04.07.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 04.07.2019
Updated: 05.07.2019

Update

👉 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के शुभारम्भ समारोह के विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित कार्यक्रम......*

🔹 अहमदाबाद
🔹 पटना
🔹 टिटलागढ़
🔹 लातूर
🔹 हैदराबाद
🔹 राउरकेला
👉 हुबली - अणुव्रत के बढ़ते चरण
👉 हैदराबाद - श्री उत्सव मेला प्रदर्शनी का आयोजन
👉 खारुपेटिया - तेयुप का शपथ ग्रहण समारोह
👉 विजयनगर (बेंगलुरु) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते कदम
👉 जयपुर - जैन संस्कार विधि के बढते चरण

प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*

👉 लिम्बायत, सूरत - रेखा नोलखा पुनः महिला मंडल अध्यक्ष मनोनीत
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*

Update

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 71* 📖

*पुरातन अभिधा: आधुनिक संदर्भ*

भगवान् आदिनाथ की स्तुति भारत के प्रत्येक धर्म ने की है। वे केवल जैन परंपरा के द्वारा ही मान्य नहीं है, किंतु वैदिक एवं अन्य श्रमण संप्रदायों के द्वारा भी समादृत रहे हैं। आचार्य मानतुंग ने इस समग्र संदर्भ को ध्यान में रखकर ऋषभ को अनेक नामों से संबोधित किया है। जो नाम प्रसिद्ध प्रवर्तकों के हैं, उनमें भगवान् ऋषभ का साक्षात् किया। उन तत्त्वों में भगवान् ऋषभ का प्रतिबिंब देखा। इसलिए देखा कि वे बहुत सारी बातों में आदि रहे। जैन परंपरा में ऋषभ को आदिकाश्यप माना जाता है। अंतिम काश्यप हैं महावीर। ऋषभ ने आत्मा को केंद्र में रखकर जिस धर्म का प्रवर्तन किया, उस धर्म का अनुसरण उत्तरवर्ती लोगों ने किया। इसीलिए कहा गया— *अणुधम्मं मुणिणा पवेइयं*— मुनि ने अनुधर्म प्रवेदित किया। जो धर्म ऋषभ ने बताया, वही धर्म महावीर ने प्रतिपादित किया। इसलिए ऋषभ की स्तुति सबके साथ की जा सकती है अथवा सब नामों में ऋषभ की स्तुति की जा सकती है। इस चिंतन के साथ स्तुति-क्रम को आगे बढ़ाते हुए आचार्य मानतुंग ने ऋषभ को अनेक नामों से संबोधित किया है—

*बुद्धस्त्वमेव विभुधार्चितबुद्धिबोधात्,*
*त्वं शंकरोसि भुवनत्रयशंकरत्वात्।*
*धातासि धीर! शिवमार्गविधेर्विधानात्,*
*व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोऽसि॥*

मानतुंग ने कहा— आप बुद्ध हैं। बुद्ध शब्द व्यक्तिवादी नहीं होता। वह सामान्य विशेषण होता है। जो तत्त्व को जानता है, वह बुद्ध है। यह सामान्य विशेषण एक नाम बन गया। एक समय था— महाप्रज्ञ मेरा (ग्रंथकार आचार्य श्री महाप्रज्ञ) विशेषण था और एक समय आया— महाप्रज्ञ मेरा नाम बन गया। गौतम बुद्ध का मूल नाम है शाक्यपुत्र। किंतु ज्ञान-गरिमा के द्वारा उनका बुद्ध नाम विश्रुत हो गया। बुद्ध की स्तुति में अश्वघोष ने एक सुंदर महाकाव्य लिखा। उसमें अश्वघोष ने लिखा— बुद्ध का नाम था शाक्यपुत्र और प्रचलित हो गया बुद्ध शब्द। वे बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बुद्ध कहलाए। आचार्य मानतुंग ने बुद्ध के नाम का जिस रूप में उपयोग किया है, वह उनकी विदग्धता का सूचक है। नया शब्द खोजना एक बात है, किंतु प्रचलित शब्द में नया अर्थ भर देना एक विलक्षणता है। भगवान् महावीर ने भी ऐसा किया है। उत्तराध्ययन सूत्र का बारहवां अध्याय पढ़ने वाले जानते हैं, महावीर ने तीर्थयात्रा, तीर्थस्थल जैसे प्रचलित शब्दों को किस प्रकार नए अर्थ दिए हैं। तीर्थ करो, यज्ञ करो, स्नान करो— ये शब्द ले लिए किंतु इनके अर्थ बदल दिए। शब्द से कोई विरोध नहीं है। विरोध होता है अर्थ से।

यह महत्त्वपूर्ण है कि किस शब्द का किस अर्थ में प्रयोग किया जा रहा है? आधुनिक दार्शनिकों का मत है— किसी भी दर्शन का प्रतिपादन करो तो पहले उस दर्शन द्वारा स्वीकृत संज्ञाओं का स्पष्टीकरण करो। यह ज्ञान करो— प्रस्तुत शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया जा रहा है? एक ही शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में किया जाता है। एक दर्शन में वह शब्द एक अर्थ का वाचक है और दूसरे दर्शन में दूसरे अर्थ का। आश्रव शब्द जैन दर्शन में भी है, बौद्ध दर्शन में भी है। संवर शब्द भी जैन और बौद्ध दोनों दर्शनों में हैं। क्या ये शब्द दोनों दर्शनों में एक अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं? कर्म शब्द सब दर्शनों में प्रचलित है। क्या सब दर्शनों में कर्म शब्द एक ही अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? जहां हम शब्द की दर्शन के आधार पर मीमांसा करेंगे, वहां उसका अर्थ बदल जाएगा। एक ही शब्द के अनेक अर्थ प्रस्तुत हो जाएंगे। इसलिए यह जानना जरूरी है कि किस शब्द का किस अर्थ में प्रयोग किया जा रहा है?

*किस शब्द का किस अर्थ में प्रयोग किया जा रहा है...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 83* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन-संग्राम*

*वस्त्र की समस्या*

शुरुआती वर्षों में स्वामीजी को वस्त्र बहुत कठिनता से मिल पाता था। जो मिलता था, वह भी अत्यंत साधारण तथा स्वल्प मात्रा में होता था। एक बार अपने संस्मरण सुनाते समय स्वयं स्वामीजी ने उस स्थिति का वर्णन करते हुए मुनि हेमराजजी से कहा— 'कभी रुपए मूल्य की वासती (रेजा) मिल जाती, तब भारमल कहता कि आप इसकी पछेवड़ी बना लीजिए। मैं कहता कि पछेवड़ी नहीं, चौलपट्टे बनाओ। एक तुम्हारे काम आ जाएगा और एक मेरे।'

वस्त्राभाव के ऐसे दिनों में भी उनके मुख पर कभी मालिन्य की छाया नहीं आई। एकमात्र संयम की आराधना के लिए जिसने सब कुछ का त्याग कर दिया हो, उसे वह वस्त्राभाव अपने गंतव्य मार्ग से कैसे विचलित कर सकता था?

*आहार की समस्या*

आहार-प्राप्ति के लिए स्वामीजी को अनेक वर्षों तक असाधारण कष्ट उठाने पड़े। लगभग पांच वर्षों तक तो रूखी-सूखी रोटियां भी पूरी नहीं मिल पाईं, घृत आदि स्निग्ध द्रव्यों की बात ही कहां थी। स्वामीजी की उक्त स्थिति का दिग्दर्शन कराते हुए जयाचार्य ने कहा है—

*पंच वर्ष पहिछाण,*
*अन्न पिण पूरो ना मिल्यो।*
*बहुल पणै वच जाण,*
*घी-चोपड़ तो ज्यांहि रह्यो।।*

स्वामीजी को एक बार किसी ने पूछ लिया— 'क्यों भीखणजी! गोचरी में घृत आदि भी कभी आता है या नहीं?'

स्वामीजी ने अपने अभाव का आनंद लेते हुए फरमाया— 'गोचरी में आने न आने की बात छोड़ो, पाली के बाजार में बिकता तो प्रायः प्रतिदिन देखते ही हैं।'

पूछने वाले ने संभवतः उन्हें चिढ़ाने के लिए व्यंग में ही पूछा था, परंतु स्वामीजी ने अपने उत्तर के द्वारा मानो उस व्यंग की आधारभूमि को ही खिसका दिया।

*स्वामी भीखणजी को कई बार अज्ञान जनता के अंध प्रकोप का भाजन भी होना पड़ा...* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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News in Hindi

🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ..*
🛣 *प्रातःविहार करके 'टी दासरहल्ली -बेंगलुरु' (Karnataka) पधारे..*

⛩ *गुरुदेव का आज दिन का प्रवास: तेरापंथ सभा भवन - टी दासरहल्ली (बेंगलुरु)*
*लोकेशन:*
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💦 *प्रवचन स्थल: सेंट मैरी हाई स्कूल (टी दासरहल्ली -बेंगलुरु)*
*लोकेशन:*
https://maps.app.goo.gl/B2gtng8D4J81oaxo7

🙏 *साध्वीप्रमुखा श्री जी विहार करते हुए..*
👉 *आज के विहार के मनोरम दृश्य..*

दिनांक: 04/07/2019
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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#मनो #अनुशासन*: #श्रंखला २*

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आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १८३* - *चित्त शुद्धि और श्वास प्रेक्षा ६*

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