10.08.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 14.08.2018
Updated: 15.08.2018

News in Hindi

👉 शाहीबाग (अहमदाबाद) - अणुव्रत समिति का शपथग्रहण समारोह
👉 बैढ़न (म.प्र.): अणुवत समिति द्वारा "पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम"
👉 अनपरा (सोनभद्र, उ.प्र.): अणुवत समिति द्वारा "पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम"

प्रस्तुति: *अणुव्रत सोशल मीडिया*
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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परम पूज्य आचार्य प्रवर
का प्रेरणा पाथेय....


आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......

📮
दिनांक:
10 अगस्त 2018

🎯
प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Source: © Facebook

Video

10 August 2018

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👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के प्रतिदिन के
*मुख्य प्रवचन* को देखने के ‌लिए निचे दिए
गए लिंक पर क्लिक करें....⏬

https://youtu.be/nsM_Gp_7MgI

📍दिनांक:
*10 अगस्त 2018*

प्रस्तुति:
💧 *अमृतवाणी*💧

संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Video

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 10 अगस्त 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 398* 📝

*वादकुशल आचार्य वादिदेव*

*जीवन-वृत्त*

गतांक से आगे...

मुनिचंद्रसूरि ने वीरनाग के द्वारा पूर्णचंद्र के बारे में सारा वृत्तांत सुनकर सोचा यह बालक कोई उत्तम पुरुष है।

*दर्शयन्ती स्वरूपाणि लक्ष्मीर्यस्याभिलाषुका।।27।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 171)*

लक्ष्मी स्वयं अपना रूप इसके सामने प्रकट कर रही है। चंद्रमा के समान ज्योति इसके चेहरे पर चमक रही है। यह मुनि बनकर जैन शासन की उन्नति करेगा। मुनिचंद्रसूरि ने श्रेष्ठी वीरनाग से कहा "तुम अपने इस पुत्र को हमारे धर्म संघ के लिए समर्पित कर दो।" श्रेष्ठी वीरनाग बोला "गुरुदेव! मेरे एक ही पुत्र है। मैं वृद्ध हो गया हूं। किसी प्रकार का व्यवसाय करने में मैं असमर्थ हूं। इसकी माता भी वृद्ध हो गई है। हमारी वृद्धावस्था में सहारा देने वाला यही एक कुलदीप है, अतः मैं इसका धर्मसंघ के लिए समर्पण कैसे कर सकता हूं?" मुनि चंद्र बोले "मेरे पांच सौ शिष्य सब तुम्हारे पुत्र हैं।" गुरु के आग्रह पर पिता वीरनाग, माता जिनदेवी ने अपने पुत्र को गुरुदेव के चरणों में भेंट कर दिया। मुनिचंद्रसूरि योग्य बालक को पाकर प्रसन्न हुए। उन्होंने पूर्णचंद्र को वीर निर्वाण 1622 (विक्रम संवत् 1152) में मुनि दीक्षा प्रदान की। दीक्षा ग्रहण करते समय बालक पूर्णचंद्र की उम्र 9 वर्ष की थी। नवदीक्षित मुनि का नाम रामचंद्र रखा गया।

रामचंद्र प्रतिभासंपन्न थे। उन्होंने आचार्य मुनिचंद्र से न्याय विषयक ज्ञान ग्रहण किया। जैन, जैनेतर सिद्धांतों का भी उन्होंने गंभीर अध्ययन किया। वे शास्त्रार्थ करने में निपुण थे।

*शिवाद्वैतं वदन् धन्धः पुरे धवलके द्विजः*
*काश्मीरः सागरो जिग्ये वादात् सत्यपुरे पुरे।।39।।*
*तथा नागपुरे क्षुण्णो गुणचन्द्रो दिगम्बरः।*
*चित्रकूटे भागवतः शिवभूत्याख्यया पुनः।।40।।*
*गङ्गाधरो गोपगिरौ धारायां धरणीधरः।*
*पद्माकरो द्विज पुष्करिण्यां वादामदोद्धुरः।।41।।*
*जितश्च श्रीभृगुक्षेत्रे कृष्णाख्यो ब्राह्मणाग्रणीः।*
*एवं वादजयोन्मुद्रो रामचन्द्रः क्षितावभूत्।।42।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 172)*

धवलक नगर में शैव मत समर्थक धन्ध नामक ब्राह्मण विद्वान् के साथ, सत्यपुर नगर में काश्मीर निवासी विद्वान् सागर के साथ, नागपुर में दिगंबर मनीषी गुणचंद्र के साथ, चित्रकूट (चित्तौड़) में भागवत मतानुयायी शिवभूति के साथ, गोपगिरि (ग्वालियर) में गङ्गाधर के साथ, धारा में धरणीधर के साथ, पुष्पकरिणी में पद्माकर ब्राह्मण पंडित के साथ, भृगुकच्छ में ब्राह्मणाग्रणी कृष्ण के साथ शास्त्रार्थ कर रामचंद्र मुनि विजय बने।

*विद्वान् विमलचन्द्रोऽथ हरिचन्द्रः प्रभानिधिः।*
*सोमचन्द्रः पार्श्वचन्द्रो विबुधः कुलभूषणः।।43।।*
*प्राज्ञः शान्तिस्तथाऽशोकचन्द्रश्चन्द्रोल्लसद्यशाः।* *अजायन्त सखायोऽस्य मेरोरिव कुलाचलाः।।44।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 172)*

विमलचन्द्र, हरिचन्द्र, सोमचन्द्र, पार्श्वचन्द्र, शांतिचन्द्र और अशोकचन्द्र ये छह विद्वान् मुनि रामचन्द्र के वाग्मित्व से प्रभावित होकर उनके परम सखा बन गए।

*मुनिचंद्रसूरि द्वारा रामचंद्र की आचार्य पद पर नियुक्ति आदि* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 52* 📜

*शोभाचंदजी बैंगानी (द्वितीय)*

*सेवाभावी श्रावक*

गतांक से आगे...

कालूगणी से शोभाचंदजी प्रारंभ से ही प्रभावित थे। बाल्यावस्था में कालूगणी जब माता छोगांजी के साथ दीक्षा लेने हेतु बिदासर आए थे, तब उन्हीं के मकान में ठहरे थे। शोभायात्रा निकालते समय शोभाचंदजी ने विरागी कालू को एक हार पहनाना चाहा, परंतु उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया। बालक की वह निस्पृहता शोभाचंदजी को अत्यंत प्रभावित कर गई। उस समय उनके मन में जो आदर भाव उत्पन्न हुआ, वही कालांतर में भक्ति में परिणत हो गया। कालूगणी भी उनके सौजन्य तथा भक्ति से बहुत प्रभावित थे।

कालूगणी ने संवत् 1971 में जब मारवाड़-मेवाड़ यात्रा का निर्णय किया, तब शोभाचंदजी ने प्रार्थना की कि माता छोगांजी को बिदासर में स्थिरवास के लिए रखा जाए। कालूगणी ने उस प्रार्थना को स्वीकार कर उन्हें वहां रहने के लिए भेज दिया और विहार करने का निर्णय उनकी इच्छा पर ही छोड़ दिया। महासती कानकंवरजी भी वहीं पर थीं। कई वर्षों के पश्चात् एक बार उन्होंने विहार करने का निश्चय किया और प्रथम मंजिल में बेनाथा आ गईं। शोभाचंदजी आचार्यश्री की सेवा में गए हुए थे। पता लगते ही वे वहां से बेनाथा पहुंचे। उनके आग्रह से मांजी को पुनः बिदासर आने के लिए विवश कर दिया। उसके पश्चात् वे आजीवन वहीं रहीं।

शोभाचंदजी मार्ग की सेवा करने में भी विशेष रुचि रखा करते थे। कालूगणी की मारवाड़-मेवाड़ की प्रथम यात्रा में की गई उनकी सेवा उल्लेखनीय रही। आचार्यश्री जिस गांव में पधारते वहां के विशिष्ट व्यक्तियों से वे पहले ही संपर्क कर लिया करते थे। अनेक बार तो उनका वह संपर्क मित्रता तक में परिणत हो जाता था। उस युग में इतने बड़े प्रमाण में जनसंपर्क करने वाले वे प्रथम व्यक्ति ही कहे जा सकते हैं। ठाकुर तेजसिंहजी बीदावत उनके यहां नौकरी किया करते थे। वे उनके हर कार्य की व्यवस्था करने में बड़े निपुण थे। यों तो वे अंगरक्षक बनकर छाया की तरह प्रायः उनके साथ ही रहा करते, परंतु मार्ग की सेवा में कार्य व्यवस्था के लिए उन्हें आगे जाना पड़ता। उस समय बड़े घरों में विवाह आदि अवसरों पर इतनी बड़ी मात्रा में मिठाई बनती थी कि कई 'मण' बच जाती थी। ठाकुर तेजसिंहजी उसका उपयोग ऐसे अवसरों पर कर लेते। वे अपने ऊंट पर बोरों में वह मिठाई लादकर चलते। जहां पड़ाव करना होता वहां जाते ही वे बालकों में थोड़ी-थोड़ी मिठाई बांट देते। सारे गांव में सेठ के आगमन की खबर उससे तत्काल फैल जाती, साथ ही फिर उनके लिए हर कार्य सहज हो जाता। वे आचार्यश्री एवं साधु-साध्वियों के रहने योग्य स्थान का निर्धारण कर लेने के पश्चात् सेठ के ठहरने की व्यवस्था करते और फिर सेवा में आगत अन्य डेरों के उपयुक्त स्थान की भी व्यवस्था कर लेते। उनके पास पर्याप्त रुपए रहा करते थे। यथावश्यक व्यय करने में वे पूर्ण स्वतंत्र थे। शोभाचंदजी ने उन्हें कभी व्यय का विवरण नहीं पूछा। ऐसे सहयोगी के कारण उनकी मार्ग सेवा सुखद और सरल हो जाती। लोग कहते "ऐसा स्वामी और ऐसा सेवक दोनों ही दुर्लभ हैं।"

*एक बार एक संत के मन में श्रावक शोभाचंदजी पर 'पश्चातकर्म दोष' की शंका हो गई... इसका कारण क्या था और निवारण कैसे हुआ...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......

🔮
परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए

📒
आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

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कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां

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दिनांक:
10 अगस्त 2018

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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 तिरुपुर -EMPOWERMENT कार्यशाला एवं सामुहिक तप अभिनन्दन समारोह
👉 जयपुर शहर - महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी का 78 वां जन्मदिवस
👉 सादुलपुर - स्टूडेंट्स की दिनचर्या कैसी हो कार्यशाला का आयोजन
👉 सूरत - करे लक्ष्य का निर्धारण कार्यशाला का आयोजन
🌀 अभातेमम *महामंत्री नीलम जी सेठिया* की गरिमामय उपस्थिति

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

*इन्द्रियों पर विजय: वीडियो श्रंखला १*

👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*

*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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