30.01.2020 ►Acharya Mahashraman ►News

Published: 30.01.2020
Updated: 30.01.2020

Updated on 30.01.2020 17:34

🌸 156 वें मर्यादा महोत्सव का भव्य आगाज 🌸

🌸 महा महोत्सव का प्रथम दिन रहा सेवा के नाम 🌸

🌸 मुख्य अतिथि बाबा रामदेव ने कहा - तेरापंथ मेरा पंथ है 🌸

🌸 आचार्यवर ने की सेवा केंद्रों के लिए साधु-साध्वियों की नियुक्ति 🌸

🌸 सेवा के साथ प्रदान करे चित्त समाधि: आचार्य महाश्रमण 🌸

30-01-2020, गुरुवार, हुब्बल्ली, कर्नाटक

तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के 11 वें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में तेरापंथ के अति विशिष्ट महोत्सव 156 वें मर्यादा महोत्सव का भव्य आगाज हुआ। संस्कार नगर स्थित विशाल पांडाल में जैसे ही आचार्यवर के द्वारा नमस्कार महामंत्रोचार से कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ मर्यादा घोष से कार्यक्रम स्थल गुंजायमान हो उठा। सर्व प्रथम पूज्य महाश्रमण जी ने तेरापंथ के संस्थापक आचार्य श्री भिक्षु एवं मर्यादा महोत्सव शुभारंभ कर्ता श्रीमद् जयाचार्य आदि पूर्ववर्ती आचार्य परंपरा का श्रद्धा से स्मरण करते हुए मर्यादा पत्र को स्थापित किया। मुनि दिनेश कुमार जी ने मर्यादा घोष एवं गीत का संगान किया। इस अवसर पर सभी साधु-साध्वियों द्वारा सेवा में नियुक्त करने की भी अर्ज की गई।

मुख्य कार्यक्रम में मंगल देशना देते हुए ज्योतिचरण आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा कि मर्यादा व अनुशासन हर संगठन के लिए आवश्यक है। जहां मर्यादा का सम्मान नहीं होता वहां उस व्यक्ति या संगठन का भी सम्मान नहीं होता। जहां अनुशासन का मान नहीं होता, वहां उस व्यक्ति का भी मान नहीं होता। धर्मसंघ में सेवा का एक बड़ा महत्व है। सेवा एक-दूसरे को एक दूसरे से जोड़ने वाला तत्व है।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि सेवा के 3 आयाम है। पहला- किसी को कष्ट नहीं देना। व्यक्ति किसी का भला या सेवा न कर सके तो कष्ट भी ना दे। दूसरा- कम से कम सेवा लेना। जहां तक हो और शरीर में सामर्थ्य हो तो व्यक्ति कम से कम सेवा ले, कार्य करें। तीसरा- जब शरीर समर्थ हो तो व्यक्ति दूसरों का उत्थान करें, सेवा करें। अपना योगदान दें। सेवा से जीवन सार्थक बनता है। हम तेरापंथ में साधना कर रहे हैं। शरीर के साथ चित्त समाधि का भी महत्व है। सेवा करने के साथ-साथ हम सामने वाले के मन को, चित्त को भी प्रसन्न रखे।

आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि योग गुरु बाबा रामदेव जैसे ही मंच पर पहुंचे उन्होंने शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी को वंदन कर परिषद में कहा कि यह केवल आपके ही नहीं सबके गुरु हैं। मेरे लिए भी श्रद्धेय है। मैंने आचार्य महाप्रज्ञ जी के साहित्य को पढ़ा, उनके दर्शन किए। आचार्य महाश्रमण जी में मानों अपनी सारी गुरु परंपरा के गुण विद्यमान है। मुझे मर्यादा महोत्सव में आने का अवसर मिला। संघ की महानता अनुशासन में है। तेरापंथ का मूल मर्यादा-अनुशासन है। यहां आकर ऐसी सन्निधि में बिना सुने ही चित्त समाधि हो जाती है। संस्कार चैनल पर आचार्य जी का प्रवचन आता है मैं भी कई बार उसे सुनता हूं। रामदेव जी ने आगे कहा कि आचार्य महाश्रमण जी शहर में हो तो मुझे बुलाने की भी जरूरत नहीं केवल सूचना ही काफी है। यहां के दिव्य वातावरण से मैं अभिभूत हूं। योग गुरु बाबा बाबा रामदेव ने आगे कहा कि तेरापंथ मेरा पंथ है।

कार्यक्रम में असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी, मुख्य नियोजका साध्वी श्री विश्रुतविभा जी ने भी सेवा की महत्ता बताई। मुनि कुमारश्रमण जी, साध्वी श्री जिनप्रभा जी ने वक्तव्य प्रदान किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था की मुमुक्षु बहनों एवं उपासकगणों ने सामूहिक गीत का संगान किया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष हुब्बल्ली महेंद्र पालगोता आदि ने अपने विचार रखे।

इस अवसर पर जैन विश्व भारती लाडनूं द्वारा आचार्य महाप्रज्ञ जी की नवीन पुस्तक 'रहो भीतर जियो बाहर',:संघ महान क्यों?', आचार्य महाश्रमण जी की पुस्तक '3 बाते ज्ञान की', मुख्य नियोजिकाजी द्वारा लिखित कृति Social Implication of Jain Doctrains, शासन समुद्र, जैन विद्या विज्ञ डिरेक्ट्री 1990-2016 व जय तिथि पत्रक पूज्यचरणों में उपरित की गई।

हुब्बल्ली - 156 वें मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिवस पर परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा सेवा केंद्रों की की घोषणा
संतो के सेवा केंद्र
लाडनूं:- मुनि सुमतिकुमार जी
छापर:- मुनि सुविधि कुमार जी
सतियों के सेवा केंद्र
लाडनूं:- साध्वी संयमश्रीजी और साध्वी प्रशन्नयशाजी
गंगाशहर:- साध्वी बसंतप्रभाजी और साध्वी प्रतिभाश्रीजी
बीदासर:- साध्वी संघप्रभाजी और साध्वी मंजुयशाजी
श्रीडूंगरगढ़:- साध्वी कनकरेखाजी और साध्वी सुरजप्रभा जी
उपसेवा केंद्र हिसार:- साध्वी कुन्थश्री जी

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Updated on 30.01.2020 11:42

हुब्बल्ली - 156 वें मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिवस पर परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा सेवा केंद्रों की की घोषणा

संतो के सेवा केंद्र
लाडनूं:- मुनि सुमतिकुमार जी

छापर:- मुनि सुविधि कुमार जी

सतियों के सेवा केंद्र
लाडनूं:- साध्वी संयमश्रीजी और साध्वी प्रशन्नयशाजी

गंगाशहर:- साध्वी बसंतप्रभाजी और साध्वी प्रतिभाश्रीजी

बीदासर:- साध्वी संघप्रभाजी और साध्वी मंजुयशाजी

श्रीडूंगरगढ़:- साध्वी कनकरेखाजी और साध्वी सुरजप्रभा जी

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Terapanth is a religious sect of Śvētāmbara Jainism. It was founded by Muni Bhikhan (Bhikshu Swami), who later became Acharya Bhikshu.Bhikshu was originally...

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