21.06.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 21.06.2019
Updated: 24.06.2019

Update

👉 *अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विभिन्न क्षैत्रों में आयोजित कार्यक्रम......*
🔸सोलापुर
🔸भुज
🔸वापी
🔸टिटलागढ़
🔸साउथ कोलकाता
🔸जींद
🔸जयपुर
🔸तेजपुर
🔸जोधपुर
🔸 टाँलीगंज, कोलकात्ता
🔸इंदौर
🔸औरंगाबाद

👉 *आचार्य श्री तुलसी के 23 वें महाप्रयाण दिवस पर विभिन्न क्षैत्रों में आयोजित कार्यक्रम......*
🔹सवाई माधोपुर
🔹श्री गंगानगर
🔹साउथ कोलकाता
🔹पीलीबंगा
🔹 हिसार
🔹सूरत
🔹उधना (सूरत)
🔹👉 मानसा (पंजाब)
🔹जींद

👉 रायपुर - मुमुक्षु ऋषभ बुरड़ का अभिनंदन समारोह

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 60* 📖

*मूल्यांकन की दृष्टि*

गतांक से आगे...

भगवान् ऋषभ की माता का नाम था मरुदेवा। वह ऐसी माता दी, जिसे अध्यात्म के क्षेत्र में विरल और अनुपम कहा गया। ऐसी कोई माता नहीं हुई, जो हाथी की अम्मारी पर बैठी-बैठी मुक्त हो गई। न साध्वी-वेश धारण किया, न सावद्ययोग का प्रत्याख्यान किया, कुछ भी नहीं किया, केवल हाथी पर बनी अम्मारी में बैठी रही। भरत ऋषभ की वंदना कर रहा था। भगवान् ऋषभ ने कहा— 'मरुदेवा भगवई सिद्धा'— मरुदेवा सिद्ध हो गई। भरत यह सुनकर अवाक् रह गया। उसने कहा— भगवन्! अभी तो मैं मरुदेवा माता को हाथी की अम्मारी पर छोड़ कर आया हूं। आपको यह कहने आया हूं कि आपकी माता मरुदेवा कितना विलाप कर रही है, शोक और दुःख रही है। आपकी कितनी चिंता कर रही है— मेरा ऋषभ कहां होगा? वह क्या कर रहा होगा? उसे कौन खिलाएगा? कौन पिलायेगा? वह सुख में है या दुःख में है? आज आपका सुख संवाद मिला। माता मरुदेवा आपका साक्षात्कार करने के लिए मेरे साथ आई है। मैं आपको यह सूचना देने आया हूं और आप कह रहे हैं— मरुदेवा सिद्ध हो गई। ऋषभ ने पुनः सहज स्वर में कहा— भरत! मरुदेवा सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गई। भरत तत्काल लौट पड़ा। उसने देखा— मरुदेवा सचमुच सिद्ध हो गई। ऐसी माता कहां मिलती है? दुर्लभ है ऐसी माता की उपलब्धि। शायद इन्हीं घटनाओं को ध्यान में रखते हुए मानतुंग ने कहा— तुम्हारी माता ने जैसा पुत्र पैदा किया, वैसा अन्य किसी माता ने नहीं किया।

भागवत के आठवें स्कंध में जहां ऋषभ का वर्णन है, वहां कहा गया है— नाभि और मरुदेवा से आठवां मनु पैदा हुआ, जिनके पैर विशाल थे। ऋषभ की विशेषता बतलाते हुए कहा गया— ऋषभ सब आश्रमों के द्वारा नमस्कृत थे— सर्वाश्रमनमस्कृतः। एक धर्म अथवा एक संप्रदाय के द्वारा नहीं, अपितु सब धर्मों और संप्रदायों के द्वारा वंदनीय थे। यह विशेष बात है कि ऋषभ सर्वमान्य रहे। जैन तीर्थंकरों में तीन तीर्थंकर ऐसे हुए हैं, जिनका प्रभाव बहुत व्यापक रहा। वे केवल जैन दर्शन में ही नहीं, अन्य दर्शनों में भी प्रतिष्ठित हुए। इनमें एक तीर्थंकर है भगवान् ऋषभ। वर्तमान में मध्य एशिया, मगध, सिंध आदि-आदि प्रांतों में जहां खुदाई हुई, वहां बहुत मूर्तियां मिलीं। उनमें ऋषभ की मूर्तियां बहुत मिलती हैं। इस विषय पर विद्वानों ने बहुत काम किया है कि ऋषभ का व्यक्तित्व इतना व्यापक और सर्वमान्य था। आज भी अनेक भाषाओं में ऋषभ का नाम प्रचलित है— कहीं रषभ के नाम से और कहीं ऋषभ के नाम से। आज भी ऋषभ की प्रतिष्ठा है। ऋषभ के नाना रूप मिलते हैं। दूसरे तीर्थंकर है पार्श्वनाथ। तुलसीदास ने रामचरितमानस में पार्श्व को वंदना की है, महावीर की वंदना नहीं की। तीसरे तीर्थंकर हैं नेमिनाथ। नाथ संप्रदाय में आदिनाथ, पार्श्वनाथ और नेमिनाथ– इन तीनों का उल्लेख है। अन्य साहित्य में भी इन तीनों की व्यापक चर्चा है। भगवान् ऋषभ का वर्णन तो प्रायः पुराणों में मिलता है। यह बात अनेक स्थलों पर कही गई है— ऋषभ को केवल जैन मत के अनुयाई ही नहीं, सब धर्मों के अनुयाई मानते थे। ऐसे सर्वमान्य पुत्र का प्रसव माता मरु देवा ने किया। मानतुंग इसीलिए कह रहे हैं— हजारों स्त्रियां पुत्र को जन्म देती हैं, पर माता मरुदेवा ने जैसे पुत्र को जन्म दिया, वैसा पुत्र किसी ने नहीं जन्मा।

*पुत्र के निर्माण में मां की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है...* इस विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 72* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जन-उद्धारक आचार्य*

*जनभावना में मोड़*

स्वामीजी की तपस्या चालू थी। उनका प्रायः समस्त समय अपनी ही धर्म-क्रियाओं में लगने लगा। लोगों पर विशेष परिश्रम करने का उनका ध्येय नहीं रहा। कोई आ जाता और जिज्ञासा करता तो उत्तर दे देते, अन्यथा अपने ही चिंतन-मनन में लगे रहते।

एकांत साधना और मौन तपस्या का धीरे-धीरे किंतु अज्ञात रूप से जनता पर प्रभाव पड़ने लगा। लोगों ने समझना प्रारंभ किया कि जो व्यक्ति शुद्ध जीवन के लिए प्राणों की भी बाजी लगा सकता है, वह बहुत बड़ा त्यागी और महान ही हो सकता है। साधारणजन की तरह उसकी भावना खान-पान की समस्या में ही उलझ कर नहीं रह जाती। उसकी दृष्टि बहुत गहरी और लक्ष्य बहुत ऊंचा होता है। वह इंद्रियों का दास बनकर नहीं किंतु स्वामी बनकर जीने वाला होता है। इस प्रकार जन-भावना में एक नया मोड़ आया और लोगों की सहानुभूति स्वामीजी के प्रति जागृत होने लगी। जो पहले उनके मार्ग में बाधक बनना ही श्रेयस्कर मानते थे, वे तब श्रेय की खोज में उनके पास आने लगे। जो नहीं आते थे उनके मन में भी यह भावना उठने लगी कि कम-से-कम उनकी बात तो सुनी ही चाहिए। इन भावनाओं से प्रेरित होकर जो लोग स्वामीजी के पास आते उन्हें वे आगमिक आधार से धर्म-अधर्म, व्रत-अव्रत अधिक का तत्त्व बहुत ही विश्लेषणात्मक ढंग से समझाते। धीरे-धीरे लोग उनके सिद्धांतों की सत्यता को पहचानने और हृदयंगम करने लगे। अनेक व्यक्तियों ने स्वामीजी की शुद्ध श्रद्धा को ग्रहण भी किया, परंतु स्वामीजी उस ओर से पूर्ववत् उदास ही बने रहे। वह उदासी संभवतः और भी लंबी चलती, परंतु एक प्रेरक घटना ने उनके जीवन-क्रम को ऐसा बदल दिया कि वह सहसा ही एक जन-उद्धारक आचार्य के रूप में जन-जीवन में आ गए।

*एक प्रेरणा*

शाक्य मुनि गौतम बुद्ध को बोधि प्राप्त हुई, तब उन्हें लगा कि सुखेषी लोग उनकी बात नहीं सुनेंगे और उनका अनुसरण नहीं करेंगे, अतः एकांत में मौन धारण कर रहना ही ठीक होगा। उस समय ब्रह्मदेव ने आकर उन्हें प्रेरणा दी कि धर्म को समझने वाले अनेक लोग आपको मिलेंगे, आप उपदेश दें। आपके मौन से उन धर्म-जिज्ञासुओं को भारी हानि हो रही है जो आपके धर्म-वाक्य सुनकर उद्बुद्ध होने वाले हैं।

स्वामी भीखणजी के जीवन में भी ऐसी ही घटना घटी। उन्हें भी मौन साधना करते देख ब्रह्मदेव की तरह दो साधुओं ने धर्म-प्रचार के लिए प्रेरित किया। उन प्रेरक संतों के नाम थे— मुनि थिरपालजी और मुनि फतेहचंदजी। वे दोनों ही साधु आचार्य जयमलजी के टोले से स्वामीजी के साथ आए थे और संसार-पक्ष से पिता-पुत्र थे। दोनों ही बड़े तपस्वी, भद्र और विचारशील साधु थे। स्थानकवासी संप्रदाय में रहते समय वे दीक्षा-पर्याय में स्वामीजी से बड़े थे, अतः परमार्थी और नम्र स्वभावी स्वामीजी ने अपनी निरहंकारिता और उदारता का परिचय देते हुए भाव-चारित्र लेते समय भी उन्हें दीक्षा-पर्याय में अपने से बड़ा ही रखा। पर्याय-वृद्ध संतों के प्रति स्वामीजी की आदर-भावना का यह सजीव उदाहरण कहा जा सकता है।

दोनों साधुओं ने जब देखा कि लोग आते हैं, जिज्ञासा करते हैं और अंततः समझते भी हैं, परंतु स्वामीजी उन पर अधिक ध्यान नहीं देते, तब एक दिन वे आए और विनयपूर्वक स्वामीजी से निवेदन करने लगे— 'आप तपस्या के द्वारा अपने शरीर को इस प्रकार क्षीण मत कीजिए। तपस्या करने के लिए तो हम बहुत हैं, क्योंकि इससे आगे हमारी पहुंच नहीं है। आप धर्म-प्रचार कर सकते हैं। आपकी प्रत्युत्पन्न-बुद्धि, अगाध शास्त्र-ज्ञान, मर्मस्पर्शिनी प्रतिपादन-शैली और भावोपयुक्त भाषा संसार को प्रकाश देकर सन्मार्ग दिखला सकती है। आप भगवान् महावीर के अमृतमय धर्म का जनता को उपदेश दीजिए। आपके द्वारा प्रतिपादित धर्म-रहस्य को हृदयंगम करने की योग्यता रखने वाले अनेक व्यक्ति आपको मिलेंगे। जगत् में ऐसे अनेक जीव हैं, जिनकी ज्ञान-शक्ति पर काई आई हुई है। आपके धर्म-वाक्य कान में पड़ने पर वह हटेगी और जनता को ज्ञान-लाभ होगा। आपने जो आलोक पाया है, उस पर समस्त संसार का अधिकार है, क्योंकि आप समस्त संसार के आत्मीय हैं। अपने इस आलोक को मुक्त-भाव से वितरित कीजिए। हमें विश्वास है कि वह उत्तरोत्तर फैलेगा और जनता उससे अपना लक्ष्य प्राप्त करेगी।'

*मुनि थिरपालजी और मुनि फतेहचंदजी की प्रेरणा की स्वामीजी ने क्या प्रतिक्रिया दी...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 *आचार्य श्री तुलसी के 23 वें महाप्रयाण दिवस पर विभिन्न क्षैत्रों में आयोजित कार्यक्रम......*
🔹 अहमदाबाद
🔹 उत्तर हावड़ा
🔹 कांलावाली
🔹 टिटलागढ़
🔹 दलखोला
🔹 जयपुर
👉 वापी - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 इस्लामपुर - "सीख ले अगर रिश्ते की ABCD खुशहाल रहेगी हर पीढ़ी" कार्यशाला
👉 अहमदाबाद - शपथ ग्रहण समारोह
👉 भीलवाड़ा - पोस्टर मेकिंग प्रतियोगिता द्वारा "जल है तो कल है" का संदेश


प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Video

👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 21 जून 2019

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

News in Hindi

🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ प्रातःविहार करके 'बेरातेन अग्रहारा' (वाइट फेथर-बेंगलुरु) पधारे..*
🛣 *गुरुदेव का आज प्रातःकाल का विहार लगभग 12.00 कि.मी. का..*

⛩ *आज दिन का प्रवास: वाइट फेथर (इलेक्ट्रॉनिक सिटी) - बेंगलुरु(कर्नाटक)*
*लोकेशन:*
https://maps.app.goo.gl/VEho1XrVqyTUu83v5

👉 *आज के विहार का मनोरम दृश्य..*

दिनांक: 21/06/2019
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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १७०* - *चित्त शुद्धि और समाधी ६*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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