News in Hindi
तपस्वी मुनिराजों की चरण रज स्वस्थ बना देती है - आचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी मुनिराज
श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, तिजारा की पावन धरा पर आयोजित 1008 श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के मध्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने कहा कि चिड़िया कितनी भी छोटी हो तो भी उसके अंदर उड़ने की ताकत होती है, फूल कितना भी छोटा हो तो भी उसके अंदर सुवास है, इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अनंत शक्ति है उसे प्रकट करने के लिए साधना जरूरी है। जहां काम आवे सुई वहां क्या करें तलवार,जहां सुई का काम है वहां सुई छोटी होते हुए भी महत्वपूर्ण है। सुई छोटी है, ऐसा सोच कर उसे फेंके नहीं उसकी संभाल करो वह जोड़ने का काम करती है, कभी भी किसी को छोटा मत समझो सभी के अंदर अनेक तरह की क्षमता है उन्हें प्रकट करना होगा।
सिद्धचक्र महामंडल विधान के आज आप चौसठ ऋद्धि विधान करेंगे। दिगंबर मुनिराजों की तपस्या के फलस्वरूप क्या क्या घटित हो जाता है आप चौसठ ऋद्धियों के माध्यम से जानेंगे, दिगंबर मुनिराजो के अंदर वह क्षमता आ जाती है कि वह इस पृथ्वी से चार अंगुल ऊपर चलते हैं, वह जंघा पर दोनों हाथ लगाकर हवा के समान गमन करते हैं, वह गर्मी के समय पर्वत के ऊपर, शीतकाल में नदी के किनारे और वृक्ष के नीचे बैठकर आत्म चिंतन करते हैं। ऋद्धिधारी मुनिराजो के शरीर से स्पर्शित वायु रोगी के शरीर से अगर स्पर्शित हो जाए तो अनेक रोग दूर हो जाते हैं। उनके हाथों में नीरस भोजन भी सरस हो जाता है। उनके हाथों में नीरस भोजन भी घी के समान स्वाद से युक्त हो जाता है, अमृत के समान हो जाता है, मधुर हो जाता है।
जहां मुनिराज आहार लेते हैं वहां चक्रवर्ती की सेना भी भोजन कर जाए तो भी भोजन सामग्री एवं स्थान की कमी नहीं होती है। वर्षों वर्षों तक एक स्थान पर बैठकर आत्म चिंतन किया करते हैं, वह अपना शरीर बहुत छोटा भी कर सकते हैं, बहुत बड़ा शरीर भी कर बना सकते हैं, अपना शरीर बहुत हल्का भी कर सकते हैं, बहुत भारी भी कर सकते हैं, और भी अनेक ऋद्धियां उनके जीवन में हो जाती हैं, उन्हें यद्यपि यह भाव नहीं आता कि मुझे ऋद्धियां हो जाए, पर उनकी तपस्या से ऋद्धियां प्रकट हो जाती है। प्रवचन के पश्चात सभी ने चौसठ गुणों से युक्त चौथी पूजन भक्ति- भाव के साथ की।