🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#कैसे #सोचें *: #श्रंखला २*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 #संघ #संवाद 🌻
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#कैसे #सोचें *: #श्रंखला २*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 #संघ #संवाद 🌻
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २४८* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान १७*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २४८* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान १७*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 31* 📜
*अध्याय~~2*
*॥सुख-दुःख मीमांसा॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*41. इन्द्रियार्था इमे सर्वे, विरक्तस्य च देहिनः।*
*मनोज्ञत्वाऽमनोज्ञत्वं, जनयन्ति न किञ्चन।।*
इंद्रियों के ये सारे विषय वीतराग पुरुष में मनोज्ञता या अमनोज्ञता का भाव किंचित् भी उत्पन्न नहीं करते।
*42. कामान् संकल्पमानस्य, सङ्गो हि बलवत्तरः।*
*तानऽसंकल्पमानस्य, तस्य मूलं प्रणश्यति।।*
जो काम-भोगों का संकल्प-विकल्प करता है, उस व्यक्ति की कामासक्ति बलवान बन जाती है। जो काम-भोगों का संकल्प-विकल्प नहीं करता, उसकी कामासक्ति का मूल नष्ट हो जाता है।
*43. कृतकृत्यो वीतरागः, क्षीणावरणमोहनः।*
*निरन्तरायः शुद्धात्मा, सर्वं जानाति पश्यति।।*
जिनके ज्ञान, दर्शन के आवरण तथा मोह और अंतराय क्षीण हो जाते हैं, वह वीतराग कृतकृत्य हो जाता है— उसके करणीय शेष नहीं रहते। वह शुद्धात्मा होने के कारण सब तत्त्वों को जानता-देखता है।
*44. भवोपग्राहिकं कर्म, क्षपयित्वायुषः क्षये।*
*सर्वदुःखप्रमोक्षं हि, मोक्षमेत्यव्ययं शिवम्।।*
वह आयुष्य-क्षय के साथ शेष भवोपग्राही कर्मों को क्षीण कर मोक्ष को प्राप्त होता है, जो सब दुखों से मुक्त, अव्यय और शिव है।
💠 *मेघः प्राह*
*45. धार्मिको धर्ममाचिन्वन्, सुखमानोप्ति सर्वदा।*
*दुष्कृती दुष्कृतं कुर्वन्, दुःखमाप्नोति सर्वदा।।*
*46. न चैष कर्मसिद्धांतः, लोके संगच्छते क्वचित्।*
*धार्मिकाः दुःखमापन्नाः, सुखिनो दुष्कृते रताः।।*
*(युग्मम्)*
मेघ बोला— भगवन्! धार्मिक धर्म करता हुआ सदा सुख पाता है और अधार्मिक अधर्म करता हुआ सदा दुःख पाता है— कर्म का यह सिद्धांत लोक में संगत नहीं है, क्योंकि कहीं-कहीं धर्म का आचरण करने वाले दुःखी और अधर्म का आचरण करने वाले सुखी देखे जाते हैं।
*भगवान् का उत्तर... दो प्रकार का धर्म— संवर और निर्जरा और उनका स्वरूप... अधर्म का कार्य... संस्कारों का विलय और संचय कैसे...?* इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 31* 📜
*अध्याय~~2*
*॥सुख-दुःख मीमांसा॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*41. इन्द्रियार्था इमे सर्वे, विरक्तस्य च देहिनः।*
*मनोज्ञत्वाऽमनोज्ञत्वं, जनयन्ति न किञ्चन।।*
इंद्रियों के ये सारे विषय वीतराग पुरुष में मनोज्ञता या अमनोज्ञता का भाव किंचित् भी उत्पन्न नहीं करते।
*42. कामान् संकल्पमानस्य, सङ्गो हि बलवत्तरः।*
*तानऽसंकल्पमानस्य, तस्य मूलं प्रणश्यति।।*
जो काम-भोगों का संकल्प-विकल्प करता है, उस व्यक्ति की कामासक्ति बलवान बन जाती है। जो काम-भोगों का संकल्प-विकल्प नहीं करता, उसकी कामासक्ति का मूल नष्ट हो जाता है।
*43. कृतकृत्यो वीतरागः, क्षीणावरणमोहनः।*
*निरन्तरायः शुद्धात्मा, सर्वं जानाति पश्यति।।*
जिनके ज्ञान, दर्शन के आवरण तथा मोह और अंतराय क्षीण हो जाते हैं, वह वीतराग कृतकृत्य हो जाता है— उसके करणीय शेष नहीं रहते। वह शुद्धात्मा होने के कारण सब तत्त्वों को जानता-देखता है।
*44. भवोपग्राहिकं कर्म, क्षपयित्वायुषः क्षये।*
*सर्वदुःखप्रमोक्षं हि, मोक्षमेत्यव्ययं शिवम्।।*
वह आयुष्य-क्षय के साथ शेष भवोपग्राही कर्मों को क्षीण कर मोक्ष को प्राप्त होता है, जो सब दुखों से मुक्त, अव्यय और शिव है।
💠 *मेघः प्राह*
*45. धार्मिको धर्ममाचिन्वन्, सुखमानोप्ति सर्वदा।*
*दुष्कृती दुष्कृतं कुर्वन्, दुःखमाप्नोति सर्वदा।।*
*46. न चैष कर्मसिद्धांतः, लोके संगच्छते क्वचित्।*
*धार्मिकाः दुःखमापन्नाः, सुखिनो दुष्कृते रताः।।*
*(युग्मम्)*
मेघ बोला— भगवन्! धार्मिक धर्म करता हुआ सदा सुख पाता है और अधार्मिक अधर्म करता हुआ सदा दुःख पाता है— कर्म का यह सिद्धांत लोक में संगत नहीं है, क्योंकि कहीं-कहीं धर्म का आचरण करने वाले दुःखी और अधर्म का आचरण करने वाले सुखी देखे जाते हैं।
*भगवान् का उत्तर... दो प्रकार का धर्म— संवर और निर्जरा और उनका स्वरूप... अधर्म का कार्य... संस्कारों का विलय और संचय कैसे...?* इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣🌸🙏🌸*⃣
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 132* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*9. अध्यात्म-प्रेरक*
*'धम्मो मंगल' सुनाइए*
स्वामीजी भगवती सूत्र का वाचन कर रहे थे। उसी समय एक भाई आया। उसे ग्रामान्तर जाना था, अतः वह मंगल पाठ सुनना चाहता था। स्वामीजी के समय मंगलपाठ सुनने वालों को 'चत्तारि मंगलं' न सुनाकर 'धम्मो मंगल मुक्किट्ठं' सुनाया जाता, था ऐसा प्रतीत होता है। इसीलिए आगंतुक ने कहा— 'स्वामीजी! मुझे 'धम्मो मंगल' सुनाइए।'
स्वामीजी ने फरमाया— 'भगवती का वाचन चल रहा है, यही सुन लो।'
आगंतुक ने कहा— 'नहीं, स्वामीजी! मुझे तो 'धम्मो मंगल' ही सुनाइए।'
स्वामीजी ने पुनः फरमाया— 'भगवती कौनसा 'अधम्मो मंगल' है? यह भी भगवान् की वाणी होने से 'धम्मो मंगल' ही है।'
उस व्यक्ति का फिर भी 'धम्मो मंगल' सुनाने का भी आग्रह रहा तब स्वामीजी ने फरमाया— 'लोग ग्रामान्तर जाते समय गधे आदि का शकुन लेते हैं। लगता है, तुमने 'धम्मो मंगल' को भी वैसा ही समझ लिया है। तुम्हें निर्जरा हेतु सुनना चाहिए। उसका लाभ ही कुछ और होता है।'
*अवकाश के क्षण*
स्वामीजी मारवाड़ के एक गांव में पधारे। अनेक लोग संपर्क में आए, समझे भी, परंतु वहां का प्रमुख व्यक्ति कभी नहीं आया। अनुश्रुति है कि एक दिन मार्ग में वह मिला, तो स्वामीजी ने सत्संग तथा धर्म-चर्चा करने के लिए कहा। उसने भी प्रसंग को टालने के लिए कह दिया किसी दिन अवसर निकाल कर आऊंगा। उसके पश्चात् कई दिन निकल गए, फिर भी वह नहीं आया। एक दिन स्वामीजी फिर मार्ग में मिल गए। इस बार उसे धर्म-चर्चा के लिए कहा गया तो उसने स्पष्ट कह दिया— 'आना चाहता तो था, पर अवकाश ही नहीं मिल पाया।'
स्वामीजी ने कहा— 'प्रातः या सायं कुछ न कुछ अवकाश तो मिलता ही होगा?'
उसने कहा— 'प्रातः दतौन-कुल्ला करता हूं, बस उसी को आप भले ही अवकाश समझ लें।' यह कहकर वह अपनी दुकान की ओर चला गया। मन ही मन सोचने लगा कि इस बार मैंने सदा के लिए बला टाल दी है।
अगले दिन प्रातः काल ज्योंही वह दतौन-कुल्ला करने बैठा, तो देखा, स्वामीजी उसी की ओर आ रहे हैं। वह खड़ा हो गया और कुछ लज्जित सा होकर बोला— 'इस समय पधारने की आपने कैसे कृपा की?'
स्वामीजी ने कहा— 'कल तुमने यही तो अवकाश के क्षण बतलाए थे।'
स्वामीजी की उस उदार और परोपकार वृत्ति को देखकर लज्जावश वह मानो धरती में गड़ गया।
उसने कहा— 'बस, स्वामीजी! मुझे क्षमा करें। मैं आज अवश्य आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगा।'
वह व्यक्ति उसी दिन से संपर्क में आने लगा। बातचीत और तत्त्व-चर्चा का क्रम प्रारंभ हुआ। कालांतर में वह एक दृढ़ श्रद्धालु श्रावक बन गया।
स्वामीजी ने इस प्रकार एक-एक व्यक्ति के लिए न जाने कितना परिश्रम किया था। किसके मन को कैसे अध्यात्म की ओर प्रेरित किया जा सकता है, इसके अद्वितीय मर्मज्ञ थे।
*स्वामी भीखणजी का आचार की सत्यता के प्रति भी उतना ही दृढ़ आग्रह था... जितना कि विचारों की सत्यता के प्रति... यानी वे सत्य-भक्त थे...* जानेंगे... कुछ प्रसंगों के माध्यम से और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 132* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*9. अध्यात्म-प्रेरक*
*'धम्मो मंगल' सुनाइए*
स्वामीजी भगवती सूत्र का वाचन कर रहे थे। उसी समय एक भाई आया। उसे ग्रामान्तर जाना था, अतः वह मंगल पाठ सुनना चाहता था। स्वामीजी के समय मंगलपाठ सुनने वालों को 'चत्तारि मंगलं' न सुनाकर 'धम्मो मंगल मुक्किट्ठं' सुनाया जाता, था ऐसा प्रतीत होता है। इसीलिए आगंतुक ने कहा— 'स्वामीजी! मुझे 'धम्मो मंगल' सुनाइए।'
स्वामीजी ने फरमाया— 'भगवती का वाचन चल रहा है, यही सुन लो।'
आगंतुक ने कहा— 'नहीं, स्वामीजी! मुझे तो 'धम्मो मंगल' ही सुनाइए।'
स्वामीजी ने पुनः फरमाया— 'भगवती कौनसा 'अधम्मो मंगल' है? यह भी भगवान् की वाणी होने से 'धम्मो मंगल' ही है।'
उस व्यक्ति का फिर भी 'धम्मो मंगल' सुनाने का भी आग्रह रहा तब स्वामीजी ने फरमाया— 'लोग ग्रामान्तर जाते समय गधे आदि का शकुन लेते हैं। लगता है, तुमने 'धम्मो मंगल' को भी वैसा ही समझ लिया है। तुम्हें निर्जरा हेतु सुनना चाहिए। उसका लाभ ही कुछ और होता है।'
*अवकाश के क्षण*
स्वामीजी मारवाड़ के एक गांव में पधारे। अनेक लोग संपर्क में आए, समझे भी, परंतु वहां का प्रमुख व्यक्ति कभी नहीं आया। अनुश्रुति है कि एक दिन मार्ग में वह मिला, तो स्वामीजी ने सत्संग तथा धर्म-चर्चा करने के लिए कहा। उसने भी प्रसंग को टालने के लिए कह दिया किसी दिन अवसर निकाल कर आऊंगा। उसके पश्चात् कई दिन निकल गए, फिर भी वह नहीं आया। एक दिन स्वामीजी फिर मार्ग में मिल गए। इस बार उसे धर्म-चर्चा के लिए कहा गया तो उसने स्पष्ट कह दिया— 'आना चाहता तो था, पर अवकाश ही नहीं मिल पाया।'
स्वामीजी ने कहा— 'प्रातः या सायं कुछ न कुछ अवकाश तो मिलता ही होगा?'
उसने कहा— 'प्रातः दतौन-कुल्ला करता हूं, बस उसी को आप भले ही अवकाश समझ लें।' यह कहकर वह अपनी दुकान की ओर चला गया। मन ही मन सोचने लगा कि इस बार मैंने सदा के लिए बला टाल दी है।
अगले दिन प्रातः काल ज्योंही वह दतौन-कुल्ला करने बैठा, तो देखा, स्वामीजी उसी की ओर आ रहे हैं। वह खड़ा हो गया और कुछ लज्जित सा होकर बोला— 'इस समय पधारने की आपने कैसे कृपा की?'
स्वामीजी ने कहा— 'कल तुमने यही तो अवकाश के क्षण बतलाए थे।'
स्वामीजी की उस उदार और परोपकार वृत्ति को देखकर लज्जावश वह मानो धरती में गड़ गया।
उसने कहा— 'बस, स्वामीजी! मुझे क्षमा करें। मैं आज अवश्य आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊंगा।'
वह व्यक्ति उसी दिन से संपर्क में आने लगा। बातचीत और तत्त्व-चर्चा का क्रम प्रारंभ हुआ। कालांतर में वह एक दृढ़ श्रद्धालु श्रावक बन गया।
स्वामीजी ने इस प्रकार एक-एक व्यक्ति के लिए न जाने कितना परिश्रम किया था। किसके मन को कैसे अध्यात्म की ओर प्रेरित किया जा सकता है, इसके अद्वितीय मर्मज्ञ थे।
*स्वामी भीखणजी का आचार की सत्यता के प्रति भी उतना ही दृढ़ आग्रह था... जितना कि विचारों की सत्यता के प्रति... यानी वे सत्य-भक्त थे...* जानेंगे... कुछ प्रसंगों के माध्यम से और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼
जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 120* 📖
*रक्षाकवच*
गतांक से आगे...
आचार्य मानतुंग के सामने समुद्र का प्रश्न था, इसलिए समुद्रयात्रा के भय के निवारण का उपाय सुझा दिया। यदि उनके सामने वायुयान होता तो एक श्लोक प्लेन-दुर्घटना से बचने का बना देते। मोटर और कार का संदर्भ होता तो उनके द्वारा निर्विघ्न और सकुशल यात्रा का साधन बना देते। उसे युग में विघ्न के जितने कारण थे, उन पर स्तुतिकार ने श्लोक रच दिए। आज कोई दूसरा मानतुंग आए और दूसरा भक्तामर बनाए तो वह वायुयान, मोटर, कार आदि से आने वाली बाधाओं के निवारण के लिए श्लोक बनाएगा। वस्तुतः आचार्य मानतुंग ने शक्तिशाली श्लोकों की रचना की है। उनका स्तवन करने से एक प्रकार की शक्ति जागती है और वह शक्ति कमजोर व्यक्ति को परास्त कर देती है। वह शक्ति पुद्गलों की शक्ति है, परमाणुओं की शक्ति है। शक्तिशाली परमाणु कमजोर पुद्गल परमाणुओं को भगा देता है, नष्ट कर देता है। स्तवन के इसी प्रभाव की मानतुंग सूरि ने चर्चा की है— भयंकर युद्ध में वह विजय दिला देता है, व्यक्ति का रक्षा-कवच बन जाता है और भयावह समुद्रयात्रा में भी सकुशल पार पहुंचा देता है।
सन् 1993, सरदारशहर। अक्षय तृतीया का प्रसंग। एक दिन एक बहिन ने कहा— मैं एक आश्चर्यकारी बात बताना चाहती हूं। मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) कहा— बोलो क्या बात है? उसने कहा— सरदारशहर का एक भाई माणक सुराना रेल से यात्रा कर रहा था। वह जिस डिब्बे में बैठा था, उसमें डाकू आ गए। सारे लोग घबरा गए। जिनके पास जो कुछ था, वह सब छीन लिया। उस भाई ने 'ॐ भिक्षु, ॐ भिक्षु' का जप शुरू कर दिया। डाकू उसके पास आए लेकिन वह जप में लीन बना रहा। डाकू आगे चले गए। कुछ देर बाद वे पुनः आए। एक डाकू ने कहा— लगता है यह कोई पागल आदमी है। छोड़ो इसको। उस भाई को छोड़ सब को लूट लिया और रेल से उतर गए।
यह ध्वनि और प्रक्रम्पन का, भावना और स्तवन का प्रभाव है। ऐसी एक नहीं, अनेक घटनाएं सामने आती हैं। ऐसा हो सकता है, ऐसा होता है, इसलिए यह अतिशयोक्तिपूर्ण तथ्य नहीं है। स्तुति का जो प्रभाव होता है, उसका सम्यक् प्रकार से प्रदर्शन और निदर्शन है— प्रस्तुत काव्य। इस सच्चाई का अनुशीलन करें तो अनेक नए अनुभव हमारे जीवन में प्रस्फुटित हो सकते हैं।
*आचार्य मानतुंग सूरि ने भक्तामर के एक काव्य के माध्यम से भयंकर व्याधि से निवारण के उपाय बतलाया है...* उसके बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 120* 📖
*रक्षाकवच*
गतांक से आगे...
आचार्य मानतुंग के सामने समुद्र का प्रश्न था, इसलिए समुद्रयात्रा के भय के निवारण का उपाय सुझा दिया। यदि उनके सामने वायुयान होता तो एक श्लोक प्लेन-दुर्घटना से बचने का बना देते। मोटर और कार का संदर्भ होता तो उनके द्वारा निर्विघ्न और सकुशल यात्रा का साधन बना देते। उसे युग में विघ्न के जितने कारण थे, उन पर स्तुतिकार ने श्लोक रच दिए। आज कोई दूसरा मानतुंग आए और दूसरा भक्तामर बनाए तो वह वायुयान, मोटर, कार आदि से आने वाली बाधाओं के निवारण के लिए श्लोक बनाएगा। वस्तुतः आचार्य मानतुंग ने शक्तिशाली श्लोकों की रचना की है। उनका स्तवन करने से एक प्रकार की शक्ति जागती है और वह शक्ति कमजोर व्यक्ति को परास्त कर देती है। वह शक्ति पुद्गलों की शक्ति है, परमाणुओं की शक्ति है। शक्तिशाली परमाणु कमजोर पुद्गल परमाणुओं को भगा देता है, नष्ट कर देता है। स्तवन के इसी प्रभाव की मानतुंग सूरि ने चर्चा की है— भयंकर युद्ध में वह विजय दिला देता है, व्यक्ति का रक्षा-कवच बन जाता है और भयावह समुद्रयात्रा में भी सकुशल पार पहुंचा देता है।
सन् 1993, सरदारशहर। अक्षय तृतीया का प्रसंग। एक दिन एक बहिन ने कहा— मैं एक आश्चर्यकारी बात बताना चाहती हूं। मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) कहा— बोलो क्या बात है? उसने कहा— सरदारशहर का एक भाई माणक सुराना रेल से यात्रा कर रहा था। वह जिस डिब्बे में बैठा था, उसमें डाकू आ गए। सारे लोग घबरा गए। जिनके पास जो कुछ था, वह सब छीन लिया। उस भाई ने 'ॐ भिक्षु, ॐ भिक्षु' का जप शुरू कर दिया। डाकू उसके पास आए लेकिन वह जप में लीन बना रहा। डाकू आगे चले गए। कुछ देर बाद वे पुनः आए। एक डाकू ने कहा— लगता है यह कोई पागल आदमी है। छोड़ो इसको। उस भाई को छोड़ सब को लूट लिया और रेल से उतर गए।
यह ध्वनि और प्रक्रम्पन का, भावना और स्तवन का प्रभाव है। ऐसी एक नहीं, अनेक घटनाएं सामने आती हैं। ऐसा हो सकता है, ऐसा होता है, इसलिए यह अतिशयोक्तिपूर्ण तथ्य नहीं है। स्तुति का जो प्रभाव होता है, उसका सम्यक् प्रकार से प्रदर्शन और निदर्शन है— प्रस्तुत काव्य। इस सच्चाई का अनुशीलन करें तो अनेक नए अनुभव हमारे जीवन में प्रस्फुटित हो सकते हैं।
*आचार्य मानतुंग सूरि ने भक्तामर के एक काव्य के माध्यम से भयंकर व्याधि से निवारण के उपाय बतलाया है...* उसके बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌼🍁🌼🍁🍁🍁🍁🌼🍁🌼
👉 बारडोली - समणी मानस प्रज्ञा की संसार पक्षीय मातुश्री की स्मृति सभा का आयोजन
⛲❄⛲❄⛲❄⛲
⛩
आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
⛳
महाश्रमण चरणों में
📮
: दिनांक:
06 सितम्बर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
⛲❄⛲❄⛲❄⛲
⛩
आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
⛳
महाश्रमण चरणों में
📮
: दिनांक:
06 सितम्बर 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
⛲❄⛲❄⛲❄⛲
👉 मोमासर ~ अणुव्रत चेतना दिवस का आयोजन
👉 सेलम ~ सामूहिक तपोभिनन्दन का कार्यक्रम आयोजित
👉 सेलम ~ कनेक्शन विद् सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति - 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 सेलम ~ सामूहिक तपोभिनन्दन का कार्यक्रम आयोजित
👉 सेलम ~ कनेक्शन विद् सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति - 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#कैसे #सोचें *: #श्रंखला १*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 #संघ #संवाद 🌻
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#कैसे #सोचें *: #श्रंखला १*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 #संघ #संवाद 🌻
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २४७* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान १६*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २४७* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान १६*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🌻 *संघ संवाद* 🌻