Update
तेरापंथ धर्मसंघ की शिक्षा गतिविधि के संदर्भ में *महत्वपूर्ण निर्णय* 29 जुलाई 2019 बेंगलुरु की *कल्याण परिषद* की गोष्ठी में लिया गया--
*तेरापंथ के आचार्यों तथा तेरापंथ के नाम से विद्या संस्थान बनाया जाए तो जैन विश्व भारती के मालिकाना के अंतर्गत ही बनाया जाए।*
आओ! हम सब मिलकर धर्मसंघ के शिक्षा के क्षेत्र में नव कीर्तिमान बनाएं तथा गुणवत्ता पूर्ण और तेरापंथ के आचार्यों के अवदान और चिंतन के अनुरुप शिक्षा के क्षेत्र में विकास करें।
संप्रचारक
*जैन विश्व भारती*
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*Terapanth Network Team*
संप्रसारक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
💢 *अणुव्रत महासमिति अध्यक्ष की गुजरात व महाराष्ट्र की संगठन यात्रा* 💢
👉 उधना - पर्यावरण विशुद्धि अभियान
👉 उधना, सूरत - नवगठित अणुव्रत समिति बोइसर अध्यक्ष का शपथ ग्रहण समारोह
👉 वडोदरा (गुजरात) - अणुव्रत समिति का गठन
👉 चरित्र आत्माओं व समणी जी को अणुव्रत पत्रिका भेंट
प्रस्तुति - *अणुव्रत सोशल मीडिया*
प्रसारक - 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*अणुव्रत महासमिति*
द्वारा
शाखा समितियों
के लिए
करणीय
अगस्त माह
का प्रकल्प
*नशामुक्ति*
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*: प्रस्तुति:*
अणुव्रत सोशल मीडिया
*: संप्रसारक:*
संघ संवाद
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 104* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*1. विरोध का सामना विनोद से*
*पोता-चेला*
स्थानकवासी साधु टीकमजी के एक शिष्य मुनि कचरोजी सिरियारी में स्वामीजी के पास पहुंचे। स्वामीजी ने आने का कारण पूछा तो बोले— 'आपके विषय में बातें सुनते-सुनते कान पक गए, अतः सोचा कि चलो, देखें तो सही, आखिर भीखणजी ऐसी क्या बला है?'
स्वामीजी ने सस्मित कहा— 'लो, देख लो, मैं ही हूं भीखण।'
देख लेने के पश्चात् मुनि कचरोजी स्वामीजी से बात करने का लोभ भी संवृत नहीं कर सके, अतः बोले— 'कुछ चर्चा तो पूछिए।'
स्वामीजी— 'जब देखने के लिए ही आए हो, तो तुमसे चर्चा क्या पूछें?'
कचरोजी— 'फिर भी कुछ तो पूछ ही लें।'
स्वामीजी ने उनका आग्रह देखकर पूछा— 'तीसरे महाव्रत के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण क्या हैं?'
कचरोजी— 'यह सब तो मेरे पास पत्र में लिखा पड़ा है।'
स्वामीजी— 'पत्र फट जाए या गुम हो जाए, तब क्या करोगे?'
कचरोजी को जब इसका कोई उत्तर नहीं सूझा, तो बात को दूसरी ओर घुमाते हुए बोले— मेरे गुरुजी ने एक बार आपसे चर्चा पूछी थी, उसका उत्तर आपको भी नहीं आया था।'
स्वामीजी— 'क्या हर्ज है? वही चर्चा तुम फिर से पूछ लो। यदि उन्हें उत्तर दिया है, तो तुम्हें भी दे देंगे।'
कचरोजी— 'आप तो मेरे दादा-गुरु की अवस्था के हैं, अतः मैं आपका पोता-चेला हुआ। आपको चर्चा में कैसे जीत सकता हूं?'
स्वामीजी ने निरर्थक बातों में समय जाता देखकर एक ही बार में सारे प्रकरण को समाप्त करते हुए कहा— 'कम-से-कम मुझे तो ऐसा पोता-चेला नहीं चाहिए।'
कचरोजी के सामने तब चुप होकर चले जाने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं रह गया था।
*स्वामीजी बुराई में भी भलाई खोज लेते थे... उनके कुछ जीवन प्रसंगों के माध्यम से...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 92* 📖
*परिणमन की शक्ति*
गतांक से आगे...
स्तुतिकार ने अपनी कल्पना से एक प्रश्न भी उभारा— ये छत्र तीन ही क्यों है? यह तीन का प्रश्न बहुत बार उठता है— प्रणिपात तीन बार ही क्यों किया जाता है? वंदना तीन बार ही क्यों करते हैं? प्रस्तुत संदर्भ में मानतुंग कह रहे हैं— ये तीन छत्र यह बता रहे हैं कि आदिनाथ ऋषभ तीन जगत् की परमेश्वर हैं। ऋषभ केवल मनुष्य लोक के ही नहीं, स्वर्ग और पाताल लोक के भी ईश्वर हैं। इंद्र स्वर्ग लोक का ईश्वर होता है, चक्रवर्ती अथवा राजा मनुष्य लोक का स्वामी है, भवनपति पाताल लोक के स्वामी हैं। कोई भी अकेला व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो तीन लोक का ईश्वर हो। तीन लोक का ईश्वर वही हो सकता है, जो तीन लोक से परे हो गया है। जिसने ममत्व का विसर्जन कर दिया, वही परम ईश्वर हो सकता है, उसका स्वामित्व सब स्वीकार कर लेते हैं। जो व्यक्ति बलात् दूसरों पर अपना शासन थोपता है, वह कभी सर्वमान्य नहीं हो सकता। जो व्यक्ति एक सीमा में आबद्ध रहता है, वह कभी तीन लोक का ईश्वर नहीं हो सकता। जो सीमातीत, कालातीत और ममत्व का विसर्जन करने वाला होता है, वही तीन लोक का ईश्वर हो सकता है। स्थानांग सूत्र का प्रसंग है। पूछा गया— क्या ऐसा क्षण आता है, जब नरक में भी सुख होता है? कहा गया— जब तीर्थंकर का जन्म होता है, तब एक क्षण के लिए नरक में भी सुख हो जाता है, सारा कष्ट समाप्त हो जाता है। जब तीर्थंकर का निर्वाण होता है, तब भी समग्र लोक में सुख और शांति व्याप जाती है। जो लोक में सुख का सृजन करे, सब प्राणियों को शांति दे, वही तीन लोक का ईश्वर हो सकता है। दूसरों को दुःख देने वाला, कठिनाई में डालने वाला कभी तीन लोक का स्वामी नहीं बनता। चक्रवर्ती छह खण्ड का राजा होता है, किंतु वह सुख देकर नहीं बनता है। वह दूसरों को दुःख देकर, दूसरों के अधिकारों को छीनकर छह खण्ड का राजा बनता है। जो डंडे के बल पर दूसरों के स्वत्व का अपहरण कर राजा बनता है, वह कभी हृदय से स्वीकार्य नहीं होता। तीर्थंकर मैत्री की ऐसी धारा प्रवाहित करते हैं कि सब उनको स्वीकार कर लेते हैं।
*जो मैत्री की धारा प्रवाहित करता है... वह दूसरों के हृदय में अपना स्थान बना लेता है... इस सच्चाई को...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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News in Hindi
👉 न्यूजर्सी, अमेरिका - *प्रथम मासिक दिवस शिविर का आयोजन*
👉 गांधीनगर, दिल्ली - आचार्य महाप्रज्ञ गीत गायन प्रतियोगिता का आयोजन
👉 विजयवाड़ा - महाप्रज्ञ प्रबोध प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन
👉 जयपुर शहर - चित्त समाधि शिविर का आयोजन
👉 सी स्कीम (जयपुर) - सामूहिक आयंबिल अनुष्ठान का आयोजन
👉 हुबली- मोक्ष की सीढ़ी कार्यक्रम का आयोजन
👉 जयपुर शहर - महाप्रज्ञ प्रबोध प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन
👉 दिल्ली - 20 वीं नैतिक गीत-गायन प्रतियोगिता का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
💢 *निमंत्रण* 💢
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*आइये!*
*अपने आराध्य को*
*श्रद्धा-भक्ति अर्पण*
*करने चलें।*
*अपनी यात्रा सुनिश्चित करें।*
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💢 *217 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
💥 *धम्म जागरणा*💥
*दिनांक 11 सितम्बर 2019, सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
प्रसारक -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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