🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ३८६* ~ *जप और ध्यान: ९*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 फरीदाबाद - त्रिदिवसीय ज्ञानशाला शिविर का आयोजन
👉 सूरत ~ एक शाम महाप्रज्ञ के नाम
👉 उधना (सूरत) ~ एटीडीसी में सोनोग्राफी, ECHO - ECG मशीन का हुआ उद्घाटन
👉 टॉलीगंज - स्वस्थ तन स्वस्थ मन कार्यक्रम का आयोजन
👉 भीलवाड़ा ~ "एक शाम अणुव्रत के नाम"
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
👉 सूरत ~ एक शाम महाप्रज्ञ के नाम
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*प्रेरणा पाथेय:-आचार्य श्री महाश्रमणजी - 20 January 2020, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी*
*संप्रसारक: 🌻संघ संवाद*🌻
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🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 236* 📜
*आचार्यश्री रायचन्दजी*
*उत्तराधिकार-प्राप्ति*
*गृहस्थों द्वारा ऊहापोह*
मुनि रायचन्दजी को युवाचार्य पद प्रदान करने पर उस समय अनेक लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार का ऊहापोह किया गया। अनेक लोगों की धारणा थी कि यह पद मुनि खेतसीजी या मुनि हेमराजजी को दिया जाएगा, परन्तु जब मुनि रायचन्दजी को युवाचार्य नियुक्त कर दिया गया, तब उक्त समाचार सुनकर उन लोगों को आश्चर्य तो हुआ ही, एक अनावश्यक ऊहापोह भी उभरा।
चित्तौड़-निवासी हंसराजजी संचेती ने मुनि खेतसीजी के सम्मुख ही आचार्य भारमलजी से पूछा— 'हम तो सुनते थे कि मुनि खेतसीजी को युवाचार्य बनाया जाएगा। आपने रायचन्दजी को कैसे बना दिया?'
आचार्यश्री ने उसे उपालंभ देते हुए फरमाया— 'तुम गृहस्थों को इस पंचायत में पड़ने की क्या आवश्यकता है? हमारी आवश्यकता और कार्य-पद्धति के विषय में तुम क्या जानते हो? ये तो खेतसीजी और हेमराजजी जैसे आत्मार्थी साधु हैं, अन्यथा तुम गृहस्थ लोग तो परस्पर भेद डालने में ही तत्पर रहते हो।'
उक्त प्रकार के विचारों में अनेक गांवों के लोग सम्मिलित थे। हंसराजजी को तो वह प्रश्न उठाने के लिए केवल आगे किया गया था। ऐसे कार्यों में चतुर लोग कभी प्रत्यक्ष सामने नहीं आते। वे किसी अन्य को आगे रखकर पीछे से अपना खेल खेलते रहते हैं। इसीलिए ऊहापोह का वह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा।
*गोगुंदा से पत्र*
गोगुंदा के श्रावकों ने उस समय एक सामूहिक पत्र भेजा। उसमें स्थानीय 25 श्रावकों के हस्ताक्षर थे। उस पत्र के माध्यम से उन लोगों ने युवाचार्य रायचन्दजी को उपालंभ दिया था। उन्होंने लिखा— 'आप हमारे 'चोखले'— रावलियां के हैं, अतः अपना समझकर आपको यह पत्र लिखा गया है। मुनि हेमराजजी की विद्यमानता में आपको यह पद किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करना चाहिए था। इस पद के वास्तविक अधिकारी मुनि हेमराजजी ही हैं, अतः यह उन्हें ही मिलना चाहिए था।'
आचार्य भारमलजी को जब उक्त पत्र पढ़ाया गया तो उन्होंने फरमाया— 'देखो! ये लोग कितने अविचारकारी हैं जो निष्प्रयोजन ही झगड़े में पड़ने को उद्यत रहते हैं।'
*क्या उत्तर दें?*
देवगढ़ निवासी श्रावक रतनजी ने तो स्वयं मुनि खेतसीजी से ही पूछ लिया— 'जहां भी पांच व्यक्ति मिलते हैं, वहीं यह चर्चा चल पड़ती है कि युवाचार्य-पद तो मुनि खेतसीजी को ही मिलना चाहिए था। सुना गया है कि आपका तो नाम भी नियुक्ति-पत्र में लिख दिया गया था। फिर उसे क्यों हटाया गया? आप दीक्षा में बड़े हैं, आप उनके मामा हैं, फिर आपको गौण करके मुनि रायचन्दजी को यह पद क्यों दिया गया? हमारे अपने लोगों के मुंह पर तो ये प्रश्न हैं ही, परन्तु दूसरे लोग भी इसी प्रकार के प्रश्न पूछते रहते हैं। हम उन्हें अब क्या उत्तर दें?'
मुनि खेतसीजी ने छोटा-सा उत्तर देते हुए कहा— 'तुम उन प्रश्नकर्ताओं को मुझे संभला दिया करो।'
आमेट के एक भाई ने मुनि खेतसीजी से कहा— 'अब उलटी गंगा बहा करेगी। आप बड़े होकर भी धरती पर बैठेंगे और मुनि रायचन्दजी छोटे होकर भी बाजोट पर। यह व्यवहार कैसे शोभास्पद होगा?'
मुनि खेतसीजी ने कहा— 'लड़के का विवाह होता है तब उसे सजाया जाता है, घोड़े पर बिठाया जाता है। उसका पिता अस्त-व्यस्त कपड़े पहने इधर-उधर दौड़-भाग करता फिरता है। पुत्र की प्रशंसा सुनता है तो वह फूला नहीं समाता। वह जानता है कि पुत्र की शोभा उसकी अपनी शोभा है। इसी प्रकार से रायचन्दजी की शोभा मेरी ही शोभा है।' इस उत्तर से पूछने वाले को उत्तर तो मिल ही गया, उसे यह पता भी चल गया कि यहां उसकी दुरभिसंधि नहीं चल पायेगी।
*युवाचार्य-काल*
मुनि रायचंदजी का युवाचार्य-काल नौ महीने ही रहा। आचार्य भारमलजी काफी दिनों से रुग्ण चल रहे थे। वृद्ध तो वे थे ही। कोई औषध कार्यकर नहीं हो रहा था। विक्रम सम्वत् 1877 की फाल्गुन शुक्ला 13 को वे केलवा में पधारे थे और विक्रम सम्वत् 1878 के मिगसर तक वहां विराजे। लगभग नौ महीनों के उपचार से भी जब स्वास्थ्य-लाभ नहीं हुआ, तब राजनगर पधार गये। वहां प्रारम्भ में कुछ लाभ अवश्य दिखाई दिया, परन्तु अचानक कालज्वर हो जाने से वे पहले से भी अधिक अस्वस्थ हो गये। अन्त में मुनि खेतसीजी तथा युवाचार्य रायचन्दजी ने उन्हें आजीवन अनशन करवा दिया। अतः 6 प्रहर का सागार और 3 प्रहर का निरागार संथारा प्राप्त कर वे विक्रम सम्वत् 1878 माघ कृष्णा 8 को अर्द्धरात्रि के समय दिवंगत हो गये। उसी के साथ ऋषिराय के युवाचार्य-काल की भी सम्पन्नता हो गई।
*आचार्यश्री रायचंदजी एक प्रभावशाली आचार्य थे... अनेक पहलुओं के माध्यम से...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 236* 📜
*आचार्यश्री रायचन्दजी*
*उत्तराधिकार-प्राप्ति*
*गृहस्थों द्वारा ऊहापोह*
मुनि रायचन्दजी को युवाचार्य पद प्रदान करने पर उस समय अनेक लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार का ऊहापोह किया गया। अनेक लोगों की धारणा थी कि यह पद मुनि खेतसीजी या मुनि हेमराजजी को दिया जाएगा, परन्तु जब मुनि रायचन्दजी को युवाचार्य नियुक्त कर दिया गया, तब उक्त समाचार सुनकर उन लोगों को आश्चर्य तो हुआ ही, एक अनावश्यक ऊहापोह भी उभरा।
चित्तौड़-निवासी हंसराजजी संचेती ने मुनि खेतसीजी के सम्मुख ही आचार्य भारमलजी से पूछा— 'हम तो सुनते थे कि मुनि खेतसीजी को युवाचार्य बनाया जाएगा। आपने रायचन्दजी को कैसे बना दिया?'
आचार्यश्री ने उसे उपालंभ देते हुए फरमाया— 'तुम गृहस्थों को इस पंचायत में पड़ने की क्या आवश्यकता है? हमारी आवश्यकता और कार्य-पद्धति के विषय में तुम क्या जानते हो? ये तो खेतसीजी और हेमराजजी जैसे आत्मार्थी साधु हैं, अन्यथा तुम गृहस्थ लोग तो परस्पर भेद डालने में ही तत्पर रहते हो।'
उक्त प्रकार के विचारों में अनेक गांवों के लोग सम्मिलित थे। हंसराजजी को तो वह प्रश्न उठाने के लिए केवल आगे किया गया था। ऐसे कार्यों में चतुर लोग कभी प्रत्यक्ष सामने नहीं आते। वे किसी अन्य को आगे रखकर पीछे से अपना खेल खेलते रहते हैं। इसीलिए ऊहापोह का वह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा।
*गोगुंदा से पत्र*
गोगुंदा के श्रावकों ने उस समय एक सामूहिक पत्र भेजा। उसमें स्थानीय 25 श्रावकों के हस्ताक्षर थे। उस पत्र के माध्यम से उन लोगों ने युवाचार्य रायचन्दजी को उपालंभ दिया था। उन्होंने लिखा— 'आप हमारे 'चोखले'— रावलियां के हैं, अतः अपना समझकर आपको यह पत्र लिखा गया है। मुनि हेमराजजी की विद्यमानता में आपको यह पद किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करना चाहिए था। इस पद के वास्तविक अधिकारी मुनि हेमराजजी ही हैं, अतः यह उन्हें ही मिलना चाहिए था।'
आचार्य भारमलजी को जब उक्त पत्र पढ़ाया गया तो उन्होंने फरमाया— 'देखो! ये लोग कितने अविचारकारी हैं जो निष्प्रयोजन ही झगड़े में पड़ने को उद्यत रहते हैं।'
*क्या उत्तर दें?*
देवगढ़ निवासी श्रावक रतनजी ने तो स्वयं मुनि खेतसीजी से ही पूछ लिया— 'जहां भी पांच व्यक्ति मिलते हैं, वहीं यह चर्चा चल पड़ती है कि युवाचार्य-पद तो मुनि खेतसीजी को ही मिलना चाहिए था। सुना गया है कि आपका तो नाम भी नियुक्ति-पत्र में लिख दिया गया था। फिर उसे क्यों हटाया गया? आप दीक्षा में बड़े हैं, आप उनके मामा हैं, फिर आपको गौण करके मुनि रायचन्दजी को यह पद क्यों दिया गया? हमारे अपने लोगों के मुंह पर तो ये प्रश्न हैं ही, परन्तु दूसरे लोग भी इसी प्रकार के प्रश्न पूछते रहते हैं। हम उन्हें अब क्या उत्तर दें?'
मुनि खेतसीजी ने छोटा-सा उत्तर देते हुए कहा— 'तुम उन प्रश्नकर्ताओं को मुझे संभला दिया करो।'
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मुनि खेतसीजी ने कहा— 'लड़के का विवाह होता है तब उसे सजाया जाता है, घोड़े पर बिठाया जाता है। उसका पिता अस्त-व्यस्त कपड़े पहने इधर-उधर दौड़-भाग करता फिरता है। पुत्र की प्रशंसा सुनता है तो वह फूला नहीं समाता। वह जानता है कि पुत्र की शोभा उसकी अपनी शोभा है। इसी प्रकार से रायचन्दजी की शोभा मेरी ही शोभा है।' इस उत्तर से पूछने वाले को उत्तर तो मिल ही गया, उसे यह पता भी चल गया कि यहां उसकी दुरभिसंधि नहीं चल पायेगी।
*युवाचार्य-काल*
मुनि रायचंदजी का युवाचार्य-काल नौ महीने ही रहा। आचार्य भारमलजी काफी दिनों से रुग्ण चल रहे थे। वृद्ध तो वे थे ही। कोई औषध कार्यकर नहीं हो रहा था। विक्रम सम्वत् 1877 की फाल्गुन शुक्ला 13 को वे केलवा में पधारे थे और विक्रम सम्वत् 1878 के मिगसर तक वहां विराजे। लगभग नौ महीनों के उपचार से भी जब स्वास्थ्य-लाभ नहीं हुआ, तब राजनगर पधार गये। वहां प्रारम्भ में कुछ लाभ अवश्य दिखाई दिया, परन्तु अचानक कालज्वर हो जाने से वे पहले से भी अधिक अस्वस्थ हो गये। अन्त में मुनि खेतसीजी तथा युवाचार्य रायचन्दजी ने उन्हें आजीवन अनशन करवा दिया। अतः 6 प्रहर का सागार और 3 प्रहर का निरागार संथारा प्राप्त कर वे विक्रम सम्वत् 1878 माघ कृष्णा 8 को अर्द्धरात्रि के समय दिवंगत हो गये। उसी के साथ ऋषिराय के युवाचार्य-काल की भी सम्पन्नता हो गई।
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प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬
🏭 _*आज का प्रवास - Nalanda Polytechnic College Hubali, Dharwad NH-63, Hubali Gadag Road, Dharwad, Karnataka 580020, India*_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_21 जनवरी 2020_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://maps.app.goo.gl/FsAhj2ipd2uRLcQU9
🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬🧲🧬
🏭 _*आज का प्रवास - Nalanda Polytechnic College Hubali, Dharwad NH-63, Hubali Gadag Road, Dharwad, Karnataka 580020, India*_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
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⌚ _दिनांक_: *_21 जनवरी 2020_*
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卐🌼🔺🕉अर्हम् 🕉 🔺🌼卐
🌸 *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा* 🌸
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*(संभावित कार्यक्रम)*
*21 जनवरी 2020, मंगलवार*
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
*प्रवास स्थल*
Nalanda Polytechnic College
Hubali, Dharwad NH-63, Hubali Gadag Road, Dharwad, Karnataka 580020, India
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*लोकेशन जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे*
https://maps.app.goo.gl/FsAhj2ipd2uRLcQU9
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*(संभावित यात्रा- 11.4 km*)
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
🌸 *साध्वी प्रमुखाश्री जी का प्रातःकालीन प्रवास स्थल* 🌸
Hope English Medium School
800 meters ahead Nalanda polytechnic College,
Hubali, Dharwad NH-63, Hubali Gadag Road, Dharwad, Karnataka 580020, India
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