24.10.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 24.10.2018
Updated: 25.10.2018

Update

👉 *चेन्नई* (माधावरम्): जैन विश्व भारती द्वारा श्री मूलचंद नाहर का सम्मान
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 24 अक्टूबर 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 454* 📝

*आचार्यकल्प उपाध्याय यशोविजय जी*

गतांक से आगे...

संस्कृत भाषा पर उपाध्याय यशोविजय जी का अच्छा अधिकार था। वीर निर्वाण 2199 (विक्रम संवत् 1729) में खंभात में पंडितों की प्रार्थना पर उन्होंने संस्कृत में अत्यंत प्रभावशाली वक्तव्य दिया। वक्तव्य की विशेषता यह थी कि कहीं किसी शब्द में संयुक्ताक्षर और अनुस्वार नहीं था। पंडित उनकी महामेधा के सामने हतप्रभ रह गए।

यशोविजय जी की विवेचना शक्ति बहुत गजब की थी। वीर निर्वाण 2200 (विक्रम संवत् 1730) में उनका चातुर्मास जामनगर में था।

*"संजोगा विप्मुक्करस्स"* उत्तराध्ययन के इस एक सूत्र पर वे चार महीने तक व्याख्यान करते रहे।

जनता के कंठों पर यशोविजय जी का यशोगान गूंजने लगा। ज्ञान के साथ अहं का प्रवेश भी कभी-कभी हो जाता है। जनश्रुति है यशोविजय जी के मन में अपनी अगाध ज्ञान शक्ति के प्रति अहं उभर आया। वे व्याख्यान देते समय अपनी पीठिका पर चार ध्वजाएं रखने लगे। ये ध्वजाएं उनके चारों दिशाओं में फैलने वाले यश की सूचक थीं।

एक दिन एक वृद्ध महिला निकट आकर नम्रतापूर्वक बोली "उपाध्याय जी! आपके पास अखूट ज्ञान का खजाना है। गणधर गौतम और सुधर्मा के पास कितने ज्ञान थे?"

यशोविजय जी ने सहज सरल भाषा में उत्तर दिया "वे ज्ञान के सागर थे। उनके सामने मेरा ज्ञान बिंदु मात्र है।"

वृद्धा चतुर थी। वाणी में विवेक था। अपने भावों को संयत भाषा में समेटते हुए वह बोली "ज्ञान के सागर गणधर गौतम अपनी पीठिका पर कितनी ध्वजाएं रखते थे?"

वृद्धा के इस गहन प्रश्न ने मर्म को वेध डाला।

विद्वान् यशोविजय जी को अपनी भूल समझ में आ गई। आग्रह जैसा भाव उनमें नहीं था। वृद्धा के प्रश्न का उत्तर उन्होंने बोलकर नहीं, आचरण से दिया। उसी दिन से यशोविजय जी ने अपनी पीठिका पर ध्वजाएं रखना बंद कर दिया।

महान् व्यक्तियों की यही विशेषता होती है अपनी भूल समझ में आने के बाद उससे चिपके रहने का व्यर्थ आग्रह और दुराग्रह उनमें नहीं होता।

न्याय दर्शन के विशिष्ट विद्वान् यशोविजय जी का स्वर्गवास वीर निर्वाण 2215 (विक्रम संवत् 1747) में हुआ।

उपाध्याय यशोविजय जी ने प्रभावक आचार्यों की भांति जैन शासन की विशेष प्रभावना की। जैन दर्शन को नव्य न्याय शैली में प्रस्तुत कर जैन शासन की श्रीवृद्धि में चार चांद लगा दिए, अतः प्रभावक आचार्यों के प्रस्तुति क्रम में यशोभाक् यशोविजय जी के जीवन प्रसंगों को संयोजित करना प्रासंगिक अनुभूति होने से उनके महत्त्वपूर्ण जीवन-वृत्त की संक्षिप्त झलक प्रस्तुत की गई है।

परम यशस्वी विद्वान् आचार्य कल्प उपाध्याय श्री यशोविजय जी का नाम आज भी जैन समाज में अत्यंत प्रसिद्ध व विश्रुत है।

*कुशलशासक आचार्य जिनकुशलसूरि के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 108* 📜

*गणेशदासजी चंडालिया*

*साहसी परिवार*

लाडनूं में संवत् 1914 से ही वृद्ध साध्वियों का निरंतर स्थिरवास रहा है। तेरापंथ धर्म संघ की बहुत सी वृद्ध तथा अशक्त साध्वियां वहां रहती हैं। आचार्यश्री द्वारा प्रतिवर्ष कुछ साध्वियां उनकी सेवा के लिए भी नियुक्त की जाती हैं। उस वर्ष वहां पर साध्वी चांदांजी का सिंघाड़ा नियुक्त था। सभी मिलाकर लगभग 22 साध्वियां वहां थीं। शहर के खाली हो जाने पर उनके लिए भिक्षाचरी उपलब्ध होने की एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती थी। विहार करके अन्यत्र चले जाने की स्थिति भी नहीं थी। क्योंकि वहां अनेक साध्वियां ऐसी थीं जो किसी भी स्थिति में विहार करने योग्य नहीं थीं। उनके वहां रहते सेवा में नियुक्त साध्वियों को भी निश्चय रूप से वहीं रहना था।

गृहस्थों का जिस तेजी से पलायन हो रहा था। उससे लगता था कि शहर शीघ्र ही खाली हो जाएगा। साधु-साध्वियों के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझने वाले वर्ग के सम्मुख एक कसौटी का समय उपस्थित हो गया। श्रावकों के बहुत से परिवार बाहर जा चुके थे। शेष में से भी बहुत से जाने की तैयारी कर रहे थे। वहीं टिके रहने के लिए किसी पर दबाव दे पाना तो दूर कह पाना भी सहज नहीं था। किसी के कहने पर अपने प्राणों की बाजी लगा देने के लिए कौन तैयार हो सकता था? फिर भी श्रावकों में परस्पर विचार चलता रहा और जाने वाले जाते रहे।

उस समय लाडनू में ओसवाल समाज के लगभग 500 घर थे। केवल 28 परिवारों को छोड़कर शेष सब अपने-अपने प्राणों की चिंता में शहर छोड़कर दूर-दूर चले गए। उन 28 परिवारों ने यह निश्चय किया था कि जब तक साध्वियां लाडनूं में रहेंगी तब तक हम भी यही रहेंगे। जीना या मरना जो भी कुछ होगा हो जाएगा, परंतु साध्वियों को इस स्थिति में छोड़ कर हम अन्यत्र नहीं जाएंगे। उन परिवारों में इतनी बड़ी साहसिक भावना जगाने में मुख्य हाथ गणेशदासजी चंडालिया का था। पहले पहल आगे होकर उन्होंने ही सबके सम्मुख अपना निर्णय घोषित किया था। उनके साहस ने दूसरों को भी प्रेरित किया। इस प्रकार उन साहसी 28 परिवारों ने न केवल लाडनू के श्रावक वर्ग के सम्मुख अपितु समग्र श्रावक वर्ग के सम्मुख उत्तरदायित्व निभाने का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत कर दिया। इतना ही क्यों उन्होंने श्रद्धा और आत्मविश्वास का भी एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया।

यह एक धार्मिक प्रभाव का आश्चर्यकारी चमत्कार ही कहा जा सकता है कि इतनी भयंकरता से फैली हुई महामारी में उन 28 परिवारों का एक भी व्यक्ति रुग्ण नहीं हुआ। जबकि भागकर अन्यत्र चले जाने वालों में से अनेक व्यक्ति अजमेर, जयपुर और आगरा तक जाकर भी रोग के शिकार हुए और मर गए।

*राजाज्ञा में छूट*

महामारी के कारण उस समय मारवाड़ के आसपास के राज्यों में पदयात्रियों का आवागमन राजाज्ञा द्वारा रोक दिया गया। उस आज्ञा से साधु-साध्वियों के आवागमन पर भारी प्रभाव पड़ा। अपने-अपने विहार क्षेत्र की ओर प्रस्थान कर देने के पश्चात् उपर्युक्त आज्ञा प्रसारित हुई, अतः अनेक सिंघाड़ों को इतस्ततः अटक जाना पड़ा। न उनके लिए अपने गंतव्य की ओर जाना ही संभव रहा और न लौट आना ही। उस समय गणेशदासजी चंडालिया ने जोधपुर जाकर राज्य के अनेक उच्चाधिकारियों से संपर्क साधा और उन्हें उपर्युक्त स्थिति से अवगत किया। उनके महत्त्वपूर्ण प्रयासों के पश्चात् ही राजाज्ञा की बाधाओं से तेरापंथ के उन सिंघाड़ों को मुक्ति मिली।

*मारवाड़ से मेवाड़ में प्रवेश करने वाले साधु-साध्वियों के सिंघाड़ों को उस वर्ष जिन बाधाओं का सामना करना पड़ा...* उनकी बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

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🌞 *संघ - संपदा बढ़ती जाए, प्रगति शिखर पर चढ़ती जाए।*⛰
🌈 *भेक्ष्व शासन नन्दन वन की सौरभ से सुरभित भूतल हो।।* 🌼

🙏 *पूज्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में जैन विश्व भारती संस्थान के 11वें "दीक्षांत समारोह" का आयोजन..* 🎓
*गुरुवरो धम्म-देसणं!*
👉 आज के *"मुख्य प्रवचन"* व *"दीक्षांत समारोह" के* कुछ *विशेष दृश्य..*

दिनांक: 24/10/2018

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👉 सरदारशहर: "जैन संस्कार विधि" से "सामूहिक जन्मोत्सव" का आयोजन
👉 राजराजेश्वरीनगर, (बेंगलुरु): तेयूप द्वारा सेवा कार्य
👉 गुलाबबाग - तेरापंथ प्रबोध प्रतियोगिता का आयोजन
👉 हिसार - "शासनश्री" जी की बैंकुठी यात्रा
👉 गॉधीनगर (बेंगलुरु): दीक्षार्थी मुमुक्षु प्रज्ञा भंसाली का मंगल भावना समारोह आयोजित
👉 बारडोली - तेयुप द्वारा कन्या छात्रालय में सेवा कार्यक्रम

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👉 *चेन्नई* (माधावरम्): *जैन विश्व भारती संस्थान* की *"प्रबंधन मंडल" की बैठक* का आयोजन..
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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👉 ध्यान स्वयं एक समाधान: क्रमांक - ३
*ध्यान में कब क्या करें?*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
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