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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 36* 📜
*किसनमलजी भंडारी*
*प्रथम सूचनाकार*
संवत् 1954 में लाडनूं में जब मुनि डालचंदजी को आचार्य पद के लिए चुना गया, तब तार द्वारा उसकी सूचना जोधपुर में किसनमलजी भंडारी के यहां भेजी गई। मुनि डालचंदजी अपने साथ के छह संतो सहित उस समय कच्छ से विहार करते हुए जोधपुर पहुंचने वाले थे। लक्षमणदासजी, कानमलजी आदि स्थानीय प्रमुख श्रावकों को साथ लेकर भंडारीजी ने निकटस्थ गांव में उनके दर्शन किए और आचार्य पद पर उनके चुनाव की सर्वप्रथम सूचना प्रदान की।
सूचना उन्होंने सीधी ही नहीं दे दी। पहले दर्शन करते ही उन्होंने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जो कि तेरापंथ में केवल आचार्य के लिए ही प्रयुक्त किए जा सकते हैं। मुनिश्री ने उन्हें टोकते हुए कहा— "भंडारीजी! संघ की मर्यादाओं के जानकार होते हुए भी आप यह भूल कैसे कर रहे हैं? इन शब्दों का प्रयोग केवल आचार्य के लिए ही होना चाहिए, सर्व साधारण के लिए नहीं।"
भंडारीजी ने कहा— "हम आचार्य के लिए ही इन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, सर्व साधारण के लिए नहीं। यह देखिए उसका प्रमाण।" उन्होंने तत्काल तार निकालकर उनके हाथ में पकड़ा दिया और कहा— "अब आप मुनि डालचंदजी न होकर आचार्यश्री डालगणी हैं। हम लोगों ने इसीलिए उक्त शब्दों का प्रयोग किया है।" भंडारीजी अवसर का लाभ करने में चूकने वाले नहीं थे, अतः बोले— "हम सब बधाई लेकर आए हैं, अतः उपालंभ के नहीं, पुरस्कार के अधिकारी हैं। आप हमें प्रथम चातुर्मास प्रदान करने की कृपा कीजिए।" डालगणी ने तब उसी दिन जोधपुर पहुंचने तथा साथ रात रहने का पुरस्कार प्रदान किया।
*'कवि श्रेष्ठ' की उपाधि*
किसनमलजी काव्य-रसिक व्यक्ति थे। वे स्वयं भी कविता किया करते थे। उन्होंने काफी श्रम और अर्थ व्यय करके मारवाड़ के प्राचीन इतिहास का संग्रह किया था। उसे मारवाड़ के जागीरदारों का इतिहास कहा जा सकता है। गद्य-पद्यात्मक शैली का वह एक विशाल ग्रंथ है। मूलतः उसमें पद्य हैं और हर पद्य के नीचे उसमें संकेतित घटनाओं का विस्तार गद्य में है। वे स्फुट कविताएं एवं गीतिकाएं भी लिखा करते थे। समय-समय पर अपने यहां लगने वाले कवि दरबार में वे अपनी कविताएं सुनाया भी करते थे। कविता पाठ करने की उनकी अपनी एक विशिष्ट पद्धति थी, जो लोगों को काफी प्रभावित करती थी।
एक बार तत्कालीन प्रसिद्ध कवि बाबा गणेशपुरीजी के सान्निध्य में आयोजित काव्य गोष्ठी में किसनमलजी को 'कवि श्रेष्ठ' की उपाधि देते हुए माला पहनाकर सम्मानित किया गया।
*किसनमलजी द्वारा रचित कुछ कविताओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 382* 📝
*जिनशासनसेवी आचार्य जिनवल्लभ*
*साहित्य-साधना*
जिनवल्लभ अपने युग के प्रसिद्ध विद्वान् थे। वे न्याय, दर्शन, व्याकरण आदि विविध ग्रंथों के गंभीर अध्येता और सफल साहित्यकार थे। उनके वर्तमान में उपलब्ध ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं—
*1.* आगमिकवस्तु विचारसार
*2.* श्रृंगार शतक
*3.* प्रश्नषष्टी शतक
*4.* पिंड विशुद्धि प्रकरण
*5.* गणधर सार्ध शतक
*6.* पौषधविधि प्रकरण
*7.* संघ पट्टक प्रतिक्रमण समाचारी
*8.* धर्म शिक्षा
*9.* प्रश्नोत्तर शतक
*10.* स्वप्नाष्टक विचार
*11.* चित्र काव्य
*12.* अजित शांति स्तवन
*13.* भवारीवारण स्तोत्र
*14.* जिन कल्याण स्तोत्र
*15.* जिन स्तोत्र
*16.* वीर-स्तव
*17.* द्वादश कुलक रूप प्रकरण
*समय-संकेत*
आचार्य जिनवल्लभ वीर निर्वाण 1637 (विक्रम संवत् 1167) कार्तिक कृष्णा द्वादशी को रात्रि के चतुर्थ प्रहर में परमेष्ठी ध्यान में तल्लीन थे। उसी अवस्था में त्रिदिवसीय अनशन के साथ उनका स्वर्गवास हो गया। गणी रूप में जिनवल्लभसूरि ने दीर्घकाल तक जैन शासन की प्रभावना की। आचार्य पद को वे लगभग चार माह ही विभूषित कर पाए।
खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली में जिनवल्लभसूरि का जीवन चरित विस्तार से उपलब्ध है।
*अन्तर्दृष्टा आचार्य अभयदेव (मलधारी) के प्रेरणादायी प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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⛩ *चेन्नई से..*
🌈 *"अहिंसा यात्रा" प्रणेता* परमपूज्य गुरुदेव *आचार्य श्री महाश्रमण जी के दर्शनार्थ* पहुंचे *राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत*....
💠 *गुरुवरो धम्म-देसणं!*
✨ *पूज्य गुरुदेव धर्मदेशना देते हुए..*
✨ आर एस एस सरसंघचालक *श्री मोहन भागवत ने भी किया उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित*
👉 *आज के "मुख्य प्रवचन" के कुछ विशेष दृश्य..*
दिनांक: 23/07/2018
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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