17.10.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 17.10.2018
Updated: 18.10.2018

Update

👉 सूरत - संकल्पो की सौगात करें आत्मसात व गीत ये निर्माण के बुक का विमोचन
👉 जयपुर, शहर - महिला मंडल द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
👉 जयपुर, शहर - स्वच्छता व कन्या सुरक्षा विषय पर चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन
👉 गुलाबबाग - ज्ञानशाला संस्कार निर्माण कार्यशाला का आयोजन
👉 विजयनगरम् - अहिंसा प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 448* 📝

*शब्द-शिल्पी आचार्य सोमप्रभ (द्वय)*

*साहित्य*

बड़गच्छ के सोमप्रभसूरि कुशल कवि, मधुर वक्ता एवं समर्थ साहित्यकार थे। उनकी रचनाएं संख्या में कम हैं, पर लोकोपयोगी हैं। कृतियों का परिचय इस प्रकार है

*सुमतिनाह चरिय (सुमतिनाथ चरित)* यह रचना 9500 श्लोक परिमाण है। इसका निर्माण सोमप्रभसूरि ने पाटण में महामात्य सिद्धपाल की पोषाल में किया।

*कुमारपाल पडिबोहो (कुमारपाल प्रतिबोध)* इस ग्रंथ की रचना ग्रंथ की प्रशस्ति के अनुसार वीर निर्वाण 1711 (विक्रम संवत् 1241) पाटण में हुई। यह आचार्य सोमप्रभ की प्राकृत रचना है। इसमें छप्पन कथाएं हैं। कृति का भाषा सौंदर्य अनुपम है। इस कृति का कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र के शिष्य महेंद्रसूरि, वर्धमानगणी आदि ने आद्योपांत श्रवण किया। मोढ़ परिवार के श्रावक अभयकुमार और उनकी पत्नी पद्मा एवं पुत्र हरिश्चंद्र भी इस ग्रंथ को सुनकर प्रसन्न हुए। कुमारपाल के निधन के बारह वर्ष बाद इस ग्रंथ की रचना हुई। हेमचंद्राचार्य द्वारा कुमारपाल को दी गई नाना प्रकार की शिक्षाओं का वर्णन इस ग्रंथ में है।

*श्रृंगार वैराग्य तरङ्गिनी* यह वैराग्यरस प्रधान कृति है। इसमें 46 श्लोक हैं।

*सिन्दूरप्रकर* यह सोमप्रभसूरि की लघु रचना संस्कृत में है। इस कृति में बीस प्रकरण हैं। सौ श्लोक हैं। श्लोक रचना में मंदाक्रांता, उपजाति, शिखरिणी, शार्दुलविक्रीड़ित आदि कई छंदों का उपयोग किया गया है। इस कृति का एक नाम सोमशतक भी है। जीवनोपयोगी सूक्तियां इस कृति में उपलब्ध हैं, अतः इसे सूक्त मुक्तावली भी कहते हैं। कृति में शब्द सौष्ठव एवं सानुप्रासिक धातु प्रत्ययों के प्रयोग कवि के महान् शब्द शिल्पी होने की अभिव्यक्ति देते हैं। अध्यात्म शिक्षाएं और वैराग्यरस से परिपूर्ण यह कृति संपूर्ण जैन समाज में लोकप्रिय रही है। इस कृति का रचनाकाल विक्रम संवत् 1250 माना गया है। इस पर खरतरगच्छीय चरित्रवर्धनसूरि ने वीर निर्वाण 1975 (विक्रम संवत् 1505) में 4800 श्लोक परिमाण टीका रची थी और हर्षकीर्तिसूरि ने वीर निर्वाण 2130 (विक्रम संवत् 1660) में टीका रची। पंडित बनारसीदासजी ने वीर निर्वाण 2161 (विक्रम संवत् 1691) में इसका हिंदी पद्यानुवाद किया।

*शतार्थ काव्य (कल्याण सार)* सोमप्रभसूरि की यह कृति बुद्धि कौशल की परिचायक है। इसमें उन्होंने एक श्लोक की रचना करके 100 अर्थ किए। यह श्लोक इस प्रकार है
*कल्याणसारसवितानहरेक्षमोहकांतारवारणसमानजयाद्यदेव।*
*धर्मार्थकामद महोदयवीरधीर सोमप्रभावपरमागमसिद्धसूरेः।।*

इस श्लोक में वसंततिलकाछंद आदि कई छंद प्रयुक्त हैं। इस श्लोक पर सोमप्रभ की स्वोपज्ञवृति भी है। इसमें कृति का शतार्थ नाम देकर 100 अर्थ घटित किए हैं। बप्पभट्टि ने अष्टशतार्थी काव्य रचा। उपाध्याय लाभविजयगणीजी ने योगशास्त्र के एक श्लोक पर पंचशतार्थी विवरण रचा। महोपाध्याय समयसुंदरगणी ने 'राजानो ददते सौख्यम्' इस एक चरण पर लाहौर में वीर निर्वाण 2122 (विक्रम संवत् 1652) में अष्टलक्षार्थी विवरण रचा। महोपाध्याय मेघविजयजी ने सप्तसन्धान महाकाव्य रचा। इन काव्यों की श्रृंखला में सोमप्रभसूरि का यह शतार्थी-कल्याण-सार काव्य है।

तपागच्छीय सोमप्रभसूरि ने 28 चित्रबंध-स्तवनों की रचना की। इन स्तवनों को पढ़ने से लेखक की शब्द संयोजन की विशेष क्षमता का परिचय मिलता है।

*समय-संकेत*

'कुमारपाल पडिबोहो' कृति की रचना का समय वीर निर्वाण 1711 (विक्रम संवत् 1241) है। इस कृति के आधार पर बड़गच्छ के सोमप्रभसूरि वीर निर्वाण की 18वीं (विक्रम की 13वीं) शताब्दी के आचार्य थे।

तपागच्छ के आचार्य सोमप्रभसूरि का स्वर्गवास वीर निर्वाण 1843 (विक्रम संवत् 1373) में हुआ।

बड़गच्छ के कवि सोमप्रभसूरि का स्वर्गवास वीर निर्वाण 1754 (विक्रम संवत् 1284) में माना है।

*मननशील आचार्य मल्लिषेण के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 102* 📜

*कालूरामजी जम्मड़*

*शासन-सेवी*

कालूरामजी धर्म शासन के अत्यंत भक्त श्रावक थे। उनकी आस्था बहुत दृढ़ थी। तत्त्वज्ञान भी अच्छा था। वे अपनी सामायिक, जप और ध्यान आदि देनिक धर्म-कृत्यों में बहुत दृढ़ थे। संघ के कार्यों में उनकी प्रारंभ से ही अभिरुचि थी। पत्राचार द्वारा संगीत समाचारों का आदान-प्रदान संवत् 1930 से ही करने लगे थे। संवत् 1949 में मघवागणी के दिवंगत होने तक वह कार्य उन्होंने किया। उसके पश्चात् श्री चंदजी गधैया को सौंप दिया।

जम्मड़जी नाड़ी के अच्छे ज्ञाता थे। मघवागणी ने संवत् 1949 का मर्यादा महोत्सव सरदारशहर में किया। उस समय वे उन्हीं की हवेली में विराज रहे थे। फिर रुग्णावस्था के कारण विहार नहीं हो सका और वे चैत्र कृष्णा 5 को वहीं दिवंगत हुए। दिवंगत होने के कुछ दिन पूर्व श्रीचंदजी गधैया ने उनकी नाड़ी देखी तो उन्हें निकट काल में ही खतरा लगा। उन्होंने तब कालूरामजी से परामर्श किया। उन्होंने भी मघवागणी की नाड़ी देखी और श्रीचंदजी से कहा कि हमें अब आवश्यक तैयारी कर लेनी चाहिए। उन्हीं के परामर्श से श्रीचंदजी ने तब प्रच्छन्न रूप से बैंकुंठी बनवा ली तथा जयपुर से चंदन आदि सामग्री भी मंगवा ली। मघवागणी दिवंगत हुए तब स्थानीय श्रावक समाज एकत्रित हुआ तो सभी की आकृति पर यह चिंता झलक रही थी कि अब आवश्यक सामग्री की तत्काल व्यवस्था कैसे की जाए? कालूरामजी ने तब सारे समाज को आश्वस्त करते हुए उस रहस्य को उद्घाटित किया कि यहां उपस्थित एक व्यक्ति ने अपने पास सारी व्यवस्था कर रखी है। लोगों की उत्सुकत आंखें उस व्यक्ति को देखने के लिए लालायित हुईं तब जम्मड़जी ने श्रीचंदजी के नाम से सबको अवगत किया। समाज उनकी दूरदर्शिता पर मुग्ध हुआ और आगे के लिए संघ संबंधी कार्यों का भार उन्हें सौंप दिया। इस प्रकार श्रीचंदजी जैसे कर्मठ व्यक्ति को संघ सेवा के क्षेत्र में एक ही दिन में सर्व ज्ञात कर देने का श्रेय कालूरामजी ने उपलब्ध किया।

*महान् शय्यातर*

'जम्मड़ों की हवेली' नाम से प्रसिद्ध हवेली का निर्माण संवत् 1925 में प्रारंभ और संवत् 1930 में पूर्ण हुआ। उस समय उसकी दो मंजिले ही बनवाई गईं। सरदारशहर में साधु-साध्वियों का निवास पहले अनेक वर्षों तक विभिन्न स्थानों पर होता रहा। संवत् 1930 से 76 तक के चातुर्मास तथा शेषकाल प्रवास मुख्यतः उक्त हवेली में ही हुए। कालूरामजी बहुधा सजगता पूर्वक मकान की भावना भाते रहते थे। उनकी उस लगन से प्रभावित होकर एक बार डालगणी ने फरमाया— "जम्मड़ परिवार को अपने निवास के लिए आवश्यकता न हो तब तक साधु-साध्वियों को हवेली का उपयोग करते रहना चाहिए।"

जम्मड़ परिवार ने लगातार 46 वर्षों तक शय्यातर का महान् लाभ प्राप्त किया। उसके पश्चात् गधैयाजी के नोहरे में साधु-साध्वियों का प्रवास होने लगा। जम्मड़ परिवार के बड़े हो जाने तथा पृथक्-पृथक् हो जाने के कारण बसने के लिए हवेली की आवश्यकता हुई। संवत् 1976 से 80 तक के समय में उस पर दो मंजिलें और बनवाई गईं। कलात्मक भित्ति-चित्रों से हवेली के बाह्य परिवेश को अलंकृत किया गया। कालांतर में उन भित्त-चित्रों के फोटो राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। कला क्षेत्र में उन्होंने अच्छी ख्याति प्राप्त की। भवन के प्राचीन भाग के कमरों में अनेक स्थानों पर तेरापंथ से संबंधित कुछ भित्ति-लेख भी हैं। वे अपने अपने-अपने समय की कुछ ऐतिहासिक सूचनाएं देते हैं।

*कालूरामजी जम्मड़ के जीवन के डालगणी के सान्निध्य में कुछ प्रेरणादायक प्रसंगों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई

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*गुरवरो धम्म-देसणं*

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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

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राष्ट्रीय संस्कार
निमार्ण शिविर
का सप्तम दिवस

📮
दिनांक:
17 अक्टूबर 2018

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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......


परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन भ्रमण
के मनमोहक दृश्य....

📮
दिनांक:
17 अक्टूबर 2018

🎯
प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

🔰♦🎌☄⛲🔰♦🎌☄⛲🔰

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News in Hindi

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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👉 ध्यान स्वयं एक समाधान: क्रमांक - २
*ध्यान की सही समझ*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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