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*प्रस्तुति 🌻संघ संवाद*🌻
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परम पूज्य आचार्य प्रवर
का प्रेरणा पाथेय....
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......
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दिनांक:
31 अगस्त 2018
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Update
31 August 2018
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👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के
प्रतिदिन के *मुख्य प्रवचन* को
देखने- सुनने के लिए
नीचे दिए गए लिंक पर
क्लिक करें....⏬
https://youtu.be/A5gvvn22zeA
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: दिनांक:
*31 अगस्त 2018*
: प्रस्तुति:
❄ *अमृतवाणी* ❄
: संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 413* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*राजवंश*
गतांक से आगे...
नरेश कुमारपाल करुणार्द्र था। हेमचंद्राचार्य के संपर्क ने उसे अध्यात्मोन्मुख बना दिया। उस समय पूर्वजों से चली आ रही राजपरंपरा के अनुसार पति-वियुक्ता महिला का समग्र धन राजपुरुषों द्वारा ग्रहण कर उसे राजकोष में पहुंचा दिया जाता था। नरेश कुमारपाल ने इस विधान को अमान्य किया। पुत्रहीना-दीना दुःखिता विधवा महिला के धन को अग्रहणीय घोषित कर कुमारपाल ने स्वस्थ नीति और परंपरा की स्थापना की। वह जैन धर्म में प्रतिपादित अभय, अहिंसा और अपरिग्रह की दिशा में श्रेष्ठ कदम था।
आचार्य हेमचंद्र का बढ़ता प्रभाव कई व्यक्तियों के लिए असह्य हो गया। एक दिन कुमारपाल से कुछ व्यक्तियों ने कहा "हेमचंद्र अपने इष्टदेव की आराधना करता है और अपने मत को श्रेष्ठ समझता है। वह इतरदेव को महत्त्व नहीं देता।" कुमारपाल को यह बात अखरी। एक दिन नरेश ने हेमचंद्र को सोमेश्वर की यात्रा में साथ चलने के लिए कहा। प्रत्युत्तर में हेमचंद्र तत्काल अपनी स्वीकृति प्रदान करते हुए बोले "राजन्! मुनियों के लिए तीर्थाटन प्रमुख है। इस कार्य के लिए मैं सहर्ष तैयार हूं।" राजा ने सुखपाल आदि वाहन का प्रयोग करने के लिए कहा पर आचार्य हेमचंद्र ने इस सुविधा को स्वीकार नहीं किया। वे बोले "राजन् हम पदयात्रा के द्वारा ही तीर्थों का पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे।" सोमेश्वर के मंदिर में पहुंचकर हेमचंद्राचार्य ने श्लोकों द्वारा शिव की स्तुति की।
*भवबीजांकुरजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य।*
*ब्रह्मा बा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै।।*
भव बीज को अंकुरित करने वाले राग-द्वेष पर जिन्होंने विजय प्राप्त कर ली है, भले ही वे ब्रह्मा, विष्णु, हरि और जिन किसी भी नाम से संबोधित होते हो, उन्हें मेरा नमस्कार है।
*महारागो महाद्वेषो, महामोहस्तथैव च।*
*कषायश्च हतो येन, महादेवः स उच्यते।।*
जिसने महाराग, महाद्वेष, महामोह और कषाय को नष्ट किया है, वही महादेव है।
प्रबंध चिंतामणि के अनुसार हेमचंद्र ने राजा को शिव के साक्षात् दर्शन करवाए। इससे कुमारपाल अत्यधिक प्रसन्न हुआ।
*हेमचंद्राचार्य ने नरेश कुमारपाल के जीवन को अध्यात्मोन्मुख कैसे बनाया...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 67* 📜
*उदयचंदजी बैद (ताराणी)*
*त्याग और तपस्या*
उदयचंदजी के जीवन में त्याग और तपस्या की क्रमशः वृद्धि होती रही। उनके उल्लेखनीय त्यागों और तपस्याओं का क्रम संवत् 1934 से प्रारंभ हुआ वह अंत तक निखरता ही चला गया। संवत् 1934 में उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया। रात्रि भोजन, हरित्काय और सचित्त जल के उपभोग का त्याग किया। प्रति मास दो निर्जल उपवास, दो अष्ट प्रहरी पौषध तथा रात्रिकालीन चौविहार प्रत्याख्यान भी आजीवन के लिए उसी समय से प्रारंभ किए। 3 पौषध उन्होंने श्मशान भूमि में किए। उनमें से दो में तो वे अकेले ही थे तथा एक में संचियालालजी बैद उनके साथ थे।
तपस्या करने में वे बहुत प्रखर व्यक्ति थे। संवत् 1944 तक प्रतिवर्ष कम से कम दो थोकड़े करते रहे थे। दो बार उन्होंने लड़ी तप किया। उनमें से एक 15 तक तथा दूसरा 18 तक का था। उनकी तपस्या का पूरा विवरण उपलब्ध नहीं है।
*महान् संलेखना*
उदयचंदजी का शरीर बहुत सबल था। वृद्धावस्था में भी उनकी शारीरिक शक्ति काफी प्रबल थी। संवत् 1983 में जबकि वे 77 वर्ष के थे, तब उन्हें अपनी कमर में कुछ पीड़ा अनुभव होने लगी। उन्हीं दिनों में उनके मुख में छाले भी हो गए। उन्होंने तब निर्णय किया कि आचार्यश्री के दर्शन कर आऊं तो कुछ धार्मिक संबल भी मिल जाएगा और वायु परिवर्तन से शायद यह शारीरिक उपद्रव भी शांत हो जाएंगे। वे आचार्यश्री कालूगणी की सेवा में सरदारशहर चले गए। वापस आते समय रतनगढ़ के हुडेरा स्टेशन पर रेल से उतरे, परंतु वहां से राजलदेसर के लिए उन्हें कोई सवारी नहीं मिली। कुछ समय तो वे सवारी की प्रतीक्षा करते रहे, परंतु बाद में अपने पास का लगभग 10 किलो भार उठाया और पैदल ही चल पड़े। राजलदेसर वहां से 16 किलोमीटर दूर है। वे आनंद से पहुंच गए। रात्रिकालीन विश्राम के पश्चात् उठे तब उन्हें अपना शरीर अकड़ा हुआ लगा। जीवन में शायद प्रथम बार उन्होंने अपनी वृद्धता का इतना गंभीर अनुभव किया। शरीर के प्रति विरक्ति से वे भर गए। उन्होंने उसी समय 11 दिनों की तीविहार तपस्या ग्रहण कर ली। वह संवत् 1983 चैत्र शुक्ला 3 का दिन था। प्रातः उन्होंने अपनी पुत्र वधू को तपस्या की सूचना दे दी। पांच दिन व्यतीत हुए तब तक उनकी कमर की पीड़ा और मुख के छाले स्वयं ही ठीक हो गए, परंतु उन्होंने तपस्या को आगे बढ़ाकर 21 दिनों तक का प्रत्याख्यान ले लिया। पुत्र और पुत्र वधू पारण करने का आग्रह करने लगे। तब उन्होंने कहा— "पारण की बात तो अब आचार्यश्री के दर्शन करने के पश्चात् ही सोचूंगा।" उन सबने तब दर्शन करा देने की शीघ्रता प्रारंभ कर दी तो उन्होंने कहा— "अभी तो बहुत गर्मी पड़ रही है, थोड़ी वर्षा होने पर चलेंगे।" पुत्र ने आग्रहपूर्वक कहा कि आपको दर्शन अभी कर लेने चाहिए। क्योंकि अभी तो वैशाख का महीना ही प्रारंभ हुआ है। निकट समय में वर्षा होने की कोई संभावना नहीं है। उदयचंदजी ने पुत्र की बात को यों ही टाल दिया और वे अपनी तपस्या को आगे बढ़ाते ही रहे। वर्ष की प्रथम वर्षा आषाढ़ कृष्णा 1 को हुई। उस समय उनकी तपस्या 73 दिन तक पहुंच चुकी थी।
*क्या श्रावक उदयचंदजी बैद (ताराणी) आचार्यश्री के दर्शन कर पाए...? उनकी यह महान् तपस्या कितने दिनों तक चली...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 दिल्ली - *प्रभावक संथारे का छठा दिन सानन्द गतिमान*
👉 इस्लामपूर - साधारण सभा एवं "करे लक्ष्य का निर्धारण कार्यशाला का आयोजन"
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
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परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन भ्रमण
के मनमोहक दृश्य....
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दिनांक:
31 अगस्त 2018
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