14.08.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 14.08.2018
Updated: 05.09.2018

Update

👉 गांधीनगर (बेंगलुरू): 25 बोल लिखित प्रतियोगिता आयोजित
👉 अहमदाबाद: पच्चीस बोल आधारित अनोखी एवं ज्ञानवर्धक प्रतियोगिता का आयोजन
👉 अहमदाबाद: सास बहु सेमिनार का आयोजन
👉 सिरियारी - आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी द्वारा स्कूल बैग का वितरण
👉 भुज - नशामुक्ति एवम पर्यावरण शुद्धि सम्मेलन का आयोजन

*प्रस्तुति: 🌻 संघ संवाद*🌻

Source: © Facebook

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Video

14 August 2018

👉 *मुनि श्री कुमारश्रमण जी*
द्वारा ‘कैसा हो तेरापंथी परिवार’
विषय पर उद्बोधन देखने सुनने
के लिए निचे दिए गए लिंक पर
क्लिक करें....⏬
https://youtu.be/EgAGtS4ZP_Q

📍
: दिनांक:
*14 अगस्त 2018*

: प्रस्तुति:
❄ *अमृतवाणी* ❄

: संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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परम पूज्य आचार्य प्रवर
का प्रेरणा पाथेय....


आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......

📮
दिनांक:
14 अगस्त 2018

🎯
प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

❄⛲🎌☄⛲❄⛲🎌☄⛲❄

Source: © Facebook

Video

14 August 2018

❄⛲❄⛲❄⛲❄⛲❄

👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के
प्रतिदिन के *मुख्य प्रवचन* को
देखने- सुनने के ‌लिए
नीचे दिए गए लिंक पर
क्लिक करें....⏬

https://youtu.be/wAimsMAyMis

📍
: दिनांक:
*14 अगस्त 2018*

: प्रस्तुति:
❄ *अमृतवाणी* ❄

: संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

❄⛲❄⛲❄⛲❄⛲❄

Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 401* 📝

*वादकुशल आचार्य वादिदेव*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

देवसूरि के शब्दों में आत्मबल था। इस शास्त्रार्थ में दोनों पक्षों द्वारा एक प्रतिज्ञापत्र स्वीकृत किया गया। जिसका भावार्थ था कि दिगंबरों की शास्त्रार्थ में पराजय होने पर वे पाटण छोड़कर दक्षिण चले जाएंगे। श्वेतांबर पक्ष की पराजय होने पर अपनी मान्यता परित्याग कर दिगंबरत्व स्वीकार कर लेंगे।

नागरिकजन इस शास्त्रार्थ को सुनने के लिए उत्सुक थे। दिगंबर और श्वेतांबर दोनों ओर से अपनी मान्यताओं का युक्ति पुरस्सर प्रतिपादन एवं विपक्ष का निरसन किया गया।

देवसूरि ने स्त्री-मुक्ति विषय के समर्थन में मुक्तिगामिनी मरुदेवी माता आदि के उदाहरणों की प्रस्तुति के साथ राजमाता की ओर संकेत करते हुए कहा राजमाता मयणल्ला महान सत्वशालिनी है, अतः महिलाओं को तुच्छसत्वा कौन कह सकता है? महिला भी अपने सत्व और पुरुषार्थ द्वारा मुक्तिसाम्राज्य को प्राप्त करने में समर्थ है।

देवसूरि ने शांत्याचार्य रचित उत्तराध्ययन की टीका के आधार पर अनेक तर्क प्रस्तुत किए, इन तर्कों को श्रोताओं द्वारा ग्रहण करना कठिन हो गया।

देवसूरि की इस शास्त्रार्थ में विजय हुई। मुख्य सभासदों द्वारा विजय का समर्थन हुआ। नरेश सिद्धराज जयसिंह ने देवसूरि को वादि की उपाधि प्रदान की एवं लिखित राजपत्र एवं दान देकर उनका विशेष सम्मान किया। अपरिग्रही देवसूरि द्वारा यह दान अस्वीकार करने पर अन्य धार्मिक प्रवृत्तियों में इस अर्थ राशि का उपयोग हुआ। इस विजय के बाद देवसूरि वादि देवसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए।

इस शास्त्रार्थ में विद्वान् राजवैतालिक, सिद्धांत प्रवीण श्रीचंद एवं युवा संत हेमचंद्राचार्य भी उपस्थित थे। तीनों विद्वानों ने इस शास्त्रार्थ की प्रशंसा की। हेमचंद्राचार्य ने कहा

*यदि नाम कुमुदचन्द्रं नाजेष्यद् देवसूरिरहिमरुचिः।*
*कटिपरिधानमध्यास्यत कतमः श्वेताम्बरो जगति।।251।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 180)*

इस शास्त्रार्थ में देव सूर्य के हेमचंद्राचार्य महान् सहयोगी थे। शास्त्रार्थ से पूर्व दिगंबर मतानुयायी राजमाता को श्वेतांबर मत का बोध देकर अपने पक्ष के अनुकूल बनाने का कार्य हेमचंद्राचार्य ने किया था।

यह सारा प्रकरण प्रभावक चरित्र ग्रंथ के वादिदेवसूरि प्रबंध में है जो उस समय की शास्त्रार्थ पद्धति एवं वादरसिक मनोवृत्ति की जानकारी देता है।

आचार्य वादिदेव ने मारवाड़, गुजरात आदि क्षेत्रों में धर्म प्रचार किया। अपने पद पर उन्होंने मुनि भद्रेश्वर को नियुक्त किया।

*वादकुशल आचार्य वादिदेव द्वारा रचित साहित्य एवं उनके आचार्य-काल के समय-संकेत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 55* 📜

*शोभाचंदजी बैंगानी (द्वितीय)*

*यति केवलचंदजी की करतूत*

बीदासर में यतियों का प्रभाव बहुत था। कालांतर में आचार-शैथिल्य के कारण उनके प्रति श्रद्धा भाव में तो अत्यंत कमी हो गई, परंतु तंत्र-प्रयोग आदि के भय से जनता उन्हें सम्मान देती रही। विवाहादि प्रसंगों पर सर्वप्रथम उन्हें बुलाया जाता और एक बंधी हुई मात्रा में मिठाई और भोज्य पदार्थ दिए जाते। इधर के कुछ वर्षों से यति लोग ओसवालों के साथ झगड़ा रखने लगे। लोग उनसे उब गए, अतः उनकी 'लागों' को पूर्णतः बंद कर उनसे मुक्त हो जाना चाहने लगे। संवत् 1933 में शोभाचंदजी की बड़ी पुत्री का विवाह वहीं के सिंघी परिवार में हुआ। उन्हें भोज दिया गया। उस समय सिंघियों के उपाश्रय में यदति केवलचंदजी रहा करते थे। भोज के अवसर पर उन्हें गोचरी के लिए निमंत्रित नहीं किया गया। इस पर रुष्ट होकर उन्होंने मंत्र-प्रयोग किया और शोभाचंदजी के पुतले बनाकर भूमि में गाड़ दिए। फलस्वरूप शोभाचंदजी रुग्ण रहने लगे। उनका शरीर धीरे-धीरे सूखता चला गया। अनेक उपचार करा लेने पर भी वे ठीक नहीं हुए। एक वैद्य ने उनसे कहा कि कोई औषधि काम नहीं कर रही है, अतः संभव है किसी ने आप पर मंत्र-प्रयोग किया हो। उस स्थिति का निश्चित पता किसी अच्छे मंत्रवादी से ही लग सकता था, अतः उसकी खोज प्रारंभ हुई। जयपुर निवासी सदासुखजी दुगड़ को जब उक्त स्थिति का पता चला, तब अपने परिचित 'करोली' के ठाकुर भैरूंसिंहजी को लेकर वे बीदासर आए। ठाकुर मंत्रविद् थे। उन्होंने अपनी पद्धति से परीक्षण किया और पाया कि वे मंत्र-प्रयोग से ही रुग्ण हैं। मंत्रशक्ति के उस प्रभाव को नष्ट करने के लिए उन्होंने अपना प्रयोग प्रारंभ किया। सर्वप्रथम सवा मण तेल गर्म किया गया, फिर मंत्र-जप प्रारंभ करने से पूर्व उन्होंने सेठ शोभाचंदजी से कहा— "आप कहें तो आपके विरुद्ध मंत्र-प्रयोक्ता को इसी तेल में होम कर दूं, और आप कहें तो केवल आपकी सुरक्षा का ही प्रबंध कर दूं।" सेठ ने कहा— "शत्रु कौन है यह मैं अच्छी तरह से जानता हूं, पर उससे बदला लेने की मेरी कोई भावना नहीं है। आप तो केवल मेरी सुरक्षा का ही प्रबंध कर दीजिए।" ठाकुर साहब ने वैसा ही किया। मंत्र-बल से उन्होंने गाड़े गए पुतलों को आह्वान किया। अज्ञात स्थान से उखड़कर तीन पुतले वहां आए। उन्हें तत्काल उस खोलते हुए तेल में जला दिया गया। उसके पश्चात् ठाकुर साहब ने उन्हें एक मंत्रित कड़ा दिया। उसे वे अपनी कोहनी के ऊपर पहना करते थे। यति केवलचंदजी की करतूत सब के सम्मुख आ गई। तभी से यतियों के प्रति लोगों के मन में और अधिक वितृष्णा हो गई।

*यति अगरचंदजी के विद्वेष* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi

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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......

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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए

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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

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संस्था शिरोमणि'
जै.श्वे.ते. महासभा द्वारा
आयोजित त्रिदिवसीय
तेरापंथी सभा प्रतिनिधि
सम्मेलन का द्वितीय दिवस

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दिनांक:
14 अगस्त 2018

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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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