21.11.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 21.11.2018
Updated: 22.11.2018

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 21 नवम्बर 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 *परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने सन् 2021* के भीलवाड़ा चतुर्मास हेतु *आचार्य श्री महाश्रमण चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, भीलवाड़ा* के *अध्यक्ष* के रूप में *श्री प्रकाश जी सुतरिया (अड़सीपुरा-भीलवाड़ा)* को मंगलपाठ सुनाने का इंगित प्रदान किया है।

👉 *घोषणा का वीडियो..*

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🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 474* 📝

*भव्यजन-बोधक आचार्य भूधर*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

भूधरजी साहसी थे। फौज में रहने के कारण उनके इस गुण का अधिक विकास हुआ। कठिन से कठिन परिस्थिति का वे निर्भयवृत्ति से सामना कर लेते। एक बार कंटालिया गांव को लूटने के लिए डाकुओं का दल आया। नागरिकों की सुरक्षा के लिए भूधरजी ने डाकुओं का सामना किया। डाकुओं का दल बड़ा था पर भूधरजी ने हिम्मत नहीं हारी। उन्हें पकड़ने की कोशिश करते रहे। डाकुओं ने तलवार से उनके ऊंट पर वार किया जिससे वह घायल होकर गिर पड़ा। ऊंट को तड़पते हुए देख कर उनको संसार से विरक्ति हो गई। यह घटना कंटालिया ग्राम की है।

इस घटना के बाद मालवाप्रदेश में स्थानकवासी परंपरा के आचार्य धन्नाजी से भूधरजी का संपर्क हुआ। उनका प्रेरणादायी धार्मिक प्रवचन सुना। संत धर्मदासजी से भी उनकी आध्यात्मिक चर्चाएं हुईं। संतों से पुनः-पुनः संपर्क ने भूधरजी की जीवन धारा को अध्यात्म की ओर उन्मुख किया। मुनि जीवन स्वीकार करने का भाव जगा। आचार्य धन्नाजी के पास उन्होंने वीर निर्वाण 2221 (विक्रम संवत् 1751) फाल्गुन शुक्ला पंचमी के दिन मुनि दीक्षा ग्रहण की।

भूधरजी स्वभाव से सरल थे एवं सबके प्रति उनका नम्र व्यवहार था। वे अत्यंत सरल एवं मधुर भाषा में लोगों को उपदेश देते एवं ग्रामानुग्राम विहरण करते थे। एक बार उनको विरोधी पक्ष ने ऐसे स्थान पर ठहराया जहां भूत और प्रेतों का भय था। लोगों के दिमाग में उस स्थान के प्रति कई भ्रांतियां थीं। भूधरजी वहां रात को निश्चिंत होकर सोए। लोगों ने उनको सुबह प्रतिदिन की भांति स्वस्थ एवं हंसते-मुस्कुराते हुए देखा। इस स्थिति से सभी आश्चर्यचकित रह गए।

भूधरजी भाग्यवान् आचार्य थे। उनके शिष्य परिवार में जेतसिंहजी, जयमलजी, कुशलोजी, जगमालजी आदि 9 शिष्य प्रमुख थे। स्थानकवासी परंपरा के सुविश्रुत आचार्य रघुनाथजी भी उनके प्रमुख शिष्यों में थे।

*समय-संकेत*

भूधरजी के आचार्यकाल के जीवन प्रसंग प्रेरक हैं। भूत-प्रेत से कम्पित दिलों में अभय का संचार करने वाले हैं। उन्होंने संयमी जीवन का जागरूकता से पालन किया। धर्म का संचालन कुशलता से किया। उग्र तपस्वी, निर्भीक साधक भूधरजी का स्वर्गवास वीर निर्वाण 2273 (विक्रम संवत् 1803) आश्विन शुक्ला दशमी को हुआ।

*प्रबल प्रचारक आचार्य रघुनाथ के प्रभावक चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 128* 📜

*श्रीचंदजी गधैया*

*विरोध का परिणाम*

संवत् 1979 में कालूगणी ने बीकानेर में चातुर्मास किया। अन्य संप्रदाय वालों ने विरोध का बवंडर खड़ा कर दिया। उन्होंने बहुत बड़ी मात्रा में निंदात्मक पैंफलेट तथा पुस्तकें छपवाईं। बीकानेर नरेश गंगासिंहजी उस समय इंग्लैंड गए हुए थे। राजकुमार शार्दुलसिंहजी गृहमंत्री थे। वही सारा कार्यभार संभाल रहे थे। उनका झुकाव विरोधी लोगों के अनुकूल था। उन्हीं दिनों प्रजा के सुख-दुख की रिपोर्ट विलायत में नरेश के पास भेजने के लिए रिड़कन साहब थली के नगरों का दौरा करने वाले थे। इसकी सूचना श्रीचंदजी को मिली तो उन्होंने तेरापंथ के विरुद्ध छपे पैंफलेटों का एक-एक बंडल थली के प्रत्येक नगर में भेजा और श्रावकों को सुझाव दिया कि रिड़कन साहब आएं तब सार्वजनिक रूप से उनसे शिकायत की जाए और उक्त विरोधी साहित्य के प्रति रोष प्रकट किया जाए। उनके सुझाव का परिपूर्णता के साथ पालन हुआ। रिड़कन साहब जहां भी पहुंचे उनके सम्मुख विरोधी साहित्य के प्रति भरपूर रोष व्यक्त किया गया। इसकी सूचना इंग्लैंड में महाराज गंगासिंहजी को मिली तो वे बहुत खिन्न हुए। राजकुमार शार्दुलसिंहजी उक्त परिस्थिति से अवगत हुए तो घबराए। नरेश के वापस देश पहुंचने से पूर्व ही उन्होंने सभी संप्रदायों में समझौता कराने का प्रयास किया। समझौता हुआ भी, परंतु उसकी स्याही सूख भी नहीं पाई थी कि तेरापंथ के विरुद्ध एक और पुस्तक छपा दी गई।

नरेश गंगासिंहजी इंग्लैंड से वापस देश में लौट आए थे। श्रीचंदजी उसी समय महाराजकुमार की प्रेरणा से हुए समझौते की प्रति तथा उसका उल्लंघन करके छपाई गई पुस्तक लेकर संबंधित अधिकारियों से मिले। उन्हें सारी स्थिति से अवगत किया। नरेश को भी प्रकारान्तर से सारी अवगति दी गई।

उसी अवसर पर एक ऐसी घटना घटी, जिसने सारी स्थिति को परिणाम तक पहुंचाने में एक वेग ला दिया। वह घटना इस प्रकार थी– विरोधी लोगों द्वारा बीकानेर से कलकत्ता भेजा गया एक पत्र गलत पते पर पहुंच जाने के कारण पकड़ा गया। उसमें तेरापंथ का विरोध करने के लिए जितना व्यय किया गया था उसका विवरण लिखा हुआ था। उसमें दी गई विगत के अनुसार एक लाख चालीस हजार रुपए विभिन्न विरोधी कार्यो में व्यय हुए थे। कई हजार रुपयों की एक बड़ी रकम एक विशिष्ट राज्याधिकारी को तेरापंथ के एक विशिष्ट कार्य को रोकने के लिए दी जाने का भी उसमें नाम सहित उल्लेख था। वह पत्र बीकानेर नरेश गंगासिंहजी के पास पहुंचा दिया गया।

न्यायप्रिय नरेश ने उस पत्र के आधार पर कड़ाई से छानबीन की। उसका अंतिम परिणाम यह निकला कि उक्त राज्याधिकारी को पदच्युत होना पड़ा। युवराज शार्दुलसिंहजी को भी नरेश के उपालंभ का भागी बनना पड़ा। विरोधी व्यक्तियों में अनेकों के मुचलके लिए गए। तेरापंथ के विरुद्ध छपाई गई वे सब पुस्तकें जप्त कर ली गईं। मुनि मगनसागर तथा आनंदराज सुराणा को देश-निष्कासन का दंड मिला।

*महान् शासन-सेवी... महान् उपासक... आचार्यों के कृपापात्र श्रावक श्रीचंदजी गधैया की महान् शासन सेवा व महान् उपासना* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

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