23.07.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 23.07.2019
Updated: 23.07.2019

Update

👉 ब्यावर - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 सिलिगुड़ी - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 जींद- मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 सिकन्दराबाद: तेयुप द्वारा मंत्र दीक्षा कार्यक्रम आयोजित

प्रस्तुति - *🌻 संघ संवाद 🌻*

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 95* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*संघर्षों के निकष पर*

*बाह्य संघर्ष*

*रावण के सामन्त*

अनेक ऐसे व्यक्ति थे, जो स्वामीजी तथा उनके सिद्धांतों को ठीक समझते हुए भी केवल संप्रदाय-मोह के कारण उनका विरोध किया करते थे। मुनि दुर्गादासजी की गणना ऐसे व्यक्तियों में की जा सकती है। वे पहले स्थानकवासी संप्रदाय में थे, तब स्वामीजी के मंतव्यों का बड़ी तीव्रता से विरोध किया करते थे। कालांतर में जब उससे पृथक् हो गए तब स्थानक आदि को उद्दिष्ट होने के कारण अकल्प्य बतलाते हुए उसका प्रचंड विरोध करने लगे।

एक बार स्वामीजी ने उनसे पूछा— 'जब हम स्थानक को सदोष बतलाते थे, तब तुम उसे निर्दोष बतलाया करते थे और हमारे से द्वेष किया करते थे, परंतु अब स्वयं ही उसे अकल्प्य कैसे कहने लगे?'

मुनि दुर्गादासजी ने कहा— 'रावण के सामंत उसे दोषी मानते थे, फिर भी युद्ध के समय राम की सेना पर ही बाण चलाते थे। हमारी भी वही स्थिति थी। पहले पक्षपात के आधार पर कहते थे, परंतु अब स्वतंत्र बुद्धि से जैसा भासित होता है, वैसा कहते हैं।'

*मुंह भी न देखूं*

स्वामीजी के प्रति फैलाए गए विरोध की तीव्रता ने न जाने कितने अज्ञजनों को निष्कारण द्वेष के प्रवाह में बहा दिया था। अनेक तो ऐसे थे, जिन्होंने कभी स्वामीजी को देखा तक नहीं था, फिर भी वह उनके प्रति विद्वेष के भाव रखते थे। अग्रोक्त उदाहरण से यह बहुत स्पष्ट हो जाता है। अणदोजी पटवा सोजत के रहने वाले थे। उनके मन में स्वामीजी के प्रति बड़ा द्वेष था। कहीं भी स्वामीजी के विषय में कोई बात चलती होती तो वे उनके प्रति अपमानजनक कटु शब्दों का प्रयोग किए बिना नहीं रहते।

एक दिन कुछ व्यक्तियों ने उन्हे चिढ़ाने के लिए कहा— 'अणदोजी! चलो तुम्हें भीखणजी से बातचीत करवा दें।'

अणदोजी ने मुंह बनाते हुए कहा— 'मैं तो उस काले-कलूटे भीखणिये का मुंह भी देखना नहीं करता, तुम बातचीत की कह रहे हो।'

कहा नहीं जा सकता उनकी विद्वेष भावना की तीव्रता का उनके शरीर पर कोई प्रभाव पड़ा अथवा पूर्वकृत् पाप कर्मों का ही कोई उदय हुआ, उस कथन के दो दिन पश्चात् ही वह अंधे हो गए।

लोग कब चूकने वाले थे। उन्होंने कहा— 'वचन का पालन करना तो कोई अणदोजी से ही सीखे। इन्होंने अपने वचन का पूरा-पूरा पालन किया है। अब तो यदि भीखणजी स्वयं सामने आकर खड़े हो जाएं, तो भी इनके वचन का भंग कर पाना संभव नहीं है।'

*स्वामी भीखणजी के आंतरिक संघर्षों...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 83* 📖

*पवित्र आभामंडल*

गतांक से आगे...

पूज्य गुरुदेव दिल्ली में विराज रहे थे। एक डॉक्टर ने कहा— पूज्य गुरुदेव की उपासना में प्रतिदिन सैकड़ों बहनें बैठी रहती हैं। गुरुदेव उनसे एक शब्द भी प्रायः नहीं बोल पाते, फिर भी वे घंटों एकटक गुरुदेव को देखती रहती हैं। उनका कभी मन नहीं भरता। गुरुदेव की उपासना का लोभ नहीं टूटता। इसका कारण क्या है? कौन खींचता है उन्हें? मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) कहा— इसका कारण बनता है आभामंडल। पवित्र आभामंडल के सामने व्यक्ति जाता है तो शांति से आप्लावित हो जाता है। अनेक लोग इस भाषा में कह रहे हैं— हम गुरुदेव के पास बहुत सारे प्रश्न लेकर आते हैं, मन में शिकवा-शिकायतें भी होती हैं, आलोचना का भाव भी होता है, किंतु जैसे ही गुरुदेव के सामने जाते हैं, सारे प्रश्न समाप्त हो जाते हैं, शिकवा-शिकायतें धरी रह जाती हैं। क्या कहना है और क्या पूछना है— यह विस्मृत जैसा हो जाता है।

ऐसा क्यों होता है? यह किसका प्रभाव है? यह आभामंडल का प्रभाव है। मानतुंग सूरि ने भगवान् के सौंदर्य की चर्चा नहीं की है। उन्होंने ऋषभ के शरीर के सौंदर्य की चर्चा की है और वह चर्चा भामंडल तथा आभामंडल की पवित्रता के आधार पर की है। जहां आभामंडल और भामंडल की पवित्रता होती है, वहां सब कुछ ठीक हो जाता है।

पौराणिक कहानी है। एक बार इंद्र के मन में कौतुहल जाग गया। कौतुहल सबके मन में जागता है। चाहे देवता हो या मनुष्य कोई भी कौतुहल से मुक्त नहीं है। जब तक मनुष्य वीतराग नहीं होता, कौतुहल का भाव नष्ट नहीं होता। गौतम के मन में भी अनेक बार कौतूहल जाग जाता। वे तत्काल महावीर के पास आते और कहते— भगवन्! मेरे मन में यह संशय और यह कौतुहल उपजा है। आप इसे समाहित करें। इंद्र के मन में भी एक कौतुहल जगा। उसने सोचा— मुझे मनुष्यों की परीक्षा करनी चाहिए। इस चिंतन को क्रियान्वित किया। रूप बदलकर धरती पर आया। महानगर के मुख्य बाजार में सिद्ध योगी के रूप में बैठ गया। यह घोषणा करवा दी— 'इस नगर में अद्भुत सन्यासी आया है। वह किसी भी कुरूप और भद्दी चीज को सुरूप और सुंदर बना सकता है।' लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। किसी ने अपना रूप बदलवाया, किसी ने अपने गहने बदलवाये। काला गोरा बन गया। असुंदर सुंदर बन गया। अनेक दिनों तक यह क्रम चलता रहा। नगर के प्रत्येक नागरिक ने इस दुर्लभ अवसर का लाभ उठाया।

सन्यासी ने पूछा— 'क्या नगर में कोई ऐसा आदमी भी बचा है जिसने अपनी किसी वस्तु में बदलाव न कराया हो?' लोगों ने कहा— 'महात्मन्! नगर में और तो कोई नहीं बचा केवल एक संन्यासी बचा है। वह आपके पास नहीं आया।' सिद्ध योगी स्वयं सन्यासी के पास गया। वह कुछ देर तक सन्यासी को निहारता रहा, फिर बोला— 'बाबा! तुम्हारे पास कुछ नहीं है। शरीर भी जर्जर है और कुरूप है। ऐसा अवसर कब आएगा? मैं कल जा रहा हूं। केवल आज का समय है। कुछ बदलवाना हो तो बोलो। एकदम नौजवान पुरुष बन जाओगे।' सन्यासी मुस्कुराते हुए धीर-गंभीर स्वर में बोला— 'महात्मन्! मुझे कुछ नहीं चाहिए।'

विस्मित सिद्ध योगी ने पूछा— 'बाबा! क्यों नहीं चाहिए?'
सन्यासी बोला— 'महात्मन्! इस दुनिया में मनुष्य-जीवन से बढ़कर कोई सुंदर वस्तु नहीं है और वह मुझे प्राप्त है। आत्मसंतुष्टि से बढ़कर कोई आनंद नहीं है और वह मुझे प्राप्त है। यह दुर्लभ सौंदर्य और आनंद मुझे उपलब्ध है, इसलिए मुझे कुछ नहीं चाहिए।'

सिद्ध योगी यह सुनकर अवाक् रह गया।

जिस व्यक्ति को पवित्र भामंडल और आभामंडल मिल जाता है, उसके लिए कुछ भी पाना शेष नहीं रहता। वह ऐसे सौंदर्य को उपलब्ध हो जाता है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

आचार्य मानतुंग ने शरीर-सौष्ठव का वर्णन कर जिस तथ्य का प्रतिपादन किया है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। जिसे अशोक मिल जाता है, पवित्र आभामंडल और भामंडल मिल जाता है, उससे बढ़कर कोई सौंदर्य नहीं है, कोई आनंद नहीं है। जहां शौक है, वहां समस्या है। जहां अशोक है, वहां कोई समस्या नहीं है। यह अशोक की उपलब्धि पवित्र भामंडल और आभामंडल की सन्निधि में सहज-संभव है।

*आचार्य मानतुंग भगवान् ऋषभ के अन्य अतिशयों का वर्णन किस प्रकार कर रहे हैं...?* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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News in Hindi

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*तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केंद्र*
*कुम्बलगुड़ु,बेंगलुरू*

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*पूज्यप्रवर के आज प्रातः*
*भ्रमण के अनुपम दृश्य*



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दिनांक:
23 जुलाई 2019

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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 केलिफोर्निया - "सुखी परिवार समृद्ध परिवार" सेमिनार की गूंज अंतराष्ट्रीय स्तर पर"
👉 नेपाल: काठमांडू - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 मदुरै - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 सिंधनुर. - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 चिकमंगलुर - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 K.G.F. - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम
👉 कोयम्बतूर- मंत्र दीक्षा एवं शपथग्रहण समारोह
👉 मोमासर - तप अनुमोदन

प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*

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🏛 *जैन विश्व भारती* की नवीन *साहित्य वाहिनी* 🚌 का..
🙏 *पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी* के पावन *सान्निध्य* में..
✨ *लोकार्पण*

🔑 कार्यक्रम में *सौजन्यकर्ता परिवार* की ओर से *श्री प्रकाशचंद लोढ़ा* द्वारा *जैन विश्व भारती को* वाहिनी की *चाबी भेंट* की गई..

*मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
🌐 *जैन विश्व भारती* 🌐
प्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Video

🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २०२* - *चित्त शुद्धि और शरीर प्रेक्षा ८*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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