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👉 भीलवाड़ा (राज.): अणुव्रत समिति द्वारा सन शाइन पब्लिक स्कूल में "अणुव्रत संगोष्ठी" का आयोजन
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👉 राजगढ़ - अच्छा मानव कैसे बने कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 397* 📝
*वादकुशल आचार्य वादिदेव*
*जीवन-वृत्त*
वादिदेवसूरि के पिता वीर नाग श्रेष्ठी प्राग्वाट वंश के गुणवान् व्यक्ति थे। मुक्ता की भांति उनका उज्जवल चरित्र था। वादिदेवसूरि की माता जिनदेवी सरलाशया, विनम्र, विवेक-संपन्न एवं साक्षात् देवी रूप थी। एक दिन जिनदेवी ने स्वप्न में चंद्रमा को अपने में प्रवेश करते हुए देखा। उसने अपने स्वप्न की बात अपने गुरु मुनिचंद्र के सामने कही। मुनिचंद्रसूरि स्वप्न का फलादेश बताते हुए बोले
*देवेश्चंद्रनिभः कोऽप्यवततार तवोदरे।*
*आनन्दयिष्यते विश्वं येन ते चेत्थमादिशन्।।12।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 171)*
बहिन! चंद्रमा के समान कांतिमान् प्राणी का तुम्हारी कुक्षि में अवतार हुआ है। यह प्राणी विश्व के लिए आनंदकारी होगा।
गुरु के मुख से यह सुनकर जिनदेवी को अत्यंत प्रसन्नता हुई। गर्भकाल की संपन्नता पर उसने वीर निर्वाण 1623 (विक्रम संवत् 1143, ईस्वी सन् 1086) में तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। चंद्र स्वप्न के आधार पर पिता वीरनाग ने पुत्र का नाम पूर्णचंद्र रखा।
वीरनाग श्रेष्ठी नगर में अपने परिवार सहित आनंद से रह रहे थे। माता-पिता के संरक्षण में चंद्रकला की भांति बालक पूर्णचंद्र भी दिन-प्रतिदिन विकास कर रहा था। एक दिन नगर में उपद्रव हो गया। उपद्रव से बचने के लिए वीरनाग श्रेष्ठी को गांव छोड़ना पड़ा। परिवार को लेकर वीरनाग ने दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान किया। इधर-उधर घूमता हुआ श्रेष्ठी परिवार लाट देश के प्रसिद्ध नगर भृगुकच्छ (भरूच) में पहुंच गया। पुण्योदय से व्यक्ति को दूर अनजाने प्रदेश में भी अनुकूल सहयोग मिल जाता है। वीरनाग श्रेष्ठी के शुभ संयोग से गुरु मुनिचंद्रसूरि का आगमन उस समय भृगुकच्छ में हुआ। वीरनाग श्रेष्ठी को गुरु दर्शन से अत्यंत प्रसन्नता हुई। धर्मोपासक बंधुओं ने वीरनाग श्रेष्ठी के रहने की व्यवस्था धार्मिक वात्सल्य के कारण मुनिचंद्रसूरि के पास धर्म स्थान पर ही की। इस व्यवस्था में प्रमुख निमित्त श्रेष्ठी वीरनाग पर मुनिचंद्रसूरि का विशेष वात्सल्य भाव ही था। श्रेष्ठी वीरनाग का पुत्र बालक पूर्णचंद्र उस समय लगभग 8 वर्ष का था। वह अपनी योग्यतानुसार वाणिज्य करने लगा। वस्तुओं को बेचने के लिए वह घर-घर जाता था। बालक की मीठी सरल वाणी सुनकर लोग प्रसन्न होते, वे उसे खुशी में खाने के लिए मधुर दाख आदि प्रदान करते थे।
दुर्भाग्य से किसी श्रेष्ठी के घर में स्वर्ण मोहरे और सिक्के कोयले या पत्थर के टुकड़े बन गए। श्रेष्ठी उन्हें व्यर्थ समझकर अवकर पर गिरा रहा था। बालक पूर्णचंद्र ने यह देखा और विस्मित होकर बोला
"आप जीवनौषध के समान इन बहुमूल्य स्वर्ण जैसी द्रव्य राशि को क्यों फेंक रहे हैं?"
श्रेष्ठी समझदार, चतुर और विवेक संपन्न था। उसने सोचा यह पुण्यवान बालक है। जो स्वर्ण सिक्के मेरी दृष्टि में कंकर, पत्थर और कोयला मात्र हैं, वे इसे अवश्य अपने असली रूप में दिखाई दे रहे हैं। बुद्धिमान श्रेष्ठी ने बांस से बना पात्र बालक को दिया और कहा "प्रिय पुत्र! मेरे द्वारा फेंका जाने वाला द्रव्य इस पात्र में भरकर तुम मुझे दे दो।" बालक ने वैसा ही किया। पत्थर के टुकड़ों की तरह दिखने वाले सिक्के और मोहरे बालक के स्पर्श मात्र से स्वर्ण सिक्कों में दिखाई देने लगे। श्रेष्ठी बहुत प्रसन्न हुआ और एक स्वर्ण सिक्का उसे प्रदान किया। बालक घर लौटा। उसने सिक्का अपने पिता के हाथ में दिया। पिता वीरनाग ने पुत्र से सारा वृत्तांत सुनकर मुनिचंद्रसूरि को निवेदन किया।
*मुनिचंद्रसूरि ने सारा वृत्तांत सुनकर क्या कहा...?* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 51* 📜
*शोभाचंदजी बैंगानी (द्वितीय)*
*सेवाभावी श्रावक*
शोभाचंदजी ने आचार्य रायचंदजी से लेकर कालू गणी तक का युग देखा था। जयाचार्य के युग में उनके धार्मिक संस्कार पनपे पर और परिपक्व हुए। मघवागणी के युग से कालू गणी के युग के प्राथमिक वर्षों तक उन्होंने प्रमुख श्रावक रहकर अनेक कर्तव्य निभाए।
मघवा गणी की उन पर विशेष कृपा थी। वे उनकी साधारण सी प्रार्थना को भी बहूमान दिया करते थे। शोभाचंदजी भी सेवा का प्रत्येक अवसर प्राप्त करने में अग्रसर रहते थे। एक बार मघवागणी सुजानगढ़ में विराजमान थे। वे उन दिनों कुछ अस्वस्थ थे। अनेक उपचार करने पर रोग तो मिटा पर दुर्बलता नहीं मिटी। शोभाचंदजी को पता लगा तो वे दर्शन करने के लिए आए। नगराजजी बैंगानी भी उनके साथ थे। मघवागणी शौच के लिए बहिर्भूमि में पधारे हुए थे। वहीं उन लोगों ने दर्शन किए। नगराजजी को कभी-कभी 'दरसाव' हुआ करता था। उसी के आधार पर शोभाचंदजी ने प्रार्थना की कि औषध के लिए आपको बिदासर पधार जाना चाहिए। मघवागणी ने तत्काल उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और वहीं से बीदासर की ओर प्रस्थान कर दिया। पुस्तकें तथा उपकरण संतो को भेजकर मंगवा लिए। इस प्रकार आषाढ़ी पूर्णिमा को पहुंचकर संवत् 1944 का वह चातुर्मास बीदासर में किया।
एक बार नगराजजी ने शोभाचंदजी से कहा— "मुझे दरसाव हुआ है कि मघवागणी दिवंगत हो गए।" दोनों व्यक्ति उसी समय ऊंटों पर सवार होकर सरदारशहर की ओर चल पड़े। वे वहां दाह कर्म से पूर्व ही पहुंच गए। मार्ग में एक जगह शोभाचंदजी ऊंट पर से गिर पड़े थे, परंतु समय पर पहुंचने की तीव्र भावना में वह पीड़ा कहां खो गई, पता ही नहीं चला।
डालगणी ने लाडनूं में मर्यादा महोत्सव किया। वहां शोभाचंदजी पूरे परिवार सहित सेवा करने के लिए गए। लाडनूं के चिमनीरामजी बैद की पुत्री से शोभाचंदजी के भतीजे भंवरलालजी की सगाई की गई। उन्होंने समधियों को 'सिरावणी' दी। चिमनीरामजी धनी व्यक्ति थे, अतः अपने आर्थिक सामर्थ्य के प्रदर्शन की तत्कालीन पद्धति का अनुसरण करते हुए उन्होंने प्रचुर मात्रा में भोज्य सामग्री वहां भेजी। शोभाचंदजी ने उस सामग्री को देखा तो उनके मन में एक भावना उठी। उन्होंने डालगणी से प्रार्थना की कि आज पूरी गोचरी उन्हीं के घर से होनी चाहिए। डालगणी ने उनकी प्रार्थना को ध्यान में रखकर अधिकांश आहार वहीं से मंगवाया।
*बीदासर के सेवाभावी श्रावक शोभाचंदजी पर कालूगणी की कृपा* से परिचित होंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Video
09 August 2018
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👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के प्रतिदिन के
*मुख्य प्रवचन* को देखने के लिए निचे दिए
गए लिंक पर क्लिक करें....⏬
https://youtu.be/CdwpvxfBDUU
📍दिनांक:
*09 अगस्त 2018*
प्रस्तुति:
💧 *अमृतवाणी*💧
संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 बेंगलुरु- तिविहार संथारा प्रत्याख्यान
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......
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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए
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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां
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दिनांक:
09 अगस्त 2018
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 *तेरापंथ सरताज आचार्य श्री महाश्रमण के श्री चरणों मे मातृहृदया, असाधारण साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी अपने 78 वें जन्मदिवस के अवसर पर*
🙏 *संघ संवाद परिवार की तरफ से संघमहानिदेशिका साध्वी प्रमुखा श्री जी के 78 वें जन्मदिवस के अवसर पर श्रद्धासिक्त वंदन अभिनन्दन*🙏
दिनांक 09-08-2018
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*चित्त और मन का स्वास्थ्य: वीडियो श्रंखला ३*
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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