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👉 चेन्नई: किल्पाक - ज्ञानशाला नए स्थान का उद्घाटन
👉 जयपुर - प्रेक्षावाहिनी कि कार्यशाला आयोजित
👉 साउथ कोलकात्ता - महाप्रज्ञ प्रबोध प्रश्नमंच प्रतियोगिता का आयोजन
👉 मुम्बई - अणुव्रत समिति ने प्राप्त किया वर्ल्ड रिकॉर्ड
👉 उधना, सूरत - चातुर्मासिक मंगल प्रवेश व तेयुप, महिला मंडल शपथ विधि समारोह
प्रस्तुति - *🌻 संघ संवाद 🌻*
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👉 अहमदाबाद: कांकरिया मणिनगर- चातुर्मासिक मंगलप्रवेश व स्वागत कार्यक्रम आयोजन
👉 सूरत - श्रीमती जयंती सिंघी महिला मंडल अध्यक्ष निर्वाचित
👉 मेहकर (महाराष्ट्र) - आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी शुभारंभ समारोह
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद🌻*
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News in Hindi
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 74* 📖
*पुरातन अभिधा: आधुनिक संदर्भ*
गतांक से आगे...
एक पौराणिक देवता है धाता— ब्रह्मा। यह सृष्टि का कर्ता माना जाता है। शिव सृष्टि का संहर्ता है और ब्रह्मा है सृष्टि का कर्ता। मानतुंग ने कहा— आप ब्रह्मा हैं, धाता हैं। आपने मोक्ष मार्ग का विधान किया है। ज्ञान, दर्शन और चरित्र मोक्ष का मार्ग है। इस मार्ग का विधान कर आपने सृजनात्मक शक्ति पैदा की है। मैं उस धाता को धाता नहीं मानता, जिसके साथ न जाने कितनी किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। वह नाभि से पैदा हुआ है अथवा कमल से पैदा हुआ है? जलाशय से पैदा हुआ है? जड़ता से पैदा हुआ है? जाने कितनी बातें ब्रह्मा से जुड़ी हुई हैं। मेरी दृष्टि में धाता वही हो सकता है, जो मोक्ष मार्ग का विधान करता है। आपने वह विधान किया है, इसलिए आप धाता हैं।
मानतुंग ने ऋषभ के लिए एक और संबोधन का प्रयोग किया— आप पुरुषोत्तम हैं। विष्णु के लिए पुरुषोत्तम शब्द का प्रयोग होता है। जिसमें बुद्धि का प्रकाश है, कैवल्य का प्रकाश है, जो निरंतर सुख और कल्याण करने वाला है, जो मोक्षमार्ग का, शाश्वत सुख के मार्ग का विधान करने वाला है, वह वास्तव में पुरुषोत्तम है। जो लीला, युद्ध आदि प्रवृत्तियों में लीन रहता है, वह मेरी दृष्टि में पुरुषोत्तम नहीं है। इसीलिए मानतुंग कहते हैं— आप में कैवल्य का प्रकाश है, आप कल्याण शरीर हैं, मोक्षमार्ग के विधाता हैं, इसलिए आप ही पुरुषोत्तम है।
मानतुंग ने अपनी प्रखर मेधा से धार्मिक संदर्भ में प्रचलित पौराणिक नामों को स्वीकार कर एक नया आयाम दिया। उस आयाम के द्वारा प्रचलित शब्दकोष को नवीन अर्थ देकर जिस सत्य और तथ्य को अभिव्यक्ति दी है, वह सचमुच स्पृहणीय है।
स्तुति-क्रम को आगे बढ़ाते हुए मानतुंग ने कहा— भगवन्! आप कुछ हैं, शंकर हैं, धाता और पुरुषोत्तम हैं, इसलिए आपको नमस्कार करने की इच्छा हो रही है। व्यक्ति हर किसी को नमस्कार नहीं करता। व्यक्ति तब नमस्कार करता है, जब वह अपने से अधिक यशस्वी और तेजस्वी पुरुष को देखता है। हर किसी को नमस्कार करने का कोई अर्थ नहीं है। नमस्कार वहां करो, प्रार्थना वहां करो, जहां कुछ उपलब्धि की संभावना है। हर किसी के सामने दीनता मत दिखाओ, याचना मत करो। एक कवि ने चातक को संबोधित कर कहा— चातक! मैं जानता हूं कि तुम बड़े स्वाभिमानी हो, पर तुम्हारे में एक कमी है और वह यह है कि आकाश में बादल आते ही बोलने लग जाते हो। जैसे ही आकाश में बादल छाते हैं, तुम दीनस्वर में प्रलाप करने लग जाते हो। तुम यह नहीं जानते कि सब बादल समान नहीं होते। कुछ बादल ऐसे होते हैं, जो वर्षा करते हैं, पृथ्वी को आर्द्र बना देते हैं और कुछ बादल ऐसे होते हैं, जो वृथा गर्जन करते हैं, पृथ्वी पर एक बूंद भी नहीं बरसाते। इसलिए तुम उसी बादल को देखकर अपनी याचना प्रस्तुत करो, जो बरसने वाले हैं। उन बादलों को देखकर दीनता का प्रदर्शन मत किया करो, जो केवल गरजते हैं, बरसते नहीं।
*रे रे चातक! सावधानमनसा मित्रक्षणं श्रूयता-*
*मंभोदा बहवो वसंति गगने सर्वेपि नैतादृशाः।*
*केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयंति वसुधां गर्जन्ति केचन वृथा,*
*यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतः मा ब्रूहि दीनं वचः।।*
हर किसी को नमस्कार नहीं किया जाता, हर किसी के सामने सिर नहीं झुकता। जहां विशिष्टता होती है, महानता होती है, वहीं सिर झुकता है।
*आचार्य मानतुंग भगवान् ऋषभ को नमस्कार करने के पीछे क्या कारण बतलाते हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 74* 📖
*पुरातन अभिधा: आधुनिक संदर्भ*
गतांक से आगे...
एक पौराणिक देवता है धाता— ब्रह्मा। यह सृष्टि का कर्ता माना जाता है। शिव सृष्टि का संहर्ता है और ब्रह्मा है सृष्टि का कर्ता। मानतुंग ने कहा— आप ब्रह्मा हैं, धाता हैं। आपने मोक्ष मार्ग का विधान किया है। ज्ञान, दर्शन और चरित्र मोक्ष का मार्ग है। इस मार्ग का विधान कर आपने सृजनात्मक शक्ति पैदा की है। मैं उस धाता को धाता नहीं मानता, जिसके साथ न जाने कितनी किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। वह नाभि से पैदा हुआ है अथवा कमल से पैदा हुआ है? जलाशय से पैदा हुआ है? जड़ता से पैदा हुआ है? जाने कितनी बातें ब्रह्मा से जुड़ी हुई हैं। मेरी दृष्टि में धाता वही हो सकता है, जो मोक्ष मार्ग का विधान करता है। आपने वह विधान किया है, इसलिए आप धाता हैं।
मानतुंग ने ऋषभ के लिए एक और संबोधन का प्रयोग किया— आप पुरुषोत्तम हैं। विष्णु के लिए पुरुषोत्तम शब्द का प्रयोग होता है। जिसमें बुद्धि का प्रकाश है, कैवल्य का प्रकाश है, जो निरंतर सुख और कल्याण करने वाला है, जो मोक्षमार्ग का, शाश्वत सुख के मार्ग का विधान करने वाला है, वह वास्तव में पुरुषोत्तम है। जो लीला, युद्ध आदि प्रवृत्तियों में लीन रहता है, वह मेरी दृष्टि में पुरुषोत्तम नहीं है। इसीलिए मानतुंग कहते हैं— आप में कैवल्य का प्रकाश है, आप कल्याण शरीर हैं, मोक्षमार्ग के विधाता हैं, इसलिए आप ही पुरुषोत्तम है।
मानतुंग ने अपनी प्रखर मेधा से धार्मिक संदर्भ में प्रचलित पौराणिक नामों को स्वीकार कर एक नया आयाम दिया। उस आयाम के द्वारा प्रचलित शब्दकोष को नवीन अर्थ देकर जिस सत्य और तथ्य को अभिव्यक्ति दी है, वह सचमुच स्पृहणीय है।
स्तुति-क्रम को आगे बढ़ाते हुए मानतुंग ने कहा— भगवन्! आप कुछ हैं, शंकर हैं, धाता और पुरुषोत्तम हैं, इसलिए आपको नमस्कार करने की इच्छा हो रही है। व्यक्ति हर किसी को नमस्कार नहीं करता। व्यक्ति तब नमस्कार करता है, जब वह अपने से अधिक यशस्वी और तेजस्वी पुरुष को देखता है। हर किसी को नमस्कार करने का कोई अर्थ नहीं है। नमस्कार वहां करो, प्रार्थना वहां करो, जहां कुछ उपलब्धि की संभावना है। हर किसी के सामने दीनता मत दिखाओ, याचना मत करो। एक कवि ने चातक को संबोधित कर कहा— चातक! मैं जानता हूं कि तुम बड़े स्वाभिमानी हो, पर तुम्हारे में एक कमी है और वह यह है कि आकाश में बादल आते ही बोलने लग जाते हो। जैसे ही आकाश में बादल छाते हैं, तुम दीनस्वर में प्रलाप करने लग जाते हो। तुम यह नहीं जानते कि सब बादल समान नहीं होते। कुछ बादल ऐसे होते हैं, जो वर्षा करते हैं, पृथ्वी को आर्द्र बना देते हैं और कुछ बादल ऐसे होते हैं, जो वृथा गर्जन करते हैं, पृथ्वी पर एक बूंद भी नहीं बरसाते। इसलिए तुम उसी बादल को देखकर अपनी याचना प्रस्तुत करो, जो बरसने वाले हैं। उन बादलों को देखकर दीनता का प्रदर्शन मत किया करो, जो केवल गरजते हैं, बरसते नहीं।
*रे रे चातक! सावधानमनसा मित्रक्षणं श्रूयता-*
*मंभोदा बहवो वसंति गगने सर्वेपि नैतादृशाः।*
*केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयंति वसुधां गर्जन्ति केचन वृथा,*
*यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतः मा ब्रूहि दीनं वचः।।*
हर किसी को नमस्कार नहीं किया जाता, हर किसी के सामने सिर नहीं झुकता। जहां विशिष्टता होती है, महानता होती है, वहीं सिर झुकता है।
*आचार्य मानतुंग भगवान् ऋषभ को नमस्कार करने के पीछे क्या कारण बतलाते हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 86* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन-संग्राम*
*घी सहित घाट*
गतांक से आगे...
स्वामी जी के परम भक्त श्रावक शोभजी ने इस घटना पर एक व्यंगपूर्ण दोहा कह सुनाया। वह इस प्रकार है—
*बादर साह री डीकरी,*
*कीकी थारो नाम।*
*घाट सहित घी ले लियो,*
*ठाली कर दियो ठाम।।*
इस घटना के कुछ दिन पश्चात् राखी के त्योहार पर अचानक ही कीकी का लड़का गुजर गया। पुत्र का शोक मध्यम भी नहीं पड़ा था कि उसका पति भी गुजर गया। उन दोनों मौतों से कीकी के मन पर बड़ा आघात लगा। जन-क्षय के साथ ही उसे धन-क्षय की स्थिति का भी सामना करना पड़ा। मानसिक क्लेशों के अथाह समुद्र में भटकती हुई वह बिल्कुल अकेली रह गई। इन दुःखद घटनाओं के पश्चात् कीकी को साध्वियों के साथ किए गए अपने व्यवहार पर बहुत पश्चात्ताप हुआ। वह अपनी उस विपत्ति का मूल कारण उसी दुर्व्यवहार को मानने लगी।
तेरापंथी साधु-साध्वियों में कीकी का नाम और उसका द्वेष प्रसिद्ध हो गया, अतः वर्षों तक उसके यहां कोई गोचरी के लिए नहीं गया। अनेक वर्षों के पश्चात् कोई अपरिचित साधु उसके घर में गोचरी के लिए गया। कीकी ने बड़ी भावना से आहार दिया। उस अज्ञात घर में इतनी भावना और भक्ति देखकर उस साधु ने जब परिचय की जिज्ञासा की तो कीकी की आंखें भर आईं। पश्चात्ताप के दावानल में दग्ध हुई वाणी में उसने कहा— 'क्या आप मुझे नहीं जानते? मैं तो वही पापिनी कीकी हूं, जिसने साध्वियों के पात्र से 'घाट' वापस ले ली थी। कोई तो इस भव के कर्म अगले भव में भोगता है, परंतु मैंने तो अपने किए का फल यही हाथों-हाथ पा लिया।'
उसका नाम सुनते ही वे साधु एक बार के लिए सकपका गए। उन्हें लगा कि अज्ञानवश उस घर में आकर उन्होंने गलती की है। वापस जाने के लिए वे तत्काल मुड़े ही थे कि कीकी ने कहा— 'महाराज! उस दिन के पश्चात् आप लोगों ने तो आज ही मेरे घर में पदार्पण किया है। आप आते रहिएगा, जिससे मेरा वह पाप कुछ तो धुलेगा।'
कीकी में परिवर्तन आया और उसमें गोचरी के लिए भावना भी आई, पर यह सब अनेक वर्षों के बाद की बात है। संभवतः स्वामीजी के देहावसान के भी बाद की, परंतु उस घटना के पुर्वांश से यह स्पष्ट पता लग जाता है कि स्वामीजी के समय में आहार की उपलब्धि में कितनी बाधाएं रहा करती थीं।
*आहार की उपलब्धि में बाधाओं के बीच मुनि हेमराजजी की व्यवहारकुशलता* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 86* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन-संग्राम*
*घी सहित घाट*
गतांक से आगे...
स्वामी जी के परम भक्त श्रावक शोभजी ने इस घटना पर एक व्यंगपूर्ण दोहा कह सुनाया। वह इस प्रकार है—
*बादर साह री डीकरी,*
*कीकी थारो नाम।*
*घाट सहित घी ले लियो,*
*ठाली कर दियो ठाम।।*
इस घटना के कुछ दिन पश्चात् राखी के त्योहार पर अचानक ही कीकी का लड़का गुजर गया। पुत्र का शोक मध्यम भी नहीं पड़ा था कि उसका पति भी गुजर गया। उन दोनों मौतों से कीकी के मन पर बड़ा आघात लगा। जन-क्षय के साथ ही उसे धन-क्षय की स्थिति का भी सामना करना पड़ा। मानसिक क्लेशों के अथाह समुद्र में भटकती हुई वह बिल्कुल अकेली रह गई। इन दुःखद घटनाओं के पश्चात् कीकी को साध्वियों के साथ किए गए अपने व्यवहार पर बहुत पश्चात्ताप हुआ। वह अपनी उस विपत्ति का मूल कारण उसी दुर्व्यवहार को मानने लगी।
तेरापंथी साधु-साध्वियों में कीकी का नाम और उसका द्वेष प्रसिद्ध हो गया, अतः वर्षों तक उसके यहां कोई गोचरी के लिए नहीं गया। अनेक वर्षों के पश्चात् कोई अपरिचित साधु उसके घर में गोचरी के लिए गया। कीकी ने बड़ी भावना से आहार दिया। उस अज्ञात घर में इतनी भावना और भक्ति देखकर उस साधु ने जब परिचय की जिज्ञासा की तो कीकी की आंखें भर आईं। पश्चात्ताप के दावानल में दग्ध हुई वाणी में उसने कहा— 'क्या आप मुझे नहीं जानते? मैं तो वही पापिनी कीकी हूं, जिसने साध्वियों के पात्र से 'घाट' वापस ले ली थी। कोई तो इस भव के कर्म अगले भव में भोगता है, परंतु मैंने तो अपने किए का फल यही हाथों-हाथ पा लिया।'
उसका नाम सुनते ही वे साधु एक बार के लिए सकपका गए। उन्हें लगा कि अज्ञानवश उस घर में आकर उन्होंने गलती की है। वापस जाने के लिए वे तत्काल मुड़े ही थे कि कीकी ने कहा— 'महाराज! उस दिन के पश्चात् आप लोगों ने तो आज ही मेरे घर में पदार्पण किया है। आप आते रहिएगा, जिससे मेरा वह पाप कुछ तो धुलेगा।'
कीकी में परिवर्तन आया और उसमें गोचरी के लिए भावना भी आई, पर यह सब अनेक वर्षों के बाद की बात है। संभवतः स्वामीजी के देहावसान के भी बाद की, परंतु उस घटना के पुर्वांश से यह स्पष्ट पता लग जाता है कि स्वामीजी के समय में आहार की उपलब्धि में कितनी बाधाएं रहा करती थीं।
*आहार की उपलब्धि में बाधाओं के बीच मुनि हेमराजजी की व्यवहारकुशलता* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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*जैन विश्व भारती के उपाध्यक्ष* एवं *संघ संवाद* ग्रुप के *बोर्ड सदस्य श्री अरुण जी संचेती* के *51वें जन्मदिवस* पर *संघ संवाद परिवार* आपको *हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं* सम्प्रेषित करता है।
🌻 *संघ संवाद परिवार* 🌻
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Source: © Facebook
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १८७* - *चित्त शुद्धि और श्वास प्रेक्षा १०*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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*Preksha Foundation*
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