26.09.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 26.09.2019
Updated: 26.09.2019

Updated on 26.09.2019 21:02

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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 49* 📜

*अध्याय~~4*

*॥सहजानंद-मीमांसा॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*6. यत्सुखं कायिकं वत्स! वाचिकं मानसं तथा।*
*अनुभूतं तदस्माभिः, अतः सुखमितीष्यते।।*

भगवान् ने कहा— वत्स! जो-जो कायिक, वाचिक और मानसिक सुख है, उसका हमने अनुभव किया है, इसलिए वह सुख है, ऐसा हमें प्रतीत होता है।

*7. नानुभूतश्चिदानन्दः, इन्द्रियाणामगोचरः।*
*वितर्क्यो मनसा नापि, स्वात्मदर्शनसंभवः।।*

हमने चेतना के आनंद का अभी अनुभव नहीं किया है, क्योंकि वह इंद्रियों का विषय नहीं है, मन के वितर्कणा से परे है। आत्मसाक्षात्कार से ही उसका प्रादुर्भाव होता है।

*8. इन्द्रियाणि निवर्तन्ते, मनस्ततो निवर्वते।*
*तत्रात्मदर्शनं पुण्यं, ध्यानलीनस्य जायते।।*

इन्द्रियां अपने विषयों से निवृत्त होती हैं, तब मन अपने विषय से निवृत्त होता है। जहां इंद्रिय और मन की अपने-अपने विषयों से निवृत्ति होती है, वहां ध्यान-लीन व्यक्ति को पवित्र आत्म-दर्शन की प्राप्ति होती है।

*9. सहजं निरपेक्षञ्च, निर्विकारमतीन्द्रियम्।*
*आनन्दं लभते योगी, बहिरव्यापृतेन्द्रियः।।*

जिसकी इन्द्रियों का बाह्य पदार्थों में व्यापार नहीं होता, वह योगी सहज, निरपेक्ष, निर्विकार और अतीन्द्रिय आनंद को प्राप्त होता है।

*10. आत्मलीनो महायोगी, वर्षमात्रेण संयमी।*
*अतिक्रामति सर्वेषां, तेजोलेश्यां सुपर्वणाम्।।*

जो संयमी आत्मा में लीन और महान् योगी है, वह वर्षभर की दीक्षा-पर्याय में समस्त देवों की तेजोलेश्या— सुखासिका अथवा सुख को लांघ जाता है अर्थात् उनसे अधिक सुखी बन जाता है।

*11. ऐन्द्रियं मानसं सौख्यं, साबाधं क्षणिकं तथा।*
*आत्मसौख्यमनाबाधं, शाश्वतञ्चापि विद्यते।।*

इंद्रिय तथा मन के सुख बाधासहित और क्षणिक होते हैं। आत्मसुख बाधारहित और स्थाई होता है।

*मुक्त आत्माओं के सुख की तुलना... आनंद की अवाच्यता...* के बारे में जानेंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Updated on 26.09.2019 21:02

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 136* 📖

*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*

*21. मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा,*
*दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति।*
*किं विक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः,*
*कश्चिन् मनो हरति नाथ! भवान्तरेऽपि।।*

मैंने आपको देखने से पहले हरि, हर आदि को देख लिया। यह अच्छा हुआ, ऐसा मैं मानता हूं। उनके सराग चरित्र को देखने के पश्चात् तुम्हारा वीतराग चरित्र मुझे तोष दे रहा है। आपको देखने से क्या हुआ? एक विचित्र मनोदशा हो गई। हे नाथ! अब इस धरती पर मेरे मन को हरण करने वाला अन्य कोई नहीं है। इस जन्म में क्या, भवांतर में भी कोई मेरे मन का हरण नहीं कर सकता।

*22. स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्,*
*नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता।*
*सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मिं,*
*प्राच्येव दिग् जनयति स्फुरदंशुजालम्।।*

सैंकड़ों स्त्रियां सैंकड़ों पुत्रों को जन्म देती हैं, किंतु तुम्हारे जैसा पुत्र किसी दूसरी माता ने पैदा नहीं किया। सभी दिशाएं तारा-नक्षत्रों को धारण करती हैं, किंतु चमकते हुए सहस्र-किरण समूह वाले सूर्य को तो पूर्व दिशा ही जन्म देती है।

*23. त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमान्स-*
*मादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात्।*
*त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्युं,*
*नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र! पंथ्याः।।*

हे मुनीन्द्र! ज्ञानी जन तुम्हें परम पुरुष मानते हैं। तुम सूर्य के समान आभा वाले, निर्मल और अंधकार से परे हो। तुम्हीं को सम्यग् प्रकार से उपलब्ध करने से मृत्यु पर विजय पाते हैं, अमर बन जाते हैं। मोक्षमार्ग का कल्याणकारी मार्ग तुम्हारी उपलब्धि के सिवाय दूसरा नहीं है।

*24. त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं,*
*ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनंगकेतुम्।*
*योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं,*
*ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः।।*

तुम अव्यय हो— चयापचय से मुक्त हो, स्थिर स्वभाव वाले हो।
तुम विभु हो— प्रभु हो, ज्ञान शक्ति से व्यापक हो।
तुम अचिंत्य हो— तुम्हारी शक्ति चिंतन से परे है, अद्भुत गुणों से युक्त हो।
तुम असंख्य हो— तुम्हारे गुणों की संख्या नहीं हो पाती।
तुम आद्य हो— तुम आदिपुरुष हो, इस युग में धर्म के आदि प्रवर्तक हो।
तुम ब्रह्मा हो— आनंद की वृद्धि करने वाले हो।
तुम ईश्वर हो— सर्वाधिक ऐश्वर्य संपन्न हो।
तुम अनंत हो— अनंत ज्ञान, दर्शन से संपन्न हो।
तुम अनंगकेतु हो— काम को शांत करने के लिए केतु हो।
तुम योगेश्वर हो— योगियों के द्वारा ध्येय हो।
तुम विदितयोग हो— योग के ज्ञाता हो।
तुम अनेक हो— उपयोग (चेतना व्यापार) की अपेक्षा से अनेक हो, गुण और पर्याय की अपेक्षा से अनेक हो।
तुम एक हो— द्रव्य की अपेक्षा से एक हो, अद्वितीय हो।
तुम ज्ञानस्वरूप हो— चैतन्य स्वरूप हो।
तुम अमल हो— अंतराय, दान, लाभ आदि अठारह दोषों से रहित हो।
इस प्रकार संत लोग तुम्हारा अनेक रूपों में प्रवाद करते हैं, तुम्हें अनेक रूपों में देखते हैं।

*भगवान् ऋषभ के अनेक गुणों...* के बारे में जानेंगे और समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 26.09.2019 21:02

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 148* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*15. पात्रानुसार उत्तर*

*पांचलड़ा जीव*

स्वामीजी पुर में पधारे। वहां मेघजी भाट चर्चा करने के लिए आए। वे कालवादी साधुओं के अनुयायी थे। उन्होंने कहा— 'भीखणजी! आपने एक पद्य में कहा है— 'एकलड़ो जीव खासी गोता' परंतु आप की मान्यता के हिसाब से तो वहां 'पांचलड़ो जीव खासी गोता' होना चाहिए। क्योंकि नव पदार्थों में आपने पांच को जीव माना है। तब वह सहज ही पांचलड़ा सिद्ध हो जाता है।

स्वामीजी ने उत्तर देते हुए कहा— 'यद्यपि मेरे पद्य में प्रयुक्त 'एकलड़ो' शब्द का अर्थ अकेला ही है, 'इकहरा' नहीं। फिर भी यदि कालवादी इसका अर्थ 'इकहरा' मानकर 'पंचलड़े' का सुझाव देते हैं, तो पहले स्वयं उन्हें 'चारलड़ा' जीव होने की अपनी मान्यता घोषित करनी पड़ेगी।

मेघजी— 'वह कैसे?'

स्वामीजी— 'कालवादी सिद्धों में कितनी आत्मा मानते हैं?'

मेघजी— 'चार।'

स्वामीजी— 'उन चारों को वे जीव मानते हैं या अजीव?'

मेघजी— 'जीव मानते हैं।'

स्वामीजी— 'कालवादी सिद्धों में चार आत्मा मानते हैं और उन चारों को जीव मानते हैं, तब 'चोलड़ा' जीव तो उनके कथन में ही सिद्ध हो जाता है। हमारे और उनके कथन में 'एकलड़' का ही तो अंतर रहा।'

मेघजी— 'आपकी बुद्धि बड़ी गजब की है। हर चर्चा का उत्तर आपके पास तैयार रहता है।'

*स्वामी भीखणजी के साथ चर्चा करने काफी लोग आते थे... कुछ चर्चा प्रसंगों...* के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 26.09.2019 21:02

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_

📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*

🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*

⌚ _दिनांक_: *_26 सितंबर 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

https://www.facebook.com/SanghSamvad/

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👉 इरोड - कनेक्शन विथ सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
👉 हैदराबाद - सर्वोत्तम प्रयास खुद पर विश्वास निश्चित सफलता आपके पास विषयक सेमिनार
👉 कुम्बलगुडु, बेंगलुरु - निशुल्क मधुमेह जांच शिविर का आयोजन
👉 छापर - सॉरी महकाए जीवन की क्यारी कार्यशाला का आयोजन
👉 कांदिवली, मुम्बई - कनेक्शन विथ सक्सेस कार्यशाला और कहानी प्रतियोगिता का आयोजन
👉 जलगांव ~ बारहव्रत परीक्षा तेयुप द्वारा आयोजित
👉 सुजानगढ़ ~ आर्मी ऑफिसर बनने पर सम्मानित
👉 दक्षिण मुंबई - तप अभिनंदन समारोह
👉 हैदराबाद ~ दीक्षार्थी बहन का अभिनंदन समारोह
👉 मध्य कोलकाता ~ महाप्रज्ञ प्रबोध पर आधारित क्विज़ प्रतियोगिता का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ निशुल्क परीक्षण एवं होम्योपैथिक कैंप का आयोजन
👉 सुजानगढ़ ~ हैप्पी एन्ड हॉर्मोनियस फैमिली कार्यशाला का आयोजन

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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📖 *"इंडिया टुडे"* के आने वाले आगामी *'अक्टूबर' माह* - "दुर्गा पूजा" विशेषांक में..

🙏 *श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के दशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी (1920-2020) वर्ष के अवसर पर*..
🌍 *विश्व को उनके अवदानों का विशेष रूप से प्रकाशन* किया है।

🌿 *विशेषांक के कुछ पन्नो का सम्प्रेषण आपके लिए..*

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🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २६७* - *ध्यान के प्रकार ४*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#कैसे #सोचें *: #विधायक #भाव ३*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482

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SS
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