भक्ति के लिए गाये जाए तो गीत की सुमधुरता अपने आप बढ़ जाती है।
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