07.08.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 07.08.2018
Updated: 09.08.2018

Update

⛩ *चैन्नई (माधावरम) से आज के कुछ विशेष दृश्य..*🌈
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
🙏🏻 *राष्ट्रसंत परम पावन पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण* की मंगल सन्निधि में पहुंचे *संत कृपाराम जी व उनके गुरु संत राजाराम जी*..
👉 *"तिन्नाणं तारयाणं"* को व्यख्यायित करते हुए..
👉 *आचार्यश्री ने अपने साथ-साथ जनता का भी कल्याण करने की प्रेरणा प्रदान की*...

दिनांक: 07/08/2018

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 हैदराबाद: श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा द्वारा दो दिवसीय निशुल्क कैंसर जांच शिविर का आयोजन
👉 बरेटा - सामूहिक तपोभिनंदन समारोह का आयोजन
👉 आसीन्द - कैंसर रोग कारण और निवारण पर कार्यशाला का आयोजन
👉 आसीन्द - अणुव्रत महासमिति प्रिंट मीडिया प्रभारी की संगठन यात्रा
👉 सी स्कीम जयपुर - आचार्य तुलसी शिक्षा परियोजना के अन्तर्गत ते.म.म. द्वारा सेवा कार्य
👉 जयपुर - प्रेक्षावाहिनी द्वारा प्रेक्षाध्यान कार्यशाला आयोजित

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Video

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 7 अगस्त 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......

🔮
परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए

📒
आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

🏮
कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां

📮
दिनांक:
07 अगस्त 2018

🎯
प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 395* 📝

*हृदयहारी आचार्य मलधारी हेमचन्द्र*

*ग्रंथों का पद्य परिमाण*

मुनि सुव्रत चरित ग्रंथ की प्रशस्ति में आचार्य मलधारी के 9 ग्रंथों का वर्णन है। इस ग्रंथ के अनुसार मलधारी हेमचंद्र की सर्वप्रथम रचना उपदेशमालामूल और भवभावनामूल नामक ग्रंथ हैं। मलधारीजी ने इन दोनों ग्रंथों पर क्रमशः 14 हजार और 16 हजार पद्य परिमाण वृत्ति की रचना भी की थी। इन चार ग्रंथों की रचना के बाद उन्होंने अनुयोगद्वार पर 6 हजार पद्य परिमाण जीवसमास पर 7 हजार पद्य परिमाण और शतक ग्रंथ (बन्ध शतक) की 4 हजार पद्य परिमाण वृत्ति की रचना की। हरिभद्र कृत आवश्यक वृत्ति का 5 हजार पद्य परिमाण टिप्पण रचा। मलधारीजी के ग्रंथों में सर्वाधिक विशाल वृत्ति विशेषावश्यक भाष्य की है। यह वृत्ति 28 हजार पद्य परिमाण बताई गई है।

*अनशन की स्थिति* जीवन के अंतिम समय में मलधारी हेमचंद्र को सात दिन का अनशन आया। जैन धर्म की प्रभावना हुई। राजा सिद्धराज जयसिंह मलधारी हेमचंद्राचार्य की प्रज्ञा से प्रभावित थे। वे उनकी शव यात्रा में सम्मिलित हुए थे।

*शिष्य-वर्ग* विजयसिंह, श्रीचंद्र, विबुधचंद्र नामक उनके तीन विद्वान् शिष्य थे। श्रीचंद्रसूरि प्रसिद्ध साहित्यकार थे। साहित्य साधना से इन्होंने अपने गुरु हेमचंद्र का नाम उजागर किया। मलधारीजी के शिष्य विजयसिंहसूरि वीर निर्वाण 1612 (विक्रम संवत् 1142, ईस्वी सन् 1085, शक संवत् 1007) में विद्यमान थे।

*समय-संकेत*

आचार्य मलधारी हेमचंद्र के आचार्य पद ग्रहण और स्वर्गवास के समय का उल्लेख नहीं मिलता। मलधारी हेमचंद्र के गुरु मलधारी अभयदेव का स्वर्गवास वीर निर्वाण 1638 (विक्रम संवत् 1168, ईस्वी सन् 1111) में हुआ। इस आधार पर मलधारी हेमचंद्राचार्य का पद-ग्रहण समय वीर निर्वाण 1138 (विक्रम संवत् 1168, ईस्वी सन् 1111) हो सकता है।

मलधारी हेमचंद्र द्वारा हस्तलिखित जीवसमास की वृत्ति की प्रति के अंत में प्रदत्त प्रशस्ति के उल्लेखानुसार यह प्रति वीर निर्माण 1634 (विक्रम संवत् 1164, ईस्वी सन् 1107, शक संवत् 1029) में लिखी गई है। विशेषावश्यक भाष्य की वृहद् वृत्ति की संपन्नता वीर निर्वाण 1645 (विक्रम संवत् 1175, ईस्वी सन् 1118, शक संवत् 1040) में हुई। मलधारी हेमचंद्र के ग्रंथों में विक्रम संवत् 1177 के बाद का उल्लेख नहीं है। आधुनिक अनुसंधाता सुधीजनों की दृष्टि से मलधारी हेमचंद्र का समय वीर निर्वाण 1650 (विक्रम संवत् 1180, ईस्वी सन् 1123) से आगे संभव नहीं है। अतः अपने युग के प्रकांड विद्वान् मलधारी हेमचंद्र वीर निर्वाण 17वीं (विक्रम संवत् 12वीं) शताब्दी के प्रभावशाली आचार्य थे एवं कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र से पूर्ववर्ती थे।

*वादकुशल आचार्य वादिदेव के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 49* 📜

*शोभाचंदजी बैंगानी (द्वितीय)*

*होनहार बालक*

शोभाचंदजी बैंगानी का जन्म संवत् 1902 भाद्र शुक्ला 10 गुरुवार को बिदासर में हुआ। उनके पिता का नाम पन्नेचंदजी था। घर की आर्थिक स्थिति साधारण थी। इसलिए मेधावी बालक शोभाचंदजी महाजनी शिक्षा ग्रहण करते ही चौदह वर्ष की अल्पायु में नौकरी के लिए असम प्रदेश में चले गए। वहां ब्रम्हपुत्र नदी के पूर्वी तट पर बसे "ग्वालपाड़ा" में बिदासर के सुप्रसिद्ध श्रावक उत्तमचंदजी बैंगानी के यहां नौकरी करने लगे।

एक दिन प्रातः वे नदी में स्नान कर रहे थे, तब एक असमी व्यक्ति ने उनके दाहिने कंधे पर लहसुन का चिन्ह देखा। वह व्यक्ति भी उत्तमचंदजी की गद्दी में आया-जाया करता था। उसने अगले ही दिन मुनीमजी से बात करते हुए कहा— "आपके यहां आजकल जो एक नया लड़का आया हुआ है, वह कौन है?" मुनीमजी ने कहा— "वह भी सेठों के गांव बीदासर का ही निवासी है।" उस व्यक्ति ने कहा— "कल मुझे नदी पर स्नान करते समय उसके शरीर पर जो चिन्ह दिखाई दिए थे, उनसे लगता है कि लड़का बहुत ही होनहार है।" मुनीम ने गद्दी के अन्य समाचारों के साथ यह समाचार भी बीदासर में उत्तमचंदजी के पास भेज दिया। सेठ के एकमात्र पुत्र भैरूंदानजी युवावस्था में निःसंतान ही दिवंगत हो चुके थे, अतः उनका ध्यान इस समाचार की ओर विशेष आकृष्ट हुआ। उन्होंने अपने स्वजन वर्ग से विचार-विमर्श किया और फिर संवत् 1918 में उन्हें पौत्र रूप में गोद ले लिया। शोभाचंदजी ने शीघ्र ही स्वयं को उस परिवार के संस्कारों में ढाल लिया। पितामह के लिए वे अत्यंत मानसिक एवं शारीरिक साता देने वाले हुए।

*प्रभावशाली व्यक्तित्व*

शोभाचंदजी का व्यक्तित्व उत्तरोत्तर निखरता गया। व्यापार कार्य से लेकर घर के छोटे से छोटे कार्य को उन्होंने इस प्रकार से संभाला की सभी को उनसे पूर्ण संतोष हुआ। बीदासर के ओसवालों में क्षत्रियत्व का भाव अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। वे प्रबलता के प्रशंसक और असाधारणता के पुजारी होते हैं। साधारणता से उनको संतुष्ट कर पाना संभव नहीं है। शोभाचंदजी में प्रबलता और असाधारणता दोनों थीं। इसीलिए स्थानीय लोगों ने शीघ्र ही उन्हें अपना मुखिया मानना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे उनका प्रभाव इतना बढ़ा कि स्थानीय पंचायत में उनका निर्णय प्रायः अंतिम और सर्वमान्य हुआ करता। अन्य स्थानों के झगड़े भी सुलझाव के लिए उनके पास आया करते। उनका परामर्श अथवा निर्णय प्रायः उभय पक्षों के हित को दृष्टि में रखकर हुआ करते थे, अतः सहज ही मान्य हो जाया करते थे। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि जहां भी जाते वहां उन्हीं का दबदबा छाया रहता। हर स्थान पर सम्मान मानो पलक पांवड़े बिछाए उनकी प्रतीक्षा में खड़ा मिलता।

बीकानेर नरेश गंगासिंहजी उन्हें अपने राज्य का एक विशिष्ट व्यक्ति माना करते थे। एक बार उन्होंने उन्हें सम्मानित करने के लिए छड़ी चपरास की बख्शीश का पत्र देकर नाजिम सीतारामजी को बिदासर भेजा। उन्होंने वहां आकर जब वह पत्र शोभाचंदजी को दिया तो उन्होंने बड़ी नम्रता तथा आदर के साथ वापस कर दिया। उन्होंने कहा— "यह सब तो भूस्वामियों के घर ही शोभा देता है। हम लोग व्यापारी हैं, जो आज यहां और कल वहां रहते हैं। हमारे लिए इस सम्मान के अनुरूप स्वयं को सदैव बनाए रखना कठिन होता है।"

*बीदासर के सेवाभावी श्रावक शोभाचंदजी की व्यावसायिक उदारता* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Video

https://youtu.be/STn19ZGuVUc

*Preksha Meditation full Pravachan series*
Pravachan by: Acharyashri Mahapragyaji
Duration: 43 minutes

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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🌻 *संघ संवाद* 🌻

News in Hindi

Video

07 August 2018

👉 *परम पूज्य आचार्य प्रवर* के प्रतिदिन के
*मुख्य प्रवचन* को देखने के ‌लिए निचे दिए गए
लिंक पर क्लिक करें....⏬

https://youtu.be/P2_lOPmMlSg

📍दिनांक:
*07 अगस्त 2018*

प्रस्तुति:
💧 *अमृतवाणी*💧

संप्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 उदयपुर - ज्ञानशाला ज्ञानर्थियों के लिए एक दिवसीय शिविर का आयोजन

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 *अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में तेरापंथ महिला मंडल, मुम्बई द्वारा*

🌀 *महाराष्ट्रीय स्तरीय विराट महिला सम्मेलन सृजन का आयोजन*

🌀 *साध्वी श्री अणिमा श्री जी व साध्वी श्री जी मंगलप्रज्ञा जी* के पावन सान्निध्य में

🌀 *अभातेमम अध्यक्ष श्रीमती कुमुद कच्छारा व महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया* की गरिमामय उपस्थिति में

🌀 *मिसेस एशिया यूनिवर्स पिंकी जी राजगिरिया, नगर सेवक रीटा जी मकवाना, मोटिवेटर मंजू जी लोढ़ा* ने दी प्रासंगिक अभिव्यक्ति

🌀 *सम्मेलन में 1000 से भी ज्यादा महिलाओं की उपस्थिति*

दिनांक 05-08-2018

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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