29.07.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 29.07.2019
Updated: 30.07.2019

Update

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 100* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*संघर्षों के निकष पर*

*आन्तरिक संघर्ष*

*राठों द्वारा हत्या*

कालांतर में मुनि संतोषचंदजी और मुनि तिलोकचंदजी के दलों में मनोमालिन्य ने बढ़ा और वे पृथक्-पृथक् हो गए। मुनि संतोषचंदजी और मुनि शिवरामजी ने चूरू से रीणी (तारानगर) की ओर विहार कर दिया। उन्हीं दिनों रीणी और बूचास के पार्श्ववर्ती क्षेत्र में राठा जाति के मुसलमानों और राजपूतों में झगड़ा चलता था। राठा सरसा तथा राणिया की ओर से आकर उधर धावा बोला करते थे। दोनों संत उस क्षेत्र से गुजरते हुए सारंगसर के पास आए, तब राठों ने समझा कि गांव का ठाकर इस वेष की ओट में बचकर निकल जाना चाहता है। उन्होंने तत्काल उनको घेर कर मार डाला।

*बिखराव*

मुनि तिलोकचंदजी और चंद्रभाणजी भी मिलकर नहीं रह पाए। कुछ ही वर्षों के पश्चात् वे पृथक्-पृथक् हो गए। उन दिनों मुनि तिलोकचंदजी की दृष्टि-शक्ति क्षीण होने लगी थी, अतः मुनि चंद्रभाणजी को उनका विशेष ध्यान रखना पड़ता था। वह स्थिति उन्हें पसंद नहीं थी। उन्होंने उनको संलेखना तथा संथारा करने को कहा। मुनि तिलोकचंदजी को वह कथन अच्छा नहीं लगा। वे बोले— 'मेरा शरीर सबल है, अतः अभी संलेखना, संथारे की बात कैसे सोची जा सकती है?'

रीणी (तारानगर) और चूरू के मध्यवर्ती ग्राम जुहारिया के मार्ग में इसी बात पर मुनि चंद्रभाणजी ने उनसे झगड़ा किया और उन्हें वहीं जंगल में अकेला छोड़कर पृथक् चल दिए।

स्वामीजी ने मुनि तिलोकचंदजी को संघ से पृथक् होते समय चेताया था— 'तुम चंद्रभाण के साथ जा तो रहे हो, पर वह तुम्हें कहीं जंगल में अकेला छोड़ेगा।' उनका वह कथन सत्य सिद्ध हुआ।

इस दल के छिन्न-भिन्न होने के साथ ही आंतरिक संघर्षों की रीढ़ टूट गई।

*स्वामी भीखणजी के जीवन के विविध पहलुओं...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 88* 📖

*तीन अतिशय: तीन प्रयोग*

गतांक से आगे...

हर घटना एक बोधपाठ देती है यदि हम लेना जानें। भक्तामर के इन तीन श्लोकों से हमें जो बोधपाठ मिल रहा है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। हम आदिनाथ का नील, अरुण और श्वेत रंग के साथ ध्यान करें तो अनेक समस्याएं समाहित होंगी। नीला रंग बहुत शामक होता है, शांति देता है। जो व्यक्ति नीले रंग का ध्यान करता है, उसे ट्रैंक्वेलाइजर या शामक औषधि लेने की जरूरत नहीं होती। जब हम भक्तामर के इस श्लोक का उच्चारण करें, तब अशोक वृक्ष के नीचे अवस्थित भगवान् ऋषभ का साक्षात्कार करें। नील आभा के मध्य भगवान् ऋषभ का ध्यान करें। नीलाभ अशोक वृक्ष, भगवान् ऋषभ और नीला रंग— तीनों को मानसिक स्तर पर देखने का प्रयत्न इस श्लोक के उच्चारण के साथ-साथ होना चाहिए—

*उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख-*
*माभाति रूपममलं भवतो नितांतम्।*
*स्पष्टोल्लसत्किरणमस्तमोवितानम्,*
*बिम्बं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति।।*

नीले रंग के साथ ऋषभ के साक्षात्कार का यह प्रयोग मानसिक शांति का प्रयोग है, उत्तेजना और आवेश के शमन का प्रयोग है।

जब हम सिंहासन पर आसीन भगवान् ऋषभ का ध्यान करें तो उसके साथ बालसूर्य का साक्षात्कार करें। यह अरुण रंग का ध्यान, बालसूर्य का ध्यान आंतरिक शक्तियों के प्रस्फुटन का, अंतर्दृष्टि के जागरण का प्रयोग है। अरुण रंग स्फूर्ति, सक्रियता और जागृति का रंग है। इससे स्फूर्ति आती है, जागरूकता बढ़ती है। सिंहासन पर आसीन ऋषभ, अरुण रश्मियों का प्रस्फुटन, उगता हुआ बालसूर्य— ध्यान में इस मानसिक कल्पना के साथ इस श्लोक का उच्चारण करें—

*सिंहासने मणिमयूखशिखाविचित्रे*
*विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम्।*
*बिम्बं वियद्विलसदंशुलतावितानम्।*
*तुंगोदयाद्रिशिरसीव सहस्ररश्मेः।।*

ध्यान के इस प्रयोग से शक्ति का विस्फोट होगा, आंतरिक शक्तियों का जागरण होगा।

तीसरा प्रयोग है श्वेत वर्ण के साथ आदिनाथ ऋषभ का ध्यान। डुलता हुआ चामर, श्वेत चंद्रमा की किरणों, कुंद के फूल अथवा मेरु शिखर से गिरती हुई जल की श्वेत धारा के मध्य आदिनाथ ऋषभ का साक्षात्कार– इस मानसिक कल्पना के साथ प्रस्तुत श्लोक का धीर-गंभीर ध्वनि में उच्चारण करें—

*कुन्दावदातचलचामरचारुशोभं,*
*विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम्।*
*उद्यच्छशांकशुचिनिर्झरवारिधार-*
*मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम्।।*

यह श्वेत रंग का ध्यान आवेश और उत्तेजना के उपशमन का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है।

*स्तुति के साथ-साथ आराध्य के साथ तादात्म्य का बड़ा महत्त्व है...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

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प्रकाशक
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