Updated on 30.01.2020 08:11
*प्रेरणा पाथेय:-आचार्य श्री महाश्रमणजी - 29 January 2020, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी**संप्रसारक: 🌻संघ संवाद*🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 243* 📜
*आचार्यश्री रायचन्दजी*
*प्रभावशाली आचार्य*
*हम भी देख लें*
ऋषिराय की प्रकृति में अन्य अनेक भावों के साथ सरलता की भी विचित्र पुट थी। वे किसी का मन तोड़ना पसंद नहीं करते थे, अतः दूसरा जो भी कहता, वह उन्हें सहज ही स्वीकार हो जाता। इस प्रवृत्ति से कई बार उन्हें ऊहापोह का पात्र भी बनना पड़ा।
एक बार चतुर्मास के पश्चात् ऋषिराय राजनगर में विराज रहे थे। साधु-साध्वियों के अनेक सिंघाड़े गुरु-दर्शनार्थ वहां आये हुए थे। मुनि हेमराजजी भी पधारने वाले थे। वे पधारते तब प्रत्येक बार ऋषिराय दूर तक उनके सामने जाकर वंदन करते और बड़े आदरपूर्वक उन्हें लाया करते थे। उस दृश्य को देखने के लिए आस-पास के अनेक गांवों के लोग एकत्रित हो गये। परन्तु इस बार ऋषिराय सामने नहीं पधारे। मुनि हेमराजजी ठहरते-ठहरते स्थान पर पहुंचकर पट्टासीन हो गये तब ऋषिराय ने पट्ट पर बैठे-बैठे ही वंदन कर लिया।
सामने न पधारने के कारणों को लेकर लोगों में विविध विकल्प उभरे और परस्पर ऊहापोह होने लगा। जसराजजी मारू ने ऋषिराय को उपालंभ की भाषा में कहा— 'आपने यह क्या किया? सामने पधारते तो लोगों के मानसिक उल्लास को कितना बल मिलता और कितने कर्म कटते?'
मुनि जीतमलजी (जयाचार्य) वहीं पास में खड़े थे। उन्होंने जसराजजी को टोकते हुए कहा— 'आचार्य की इच्छा हो तो सामने जाएं और इच्छा न हो तो न भी जाएं। इस विषय में तुम गृहस्थों को बीच में पड़ने की क्या आवश्यकता है?' मुनि जीतमलजी के उस कथन को सुनकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे सोचते थे कि ये तो मुनि हेमराजजी के पक्ष में ही बोलेंगे, परन्तु अब पता लगा कि ये तो ऋषिराय का पक्ष ले रहे हैं। कई लोगों ने तब कहा— 'हम लोग ही इधर-उधर की बातें सोच रहे हैं, परन्तु ये सब तो एक हैं।'
कुछ समय पश्चात् जब लोग चले गये और एकान्त हुआ तो मुनि जीतमलजी ने ऋषिराय से निवेदन किया— 'आपको पट्ट से नीचे उतर कर वन्दन कर लेना चाहिए था।'
ऋषिराय ने अपनी भावना का स्पष्टीकरण करते हुए कहा— 'इतना ही क्यों? मैं तो अनेक बार सामने गया हूं और आगे भी जाता रहूंगा। इस बार तो इस 'कालकी'— साध्वी चतरूजी (क्र. 65)— के कहने से नहीं गया। साध्वियों का आग्रह था कि आप यहीं विराजे रहें तो हम भी यह 'भरत-मिलाप' देख लें।
*रुख बदल लिया*
ऋषिराय जहां निर्भय और साहसी थे, वहां अवसर आने पर स्वयं को बदल लेना एवं झुका लेना भी जानते थे। एक बार एक साध्वी को किसी विषय पर उपालंभ देते समय उन्होंने कोई ऐसा शब्द कह दिया जो उसके मन को ठेस पहुंचा गया। वह आक्रोश से भर गई। अन्य साध्वियों को भी उसने उभारा। फलतः 14 साध्वियों ने संघ से पृथक् होने का निर्णय कर लिया।
ऋषिराय को जब उस स्थिति का पता चला तो वे बहुत चिंतित हुए। वे नहीं चाहते थे कि उनके किसी कथन के मूल भाव को न समझने या अन्यथा समझने के कारण संघ में कोई विक्षोभ उत्पन्न हो। उन्होंने बिगड़ने के किनारे तक पहुंची उस स्थिति को संभालने के लिए अपने रुख को एकदम मोड़ दे दिया। मुनि सरूपचंदजी को साथ लेकर वे तत्काल साध्वियों के स्थान पर पधारे और उन सबसे बातचीत करके उनके रोष को शांत कर दिया।'
*ऋषिराय के शासनकाल में साध्वियों पर आए एक संकट की घटना... व ऋषिराय की अनुशासन के प्रति सजगता...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 243* 📜
*आचार्यश्री रायचन्दजी*
*प्रभावशाली आचार्य*
*हम भी देख लें*
ऋषिराय की प्रकृति में अन्य अनेक भावों के साथ सरलता की भी विचित्र पुट थी। वे किसी का मन तोड़ना पसंद नहीं करते थे, अतः दूसरा जो भी कहता, वह उन्हें सहज ही स्वीकार हो जाता। इस प्रवृत्ति से कई बार उन्हें ऊहापोह का पात्र भी बनना पड़ा।
एक बार चतुर्मास के पश्चात् ऋषिराय राजनगर में विराज रहे थे। साधु-साध्वियों के अनेक सिंघाड़े गुरु-दर्शनार्थ वहां आये हुए थे। मुनि हेमराजजी भी पधारने वाले थे। वे पधारते तब प्रत्येक बार ऋषिराय दूर तक उनके सामने जाकर वंदन करते और बड़े आदरपूर्वक उन्हें लाया करते थे। उस दृश्य को देखने के लिए आस-पास के अनेक गांवों के लोग एकत्रित हो गये। परन्तु इस बार ऋषिराय सामने नहीं पधारे। मुनि हेमराजजी ठहरते-ठहरते स्थान पर पहुंचकर पट्टासीन हो गये तब ऋषिराय ने पट्ट पर बैठे-बैठे ही वंदन कर लिया।
सामने न पधारने के कारणों को लेकर लोगों में विविध विकल्प उभरे और परस्पर ऊहापोह होने लगा। जसराजजी मारू ने ऋषिराय को उपालंभ की भाषा में कहा— 'आपने यह क्या किया? सामने पधारते तो लोगों के मानसिक उल्लास को कितना बल मिलता और कितने कर्म कटते?'
मुनि जीतमलजी (जयाचार्य) वहीं पास में खड़े थे। उन्होंने जसराजजी को टोकते हुए कहा— 'आचार्य की इच्छा हो तो सामने जाएं और इच्छा न हो तो न भी जाएं। इस विषय में तुम गृहस्थों को बीच में पड़ने की क्या आवश्यकता है?' मुनि जीतमलजी के उस कथन को सुनकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे सोचते थे कि ये तो मुनि हेमराजजी के पक्ष में ही बोलेंगे, परन्तु अब पता लगा कि ये तो ऋषिराय का पक्ष ले रहे हैं। कई लोगों ने तब कहा— 'हम लोग ही इधर-उधर की बातें सोच रहे हैं, परन्तु ये सब तो एक हैं।'
कुछ समय पश्चात् जब लोग चले गये और एकान्त हुआ तो मुनि जीतमलजी ने ऋषिराय से निवेदन किया— 'आपको पट्ट से नीचे उतर कर वन्दन कर लेना चाहिए था।'
ऋषिराय ने अपनी भावना का स्पष्टीकरण करते हुए कहा— 'इतना ही क्यों? मैं तो अनेक बार सामने गया हूं और आगे भी जाता रहूंगा। इस बार तो इस 'कालकी'— साध्वी चतरूजी (क्र. 65)— के कहने से नहीं गया। साध्वियों का आग्रह था कि आप यहीं विराजे रहें तो हम भी यह 'भरत-मिलाप' देख लें।
*रुख बदल लिया*
ऋषिराय जहां निर्भय और साहसी थे, वहां अवसर आने पर स्वयं को बदल लेना एवं झुका लेना भी जानते थे। एक बार एक साध्वी को किसी विषय पर उपालंभ देते समय उन्होंने कोई ऐसा शब्द कह दिया जो उसके मन को ठेस पहुंचा गया। वह आक्रोश से भर गई। अन्य साध्वियों को भी उसने उभारा। फलतः 14 साध्वियों ने संघ से पृथक् होने का निर्णय कर लिया।
ऋषिराय को जब उस स्थिति का पता चला तो वे बहुत चिंतित हुए। वे नहीं चाहते थे कि उनके किसी कथन के मूल भाव को न समझने या अन्यथा समझने के कारण संघ में कोई विक्षोभ उत्पन्न हो। उन्होंने बिगड़ने के किनारे तक पहुंची उस स्थिति को संभालने के लिए अपने रुख को एकदम मोड़ दे दिया। मुनि सरूपचंदजी को साथ लेकर वे तत्काल साध्वियों के स्थान पर पधारे और उन सबसे बातचीत करके उनके रोष को शांत कर दिया।'
*ऋषिराय के शासनकाल में साध्वियों पर आए एक संकट की घटना... व ऋषिराय की अनुशासन के प्रति सजगता...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 242* 📜
*आचार्यश्री रायचन्दजी*
*प्रभावशाली आचार्य*
*अपने प्रति सत्य*
ऋषिराय अपनी साधना में बड़े सावधान व्यक्ति थे। कई बार उनकी सहज सावधानी ने लोगों के मन पर बड़ा तीव्र प्रभाव डाला था। एक बार वे मारवाड के मांढा गांव में पधारे। सायंकाल का समय था। ऋषिराय आहार से निवृत्त हो चुके थे। मुनिजन आहार कर रहे थे। आकाश में बादल घिर आये थे, इसलिए शीघ्र ही अंधेरा होने लगा। मकान में वृक्ष होने के कारण उस अंधेरे में कुछ वृद्धि और हो गई। संशय होने लगा कि कहीं सूर्यास्त तो नहीं हो गया है?
ऋषिराय स्वयं मकान की छत पर गये। वृक्ष की ओट आ जाने से सूर्य दिखाई नहीं दिया, तब वे उसकी भींत पर चढ़कर देखने लगे। पड़ोस के गृहस्थ नवलमलजी बोहरा ने जब उन्हें भीत पर चढ़े देखा तो संशय और आश्चर्य-मिश्रित भावों से पूछा— 'महाराज! आप इस छोटी भींत पर चढ़कर क्या देख रहे हैं?'
ऋषिराय ने कहा— 'संत आहार कर रहे थे और अंधेरा घिरने लगा, तब मुझे संदेह हुआ कि कहीं सूर्यास्त होने वाला तो नहीं है? यही देखने के लिए मैं भींत पर चढ़ा था।'
बोहराजी— 'यदि सूर्यास्त हो गया होता तो?'
ऋषिराय— 'तो आहार-पानी का परित्याग कर परिष्ठापन कर दिया जाता।'
ऋषिराय की उस सहज सावधानी ने नवलमलजी पर ऐसा प्रभाव डाला कि वे मुग्ध हो गये। उन्होंने उसी दिन समझा कि आत्मसाक्षी से स्वीकृत सत्यता का धर्माराधना में कितना बड़ा महत्त्व होता है। जो अपने प्रति सत्य होता है, वह अन्यत्र भी सत्य होता है। वह सारा परिवार तभी से श्रद्धालु बन गया।
*सत्य की विजय*
बोरावड़ के ठाकुर केसरीसिंहजी ऋषिराय के बड़े भक्त थे। एक बार उनके और कुचामन ठाकुर के परस्पर अनबन हो गई। कुचामन वालों ने बोरावड़ पर आक्रमण कर दिया। केसरीसिंहजी ने आक्रमण का सामना करने का निश्चय किया और अपने साहसी सैनिकों के साथ रण-क्षेत्र की ओर आगे बढ़े।
उन दिनों ऋषिराय वहीं ठहरे हुए थे। मार्ग में वह स्थान आया तो ठाकुर साहब ने अन्दर जाकर दर्शन किये। ऋषिराय ने रणसज्जा की उस आकस्मिक तैयारी का कारण पूछा तो ठाकुर साहब ने संक्षेप में सारी बात बतलाते हुए कहा— 'यदि जीवित रहे तो फिर दर्शन करेंगे।'
ऋषिराय ने बातचीत के सिलसिले में कहा— 'वास्तव में तो जो सर्वज्ञ ने देखा है वही होता है, परन्तु व्यवहार में कहा जाता है कि सत्य की सदा विजय होती है।'
ठाकुर साहब ने ब्रह्मचारी ऋषिराय के वचन को गांठ में बांधते हुए कहा— 'अब मुझे अपनी विजय में कोई संदेह नहीं है।'
सेना-सहित वे वहां से आगे बढ़े। युद्ध प्रारम्भ हुआ। थोड़ी देर के युद्ध में ही प्रतिपक्षी सेना का सेनापति ठाकुर केसरीसिंहजी की गोली से मारा गया। अवशेष सेना भाग खड़ी हुई। ठाकुर विजय का डंका बजाते हुए वापस आये और ससैन्य ऋषिराय के दर्शन कर कहने लगे— 'मेरे विजय का रहस्य यही है कि मेरा पक्ष सत्य था और 'सत्य की सदा विजय होती है' यह आपका वचन था।'
*ऋषिराय की प्रकृति में सरलता का भी विचित्र पुट था...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 242* 📜
*आचार्यश्री रायचन्दजी*
*प्रभावशाली आचार्य*
*अपने प्रति सत्य*
ऋषिराय अपनी साधना में बड़े सावधान व्यक्ति थे। कई बार उनकी सहज सावधानी ने लोगों के मन पर बड़ा तीव्र प्रभाव डाला था। एक बार वे मारवाड के मांढा गांव में पधारे। सायंकाल का समय था। ऋषिराय आहार से निवृत्त हो चुके थे। मुनिजन आहार कर रहे थे। आकाश में बादल घिर आये थे, इसलिए शीघ्र ही अंधेरा होने लगा। मकान में वृक्ष होने के कारण उस अंधेरे में कुछ वृद्धि और हो गई। संशय होने लगा कि कहीं सूर्यास्त तो नहीं हो गया है?
ऋषिराय स्वयं मकान की छत पर गये। वृक्ष की ओट आ जाने से सूर्य दिखाई नहीं दिया, तब वे उसकी भींत पर चढ़कर देखने लगे। पड़ोस के गृहस्थ नवलमलजी बोहरा ने जब उन्हें भीत पर चढ़े देखा तो संशय और आश्चर्य-मिश्रित भावों से पूछा— 'महाराज! आप इस छोटी भींत पर चढ़कर क्या देख रहे हैं?'
ऋषिराय ने कहा— 'संत आहार कर रहे थे और अंधेरा घिरने लगा, तब मुझे संदेह हुआ कि कहीं सूर्यास्त होने वाला तो नहीं है? यही देखने के लिए मैं भींत पर चढ़ा था।'
बोहराजी— 'यदि सूर्यास्त हो गया होता तो?'
ऋषिराय— 'तो आहार-पानी का परित्याग कर परिष्ठापन कर दिया जाता।'
ऋषिराय की उस सहज सावधानी ने नवलमलजी पर ऐसा प्रभाव डाला कि वे मुग्ध हो गये। उन्होंने उसी दिन समझा कि आत्मसाक्षी से स्वीकृत सत्यता का धर्माराधना में कितना बड़ा महत्त्व होता है। जो अपने प्रति सत्य होता है, वह अन्यत्र भी सत्य होता है। वह सारा परिवार तभी से श्रद्धालु बन गया।
*सत्य की विजय*
बोरावड़ के ठाकुर केसरीसिंहजी ऋषिराय के बड़े भक्त थे। एक बार उनके और कुचामन ठाकुर के परस्पर अनबन हो गई। कुचामन वालों ने बोरावड़ पर आक्रमण कर दिया। केसरीसिंहजी ने आक्रमण का सामना करने का निश्चय किया और अपने साहसी सैनिकों के साथ रण-क्षेत्र की ओर आगे बढ़े।
उन दिनों ऋषिराय वहीं ठहरे हुए थे। मार्ग में वह स्थान आया तो ठाकुर साहब ने अन्दर जाकर दर्शन किये। ऋषिराय ने रणसज्जा की उस आकस्मिक तैयारी का कारण पूछा तो ठाकुर साहब ने संक्षेप में सारी बात बतलाते हुए कहा— 'यदि जीवित रहे तो फिर दर्शन करेंगे।'
ऋषिराय ने बातचीत के सिलसिले में कहा— 'वास्तव में तो जो सर्वज्ञ ने देखा है वही होता है, परन्तु व्यवहार में कहा जाता है कि सत्य की सदा विजय होती है।'
ठाकुर साहब ने ब्रह्मचारी ऋषिराय के वचन को गांठ में बांधते हुए कहा— 'अब मुझे अपनी विजय में कोई संदेह नहीं है।'
सेना-सहित वे वहां से आगे बढ़े। युद्ध प्रारम्भ हुआ। थोड़ी देर के युद्ध में ही प्रतिपक्षी सेना का सेनापति ठाकुर केसरीसिंहजी की गोली से मारा गया। अवशेष सेना भाग खड़ी हुई। ठाकुर विजय का डंका बजाते हुए वापस आये और ससैन्य ऋषिराय के दर्शन कर कहने लगे— 'मेरे विजय का रहस्य यही है कि मेरा पक्ष सत्य था और 'सत्य की सदा विजय होती है' यह आपका वचन था।'
*ऋषिराय की प्रकृति में सरलता का भी विचित्र पुट था...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३९४* ~ *हमारा अस्तित्व: ५*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३९४* ~ *हमारा अस्तित्व: ५*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻