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👉 चेन्नई: ताम्बरम - ज्ञानशाला संस्कार निर्माण शाला बने
👉 अहमदाबाद - दीक्षार्थीनी मुमुक्षु चेतना का मंगल भावना समारोह
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👉 अहमदाबाद - तेरापंथ किशोर मंडल द्वारा कपड़े वितरण [सेवा कार्य ]
👉 साउथ हावड़ा - मुमुक्षु वंदना कोठारी का मंगल भावना कार्यक्रम
👉 दलखोला - ज्ञानशाला प्रशिक्षिका प्रशिक्षण शिविर का आयोजन
👉 अहमदाबाद - निःशुल्क मेडिकल चेकअप कैम्प
👉 सिलीगुड़ी - संस्कार निर्माण शिविर उतर बंगाल,बिहार नेपाल स्तरीय 5 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन
👉 जयपुर शहर - कन्या सुरक्षा अभियान
👉 मुंबई ~ जेठ की तपत में मासखमण तप का स्नान
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 03 जून 2019
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
News in Hindi
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 44* 📖
*अपूर्व सूर्य: अपूर्व चांद*
शक्ति और प्रकाश की पूजा होती है। स्तुतिकार ने ज्योति की पूजा की। उन्होंने देखा— आदिनाथ ज्योतिर्मय हैं। बाह्य जगत् में एक ज्योतिर्मय पदार्थ है दीप। मानतुंग ने दीपक के साथ तुलना की तुलना पूरी नहीं हुई। आदिनाथ के व्यक्तित्व के सामने दीपक की आभा फीकी प्रतीत होने लगी। मानतुंग का सूर्य पर ध्यान केंद्रित हुआ। सोचा, सूर्य बहुत ज्योतिकुंज है। पृथ्वी पर विचरण करने वाला है। इस चिंतन के साथ ही मानतुंग सूर्य के साथ आदिनाथ की तुलना करने के लिए समुद्यत हो गए।
जब कवि अथवा लेखक तुलना के लिए प्रस्तुत होता है तब वह सबसे पहले प्रकृति का अध्ययन करता है। अध्ययन के बाद तुलना की जाती है। जो व्यक्ति पदार्थ का, प्रकृति का, काव्य के विषय का अध्ययन नहीं करता, वह तुलना कर ही नहीं सकता। आचार्य मानतुंग ने सूर्य का अध्ययन शुरू किया। प्रश्न उभरा— सूर्य के साथ आदिनाथ की तुलना कैसे करें? मानतुंग सूर्य की प्रकृति का विश्लेषण करने लगे। अनेक तथ्य मांग के सामने प्रस्फुटित हो गए—
🔸 सूर्य जगत् को प्रकाशित करता है किंतु वह अस्त भी होता है।
🔸 सूर्य राहु का ग्रास बनता है। जब-जब पूर्ण सूर्य-ग्रहण होता है, धरती पर अंधकार छा जाता है।
🔸 सूर्य का प्रकाश सीमित क्षेत्र को प्रकाशित करता है। सूर्य के प्रकाश की सीमा है। हिंदुस्तान, अमेरिका, यूरोप आदि देशों में एक समान प्रकाश नहीं होता। कहीं दिन होता है तो कहीं रात हो जाती है। कहीं रात होती है तो कहीं दिन हो जाता है। सर्वत्र समान प्रकाश नहीं होता।
🔸 सूर्य बहुत तेजस्वी है, किंतु जब आकाश में सघन बादल छा जाते हैं, सूर्य आवृत हो जाता है। कभी-कभी तो बादलों की सघनता इतनी होती है कि दिन में भी रात्रि जैसा आभास होने लगता है।
मानतुंग ने सोचा— आदिनाथ के साथ सूर्य की तुलना कैसे होगी? कहां आदिनाथ और कहां सूर्य? आदिनाथ सूर्य से अतिशायी महिमा वाले हैं—
🔸 आदिनाथ कभी अस्त नहीं होते, सतत प्रकाशशील बने रहते हैं।
🔸 वे राहु का ग्रास नहीं बनते।
🔸 वे सूर्य की भांति सीमित क्षेत्र को प्रकाशित नहीं करते। असीम क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं।
🔸 वे कभी बादलों से अच्छन्न नहीं होते।
ये चार अंतर स्पष्ट हैं।
*भगवान् आदिनाथ और सूर्य के बीच स्पष्ट रूप से अंतर समझ लेने के बाद आचार्य मानतुंग क्या कहते हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 56* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*नवजीवन की ओर*
*जोधपुर में*
स्वामीजी जोधपुर पधारे। पिछले चातुर्मास (विक्रम संवत् 1816) में जहां आचार्य जयमलजी तथा उनके अनेक साधु स्वामीजी के विचारों से प्रभावित एवं सहमत हुए थे, वहां अनेक श्रावकों ने भी उन विचारों को हृदयंगम किया था। अब स्वामीजी के सम्मुख ऐसा अवसर उपस्थित हो चुका था कि वे उन श्रावकों को एकत्रित करें और बिखरे मोतियों को पिरोकर बनाई गई एक माला का रूप प्रदान करें। उनके जोधपुर पदार्पण की सार्थकता मुख्यतः इसी कार्य के साथ जुड़ी हुई थी।
जोधपुर में प्रवेश करने के साथ ही स्वामीजी के सम्मुख ठहरने के लिए उपयुक्त स्थान प्राप्त करने की समस्या उत्पन्न स्थिति हुई। यद्यपि विगत चातुर्मास उन्होंने जोधपुर के स्थानक में ही किया था, परंतु परिवर्तित परिस्थितियों में वहां ठहरने का प्रश्न ही नहीं था। स्वामीजी का सिद्धांतवादी मन वैसा करने को कभी उद्यत भी नहीं हो सकता था। वे तो प्रचार करने से पूर्व प्रत्येक सिद्धांत को अपने जीवन की कसौटी पर कसकर देखने वाले व्यक्ति थे। उनकी उनके कथन से पीछे रहने की अभ्यस्त नहीं थी।
कंधों पर भार उठाए स्वामीजी ने जब वहां ठहरने के लिए स्थान के गवेषणा प्रारंभ की तो अनायास ही उन्हें बाजार में कुछ दुकानें खाली मिल गईं। उनके स्वामी की आज्ञा प्राप्त कर वे वहां ठहर गए। बाजार होने के कारण वहां लोगों का आगमन सहज ही अधिक था, फिर स्वामीजी के ठहर जाने से धर्म-चर्चा के निमित्त आने वालों से उसमें और वृद्धि हो गई। वस्तुतः उस समय वह स्थान धर्म-चर्चा का एक केंद्र बन गया।
उस समय तक स्वामीजी ने अपने विचारों का प्रचार-प्रसार मुख्यतः साधुओं में ही किया था। गृहस्थों को समझाने का अवसर उन्हें स्वल्प ही उपलब्ध हुआ था, परंतु अब वे आगंतुक व्यक्तियों को भी खुलकर अपने विचारों से अवगत कराने लगे। वे आगम-सम्मत आचार और विचार के संबंध में बहुत ही सारगर्भित बातें बतलाते। प्रायः पूरे दिन जिज्ञासु व्यक्तियों का तांता लगा रहता। उनमें से अनेक व्यक्तियों के मन में स्वामीजी के विचार जमे और वे उनके भक्त बन गए। उन श्रद्धालु व्यक्तियों में गेरूलालजी व्यास आदि कुछ ऐसे व्यक्ति भी थे, जिन्होंने स्वामीजी के विचारों को केवल समझा ही नहीं, अपितु दूसरों को समझाने में भी काफी भाग लिया। जोधपुर के उन व्यक्तियों को तेरापंथ के आद्य श्रावक होने का श्रेय प्राप्त है।
स्वामीजी उस समय जोधपुर में कुछ ही दिन ठहरे, परंतु इतने ही दिनों में वहां के धार्मिक वातावरण में एक हलचल पैदा हो गई। उनका व्यक्तित्व और विचार उस समय के धार्मिक जगत् में चर्चा के मुख्य विषय बन गए। कोई उनके पक्ष में बोलता, तो कोई विपक्ष में। वह अवसर ही कुछ ऐसा था कि कहीं भी कोई धार्मिक चर्चा प्रारंभ होती तो वह प्रायः घूम-फिर कर स्वामीजी पर आ जाती और ऊहापोह का एक द्वार ही खुल जाता। व्यासजी आदि श्रावक उस अवसर का अधिक से अधिक सदुपयोग करने में लग गए। स्वामीजी के द्वारा प्रज्ज्वलित सत्श्रद्धा की ज्योति को वे अपने प्रयास की आहुति से अधिकाधिक तेजोमय बना देना चाहते थे।
*स्वामीजी के जोधपुर से विहार करने के पश्चात् वहां के श्रावक-वर्ग ने एकत्रित होने की किस प्रकार और क्या व्यवस्था की...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ प्रातःविहार करके 'लिंगापुरम' (A. P.) पधारेंगे..*
🛣 *गुरुदेव का आज प्रातःकाल का विहार लगभग 11.70 कि.मी. का..*
⛩ *आज दिन का प्रवास: जेड पी पी स्कूल, लिंगापुरम (आंध्रप्रदेश)*
*लोकेशन:*
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🙏 *साध्वीप्रमुखा श्री जी विहार करते हुए..*
👉 *आज के विहार के कुछ मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 03/06/2019
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⛩ *वैल्लूर* (T.N.): *पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ प्रबुद्ध जन..*
💠 *17 वीं लोकसभा में 'तिरुवन्नामलाई' क्षेत्र से नवनिर्वाचित सांसद श्री सी.एन. अन्नादुरई*
💠 *वैल्लोर इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी (VIT) के चांसलर श्री जी. विश्वनाथन*
💠 *रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिसर (RTO) श्री रामकृष्णन*
💠 *वैल्लूर के विख्यात श्री नारायणी गोल्डन टेम्पल (स्वर्ण मंदिर) के PRO श्री भास्कर*
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १५२* - *चित्त शुद्धि और कायोत्सर्ग ५*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
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👉 *#समाधी साध्य है या #साधना*: #श्रंखला २*
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