03.07.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 03.07.2019
Updated: 25.07.2019

Update

*चेन्नई: संथारा संवाद*
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चेन्नई प्रवासी - चाड़वास निवासी *श्री प्रदीप कुमार जी बच्छावत* (विनय जी, विवेक जी बच्छावत के पिताजी) का *"चोविहार संथारा"* आज सांय 07.31 पर सीज गया है।

*बैंकुठी यात्रा प्रातः 11 बजे उनके निवास स्थान-*
वसंत अपार्टमेंट
260, ल्योड्स रोड, गोपालपुरम से चूलै मुक्ति धाम जायेगी।

प्रेषक: 🙏 *संघ संवाद* 🙏

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👉 *अणुव्रत महासमिति द्वारा दो अहिंसा प्रशिक्षण केंद्रों का उद्घाटन*

: प्रस्तुति:
*अणुव्रत सोशल मीडिया*

: प्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 दिल्ली ~ *विधानसभा में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष का द्विदिवसीय ऐतिहासिक आयोजन*
👉 गदग - आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष कार्यक्रम
👉 प्रीतमपुरा, दिल्ली - आचार्य श्री महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी शुभारम्भ समारोह

प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*

*पूज्यप्रवर के 2022 के छापर चतुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष की घोषणा:*
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✨ *पूज्य गुरुदेव के* सन् *2022 के 'छापर' चतुर्मास* के लिए..
👉 *पूज्यप्रवर* ने छापर चतुर्मास व्यवस्था समिति के *अध्यक्षीय दायित्व* के लिए *श्री माणकचन्द जी बुच्चा* को *मंगलपाठ सुनाया*

दिनांक 03/07/2019
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🌻 *संघ संवाद* 🌻

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*पूज्यप्रवर के 2022 के छापर चतुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष की घोषणा:*
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✨ *पूज्य गुरुदेव के* विक्रम संवत *2022 के 'छापर' चतुर्मास* के लिए..
👉 *पूज्यप्रवर* ने छापर चतुर्मास व्यवस्था समिति के *अध्यक्षीय दायित्व* के लिए *श्री माणकचन्द जी बुच्चा* को *मंगलपाठ सुनाया*

दिनांक 03/07/2019
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👉 *बैंगलोर: जैन भगवती दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन..*

📍 *सान्निध्य - आचार्य श्री महाश्रमण*

📍 *पूज्यप्रवर द्वारा नवदीक्षित साधु साध्वियों के दीक्षा पश्चात नाम*

दिनांक -03-07-2019

प्रस्तुति:-
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*पूज्य गुरुदेव द्वारा नवीन घोषणाएं:*
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✨* बेंगलुरु* में दिनांक *20 अक्टूबर 2019* को *"दीक्षा समारोह"* करने की *घोषणा..*
👉 *20 अक्टूबर को* गुरुदेव *मुमुक्षु आंचल बरडिया को "साध्वी दीक्षा"* प्रदान करेंगे..

✨ *हुबली प्रवास* के दौरान *आचार्य महाप्रज्ञ शताब्दी वर्ष के अंतर्गत अभ्यर्थना कार्यक्रम होगा..*

दिनांक 03/07/2019
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👉 *बैंगलोर: जैन भगवती दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन..*

📍 *सान्निध्य - आचार्य श्री महाश्रमण*

📍 *नवीन घोषणा-*
*समणी उन्नत प्रज्ञा जी को श्रेणी आरोहण कर साध्वी दीक्षा प्रदान आज के कार्यक्रम में*

दिनांक -03-07-2019

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 70* 📖

*गुणोत्कीर्तन*

गतांक से आगे...

आचार्य मानतुंग की माला का बारहवां पुष्प है— आप ज्ञानस्वरूप हैं। आप का स्वरूप ज्ञानमय है। औदयिक और क्षायोपशमिक भाव से होने वाला आप का स्वरूप समाप्त हो गया। अब केवल क्षायिक भाव का स्वरूप रहा है। अज्ञान का सर्वथा क्षय हो गया, इसलिए आप ज्ञानस्वरूप हैं।

तेरहवां पुष्प है— अमलता। आप अमल हैं। जो ज्ञानस्वरूप है, जिसके रज और मल क्षीण हो गए, वह अमल है। आपके रज और मल निःशेष हो गए, इसलिए आप अमल हैं।

इस प्रकार ऋषभ के विराट व्यक्तित्व के अनेक गुणों का चयन कर मानतुंग ने तेरह पुष्पों की एक मनोरम और नयनाभिराम माला गूंथी। उस माला का सूत्रधार है यह काव्य—

*त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं,*
*ब्रम्हाणमीश्वरमनंतमनंगकेतुम्।*
*योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं,*
*ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदंति सन्तः।।*

प्रस्तुत श्लोक में आचार्य मानतुंग ने गागर में सागर भर दिया। एक-एक शब्द की विशद व्याख्या करें तो इस श्लोक के आधार पर अनेक ग्रंथ निर्मित हो सकते हैं। हमें भी गागर में सागर ही समाना है। यदि सागर जैसे विस्तार में जाएं तो पार ही नहीं आएगा। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि इस श्लोक का प्रत्येक शब्द एक-एक विशेषता की व्याख्या कर रहा है। ऋषभ ने क्या किया? वे कैसे थे? उनका अतिशायी कार्य क्या रहा? इन सबके लिए एक-एक प्रतीकात्मक शब्द का प्रयोग कर आचार्य ने ऋषभ के विराट् व्यक्तित्व की स्तुति की है। इसमें भक्ति, ज्ञान और चरित्र— तीनों का समन्वय है। जो अर्थ और तात्पर्य की गहराई में जाकर इस काव्य का अनुशीलन करता है, वह सचमुच समापत्ति कर लेता है, तादात्म्य की अनुभूति कर लेता है।

*आचार्य मानतुंग ने भगवान् ऋषभ को अनेक नामों से संबोधित किया है...* उन नामों के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 82* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन-संग्राम*

*नाथद्वारा से निष्कासन*

गतांक से आगे...

नाथद्वारा में उस समय दाऊजी तलेसरा उत्तरदाई श्रावत थे। वे स्वामीजी के परमभक्त तो थे ही, संपन्न होने के कारण नगर में भी सम्माननीय स्थान रखते थे। उन्होंने स्थानीय श्रावकों से विचार-विमर्श किया। सभी का कहना था कि स्वामीजी का निष्कासन हम श्रावकों का घोर अपमान है। स्वामीजी तो संत होने के कारण मानापमान में सम रहकर सहज रूप से अन्यत्र पधार गए, परंतु हम तो गृहस्थ हैं। सम्मानपूर्वक जीना चाहते हैं। यदि एक बार चुपचाप अपमान सह लिया तो बार-बार अपमानित होने रहने की संभावना हो जाएगी। इसलिए या तो इस आदेश को बदलवाना चाहिए, अन्यथा हमें यह नगर छोड़ देना चाहिए। आदेश बदलवाने के लिए गोसाईंजी पर दबाव डालने की पद्धति भी यही निश्चित की गई कि नगर-त्याग की तैयारी कर ली जाए। महाजनों का गांव से चले जाना उस समय ग्रामाधिपतियों की आय को प्रभावित करता था, अतः यथासंभव वे उनको अन्यत्र चले जाने से रोका करते थे।

दाऊजी आदि कई परिवारों ने नगर-त्याग का निर्णय किया। गृह-सामान से लदी बैलगाड़ियां उनके परिवारों को लेकर कोठारिया की ओर विदा हो गईं। दाऊजी आदि श्रावकों ने गोसाईंजी के पास जाकर घरों तथा दुकानों की चाबियां उनके सम्मुख रख दीं। गोसाईंजी ने ऐसा करने का कारण पूछा तो दाऊजी ने कहा— 'आपने हमारे धर्मगुरु स्वामी भीखणजी को निकाल दिया, तब हमारा यहां रहना संभव नहीं रह गया है।'

गोसाईंजी ने कहा— 'उन्हें निकालना तो प्रजा-हित के लिए आवश्यक था, क्योंकि वे वर्षा नहीं होने दे रहे थे। उनके विषय में अन्य भी अनेक शिकायतें हैं, वे दया और दान के विरोधी हैं।'

दाऊजी ने कहा— 'ये विचार लोगों को भ्रांत करने के लिए विरोधियों द्वारा प्रचारित हैं। आप तो मालिक हैं। आप यदि दूसरे पक्ष की बात सुनकर सत्यासत्य के आधार पर आदेश देते तो शायद इस तीर्थभूमि से संतों को नहीं निकाला जाता। जो संत एक चींटी को भी कष्ट नहीं देते, वे कैसे दया और दान के विरोधी हो सकते हैं तथा वर्षा को रोककर कैसे लाखों प्राणियों को पीड़ित कर सकते हैं?' प्रसंगवश तलेसराजी ने स्वामीजी की मान्यता और चर्या से भी उन्हें अवगत किया।

गोसाईंजी ने सारी स्थिति समझी, तब उन्हें अपने आदेश पर बहुत अनुताप हुआ। उन्होंने दाऊजी आदि सभी श्रावकों से वहीं बसे रहने का आग्रह किया और अपने हरकारे को भेजकर बनास नदी के तट पर पहुंची हुई बैलगाड़ियों को ससामान वापस बुला लिया। एक हरकारे को कोठारिया भेजकर स्वामीजी को भी वापस पधारने की प्रार्थना करवाई।

स्वामीजी ने कहा— 'अब चातुर्मास-काल में कौन बार-बार इधर-उधर चक्कर मारता रहे?' वे आश्विन कृष्णा 10 तथा आश्विन शुक्ला 14 के बीच किसी दिन कोठारिया पधारे थे। चातुर्मास का अवशिष्ट काल उन्होंने वहीं व्यतीत किया।

*स्वामी भीखणजी के सामने मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की भी समस्याएं बहुत आईं... उनमें से कुछ समस्याओं के बारे में* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 *बैंगलोर: जैन भगवती दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन..*

📍 *सान्निध्य - आचार्य श्री महाश्रमण*

📍 *आज के दीक्षा समारोह के विशेष दृश्य*

📍 *आज पूज्यवर प्रदान करेंगे -*

*2 मुमुक्ष को मुनि दीक्षा*
*8 मुमुक्षु को साध्वी दीक्षा*
*11 समणी को श्रेणीआरोहण कर साध्वी दीक्षा*
*1 समणी दीक्षा*

दिनांक -03-07-2019

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १८२* - *चित्त शुद्धि और श्वास प्रेक्षा ५*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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