30.10.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 30.10.2018
Updated: 31.10.2018

Update

👉 सिलीगुड़ी - दीपक बनाओ और सजाओ प्रतियोगिता का आयोजन
👉 अहमदाबाद - अणुव्रत महासमिति निर्देशित आतिशबाजी को कहे ना कार्यक्रम का आयोजन
👉 देवगढ़ - वृहद् सामायिक कार्यशाला का आयोजन
👉 राउरकेला - eco friendly diwali और वृहद सामायिक कार्यशाला का आयोजन
👉 सोलापुर - जैन संस्कार विधि के बढते चरण

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 30 अक्टूबर 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 459* 📝

*मधुरभाषी आचार्य मुनिसुंदर*

मुनिसुंदरसूरि मंदिर मार्गी परंपरा के तपागच्छ के आचार्य थे। वे सहस्रावधानी थे। उनकी प्रवचन शैली सुंदर थी। जनता पर उनकी विद्वत्ता का प्रभाव था। शास्त्रार्थ करने में वे कुशल थे।

*गुरु-परंपरा*

मुनिसुंदरसूरि के गुरु सोमसुंदर थे। सोमसुंदरसूरि देवसूरि के उत्तराधिकारी थे। सोमसुंदरसूरि के पास जयसुंदरसूरि, भुवनसुंदरसूरि आदि कई विद्वान् शिष्य थे। उनमें एक मुनिसुंदरसूरि थे।

*जीवन-वृत्त*

मुनिसुंदरसूरि का जन्म वीर निर्वाण 1906 (विक्रम संवत् 1436) में हुआ। उन्होंने आठ वर्ष की अवस्था में मुनि दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा ग्रहण करने के बाद वे श्रुत की आराधना में लगे। जीवन में बहुमुखी विकास किया। वे जन कल्याण के कार्यों में विशेष रूप से प्रवृत्त हुए। सिरोही के महाराजा सहस्त्रमल्ल से उन्होंने अमारि की घोषणा करवाई। शास्त्रार्थ निपुणता के कारण गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरखां से उन्हें 'वादि गोकुलसंड' की उपाधि प्राप्त हुई। कई इतिहासकार इस उपाधि प्रदान करने का श्रेय खंभात के सुल्तान को देते हैं।

दक्षिण के पंडितों ने 'काली सरस्वती' का पद प्रदान कर मुनिसुंदरसूरि को सम्मानित किया।

*साहित्य*

मुनिसुंदरसूरि धर्म प्रचार के साथ साहित्यकार भी थे। अध्यात्मकल्पद्रुमस्वोपज्ञवृत्ति, उपदेश रत्नाकर, जिन स्तोत्र रत्नकोष, मित्रचतुष्ककथा, सीमन्धर स्तुति, अंगुलसत्तरी, शान्तिकर स्तोत्र आदि रचनाएं मुनिसुंदरसूरि की हैं। इन कृतियों में उनकी साहित्यिक मेधा के दर्शन होते हैं। त्रैविध नामक लघु ग्रंथ में न्याय व्याकरण संबंधी ज्ञान की अवगति होती है। मुनिसुंदरसूरि की सिद्धसारस्वतसूरि के रूप में भी प्रसिद्धि है।

*समय-संकेत*

मुनिसुंदरसूरि की वाचक पद पर वीर निर्माण 1936 (विक्रम संवत् 1466) में और सूरिपद पर वीर निर्माण 1948 (विक्रम संवत् 1478) में नियुक्ति हुई। उनका स्वर्गवास वीर निर्माण 1973 (विक्रम संवत् 1503) में हुआ। कई इतिहासकार वीर निर्माण 1969 (विक्रम संवत् 1499) में उनका स्वर्गवास मानते हैं।

*नवीन युग के प्रभावक आचार्यों में हितचिन्तक आचार्य हीरविजय के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 113* 📜

*हनुतरामजी बैद*

*बाल्यकाल*

सरदारशहर निवासी हनुतरामजी बैद का जन्म विक्रम संवत् 1918 में साधासर (बीकानेर जिला) में हुआ। अपने पिता चतुर्भुजजी के वे तीसरे पुत्र थे। दो बड़े भाइयों के नाम क्रमशः भोमराजजी और सरदारमलजी थे। हनुतरामजी जब केवल चार मास के थे तब गांव में हैजा फैल गया। अनेक व्यक्ति गांव छोड़कर भाग गए तो अनेक मृत्यु के ग्रास बन गए। हनुतरामजी के माता-पिता दोनों ही हैजे की चपेट में आकर दिवंगत हो गए। परिवार के लिए वह एक अनभ्र वज्रपात था। घर की सारी व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो गईं। वात्सल्यमयी माँ के अभाव में बालक की सार संभाल करना भी एक समस्या बन गई। उस स्थिति में उनकी मौसी ने उस कार्य को अपने पर लिया और पूर्ण आत्मीयता के साथ उनका लालन-पालन किया।

समय की मार से हुई पारिवारिक क्षतियों को आर्थिक दबावों से निस्तार पाने के लिए कालांतर में बैद परिवार सरदारशहर आकर बस गया। हनुतरामजी ने शैशवावस्था को पार कर किशोरावस्था में कदम रखे ही थे कि घर की आर्थिक स्थितियों में सहयोगी बनाने के लिए उनके बड़े भाई भोमराजजी उन्हें अपने साथ किशनगंज (बिहार) ले गए। वहां वे अपने बड़े भाई के साथ रहकर व्यापार कार्य में सहयोग करने लगे।

*अनुभवों का निखार*

शिक्षा के नाम पर उस युग की प्रवृत्ति के अनुसार हनुतरामजी ने मात्र अक्षर ज्ञान ही प्राप्त किया था। महाजनी कार्य के उपयुक्त साधारण सा गणित भी उनकी शिक्षा में सम्मिलित था। अन्य ज्ञान तो प्रायः जीवन की घुमावदार घाटी के उतारों-चढ़ावों में लगने वाली ठोकरों से ही अनुभव के रूप में प्राप्त किया जा सकता था। हनुतरामजी को अवस्था वृद्धि के साथ-साथ वैसा अनुभव ज्ञान करने का भरपूर अवसर मिला। वस्तुतः विपदाओं के महाविद्यालय में उन्होंने अपने ज्ञान को वह निखार दिया जो विरल मनुष्य ही दे पाते हैं।

*हनुतरामजी की व्यापार क्षेत्र में प्रविष्टि एवं सफलताओं* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi

👉 बारडोली - अणुव्रत महासमिति निर्देशित आतिशबाजी को कहे ना कार्यक्रम का आयोजन
👉 विजयनगर, (बेंगलुरु): अहिसा प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
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👉 जलगांव - ते.यु.प. द्वारा वृहद सामायिक कार्यशाला का आयोजन
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👉 पीलीबंगा - ज्ञानशाला का वार्षिकोत्सव कार्यक्रम आयोजित
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👉 मानसरोवर, दिल्ली - सामायिक साधक कार्यशाला
👉 पेटलावद (म.प्र.) - ज्ञानशाला के स्थानीय बच्चों का शिविर हुआ सम्पन्न।

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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई

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*गुरवरो धम्म-देसणं*

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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

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ज्ञानशाला प्रशिक्षक
सम्मेलन -2018
का द्वितीय दिवस

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दिनांक:
30 अक्टूबर 2018

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प्रस्तुति:
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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