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प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
*प्रेरणा पाथेय:-आचार्य श्री महाश्रमणजी -24 जुलाई 2019, का वीडियो-प्रस्तुति~अमृतवाणी*
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*तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केंद्र*
*कुम्बलगुडू,बेंगलुरू*
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*पूज्यप्रवर के आज प्रातः*
*भ्रमण के अनुपम दृश्य*
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दिनांक:
24 जुलाई 2019
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 84* 📖
*तीन अतिशय: तीन प्रयोग*
स्तुतिकार अनेक की दृष्टियों से अपने आराध्य की स्तुति करता है। वह अंतर्जगत और बाह्य जगत दोनों को देखता है, दोनों की विशेषताओं का आलेखन करता है। जैन दर्शन में उपादान और निमित्त दोनों का महत्त्वपूर्ण स्थान माना गया है। हम निमित्तों को गौण न करें। बाहरी निमित्तों से शरीर की स्थिति बदल जाती है। एक आदमी कपड़ा पहनता है और बड़े चातुर्य के साथ पहनता है तो अच्छा लगने लग जाता है। कहा गया— वस्त्रवान् सभा को जीत लेता है। जो आदमी ढंग से वस्त्र नहीं पहनता, वह अच्छा नहीं लगता। वस्त्र और पारिपार्श्विक वातावरण से बहुत बदलाव घटित हो जाता है, शरीर की स्थिति भी प्रभावित हो जाती है।
स्तुतिकार पारिपार्श्विक वातावरण के संदर्भ में ऋषभ के व्यक्तित्व का अवगाहन कर रहे हैं। उन्होंने पहले देखा— अशोक वृक्ष के संश्रय में ऋषभ का शरीर कैसा लग रहा है? अब मानतुंग देख रहे हैं, सिंहासन पर आसीन ऋषभ का शरीर कैसा लग रहा है? स्तुतिकार ने बड़ी सूक्ष्मता से आदिनाथ के शरीर को देखा, सिंहासन को देखा। सिंहासन रत्नों से जड़ित है, मणियों से विभूषित है। उन मणियों से चारों ओर रश्मियां प्रस्फुटित हो रही हैं। उन राशियों के मध्य विराजित भगवान् का शरीर सवर्ण जैसा अवदात प्रभाषित हो रहा है। स्वर्णिम शरीर, रत्न जड़ित सिंहासन तथा मणि-निःसृत रश्मियों से ऐसा लग रहा है जैसे अश्रु-किरणों की एक लता बन गई, एक माला बन गई। वह अंशुलता चारों और फैल रही है। सूर्य की प्रभाती किरणें चारों और अपनी लालिमा बिखेर रही हैं। वह सूर्य उदयाचल के शिखर पर है। जब सूर्य उदयाचल के शिखर पर होता है, तब जो लालिमा और अरुणिमा होती है, वह मध्याह्न के सूर्य में नहीं होती। उस समय कि अरुणिमा में सूर्य का जैसा बिंब लग रहा है, वैसे ही सिंहासन पर भगवान् का शरीर लग रहा है। तुलना करें— एक और उदयाचल शिखर, दूसरी ओर भगवान् ऋषभ का सिंहासन— दोनों समान लग रहे हैं। एक और उदयाचल शिखर से चारों ओर सूर्य की रश्मियां फैल रही हैं, दूसरी ओर सिंहासन से मणि-निःसृत रश्मियां चारों और प्रसृत हो रही हैं। जैसे सूर्य की सतरंगी रश्मियां फैल रही हैं, वैसे ही मणियों से विचित्र प्रकार की नाना रंगों से युक्त रश्मिया निकल रही हैं। उन राशियों के बीच जैसे सूर्य का बिंब चमक रहा है, वैसे ही सिंहासन के प्रकाश के मध्य भगवान् का शरीर स्वर्ण के समान चमक रहा है।
अशोक वृक्ष, सिंहासन, चामर— ये प्रतिहार्य अतिशय माने जाते हैं। सिंहासन कैसा होता है? इस संदर्भ में अनेक प्रकार के चिंतन हैं। कुछ लोग मानते हैं— देवता सिंहासन तैयार करते हैं। कुछ लोगों का मत है— भगवान् जिस शिलापट्ट पर विराजते हैं, वह शीलापट्ट प्रभास्वर बन जाता है। आभामंडल से उसमें दीप्ति आ जाती है। स्तुतिकार ने भगवान् ऋषभ के सिंहासन को अतिशय के रूप में देखा है, प्रतिहार्य के रूप में देखा है और यह अस्वाभाविक भी नहीं है। जहां सिद्ध योगी बैठता है, वहां आसपास में उसके आभामंडल की रश्मियां फैल जाती हैं। यह अलग बात है कि हम उन्हें अपनी आंखों से देख पाएं या न देख पाएं।
*आभामंडल व उससे निकलने वाली रश्मियों...* के बारे में समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 96* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*संघर्षों के निकष पर*
*आन्तरिक संघर्ष*
*एक विद्रोह*
स्वामीजी को बाह्य संघर्षों के साथ ही कुछ आंतरिक संघर्षों का भी सामना करना पड़ा। आंतरिक संघर्ष से यहां तात्पर्य है, संघ के व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न किया गया संघर्ष। स्वामीजी का शिष्य-वर्ग बहुत नम्र और अनुशासित था, फिर भी वैयक्तिक स्वार्थ तथा सामयिक स्थितियां किसी-किसी का मति-भ्रम पर ही देती हैं। मानव-स्वभाव की यह दुर्बलता हर युग तथा हर स्थान में अपना कार्य करती रही है।
स्वामीजी ने तेरापंथ संघ की नींव डाली, उस समय उनके सभी सदस्य स्थानकवासियों से आए थे। कुछ वर्ष पश्चात् नई दीक्षाएं भी होने लगीं, फिर भी स्थानकवासियों में से आगमन काफी रूप में चालू रहा। कुछ पूर्ववर्ती संघ में गृहीत संस्कारों के कारण तथा कुछ नवीन संघ के निर्मीयमाण संस्कारों की अपरिपक्वता के कारण समय-समय पर उनमें मतभेद और मनोभेद उत्पन्न होते रहे, परंतु वे प्रायः कभी लंबे संघर्ष का रूप नहीं ले पाए। केवल एक संघर्ष ही ऐसा था, जो लंबा चलने के साथ-साथ स्वामीजी को बहुत चिंतित भी करता रहा। वह था, मुनि तिलोकचंदजी और मुनि चंद्रभाणजी का विद्रोह।
*उपयुक्त उत्तराधिकारी कौन?*
स्वामीजी उक्त दोनों ही संतों को अपने संघ के विद्वान् और बुद्धिमान संत माना करते थे। वे उन्हें बहुमान भी दिया करते थे। विक्रम संवत् 1832 में जब स्वामीजी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में मुनि भारमलजी को नियुक्त किया, तब संघ की सुव्यवस्था के के लिए एक मर्यादा-पत्र लिखा। वह तेरापंथ का प्रथम मर्यादा पत्र था। उसमें उन्होंने उक्त दोनों ही संतों के लिए बहुमान सूचक शब्दों का प्रयोग किया और भावी आचार्य भारमलजी को निर्देश दिया कि वे तिलोकचंदजी, चंद्रभाणजी आदि बहुमान साधुओं के परामर्श से कार्य करें।
उक्त अवसर तक उन दोनों का व्यवहार ठीक रहा, किंतु युवाचार्य की नियुक्ति के साथ ही उनका व्यवहार पलट गया। संघर्ष के बीज तभी से अंकुरित होकर बाहर उभर आए। उन दोनों को वह नियुक्ति अच्छी नहीं लगी। स्वामीजी के सम्मुख अपना विरोध प्रकट करते हुए मुनि चंद्रभाणजी ने एक बार कह भी दिया कि मुनि भारमलजी भोली प्रकृति के हैं। आचार्य-पद का भार वहन करने जैसी योग्यता उनमें नहीं है।
स्वामीजी ने पूछा— 'तुम इस पद के योग्य किसे समझते हो?'
इस प्रश्न का उत्तर देने में उन्हें बड़ी असमंजसता का सामना करना पड़ा। व्यवहार की सीमाओं में रहकर वे अपना नाम प्रस्तुत नहीं कर सकते थे। उन्होंने तब अपने साथी मुनि तिलोकचंदजी का नाम प्रस्तुत करते हुए कहा— 'वे इस पद के सर्वथा योग्य हैं।'
स्वामीजी ने उनकी धारणा को उचित नहीं माना और कहा— 'मैं उन्हें इस पद के उपयुक्त नहीं समझता। मेरी दृष्टि से भारमल ही सर्वथा उपयुक्त व्यक्ति है।'
*मुनि चंद्रभाणजी स्वामी भीखणजी के प्रति द्वेष-भाव रखने लगे...* जानेंगे उस घटना के बारे में... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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Video
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २०३* - *चित्त शुद्धि और शरीर प्रेक्षा ९*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
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